हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे ।। हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे।। शुभ प्रभात, मंगलमय दिवस, सादर शाष्टाॅग दण्डवत प्रणाम् स्वीकार करें🌹🌹🙇♀️🌹🌹।
परम कृष्ण ही परम brahm है.इनसे ही सभी अवतार ब्रह्म विष्णु शिवजी और अनंत ब्रह्माण्ड उत्पन होते रहते है,,गोलोक धाम किसी आयाम में नहीं आता,,बिल्कुल जुदा और सभी ब्रह्मांडो से परे है,,,जय परम कृष्ण🙏🙏🙏🙏🌷🌷🌷🌷🌷🌷🌷🚶
श्रीकृष्णस्तोत्रं ब्रह्मवैवर्तपुराणे नारायणकृतम् -नैमिषारण्य में आये हुए सौतिजी शौनक जी को ब्रह्म वैवर्त पुराण के ब्रह्म खण्ड अध्याय-३ में श्रीकृष्ण से सृष्टि का आरम्भ की कथा सुनते हैं कि - ब्रह्मन! जगत को इस शून्यावस्था में देख मन-ही-मन सब बातों की आलोचना करके दूसरे किसी सहायक से रहित एकमात्र स्वेच्छामय प्रभु ने स्वेच्छा से ही सृष्टि-रचना आरम्भ की। सबसे पहले उन परम पुरुष श्रीकृष्ण के दक्षिणपार्श्व से जगत के कारण रूप तीन मूर्तिमान गुण प्रकट हुए। उन गुणों से महत्तत्त्व, अहंकार, पाँच तन्मात्राएँ तथा रूप, रस, गन्ध, स्पर्श और शब्द-ये पाँच विषय क्रमशः प्रकट हुए। तदनन्तर श्रीकृष्ण से साक्षात भगवान नारायण का प्रादुर्भाव हुआ, जिनकी अंगकान्ति श्याम थी, वे नित्य-तरुण, पीताम्बरधारी तथा वनमाला से विभूषित थे। उनके चार भुजाएँ थीं। उन्होंने अपने चार हाथों में क्रमशः - शंख, चक्र, गदा और पद्म धारण कर रखे थे। उनके मुखारविन्द पर मन्द मुस्कान की छटा छा रही थी। वे रत्नमय आभूषणों से विभूषित थे, शांर्गधनुष धारण किये हुए थे। कौस्तुभमणि उनके वक्षःस्थल की शोभा बढ़ाती थी। श्रीवत्सभूषित वक्ष में साक्षात लक्ष्मी का निवास था। वे श्रीनिधि अपूर्व शोभा को प्रकट कर रहे थे; शरत्काल की पूर्णिमा के चन्द्रमा की प्रभा से सेवित मुख-चन्द्र के कारण वे बड़े मनोहर जान पड़ते थे। कामदेव की कान्ति से युक्त रूप-लावण्य उनका सौन्दर्य बढ़ा रहा था। वे श्रीकृष्ण के सामने खड़े हो दोनों हाथ जोड़कर उनकी स्तुति करने लगे- श्रीकृष्णस्तोत्रं ब्रह्मवैवर्तपुराणे नारायणकृतम् नारायण उवाच ।। वरं वरेण्यं वरदं वरार्हं वरकारणम् ।। कारणं कारणानां च कर्म तत्कर्मकारणम् ।। 1.3.१० ।। नारायण बोले- जो वर (श्रेष्ठ), वरेण्य (सत्पुरुषों द्वारा पूज्य), वरदायक (वर देने वाले) और वर की प्राप्ति के कारण हैं; जो कारणों के भी कारण, कर्मस्वरूप और उस कर्म के भी कारण हैं; तपस्तत्फलदं शश्वत्तपस्वीशं च तापसम् ।। वन्दे नवघनश्यामं स्वात्मारामं मनोहरम् ।।११।। तप जिनका स्वरूप है, जो नित्य-निरन्तर तपस्या का फल प्रदान करते हैं, तपस्वीजनों में सर्वोत्तम तपस्वी हैं, नूतन जलधर के समान श्याम, स्वात्माराम और मनोहर हैं, उन भगवान श्रीकृष्ण मैं वन्दना करता हूँ। निष्कामं कामरूपं च कामघ्नं कामकारणम्।। सर्वं सर्वेश्वरं सर्वं बीजरूपमनुत्तमम् ।। १२ ।। जो निष्काम और कामरूप हैं, कामना के नाशक तथा कामदेव की उत्पत्ति के कारण हैं, जो सर्वरूप, सर्वबीज स्वरूप, सर्वोत्तम एवं सर्वेश्वर हैं, वेदरूपं वेदभवं वेदोक्तफलदं फलम् ।। वेदज्ञं तद्विधानं च सर्ववेदविदांवरम् ।। १३ ।। वेद जिनका स्वरूप है, जो वेदों के बीज, वेदोक्त फल के दाता और फलरूप हैं, वेदों के ज्ञाता, उसे विधान को जानने वाले तथा सम्पूर्ण वेदवेत्ताओं के शिरोमणि हैं, उन भगवान श्रीकृष्ण को मैं प्रणाम करता हूँ। इत्युक्त्वा भक्तियुक्तश्च स उवास तदाज्ञया ।। रत्नसिंहासने रम्ये पुरतः परमात्मनः ।। १४ ।। ऐसा कहकर वे नारायणदेव भक्तिभाव से युक्त हो उनकी आज्ञा से उन परमात्मा के सामने रमणीय रत्नमय सिंहासन पर विराज गये। नारायणकृतं स्तोत्रं यः पठेत्सुसमाहितः ।। त्रिसंध्यं यः पठेन्नित्यं पापं तस्य न विद्यते ।। १५ ।। : जो पुरुष प्रतिदिन एकाग्रचित्त हो तीनों संध्याओं के समय नारायण द्वारा किये गये इस स्तोत्र को सुनता और पढ़ता है, वह निष्पाप हो जाता है। : पुत्रार्थी लभते पुत्रं भार्य्यार्थी लभते प्रियाम् ।। भ्रष्टराज्यो लभेद्राज्यं धनं भ्रष्टधनो लभेत् ।।१६।। उसे यदि पुत्र की इच्छा हो तो पुत्र मिलता है और भार्या की इच्छा हो तो प्यारी भार्या प्राप्त होती है। जो अपने राज्य से भ्रष्ट हो गया है, वह इस स्तोत्र के पाठ से पुनः राज्य प्राप्त कर लेता है तथा धन से वंचित हुए पुरुष को धन की प्राप्ति हो जाती है। कारागारे विपद्ग्रस्तः स्तोत्रेणानेन मुच्यते ।। रोगात्प्रमुच्यते रोगी ध्रुवं श्रुत्वा च संयतः ।। १७ ।। : कारागार के भीतर विपत्ति में पड़ा हुआ मनुष्य यदि इस स्तोत्र का पाठ करे तो निश्चय ही संकट से मुक्त हो जाता है। एक वर्ष तक इसका संयमपूर्वक श्रवण करने से रोगी अपने रोग से छुटकारा पा जाता है। इति ब्रह्मावैवर्ते नारायणकृतं श्रीकृष्णस्तोत्रम् ।
विष्णु का अर्थ,,,सर्वव्यापक,,, होता है - विष्णु ही सच्चे भगवान है,, विष्णु न जाने कितने,,,कृष्ण (ब्रह्माण्ड मे) पैदा कर सकते है । 🙏🙏🙏 बोलो,,,,🌻🌻नारायण नारायण🌻 🌻🙏🙏🙏
श्रीकृष्णस्तोत्रं ब्रह्मवैवर्तपुराणे नारायणकृतम् -नैमिषारण्य में आये हुए सौतिजी शौनक जी को ब्रह्म वैवर्त पुराण के ब्रह्म खण्ड अध्याय-३ में श्रीकृष्ण से सृष्टि का आरम्भ की कथा सुनते हैं कि - ब्रह्मन! जगत को इस शून्यावस्था में देख मन-ही-मन सब बातों की आलोचना करके दूसरे किसी सहायक से रहित एकमात्र स्वेच्छामय प्रभु ने स्वेच्छा से ही सृष्टि-रचना आरम्भ की। सबसे पहले उन परम पुरुष श्रीकृष्ण के दक्षिणपार्श्व से जगत के कारण रूप तीन मूर्तिमान गुण प्रकट हुए। उन गुणों से महत्तत्त्व, अहंकार, पाँच तन्मात्राएँ तथा रूप, रस, गन्ध, स्पर्श और शब्द-ये पाँच विषय क्रमशः प्रकट हुए। तदनन्तर श्रीकृष्ण से साक्षात भगवान नारायण का प्रादुर्भाव हुआ, जिनकी अंगकान्ति श्याम थी, वे नित्य-तरुण, पीताम्बरधारी तथा वनमाला से विभूषित थे। उनके चार भुजाएँ थीं। उन्होंने अपने चार हाथों में क्रमशः - शंख, चक्र, गदा और पद्म धारण कर रखे थे। उनके मुखारविन्द पर मन्द मुस्कान की छटा छा रही थी। वे रत्नमय आभूषणों से विभूषित थे, शांर्गधनुष धारण किये हुए थे। कौस्तुभमणि उनके वक्षःस्थल की शोभा बढ़ाती थी। श्रीवत्सभूषित वक्ष में साक्षात लक्ष्मी का निवास था। वे श्रीनिधि अपूर्व शोभा को प्रकट कर रहे थे; शरत्काल की पूर्णिमा के चन्द्रमा की प्रभा से सेवित मुख-चन्द्र के कारण वे बड़े मनोहर जान पड़ते थे। कामदेव की कान्ति से युक्त रूप-लावण्य उनका सौन्दर्य बढ़ा रहा था। वे श्रीकृष्ण के सामने खड़े हो दोनों हाथ जोड़कर उनकी स्तुति करने लगे- श्रीकृष्णस्तोत्रं ब्रह्मवैवर्तपुराणे नारायणकृतम् नारायण उवाच ।। वरं वरेण्यं वरदं वरार्हं वरकारणम् ।। कारणं कारणानां च कर्म तत्कर्मकारणम् ।। 1.3.१० ।। नारायण बोले- जो वर (श्रेष्ठ), वरेण्य (सत्पुरुषों द्वारा पूज्य), वरदायक (वर देने वाले) और वर की प्राप्ति के कारण हैं; जो कारणों के भी कारण, कर्मस्वरूप और उस कर्म के भी कारण हैं; तपस्तत्फलदं शश्वत्तपस्वीशं च तापसम् ।। वन्दे नवघनश्यामं स्वात्मारामं मनोहरम् ।।११।। तप जिनका स्वरूप है, जो नित्य-निरन्तर तपस्या का फल प्रदान करते हैं, तपस्वीजनों में सर्वोत्तम तपस्वी हैं, नूतन जलधर के समान श्याम, स्वात्माराम और मनोहर हैं, उन भगवान श्रीकृष्ण मैं वन्दना करता हूँ। निष्कामं कामरूपं च कामघ्नं कामकारणम्।। सर्वं सर्वेश्वरं सर्वं बीजरूपमनुत्तमम् ।। १२ ।। जो निष्काम और कामरूप हैं, कामना के नाशक तथा कामदेव की उत्पत्ति के कारण हैं, जो सर्वरूप, सर्वबीज स्वरूप, सर्वोत्तम एवं सर्वेश्वर हैं, वेदरूपं वेदभवं वेदोक्तफलदं फलम् ।। वेदज्ञं तद्विधानं च सर्ववेदविदांवरम् ।। १३ ।। वेद जिनका स्वरूप है, जो वेदों के बीज, वेदोक्त फल के दाता और फलरूप हैं, वेदों के ज्ञाता, उसे विधान को जानने वाले तथा सम्पूर्ण वेदवेत्ताओं के शिरोमणि हैं, उन भगवान श्रीकृष्ण को मैं प्रणाम करता हूँ। इत्युक्त्वा भक्तियुक्तश्च स उवास तदाज्ञया ।। रत्नसिंहासने रम्ये पुरतः परमात्मनः ।। १४ ।। ऐसा कहकर वे नारायणदेव भक्तिभाव से युक्त हो उनकी आज्ञा से उन परमात्मा के सामने रमणीय रत्नमय सिंहासन पर विराज गये। नारायणकृतं स्तोत्रं यः पठेत्सुसमाहितः ।। त्रिसंध्यं यः पठेन्नित्यं पापं तस्य न विद्यते ।। १५ ।। : जो पुरुष प्रतिदिन एकाग्रचित्त हो तीनों संध्याओं के समय नारायण द्वारा किये गये इस स्तोत्र को सुनता और पढ़ता है, वह निष्पाप हो जाता है। : पुत्रार्थी लभते पुत्रं भार्य्यार्थी लभते प्रियाम् ।। भ्रष्टराज्यो लभेद्राज्यं धनं भ्रष्टधनो लभेत् ।।१६।। उसे यदि पुत्र की इच्छा हो तो पुत्र मिलता है और भार्या की इच्छा हो तो प्यारी भार्या प्राप्त होती है। जो अपने राज्य से भ्रष्ट हो गया है, वह इस स्तोत्र के पाठ से पुनः राज्य प्राप्त कर लेता है तथा धन से वंचित हुए पुरुष को धन की प्राप्ति हो जाती है। कारागारे विपद्ग्रस्तः स्तोत्रेणानेन मुच्यते ।। रोगात्प्रमुच्यते रोगी ध्रुवं श्रुत्वा च संयतः ।। १७ ।। : कारागार के भीतर विपत्ति में पड़ा हुआ मनुष्य यदि इस स्तोत्र का पाठ करे तो निश्चय ही संकट से मुक्त हो जाता है। एक वर्ष तक इसका संयमपूर्वक श्रवण करने से रोगी अपने रोग से छुटकारा पा जाता है। इति ब्रह्मावैवर्ते नारायणकृतं श्रीकृष्णस्तोत्रम् ।
🙏🙌राधे राधे🙌🙏
हमारे प्यारे-प्यारे श्री महाराज जी🙏🙌🙏
श्रीकृष्ण गोविन्द हरे मुरारे हेनाथ नारायण वासुदेवा, श्रीराधा जय राधा राधा राधा श्री राधा
जय श्री राधे राधे राधे कृष्ण जी 🙏🏻🙏🏻🌺🌺
हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे ।।
हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे।।
शुभ प्रभात, मंगलमय दिवस, सादर शाष्टाॅग दण्डवत प्रणाम् स्वीकार करें🌹🌹🙇♀️🌹🌹।
गुरु देव के चरणकमलों में शाष्टांग दंडवत प्रणाम...जै जै जै जै...🙏🙏🌹🌹🙏🙏
जहां प्रेम हैं । वहां कृष्ण हैं। ❤️😊🙏 हरे कृष्ण
परम कृष्ण ही परम brahm है.इनसे ही सभी अवतार ब्रह्म विष्णु शिवजी और अनंत ब्रह्माण्ड उत्पन होते रहते है,,गोलोक धाम किसी आयाम में नहीं आता,,बिल्कुल जुदा और सभी ब्रह्मांडो से परे है,,,जय परम कृष्ण🙏🙏🙏🙏🌷🌷🌷🌷🌷🌷🌷🚶
🙏 Radhe Radhe Jay shree shyam 🙏🙏🌹 Jai shree Krishna 🙏🙏🙏🙏🙏🙏🙏
जय स्वामिनारायण सर्वोपरि जय हो जयजयकार हो। वन्दे महापुरुष! ते चरणारविन्दम् ।
अखिल ब्रह्मांड नायक योगेश्वर भगवान श्रीराधेकृष्ण को कोटि कोटि नमन ❤❤
Jai ho krishn ke creator bhagwan vishnu ki
जय श्री राधे राधे राधे राधे राधे राधे राधे राधे राधे राधे राधे राधे राधे राधे राधे राधे राधे राधे राधे राधे राधे राधे राधे राधे जी ❤️🙏🙏🙏🙏🙏
श्रीकृष्णस्तोत्रं ब्रह्मवैवर्तपुराणे नारायणकृतम् -नैमिषारण्य में आये हुए सौतिजी शौनक जी को ब्रह्म वैवर्त पुराण के ब्रह्म खण्ड अध्याय-३ में श्रीकृष्ण से सृष्टि का आरम्भ की कथा सुनते हैं कि - ब्रह्मन! जगत को इस शून्यावस्था में देख मन-ही-मन सब बातों की आलोचना करके दूसरे किसी सहायक से रहित एकमात्र स्वेच्छामय प्रभु ने स्वेच्छा से ही सृष्टि-रचना आरम्भ की। सबसे पहले उन परम पुरुष श्रीकृष्ण के दक्षिणपार्श्व से जगत के कारण रूप तीन मूर्तिमान गुण प्रकट हुए। उन गुणों से महत्तत्त्व, अहंकार, पाँच तन्मात्राएँ तथा रूप, रस, गन्ध, स्पर्श और शब्द-ये पाँच विषय क्रमशः प्रकट हुए। तदनन्तर श्रीकृष्ण से साक्षात भगवान नारायण का प्रादुर्भाव हुआ, जिनकी अंगकान्ति श्याम थी, वे नित्य-तरुण, पीताम्बरधारी तथा वनमाला से विभूषित थे। उनके चार भुजाएँ थीं। उन्होंने अपने चार हाथों में क्रमशः - शंख, चक्र, गदा और पद्म धारण कर रखे थे। उनके मुखारविन्द पर मन्द मुस्कान की छटा छा रही थी। वे रत्नमय आभूषणों से विभूषित थे, शांर्गधनुष धारण किये हुए थे। कौस्तुभमणि उनके वक्षःस्थल की शोभा बढ़ाती थी। श्रीवत्सभूषित वक्ष में साक्षात लक्ष्मी का निवास था। वे श्रीनिधि अपूर्व शोभा को प्रकट कर रहे थे; शरत्काल की पूर्णिमा के चन्द्रमा की प्रभा से सेवित मुख-चन्द्र के कारण वे बड़े मनोहर जान पड़ते थे। कामदेव की कान्ति से युक्त रूप-लावण्य उनका सौन्दर्य बढ़ा रहा था। वे श्रीकृष्ण के सामने खड़े हो दोनों हाथ जोड़कर उनकी स्तुति करने लगे-
श्रीकृष्णस्तोत्रं ब्रह्मवैवर्तपुराणे नारायणकृतम्
नारायण उवाच ।।
वरं वरेण्यं वरदं वरार्हं वरकारणम् ।।
कारणं कारणानां च कर्म तत्कर्मकारणम् ।। 1.3.१० ।।
नारायण बोले- जो वर (श्रेष्ठ), वरेण्य (सत्पुरुषों द्वारा पूज्य), वरदायक (वर देने वाले) और वर की प्राप्ति के कारण हैं; जो कारणों के भी कारण, कर्मस्वरूप और उस कर्म के भी कारण हैं;
तपस्तत्फलदं शश्वत्तपस्वीशं च तापसम् ।।
वन्दे नवघनश्यामं स्वात्मारामं मनोहरम् ।।११।।
तप जिनका स्वरूप है, जो नित्य-निरन्तर तपस्या का फल प्रदान करते हैं, तपस्वीजनों में सर्वोत्तम तपस्वी हैं, नूतन जलधर के समान श्याम, स्वात्माराम और मनोहर हैं, उन भगवान श्रीकृष्ण मैं वन्दना करता हूँ।
निष्कामं कामरूपं च कामघ्नं कामकारणम्।।
सर्वं सर्वेश्वरं सर्वं बीजरूपमनुत्तमम् ।। १२ ।।
जो निष्काम और कामरूप हैं, कामना के नाशक तथा कामदेव की उत्पत्ति के कारण हैं, जो सर्वरूप, सर्वबीज स्वरूप, सर्वोत्तम एवं सर्वेश्वर हैं,
वेदरूपं वेदभवं वेदोक्तफलदं फलम् ।।
वेदज्ञं तद्विधानं च सर्ववेदविदांवरम् ।। १३ ।।
वेद जिनका स्वरूप है, जो वेदों के बीज, वेदोक्त फल के दाता और फलरूप हैं, वेदों के ज्ञाता, उसे विधान को जानने वाले तथा सम्पूर्ण वेदवेत्ताओं के शिरोमणि हैं, उन भगवान श्रीकृष्ण को मैं प्रणाम करता हूँ।
इत्युक्त्वा भक्तियुक्तश्च स उवास तदाज्ञया ।।
रत्नसिंहासने रम्ये पुरतः परमात्मनः ।। १४ ।।
ऐसा कहकर वे नारायणदेव भक्तिभाव से युक्त हो उनकी आज्ञा से उन परमात्मा के सामने रमणीय रत्नमय सिंहासन पर विराज गये।
नारायणकृतं स्तोत्रं यः पठेत्सुसमाहितः ।।
त्रिसंध्यं यः पठेन्नित्यं पापं तस्य न विद्यते ।। १५ ।।
: जो पुरुष प्रतिदिन एकाग्रचित्त हो तीनों संध्याओं के समय नारायण द्वारा किये गये इस स्तोत्र को सुनता और पढ़ता है, वह निष्पाप हो जाता है।
: पुत्रार्थी लभते पुत्रं भार्य्यार्थी लभते प्रियाम् ।।
भ्रष्टराज्यो लभेद्राज्यं धनं भ्रष्टधनो लभेत् ।।१६।।
उसे यदि पुत्र की इच्छा हो तो पुत्र मिलता है और भार्या की इच्छा हो तो प्यारी भार्या प्राप्त होती है। जो अपने राज्य से भ्रष्ट हो गया है, वह इस स्तोत्र के पाठ से पुनः राज्य प्राप्त कर लेता है तथा धन से वंचित हुए पुरुष को धन की प्राप्ति हो जाती है।
कारागारे विपद्ग्रस्तः स्तोत्रेणानेन मुच्यते ।।
रोगात्प्रमुच्यते रोगी ध्रुवं श्रुत्वा च संयतः ।। १७ ।।
: कारागार के भीतर विपत्ति में पड़ा हुआ मनुष्य यदि इस स्तोत्र का पाठ करे तो निश्चय ही संकट से मुक्त हो जाता है। एक वर्ष तक इसका संयमपूर्वक श्रवण करने से रोगी अपने रोग से छुटकारा पा जाता है।
इति ब्रह्मावैवर्ते नारायणकृतं श्रीकृष्णस्तोत्रम् ।
राधा राधा राधा राधा राधे राधे राधे राधे राधे राधे राधे राधे राधे राधे राधे राधे राधे राधे राधे राधे राधे राधे राधे राधे राधे राधे राधे राधे राधे राधे राधे राधे राधे राधे राधे राधे राधे राधे राधे राधे राधे राधे राधे राधे राधे राधे राधे राधे राधे राधे राधे राधे राधे राधे राधे राधे राधे राधे राधे राधे राधे राधे राधे राधे राधे राधे राधे राधे राधे राधे राधे राधे राधे राधे राधे राधे राधे राधे राधे राधे राधे राधे राधे राधे राधे राधे राधे राधे राधे राधे राधे राधे राधे राधे राधे राधे राधे राधे
Kripalu. Maharaj has led us on the path of. Divinity by way of his divine knowledge He has deeply invested our devotion in Lord Krishna
@@tushar7852Krishna Sampradaya
Pehli baar sun raha hu aisa lag raha h jaisa sunta hi rahu aankh se pani aa raha h jai shree krishna
Jagat guru shri kripalu ji maharajki jai ❤❤❤
Radhe Radhe ❤❤❤
जय सियाराम बोलो जय सियाराम
Post.kaginti.kaisekiya.jata.hai.Aka.gotra.mekai.pust.ke.log.hai.kripakar.Batay.
Pust kaise ginati kiya jata hai.
जय_सियाराम🚩
ॐ नमो भगवते वासुदेवाय नमः
Radha radha, gurudev yeh to bohot e rochak Or unsuni katha hai🙏🙏🙏🙏🙏🙏❤❤❤❤
श्री महाराज जी राधे राधे राधे राधे राधे 🙏🙏🙏🙏
Jay shree radheKrishna ❤❤😊😊
पूज्य जगद्गुरु वास्तव में सच्चे गुरु है मेरे ऐसे गुरु के श्री चरणों में कोटि - कोटि सादर प्रणाम !
🥀🌹🛕🪴🌷 जय जय श्री राधे राधे राधे राधे राधे संत व्यास भगवान की जय हो श्री चरणों में कोटि कोटि प्रणाम नमः 💦🌺☘️🌸🌿🥀📿📿🌹🪴💐💐🪔🪔🪔🪔🪔🔔🪴🌷👣🥀🌹👏👏👏🥀🌹🪴🚩🚩🚩
🌺 जय श्री राधे कृष्णा 🌺🙏
🙏🙏"जय जय श्री राधे गोविन्द जी हरे ।"
Radhe Radhe Kirpalu mahaprabhu ji ke komal shree Charan kamal main koti koti pranam ♥️🙏🙏🌺🌸🌺🌸🌺🌸🌺🌸🌺
Hare Krishna Hare Krishna
Krishna Krishna Hare Hare
Hare Rama Hare Rama
Rama Rama Hare Hare
हरे राम हरे कृष्ण जय श्री राधे 🙏🌹🙏
Lord Krishna is the real 🙏 God. Follow him and start loving each other.
वेद से साबित करो की श्री कृष्ण ईश्वर है
Our hearts 💕 is our real brain and through which we can meet the God and attend MUKTI 🙏.
jai shree maha Vishnu ❤️🙏🏽🚩
जगद्गगुरु भगवान् के श्री चरणों में साष्टांग दण्डवत् प्रणाम निवेदन
Jai shree Radhe Krishna 🎉🎉🎉🎉🎉🎉🎉🎉🎉🎉🎉🎂
💝 Rãdhë Ràdhê 💝
😘Mere NandNandan Mere NandNandan apna Banale mohin mere NandNandan 😘
💝 Rãdhë Ràdhê 💝
Jai Shri Radhey Krishna 🙏❤️ shrimadha sadhguru sarakara ki Jai 🙏🙏❤️
ଦ୍ଵାରିକା ରେ ରାଜା କୃଷ୍ଣ ଦାସ ବୃନ୍ଦାବନେ । ଐଶ୍ୱର୍ଯ୍ୟ ଦ୍ବାରିକା ପୁରେ ମାଧୂର୍ୟ ବୃନ୍ଦାବନେ । ଜୟ ଶ୍ରୀ ରାଧେ ଗୋବିନ୍ଦ ରାଧେ ଜୟ ଜଗନ୍ନାଥ।
Super hit lecture and full of Devin power jai shri Krishna
जय गुरुदेव जय श्री कृष्ण
He mere govind aur radhe rani ko danwat pranaam karta hu💕💕💕🌺🧑🏻🌹🍇🍇🌺💕💕🙏🙏🌺🧑🏻🌹🍇
Jay Ho Jay Shri radhe radhe radhe radhe radhe radhe radhe Krishna 🙏
Jay shree hari narayan mahaprabhu 🙏🙏❤️
🙏भायँ कुभायँ अनख आलस हूँ। नाम जपत मंगल दिसि दसहूँ 🙏 सुमिरि सो नाम राम गुन गाथा। करउँ नाइ रघुनाथहि माथा🙏
🙏श्री राम जय राम जय जय राम🙏
Jay Gurudev Shri Hari Om 🙏🏻🙏🏻 Jay Shree Radhe Krishna 🙏🏻🙏🏻
Radhe.Radhe🙏🏼🌷🥀🌹🙏🏼
राधे राधे जय श्री कृष्ण🥰🙏🙏
वाह गुरुजी वाह किया दिव्य कथा है प्रभु की वाह 🙏❤❤❤❤
राधे कृष्णा 🙏❤🙌
विष्णु का अर्थ,,,सर्वव्यापक,,, होता है -
विष्णु ही सच्चे भगवान है,, विष्णु न जाने कितने,,,कृष्ण (ब्रह्माण्ड मे) पैदा कर सकते है ।
🙏🙏🙏 बोलो,,,,🌻🌻नारायण नारायण🌻 🌻🙏🙏🙏
Jagat Guru KO KOTI KOTI NamanExilent Jankari Thanks
🙏❤️🌹राधे राधे जी🌹❤️🙏
परम पूज्य जगद्गुरूत्तम श्री कृपालु जी महाराज के श्री चरणों में सादर साष्टांग प्रणाम निवेदन !
राधे राधे गोविन्द कृष्ण कृष्ण हरे हरे राम राम राम राम हरे हरे हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे
Shriman Narayan narayan hari hari 🙏❤️🙏
श्री मद सदगुरुदेव सरकार को जय
राधे राधेश्री महाराज जि❤️❤️🙏🙏🌹🌹
Jya gurudev aap ko koti koti pranam jya shree krishna radhy radhy
Jay shri krishna🙏👌🌿❤
Jay shriRam❤👌🌿🙏
जय श्री हरि🌺🙏
राधे राधे!
जय श्री कृष्ण!
जय श्री राधे कृष्णा जय श्री कृष्ण
लाडले प्यारे नटखट कृष्ण कन्हैया लाल की जय
Sri radhe krishna ji
Radhe Radhe 🙏🏽
Joi sree Krishna 🌷🌷🌷🐚🐚🐚🔱🔱🔱
Jay shree radhe radhe jay shree Krishna 🙏🙏🙏
Radhe radhe radhe 🙏🚩💐
Apratim Prawachan gurugi.
Jay guru kirpalu ji maharaj ki jai ho.
Radhe Radhe.
Jay Shree Radhe Krishna Guru Ji Radhe Radhe Radhe Krishna
Radhe Krishna Radhe Krishna Radhe Krishna Radhe Krishna Radhe Krishna
राधा राधा ❤❤
जय श्री राधे कृष्णा जय श्री गुरु देव की🙏
हरे कृष्ण हरे कृष्ण हरे कृष्ण हरे राम हरे राम हरे राम जय श्री कृष्ण जय श्री राम
Jai Sri Radha Krishna 🙏🏻🙏🏻❤️🌷🌹🌹🌺🌸🌼🙏🏻🙏🏻🌷🌹🙏🏻🌷🌹
Hare Krishna 🌺
जय श्री राधे कृष्णा राधे कृष्णा राधे कृष्णा राधे कृष्णा राधे कृष्णा राधे कृष्णा राधे कृष्णा राधे कृष्णा राधे कृष्णा राधे कृष्णा राधे कृष्णा राधे कृष्णा राधे कृष्णा राधे कृष्णा राधे कृष्णा राधे कृष्णा राधे कृष्णा राधे कृष्णा राधे कृष्णा राधे कृष्णा राधे कृष्णा राधे कृष्णा राधे कृष्णा राधे कृष्णा राधे कृष्णा राधे कृष्णा राधे कृष्णा राधे कृष्णा राधे-राधे राधे-राधे राधे-राधे राधे-राधे राधे-राधे राधे-राधे राधे-राधे राधे-राधे राधे-राधे राधे-राधे राधे-राधे राधे-राधे राधे-राधे राधे-राधे राधे-राधे राधे-राधे
Shree man Narayan
Radhe Radhe Maharaj ji.
Jya gurudev aap ko koti koti pranam jya shree krishna radhy radhy jya vind bake bihari lal ki jya ho
your entire efforts of preaching immortal
Jay shiv Jay shiv
Jay Jay bhawani
Radhe krishna Radhe krishna
Hare Krishna 🙏🙏
राधे गोविन्द गोपाल हरि ॐ हरि कृष्ण हरि ॐ प्रणाम 🙏🙏🙏🙏🙏💐🏵️🌹🌺😭🌸👋🥀🌷🙏🙏
श्रीहरि ही सब कुछ हैं
सारे अवतार उन्ही से हैं
जय🙏 श्री कृष्ण🌹🌹🌹🌹🌹
प्रभु कृपा बनी रहे
जय श्री राधे राधे 🙏🙏🙏🙏🌹🌹🌹
श्री गुरु जी के श्री चरणों में सेवक का कोटि कोटि🙏🙏🙏
यही वाणी होनी चाहिए १०० वर्षीय आयु में 🙏🏻
Hame sirf galti dikhti he.. Kyu ke ham galat raste par he... Najarya badlo to hame sikh milti he. 🙏🙏
Tum kya bolna chahte ho
Inki death ho chuki h
श्रीकृष्णस्तोत्रं ब्रह्मवैवर्तपुराणे नारायणकृतम् -नैमिषारण्य में आये हुए सौतिजी शौनक जी को ब्रह्म वैवर्त पुराण के ब्रह्म खण्ड अध्याय-३ में श्रीकृष्ण से सृष्टि का आरम्भ की कथा सुनते हैं कि - ब्रह्मन! जगत को इस शून्यावस्था में देख मन-ही-मन सब बातों की आलोचना करके दूसरे किसी सहायक से रहित एकमात्र स्वेच्छामय प्रभु ने स्वेच्छा से ही सृष्टि-रचना आरम्भ की। सबसे पहले उन परम पुरुष श्रीकृष्ण के दक्षिणपार्श्व से जगत के कारण रूप तीन मूर्तिमान गुण प्रकट हुए। उन गुणों से महत्तत्त्व, अहंकार, पाँच तन्मात्राएँ तथा रूप, रस, गन्ध, स्पर्श और शब्द-ये पाँच विषय क्रमशः प्रकट हुए। तदनन्तर श्रीकृष्ण से साक्षात भगवान नारायण का प्रादुर्भाव हुआ, जिनकी अंगकान्ति श्याम थी, वे नित्य-तरुण, पीताम्बरधारी तथा वनमाला से विभूषित थे। उनके चार भुजाएँ थीं। उन्होंने अपने चार हाथों में क्रमशः - शंख, चक्र, गदा और पद्म धारण कर रखे थे। उनके मुखारविन्द पर मन्द मुस्कान की छटा छा रही थी। वे रत्नमय आभूषणों से विभूषित थे, शांर्गधनुष धारण किये हुए थे। कौस्तुभमणि उनके वक्षःस्थल की शोभा बढ़ाती थी। श्रीवत्सभूषित वक्ष में साक्षात लक्ष्मी का निवास था। वे श्रीनिधि अपूर्व शोभा को प्रकट कर रहे थे; शरत्काल की पूर्णिमा के चन्द्रमा की प्रभा से सेवित मुख-चन्द्र के कारण वे बड़े मनोहर जान पड़ते थे। कामदेव की कान्ति से युक्त रूप-लावण्य उनका सौन्दर्य बढ़ा रहा था। वे श्रीकृष्ण के सामने खड़े हो दोनों हाथ जोड़कर उनकी स्तुति करने लगे-
श्रीकृष्णस्तोत्रं ब्रह्मवैवर्तपुराणे नारायणकृतम्
नारायण उवाच ।।
वरं वरेण्यं वरदं वरार्हं वरकारणम् ।।
कारणं कारणानां च कर्म तत्कर्मकारणम् ।। 1.3.१० ।।
नारायण बोले- जो वर (श्रेष्ठ), वरेण्य (सत्पुरुषों द्वारा पूज्य), वरदायक (वर देने वाले) और वर की प्राप्ति के कारण हैं; जो कारणों के भी कारण, कर्मस्वरूप और उस कर्म के भी कारण हैं;
तपस्तत्फलदं शश्वत्तपस्वीशं च तापसम् ।।
वन्दे नवघनश्यामं स्वात्मारामं मनोहरम् ।।११।।
तप जिनका स्वरूप है, जो नित्य-निरन्तर तपस्या का फल प्रदान करते हैं, तपस्वीजनों में सर्वोत्तम तपस्वी हैं, नूतन जलधर के समान श्याम, स्वात्माराम और मनोहर हैं, उन भगवान श्रीकृष्ण मैं वन्दना करता हूँ।
निष्कामं कामरूपं च कामघ्नं कामकारणम्।।
सर्वं सर्वेश्वरं सर्वं बीजरूपमनुत्तमम् ।। १२ ।।
जो निष्काम और कामरूप हैं, कामना के नाशक तथा कामदेव की उत्पत्ति के कारण हैं, जो सर्वरूप, सर्वबीज स्वरूप, सर्वोत्तम एवं सर्वेश्वर हैं,
वेदरूपं वेदभवं वेदोक्तफलदं फलम् ।।
वेदज्ञं तद्विधानं च सर्ववेदविदांवरम् ।। १३ ।।
वेद जिनका स्वरूप है, जो वेदों के बीज, वेदोक्त फल के दाता और फलरूप हैं, वेदों के ज्ञाता, उसे विधान को जानने वाले तथा सम्पूर्ण वेदवेत्ताओं के शिरोमणि हैं, उन भगवान श्रीकृष्ण को मैं प्रणाम करता हूँ।
इत्युक्त्वा भक्तियुक्तश्च स उवास तदाज्ञया ।।
रत्नसिंहासने रम्ये पुरतः परमात्मनः ।। १४ ।।
ऐसा कहकर वे नारायणदेव भक्तिभाव से युक्त हो उनकी आज्ञा से उन परमात्मा के सामने रमणीय रत्नमय सिंहासन पर विराज गये।
नारायणकृतं स्तोत्रं यः पठेत्सुसमाहितः ।।
त्रिसंध्यं यः पठेन्नित्यं पापं तस्य न विद्यते ।। १५ ।।
: जो पुरुष प्रतिदिन एकाग्रचित्त हो तीनों संध्याओं के समय नारायण द्वारा किये गये इस स्तोत्र को सुनता और पढ़ता है, वह निष्पाप हो जाता है।
: पुत्रार्थी लभते पुत्रं भार्य्यार्थी लभते प्रियाम् ।।
भ्रष्टराज्यो लभेद्राज्यं धनं भ्रष्टधनो लभेत् ।।१६।।
उसे यदि पुत्र की इच्छा हो तो पुत्र मिलता है और भार्या की इच्छा हो तो प्यारी भार्या प्राप्त होती है। जो अपने राज्य से भ्रष्ट हो गया है, वह इस स्तोत्र के पाठ से पुनः राज्य प्राप्त कर लेता है तथा धन से वंचित हुए पुरुष को धन की प्राप्ति हो जाती है।
कारागारे विपद्ग्रस्तः स्तोत्रेणानेन मुच्यते ।।
रोगात्प्रमुच्यते रोगी ध्रुवं श्रुत्वा च संयतः ।। १७ ।।
: कारागार के भीतर विपत्ति में पड़ा हुआ मनुष्य यदि इस स्तोत्र का पाठ करे तो निश्चय ही संकट से मुक्त हो जाता है। एक वर्ष तक इसका संयमपूर्वक श्रवण करने से रोगी अपने रोग से छुटकारा पा जाता है।
इति ब्रह्मावैवर्ते नारायणकृतं श्रीकृष्णस्तोत्रम् ।
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Hare krishna hare krishna krishna krishna hare hare here ram hare ram ram ram hare hare
mltiverse theory is well explained in this video by kripalu ji maharaj
Jay Shree Radhe Krishna🙏🙏🙏
राधे राधे जय सदगुरुदेव जय श्री गौरीशंकर जय श्री सीताराम
जय श्री राधे 💐🙏
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Radhey Radhey ! Bhakti Yograsavtar Jagadguruttam Shri Kripalu Maharaj ji ki Jai
Aaj asli gyan prapt hua🙏
Radhe Krishna Radhe krishna
Hamaare pyaare pyaare shree Maharajji ki jai Hamaare pyaari pyaari Amma ki jai laadlilaal ki jai ♥️❤❤
Atma Rama Ananda Ramana
Achyutha Keshava Hari Narayana
Bhava Bhaya Harana Vanditha Charana
Raghukula Bhooshana Rajeeva Nayana
Namo Narayan 👏🏻
हरी अनंत हरी कथा अनंता ♥️🙏
Bahut hi sundar pravachan hai jai shri radhe krishna 🙏🙏🙏🙏🙏
राधे राधे गोविन्दा श्री राधे राधे गोविन्दा!
गोविन्दा गोविन्दा गोविन्दा श्री राधे राधे गोविन्दा!!
Jai Shri Krishna Jai Shri Guruji 🌷🙏🕉️
हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे
हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे।।