09.परम-समाधि अधिकार श्री नियमसार हिंदी पद्धानुवाद Shri Niyamsar Hindi Gatha 122 to 133 KundKund Dev
HTML-код
- Опубликовано: 13 сен 2024
- परम-समाधि अधिकार श्री नियमसार हिंदी पद्धानुवाद
रे त्याग वचनोच्चार किरिया, वीतरागी भावसे ।
ध्यावे निजात्मा जो, परम होती समाधि है उसे ॥१२२॥
संयम नियम तपसे तथा रे धर्म-शुक्ल सुध्यानसे
ध्यावे निजात्मा जो परम होती समाधि है उसे ॥१२३॥
वनवास, कायाक्लेशरूप अनेक विध उपवाससे ।
वा अध्ययन मौनादिसे क्या ! साम्यविरहित साधुके ॥१२४॥
सावद्यविरत, त्रिगुप्तिमय अरु विमुखइन्द्रिय जो रहे ।
स्थायी सामायिक है उसे, यो केवलीशासन कहे ॥१२५॥
स्थावर तथा त्रस सर्व जीवसमूह प्रति समता लहे ।
स्थायी सामायिक है उसे, यो केवली शासन कहे ॥१२६॥
संयम-नियम-तपमें अहो ! आत्मा समीप जिसे रहे।
स्थायी सामायिक है उसे, यो केवली शासन कहे ॥१२७॥
नहिं राग अथवा द्वेषसे जो संयमी विकृति लहे ।
स्थायी सामायिक है उसे, यो केवलीशासन कहे ॥१२८॥
रे ! आर्त-रौद्र दुध्यानका नित ही जिसे वर्जन रहे ।
स्थायी सामायिक है उसे, यो केवलीशासन कहे ॥१२९॥
जो पुण्य-पाप विभाव भावो का सदा वर्जन करे ।
स्थायी समायिक है उसे, यो केवलीशासन कहे ॥१३०॥
जो नित्य वर्षे हास्य, अरु रति, अरति, शोकविरत रहे ।
स्थायी समायिक है उसे, यो केवलीशासन कहे ॥१३१॥
जो नित्य वर्जे भय जुगुप्सा, सर्व वेद समूह रे ।
स्थायी समायिक है उसे, यो केवलीशासन कहे ॥१३२॥
जो नित्य उत्तम धर्म-शुक्ल सुध्यानमें ही रत रहे ।
स्थायी समायिक है उसे यों केवलीशासन कहे ॥१३३॥