19/84 श्री नागचंद्रेश्वर महादेव | 84 Mahadev Ujjain | चौरासी महादेव उज्जैन | Mahakal | Ujjain

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  • Опубликовано: 14 окт 2024
  • 84 महादेव की कथा : श्री नागचंद्रेश्वर महादेव की कथा / 84 Mahadev Ujjain #mahadev #ujjainDo
    पौराणिक कथाओं के अनुसार एक बार राजा इंद्र की सुधर्मा सभा में देवर्षि नारद मुनि कथा प्रसंग सुना रहे थे। तब देवराज इंद्र ने उनसे कहा, हे देवर्षि, आपने तो तीनों लोकों को देखा है, जाना है। कृपया मुझे बताएं कि इस पृथ्वी लोक पर ऐसा
    कौन सा स्थान है जो सर्वोत्तम है, जो मुक्ति प्रदान करने वाला है? प्रत्युत्तर में नारदजी बोले, हे देवराज, पृथ्वी पर सबसे उत्तम स्थल प्रयाग है। लेकिन उससे भी दस गुना अधिक पवित्र और उत्तम महाकाल वन में अवंतिका है। वहां के दर्शन मात्र से सुख
    और मोक्ष की प्राप्ति होती है। नारद मुनि के वचन सुन इंद्र देव समेत सभी देवगण विमानों में बैठ महाकाल वन स्थित अवंतिका पहुंचे।
    वहां पहुंच कर देवताओं ने यह देखा कि महाकाल वन में तो हर जगह करोड़ों शिवलिंग विराजमान है, इंच भर भी जगह खाली नहीं है। सभी जगह शिव निर्माल्य है और शिव निर्माल्य को लांघने के पाप के डर से सभी देवता स्वर्गलोक को लौट जाने लगे। तभी उन्होंने यह देखा कि एक दिव्य पुरुष प्रसन्नता से स्वर्ग की ओर जाता दिखाई दिया। तब देवताओं ने उससे पूछा, आप बड़ी प्रसन्नता से कहां जा रहे हैं? आपने कौन सा उत्तम कार्य किया है? उत्तर में दिव्य पुरुष ने जवाब दिया, मैं महाकाल का भक्त हूं। मेरा नाम नागचण्डेश्वर है। मुझे उनका गण होने का आशीर्वाद मिला है। देवताओं ने पूछा- वहां शिव निर्माल्य को लांघने से क्या तुम्हें दोष नहीं लगा। तब उसने बताया कि यहां ईशानेश्वर के ईशानकोण में एक लिंग है। उस लिंग का दर्शन करने से शिव-निर्माल्य को लांघने का ही नहीं अपितु समस्त दोष मिट जातें हैं।
    नागचंद्रेश्वर की बात सुन सभी देवतागण ईशानेश्वर के पास स्थित दिव्य लिंग का दर्शन करने पहुंचे। वहां पहुंच दर्शन करने से देवताओं के शिव निर्माल्य के साथ सभी पाप नष्ट हो गए। देवताओं को दिशा दी दिव्य पुरुष नागचंद्रेश्वर ने, इसलिए देवताओं ने उन महादेव का नाम नागचंद्रेश्वर रखा।
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