बृहस्पतिवार के दिन श्री विष्णु चालीसा Vishnu Chalisa सुनने से सभी मनोकामनाएं पूर्ण होती हैं

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  • Опубликовано: 16 сен 2024
  • बृहस्पतिवार के दिन श्री विष्णु चालीसा Vishnu Chalisa सुनने से सभी मनोकामनाएं पूर्ण होती हैं
    दोहा
    विष्णु सुनिए विनय सेवक की चितलाय ।
    कीरत कुछ वर्णन करूं दीजै ज्ञान बताय ॥
    चौपाई
    नमो विष्णु भगवान खरारी, कष्ट नशावन अखिल बिहारी ।
    प्रबल जगत में शक्ति तुम्हारी, त्रिभुवन फैल रही उजियारी ॥
    सुन्दर रूप मनोहर सूरत, सरल स्वभाव मोहनी मूरत ।
    तन पर पीताम्बर अति सोहत, बैजन्ती माला मन मोहत ॥
    शंख चक्र कर गदा विराजे, देखत दैत्य असुर दल भाजे ।
    सत्य धर्म मद लोभ न गाजे, काम क्रोध मद लोभ न छाजे ॥
    सन्तभक्त सज्जन मनरंजन, दनुज असुर दुष्टन दल गंजन ।
    सुख उपजाय कष्ट सब भंजन, दोष मिटाय करत जन सज्जन ॥
    पाप काट भव सिन्धु उतारण, कष्ट नाशकर भक्त उबारण ।
    करत अनेक रूप प्रभु धारण, केवल आप भक्ति के कारण ॥
    धरणि धेनु बन तुमहिं पुकारा, तब तुम रूप राम का धारा ।
    भार उतार असुर दल मारा, रावण आदिक को संहारा ॥
    आप वाराह रूप बनाया, हिरण्याक्ष को मार गिराया ।
    धर मत्स्य तन सिन्धु बनाया, चौदह रतनन को निकलाया ॥
    अमिलख असुरन द्वन्द मचाया, रूप मोहनी आप दिखाया ।
    देवन को अमृत पान कराया, असुरन को छवि से बहलाया ॥
    कूर्म रूप धर सिन्धु मझाया, मन्द्राचल गिरि तुरत उठाया ।
    शंकर का तुम फन्द छुड़ाया, भस्मासुर को रूप दिखाया ॥
    वेदन को जब असुर डुबाया, कर प्रबन्ध उन्हें ढुढवाया ।
    मोहित बनकर खलहि नचाया, उसही कर से भस्म कराया ॥
    असुर जलन्धर अति बलदाई, शंकर से उन कीन्ह लड़ाई ।
    हार पार शिव सकल बनाई, कीन सती से छल खल जाई ॥
    सुमिरन कीन तुम्हें शिवरानी, बतलाई सब विपत कहानी ।
    तब तुम बने मुनीश्वर ज्ञानी, वृन्दा की सब सुरति भुलानी ॥
    देखत तीन दनुज शैतानी, वृन्दा आय तुम्हें लपटानी ।
    हो स्पर्श धर्म क्षति मानी, हना असुर उर शिव शैतानी ॥
    तुमने ध्रुव प्रहलाद उबारे, हिरणाकुश आदिक खल मारे ।
    गणिका और अजामिल तारे, बहुत भक्त भव सिन्धु उतारे ॥
    हरहु सकल संताप हमारे, कृपा करहु हरि सिरजन हारे ।
    देखहुं मैं निज दरश तुम्हारे, दीन बन्धु भक्तन हितकारे ॥
    चाहता आपका सेवक दर्शन, करहु दया अपनी मधुसूदन ।
    जानूं नहीं योग्य जब पूजन, होय यज्ञ स्तुति अनुमोदन ॥
    शीलदया सन्तोष सुलक्षण, विदित नहीं व्रतबोध विलक्षण ।
    करहुं आपका किस विधि पूजन, कुमति विलोक होत दुख भीषण ॥
    करहुं प्रणाम कौन विधिसुमिरण, कौन भांति मैं करहु समर्पण ।
    सुर मुनि करत सदा सेवकाई, हर्षित रहत परम गति पाई ॥
    दीन दुखिन पर सदा सहाई, निज जन जान लेव अपनाई ।
    पाप दोष संताप नशाओ, भव बन्धन से मुक्त कराओ ॥
    सुत सम्पति दे सुख उपजाओ, निज चरनन का दास बनाओ ।
    निगम सदा ये विनय सुनावै, पढ़ै सुनै सो जन सुख पावै ॥
    ॥ इति श्री विष्णु चालीसा ॥
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