AAKAASH, DIK & LOKA WEBINAR, 29 6 2024

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  • Опубликовано: 16 окт 2024
  • Gist of The Today’s Academic Karma (ज्ञान की संस्कार प्रक्रिया) (29th June, 2024)
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    “Under the Vedavyaas Restructuring Scheme” a National Webinar cum Open House Discussion was organized on the topic - "आकाश (व्योम, अन्तरिक्ष, नभस्), दिक् एवम् लोक (भुवन)’ की वैज्ञानिक एवम् दार्शनिक मीमांसा”, “Scientific & Philosophical Critique of Akaash (Space, Sky, Aether) Dik (Direction) & Loka (Planet, Plane, realm of existence)” in which 35 participants from different states participated and shared their scholarly views and Resource Person - Sh. Arun Kumar Upadhyaya, IPS, Former ADGP, Bhuvaneshwar, Odisaa delivered a scholarly brilliant & logical lecture on the issue. Open hose discussion was concluded by the vote of thanx proposed by IASSK.
    Why & What - नास॑दासी॒न्नो सदा॑सीत्त॒दानीं॒ नासी॒द्रजो॒ नो व्यो॑मा प॒रो यत् । किमाव॑रीवः॒ कुह॒ कस्य॒ शर्म॒न्नम्भः॒ किमा॑सी॒द्गह॑नं गभी॒रम् ॥ १॥ - - - - - - - - - - - - - -- इ॒यं विसृ॑ष्टि॒र्यत॑ आब॒भूव॒ यदि॑ वा द॒धे यदि॑ वा॒ न दधे । यो अ॒स्याध्य॑क्षः पर॒मे व्यो॑म॒न्सो अ॒ङ्ग वे॑द॒ यदि॑ वा॒ न वेद॑ ॥ ७॥ There was neither non-existence nor existence then; Neither the realm of space, nor the sky which is beyond; What stirred? Where? In whose protection? Whence all creation had its origin, he, whether he fashioned it or whether he did not, he, who surveys it all from highest heaven, he knows - or maybe even he does not know. -Rigveda 10.129
    नाभ्या आसीदन्तरिक्षं शीर्ष्णो द्यौः समवर्तत । पद्भ्यां भूमिर्दिशः श्रोत्रात्तथा लोकाँ अकल्पयन् ॥१४॥ From his navel was produced the firmament, the heavens came into existence from his head; the earth from his feet; the deed from his ears.
    The enclosures of the sacrificial altar were seven and twenty-one were the logs of the fuel when the gods performed the universal sacrifice with the supreme Purusha as the object of sacrifice. - Rigveda 10.90
    इस परिचर्चा का आरम्भ वर्तमान-कालिक विज्ञान से पूर्वकालिक पौर्व अभिव्यक्तियाँ और उनके प्रति समझ की ओर अग्रसर होने से सुविधाजनक होगा अन्यथा विषय विस्तार और उसके बिन्दुओं को जोड़ने में कठिनाई उत्पन्न होने की सम्भावना है और परिचर्चा का उद्देश्य ही होता है जितना और जिस प्रकार किसी भी विषय को हम सीमितताओं सहित जानते या मानते हैं, उस जानने और मानने का संस्कार कर उसकी विस्तारपूर्ण स्पष्टता को प्राप्त करें । अतः विज्ञान द्वारा प्रतिपादित बिग-बैंग सिद्धान्त स्पेस, स्काई एवम् मैटर की अवधारणाएं आदि यह जानने के लिए उत्सुक करते हैं कि यह सब कहाँ विद्यमान थे और हैं ? क्या स्पेस मैटर है, क्या स्पेस में मैटर है या मैटर में स्पेस है? बिग-बैग कहाँ घटित हुआ था” आदि बहुत प्राथमिक स्तर की जिज्ञासाएँ हैं। चाहे तो आप इन्हें बाल-सुलभ प्रश्न भी कह सकते हैं। लेकिन यह एक जिज्ञासा का औचित्यपूर्ण आरम्भ बिन्दु हो सकता है जहाँ से हम सहस्रों वर्ष पूर्व के शब्दों और उनके अर्थों, विचारों, भावों और उनके साथ संलग्न दर्शन या दृष्टि के जानने और समझने की ओर बौद्धिक अहंकार को एक किनारे रख कर बोधपूर्वक (सेंसिबल) धैर्य के साथ अग्रसर हो सकते हैं। अतः अनन्त कितना अनन्त एवम् शून्य कितना अभावात्मक है - इन दोनों को इन्द्रियानुभव की सीमाओं से, ज्ञान के विस्तार से एवम् कल्पना की उड़ान से ज्ञात करना वैज्ञानिक एवम् दार्शनिक दृष्टि से कुछ असम्भव सा प्रतीत होता है। और पुनः अनन्त और शून्य की अवधारणाओं के मध्य में आकाश को महाभूत के रूप में, एक तत्त्व के रूप में, “आकाशस्तल्लिङ्गात्” (ब्रह्मसूत्र) के सन्दर्भ में, शब्द गुण धारक के रूप में, आणविकता से हीन को जानना श्रमसाध्य कार्य है । यह तो निश्चित है कि इसी आकाश नामक महाभूत या द्रव्य में दिक् और उसके केन्द्र सहित दश भेदों और उनके विस्तार के साथ साथ दश दिक्पालों के अर्थ और प्रयोजन को जानने के साथ उनमें सांस्कृतिक -धार्मिक दृष्टि से स्वीकृत १४ लोकों के प्रारूप, सार एवम् प्रयोजन को जानना रुचिकर एवम् ज्ञानवर्धक विषय होने की योग्यता रखता है। क्या १४ लोक की अवधारणा या अस्तित्व केवल कल्पना मात्र है या धार्मिक विश्वास मात्र है या वास्तव में इनकी कोई वस्तुस्थिति है? लोक अपने आप में बहु-आयामी शब्द है और अपने निर्वचनकी दृष्टि से लोक प्रकाश के अर्थ में प्रयुक्त होता है और साथ ही साथ वह लोगों के लिए भी प्रयुक्त होता है - जैसे कि लोकतन्त्र, लोकरुचि, लोकार्पण, लोक-विश्वास के साथ साथ विष्णु-लोक, शिव-लोक, स्वर्ग-लोक, यम-लोक, भू-लोक, सत्य-लोक, पाताल-लोक, सूर्यलोक ,चन्द्रलोक आदि। अतः आकाश, दिक एवम् लोक के त्रिक या त्रिपुटी पर चर्चा के लिए आप सादर आमन्त्रित हैं। उपरोक्त विषय के सन्दर्भ में आपके प्रश्नों का, उत्तरों का, सुझावों और वैचारिक आयामों का विनम्रतापूर्ण स्वागत है। आप परिचर्चा के लिए सादर आमन्त्रित हैं। *
    Regards,
    Ashutosh Angiras,

Комментарии • 1

  • @nishantsharma1733
    @nishantsharma1733 Месяц назад +1

    Kham Brahm viz shunyam ev Brahm from Brahm brahma originates from brahma brahmand comes into being.