देवी दुर्गा का जन्म कैसे हुआ ? Navratri 2023 | Maa Durga ka janam | Srishti Rachana | Sant Rampal Ji

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  • Опубликовано: 19 авг 2024

Комментарии • 136

  • @darrentsolanki1880
    @darrentsolanki1880 Год назад +7

    Sat SahebJi🙏🙏🌹🌹🌺🌺🌺
    very very great ,informative Tatva gyaan by jagat Guru Sant Rampal ji Maharaj
    Sat SahebJi 🙏🙏🌹🌹🌺🌺🌺

  • @VinodVinod-vi1sx
    @VinodVinod-vi1sx Год назад +14

    Sat guru sant Rampal Mahraj ki ki jai ho👏🙏🙏🙏🙏🙏🙏🙏🙏🙏💓💓💓💓🌻🌷🌼🏵🏵🏵🌹🌹🌹🥀🥀🥀💐💐🌸💮💮💮🏵🏵🌹🌹🥀🥀🐚

    • @k.psingh4701
      @k.psingh4701 Год назад

      हम तौ एक करि जांनानं जांनां ।
      दोइ कहैं तिनहीं कौं दोजग जिन नाहिंन पहिचांनां।
      जैसे बढ़ी काष्ट ही कार्ट अगिनि न काटे कोई।
      सब घटि अंतरि तूही व्यापक धरै सरूपै सोई।
      एकै पवन एक ही पानीं एकै जाेति समांनां।
      एकै खाक गढ़े सब भांडै एकै काेंहरा सांनां।
      माया देखि के जगत लुभांनां कह रे नर गरबांनां
      निरभै भया कछू नहि ब्यापै कहैं कबीर दिवांनां। (पृष्ठ 131)
      शब्दार्थ
      एक-परमात्मा, एक। दोई-दो। तिनहीं-उनको। दोजग-नरक। नाहिंन-नहीं। एकै-एक। पवन-हवा। जोति-प्रकाश। समाना-व्याप्त। खाक-मिट्टी। गढ़े-रचे हुए। भांड़े-बर्तन। कोहरा-कुम्हार। सांनां-एक साथ मिलकर। बाढ़ी-बढ़ई। काष्ट-लकड़ी। अगिनि-आग। घटि-घड़ा, हृदय। अंतरि-भीतर, अंदर। व्यापक-विस्तृत। धरे-रखे। सरूपै-स्वरूप। सोई-वही। जगत-संसार। लुभाना-मोहित होना। नर-मनुष्य। गरबानां-गर्व करना। निरभै-निडरा भया-हुआ। दिवानां-बैरागी।
      प्रसंग-प्रस्तुत पद पाठ्यपुस्तक आरोह भाग-1 में संकलित निर्गुण परंपरा के सर्वश्रेष्ठ कवि कबीर के पदों से उद्धृत है। इस पद में, कबीर ने एक ही परम तत्व की सत्ता को स्वीकार किया है, जिसकी पुष्टि वे कई उदाहरणों से करते हैं।
      व्याख्या-कबीरदास कहते हैं कि हमने तो जान लिया है कि ईश्वर एक ही है। इस तरह से मैंने ईश्वर के अद्वैत रूप को पहचान लिया है। हालाँकि कुछ लोग ईश्वर को अलग-अलग बताते हैं; उनके लिए नरक की स्थिति है, क्योंकि वे वास्तविकता को नहीं पहचान पाते। वे आत्मा और परमात्मा को अलग-अलग मानते हैं। कवि ईश्वर की अद्वैतता का प्रमाण देते हुए कहता है कि संसार में एक जैसी हवा बहती है, एक जैसा पानी है तथा एक ही प्रकाश सबमें समाया हुआ है। कुम्हार भी एक ही तरह की मिट्टी से सब बर्तन बनाता है, भले ही बर्तनों का आकार-प्रकार अलग-अलग हो। बढ़ई लकड़ी को तो काट सकता है, परंतु आग को नहीं काट सकता। इसी प्रकार शरीर नष्ट हो जाता है, परंतु उसमें व्याप्त आत्मा सदैव रहती है। परमात्मा हरेक के हृदय में समाया हुआ है भले ही उसने कोई भी रूप धारण किया हो। यह संसार माया के जाल में फैसा हुआ है। और वही संसार को लुभाता है। इसलिए मनुष्य को किसी भी बात को लेकर घमंड नहीं करना चाहिए। प्रस्तुत पद के अंत में कबीर दास कहते हैं कि जब मनुष्य निर्भय हो जाता है तो उसे कुछ नहीं सताता। कबीर भी अब निर्भय हो गया है तथा ईश्वर का दीवाना हो गया है।

  • @sureshpandit4161
    @sureshpandit4161 Год назад +9

    Sat saheb ji sat🙏 saheb😊🙏🙏🙏🙏🙏 sat saheb🙏

  • @PremKumar-kd9vq
    @PremKumar-kd9vq Год назад +14

    Satguru dev ki jay

  • @purusottamnayak2676
    @purusottamnayak2676 Год назад +9

    Anmol Gyan 👌

  • @guru_bhagwan_
    @guru_bhagwan_ Год назад +10

    Sat saheb Sat guru rampal ji maharaj ki jay

  • @dharmendravishwakarma4248
    @dharmendravishwakarma4248 Год назад +10

    Sat Saheb Ji

  • @ashokghodke6709
    @ashokghodke6709 Год назад +4

    Satguru Rampal Ji Maharaj

  • @jatadhari2136
    @jatadhari2136 Год назад +6

    Way of worship

  • @chandravatidevi2535
    @chandravatidevi2535 Год назад +7

    Bahut achha satsang h

  • @swashnachand5379
    @swashnachand5379 Год назад +4

    very nice and powerful satsang
    bandi chor sat guru Rampal ji maharaj ki jai jo
    sat saheb

  • @nandughritlahre7741
    @nandughritlahre7741 Год назад +6

    Sat Saheb ji

  • @Ratiram.55
    @Ratiram.55 Год назад +6

    सत साहेब

  • @AbhishekKumar-um2mn
    @AbhishekKumar-um2mn Год назад +6

    Sat saheb ji 🙏

  • @omprakashsharma1791
    @omprakashsharma1791 Год назад +2

    🙏🌺🙏Bandi chod sat guru Rampal ji bhagwan ki jai 🙏🌺🙏Sat Saheb 🙏🌺🙏

  • @sobitgour3851
    @sobitgour3851 Год назад +4

    Sat Sahib ji 🙇

  • @patelrinkupatel7956
    @patelrinkupatel7956 Год назад +8

    Supreme God is Kabir

    • @k.psingh4701
      @k.psingh4701 Год назад

      हम तौ एक करि जांनानं जांनां ।
      दोइ कहैं तिनहीं कौं दोजग जिन नाहिंन पहिचांनां।
      जैसे बढ़ी काष्ट ही कार्ट अगिनि न काटे कोई।
      सब घटि अंतरि तूही व्यापक धरै सरूपै सोई।
      एकै पवन एक ही पानीं एकै जाेति समांनां।
      एकै खाक गढ़े सब भांडै एकै काेंहरा सांनां।
      माया देखि के जगत लुभांनां कह रे नर गरबांनां
      निरभै भया कछू नहि ब्यापै कहैं कबीर दिवांनां। (पृष्ठ 131)
      शब्दार्थ
      एक-परमात्मा, एक। दोई-दो। तिनहीं-उनको। दोजग-नरक। नाहिंन-नहीं। एकै-एक। पवन-हवा। जोति-प्रकाश। समाना-व्याप्त। खाक-मिट्टी। गढ़े-रचे हुए। भांड़े-बर्तन। कोहरा-कुम्हार। सांनां-एक साथ मिलकर। बाढ़ी-बढ़ई। काष्ट-लकड़ी। अगिनि-आग। घटि-घड़ा, हृदय। अंतरि-भीतर, अंदर। व्यापक-विस्तृत। धरे-रखे। सरूपै-स्वरूप। सोई-वही। जगत-संसार। लुभाना-मोहित होना। नर-मनुष्य। गरबानां-गर्व करना। निरभै-निडरा भया-हुआ। दिवानां-बैरागी।
      प्रसंग-प्रस्तुत पद पाठ्यपुस्तक आरोह भाग-1 में संकलित निर्गुण परंपरा के सर्वश्रेष्ठ कवि कबीर के पदों से उद्धृत है। इस पद में, कबीर ने एक ही परम तत्व की सत्ता को स्वीकार किया है, जिसकी पुष्टि वे कई उदाहरणों से करते हैं।
      व्याख्या-कबीरदास कहते हैं कि हमने तो जान लिया है कि ईश्वर एक ही है। इस तरह से मैंने ईश्वर के अद्वैत रूप को पहचान लिया है। हालाँकि कुछ लोग ईश्वर को अलग-अलग बताते हैं; उनके लिए नरक की स्थिति है, क्योंकि वे वास्तविकता को नहीं पहचान पाते। वे आत्मा और परमात्मा को अलग-अलग मानते हैं। कवि ईश्वर की अद्वैतता का प्रमाण देते हुए कहता है कि संसार में एक जैसी हवा बहती है, एक जैसा पानी है तथा एक ही प्रकाश सबमें समाया हुआ है। कुम्हार भी एक ही तरह की मिट्टी से सब बर्तन बनाता है, भले ही बर्तनों का आकार-प्रकार अलग-अलग हो। बढ़ई लकड़ी को तो काट सकता है, परंतु आग को नहीं काट सकता। इसी प्रकार शरीर नष्ट हो जाता है, परंतु उसमें व्याप्त आत्मा सदैव रहती है। परमात्मा हरेक के हृदय में समाया हुआ है भले ही उसने कोई भी रूप धारण किया हो। यह संसार माया के जाल में फैसा हुआ है। और वही संसार को लुभाता है। इसलिए मनुष्य को किसी भी बात को लेकर घमंड नहीं करना चाहिए। प्रस्तुत पद के अंत में कबीर दास कहते हैं कि जब मनुष्य निर्भय हो जाता है तो उसे कुछ नहीं सताता। कबीर भी अब निर्भय हो गया है तथा ईश्वर का दीवाना हो गया है।

  • @naveenpharma8874
    @naveenpharma8874 Год назад +3

    Jay bandichor ke

  • @jaipalsingh4648
    @jaipalsingh4648 Год назад +13

    🙏🙏🙏🙏sat guru dev ji ki jai ho 🙏

  • @jatinderrakhra
    @jatinderrakhra Год назад +5

    satgur dev ki jai🙏🙇‍♂️🙏🙇‍♂️

  • @Manoj-vi8hb
    @Manoj-vi8hb 10 месяцев назад +1

    Bandi Chhod Rampal Ji Maharaj ki Jay Ho

  • @creativess8567
    @creativess8567 Год назад +12

    केवल एक मात्र सत आध्यात्मिक ज्ञान 🙇🙇🙇🙇🙏🙏🙏🙏🤲🤲🤲🤲

  • @poojaachagava
    @poojaachagava Год назад +8

    Sat Saheb ji 🌹🙏🏻

  • @mahisingh6166
    @mahisingh6166 Год назад +1

    Bandi chhod satguru Rampal Ji Bhagwan Ji ki Jay Ho

  • @deviramkhasa2046
    @deviramkhasa2046 Год назад +8

    जगत गुरु तत्व दर्शी संत रामपाल जी को कोटि कोटि दंडवत प्रणाम जी👋👋 जय बंदी छोड़ की सत साहेब जी🙏🙏

    • @k.psingh4701
      @k.psingh4701 Год назад +1

      हम तौ एक करि जांनानं जांनां ।
      दोइ कहैं तिनहीं कौं दोजग जिन नाहिंन पहिचांनां।
      जैसे बढ़ी काष्ट ही कार्ट अगिनि न काटे कोई।
      सब घटि अंतरि तूही व्यापक धरै सरूपै सोई।
      एकै पवन एक ही पानीं एकै जाेति समांनां।
      एकै खाक गढ़े सब भांडै एकै काेंहरा सांनां।
      माया देखि के जगत लुभांनां कह रे नर गरबांनां
      निरभै भया कछू नहि ब्यापै कहैं कबीर दिवांनां। (पृष्ठ 131)
      शब्दार्थ
      एक-परमात्मा, एक। दोई-दो। तिनहीं-उनको। दोजग-नरक। नाहिंन-नहीं। एकै-एक। पवन-हवा। जोति-प्रकाश। समाना-व्याप्त। खाक-मिट्टी। गढ़े-रचे हुए। भांड़े-बर्तन। कोहरा-कुम्हार। सांनां-एक साथ मिलकर। बाढ़ी-बढ़ई। काष्ट-लकड़ी। अगिनि-आग। घटि-घड़ा, हृदय। अंतरि-भीतर, अंदर। व्यापक-विस्तृत। धरे-रखे। सरूपै-स्वरूप। सोई-वही। जगत-संसार। लुभाना-मोहित होना। नर-मनुष्य। गरबानां-गर्व करना। निरभै-निडरा भया-हुआ। दिवानां-बैरागी।
      प्रसंग-प्रस्तुत पद पाठ्यपुस्तक आरोह भाग-1 में संकलित निर्गुण परंपरा के सर्वश्रेष्ठ कवि कबीर के पदों से उद्धृत है। इस पद में, कबीर ने एक ही परम तत्व की सत्ता को स्वीकार किया है, जिसकी पुष्टि वे कई उदाहरणों से करते हैं।
      व्याख्या-कबीरदास कहते हैं कि हमने तो जान लिया है कि ईश्वर एक ही है। इस तरह से मैंने ईश्वर के अद्वैत रूप को पहचान लिया है। हालाँकि कुछ लोग ईश्वर को अलग-अलग बताते हैं; उनके लिए नरक की स्थिति है, क्योंकि वे वास्तविकता को नहीं पहचान पाते। वे आत्मा और परमात्मा को अलग-अलग मानते हैं। कवि ईश्वर की अद्वैतता का प्रमाण देते हुए कहता है कि संसार में एक जैसी हवा बहती है, एक जैसा पानी है तथा एक ही प्रकाश सबमें समाया हुआ है। कुम्हार भी एक ही तरह की मिट्टी से सब बर्तन बनाता है, भले ही बर्तनों का आकार-प्रकार अलग-अलग हो। बढ़ई लकड़ी को तो काट सकता है, परंतु आग को नहीं काट सकता। इसी प्रकार शरीर नष्ट हो जाता है, परंतु उसमें व्याप्त आत्मा सदैव रहती है। परमात्मा हरेक के हृदय में समाया हुआ है भले ही उसने कोई भी रूप धारण किया हो। यह संसार माया के जाल में फैसा हुआ है। और वही संसार को लुभाता है। इसलिए मनुष्य को किसी भी बात को लेकर घमंड नहीं करना चाहिए। प्रस्तुत पद के अंत में कबीर दास कहते हैं कि जब मनुष्य निर्भय हो जाता है तो उसे कुछ नहीं सताता। कबीर भी अब निर्भय हो गया है तथा ईश्वर का दीवाना हो गया है।

  • @ratandass1733
    @ratandass1733 Год назад +2

    सत्य ज्ञान है

  • @mathuraprasad5170
    @mathuraprasad5170 Год назад +11

    Bandi chhod sadguru rampal mahraj ji ki jai ho

  • @Sanya_gupta
    @Sanya_gupta 2 часа назад

    Rampal Ji Bhagwan ki Jay Sat Sahib

  • @surendraparihar2022
    @surendraparihar2022 Год назад +10

    True knowledge 💯

    • @k.psingh4701
      @k.psingh4701 Год назад

      हम तौ एक करि जांनानं जांनां ।
      दोइ कहैं तिनहीं कौं दोजग जिन नाहिंन पहिचांनां।
      जैसे बढ़ी काष्ट ही कार्ट अगिनि न काटे कोई।
      सब घटि अंतरि तूही व्यापक धरै सरूपै सोई।
      एकै पवन एक ही पानीं एकै जाेति समांनां।
      एकै खाक गढ़े सब भांडै एकै काेंहरा सांनां।
      माया देखि के जगत लुभांनां कह रे नर गरबांनां
      निरभै भया कछू नहि ब्यापै कहैं कबीर दिवांनां। (पृष्ठ 131)
      शब्दार्थ
      एक-परमात्मा, एक। दोई-दो। तिनहीं-उनको। दोजग-नरक। नाहिंन-नहीं। एकै-एक। पवन-हवा। जोति-प्रकाश। समाना-व्याप्त। खाक-मिट्टी। गढ़े-रचे हुए। भांड़े-बर्तन। कोहरा-कुम्हार। सांनां-एक साथ मिलकर। बाढ़ी-बढ़ई। काष्ट-लकड़ी। अगिनि-आग। घटि-घड़ा, हृदय। अंतरि-भीतर, अंदर। व्यापक-विस्तृत। धरे-रखे। सरूपै-स्वरूप। सोई-वही। जगत-संसार। लुभाना-मोहित होना। नर-मनुष्य। गरबानां-गर्व करना। निरभै-निडरा भया-हुआ। दिवानां-बैरागी।
      प्रसंग-प्रस्तुत पद पाठ्यपुस्तक आरोह भाग-1 में संकलित निर्गुण परंपरा के सर्वश्रेष्ठ कवि कबीर के पदों से उद्धृत है। इस पद में, कबीर ने एक ही परम तत्व की सत्ता को स्वीकार किया है, जिसकी पुष्टि वे कई उदाहरणों से करते हैं।
      व्याख्या-कबीरदास कहते हैं कि हमने तो जान लिया है कि ईश्वर एक ही है। इस तरह से मैंने ईश्वर के अद्वैत रूप को पहचान लिया है। हालाँकि कुछ लोग ईश्वर को अलग-अलग बताते हैं; उनके लिए नरक की स्थिति है, क्योंकि वे वास्तविकता को नहीं पहचान पाते। वे आत्मा और परमात्मा को अलग-अलग मानते हैं। कवि ईश्वर की अद्वैतता का प्रमाण देते हुए कहता है कि संसार में एक जैसी हवा बहती है, एक जैसा पानी है तथा एक ही प्रकाश सबमें समाया हुआ है। कुम्हार भी एक ही तरह की मिट्टी से सब बर्तन बनाता है, भले ही बर्तनों का आकार-प्रकार अलग-अलग हो। बढ़ई लकड़ी को तो काट सकता है, परंतु आग को नहीं काट सकता। इसी प्रकार शरीर नष्ट हो जाता है, परंतु उसमें व्याप्त आत्मा सदैव रहती है। परमात्मा हरेक के हृदय में समाया हुआ है भले ही उसने कोई भी रूप धारण किया हो। यह संसार माया के जाल में फैसा हुआ है। और वही संसार को लुभाता है। इसलिए मनुष्य को किसी भी बात को लेकर घमंड नहीं करना चाहिए। प्रस्तुत पद के अंत में कबीर दास कहते हैं कि जब मनुष्य निर्भय हो जाता है तो उसे कुछ नहीं सताता। कबीर भी अब निर्भय हो गया है तथा ईश्वर का दीवाना हो गया है।

  • @user-pt9lz9hv1t
    @user-pt9lz9hv1t 4 месяца назад

    जय सतगुरू देव जी की

  • @user-ex4kg9hh5w
    @user-ex4kg9hh5w 8 месяцев назад

    Jay Ho Jagat Guru Sant Sahib

  • @truespiritual533
    @truespiritual533 9 месяцев назад +1

    सभी भाइयों और बहनों को दास का सत साहेब

  • @shivamcreativeyt6650
    @shivamcreativeyt6650 Год назад +2

    Anmol satsang

  • @ashokdass8126
    @ashokdass8126 9 месяцев назад

    बंदी छोड़ परमपिता परमेश्वर जी के संत रामपाल जी भगवान जी के चरणों में कॉल रिकॉर्डिंग प्रणाम परमेश्वर जी संत रामपाल जी महाराजदूर देखें एक बार

  • @shrikantsirecs3916
    @shrikantsirecs3916 Год назад +2

    That's true srishti rachana.

  • @ChandrakishorKumar-bb7qz
    @ChandrakishorKumar-bb7qz 9 месяцев назад +2

    Sat saheb ji

  • @manoharlalkumarkumar7913
    @manoharlalkumarkumar7913 Год назад +6

    Sat Saheb guru ji Maharaj ke charano me dandvat pranam gareeb das ko 🙏🙏🙏🙏🙏🙏

  • @mathuraprasad5170
    @mathuraprasad5170 Год назад +10

    Aap sabhi bhai aur bahno ko sat saheb ji

  • @heeralalkhatawlia2694
    @heeralalkhatawlia2694 Год назад +3

    मानुष जन्म दुर्लभ है, मिले ना बारम्बार। ज्यों तरुवर से पत्ता टूट गिरे, बहुर ना लगता डार।।

  • @rambahadurrambahadur8625
    @rambahadurrambahadur8625 Год назад +2

    Sat saheb sabko ji

  • @uditnarayan7437
    @uditnarayan7437 Год назад +8

    True spiritual knowledge

  • @shivamcreativeyt6650
    @shivamcreativeyt6650 Год назад +2

    Anmol vachan

  • @user-bu2gq2qo4c
    @user-bu2gq2qo4c Месяц назад

    Jaisatguru dev ki❤

  • @meenapundir8516
    @meenapundir8516 Год назад +6

    Great spiritual knowledge

  • @amitkorde2356
    @amitkorde2356 10 месяцев назад +3

    🙏❤🙏

  • @Desigaming1170
    @Desigaming1170 Год назад +3

    Sat sahib

  • @avirajmarkandey5802
    @avirajmarkandey5802 Год назад +2

    Satya gyan

  • @prakashgaikwad3313
    @prakashgaikwad3313 6 месяцев назад

    ❤ Thanks Universe Thanks gaid

  • @rajuchauhan7603
    @rajuchauhan7603 9 месяцев назад

    Sant guru ram pal mahraj tavt gnani Dand vand kotee kotee parnam sad guruji me appse diksh Leana chaha tacho

  • @devokedevkavirdev
    @devokedevkavirdev Год назад +6

    Kabir is Supreme power

    • @k.psingh4701
      @k.psingh4701 Год назад

      हम तौ एक करि जांनानं जांनां ।
      दोइ कहैं तिनहीं कौं दोजग जिन नाहिंन पहिचांनां।
      जैसे बढ़ी काष्ट ही कार्ट अगिनि न काटे कोई।
      सब घटि अंतरि तूही व्यापक धरै सरूपै सोई।
      एकै पवन एक ही पानीं एकै जाेति समांनां।
      एकै खाक गढ़े सब भांडै एकै काेंहरा सांनां।
      माया देखि के जगत लुभांनां कह रे नर गरबांनां
      निरभै भया कछू नहि ब्यापै कहैं कबीर दिवांनां। (पृष्ठ 131)
      शब्दार्थ
      एक-परमात्मा, एक। दोई-दो। तिनहीं-उनको। दोजग-नरक। नाहिंन-नहीं। एकै-एक। पवन-हवा। जोति-प्रकाश। समाना-व्याप्त। खाक-मिट्टी। गढ़े-रचे हुए। भांड़े-बर्तन। कोहरा-कुम्हार। सांनां-एक साथ मिलकर। बाढ़ी-बढ़ई। काष्ट-लकड़ी। अगिनि-आग। घटि-घड़ा, हृदय। अंतरि-भीतर, अंदर। व्यापक-विस्तृत। धरे-रखे। सरूपै-स्वरूप। सोई-वही। जगत-संसार। लुभाना-मोहित होना। नर-मनुष्य। गरबानां-गर्व करना। निरभै-निडरा भया-हुआ। दिवानां-बैरागी।
      प्रसंग-प्रस्तुत पद पाठ्यपुस्तक आरोह भाग-1 में संकलित निर्गुण परंपरा के सर्वश्रेष्ठ कवि कबीर के पदों से उद्धृत है। इस पद में, कबीर ने एक ही परम तत्व की सत्ता को स्वीकार किया है, जिसकी पुष्टि वे कई उदाहरणों से करते हैं।
      व्याख्या-कबीरदास कहते हैं कि हमने तो जान लिया है कि ईश्वर एक ही है। इस तरह से मैंने ईश्वर के अद्वैत रूप को पहचान लिया है। हालाँकि कुछ लोग ईश्वर को अलग-अलग बताते हैं; उनके लिए नरक की स्थिति है, क्योंकि वे वास्तविकता को नहीं पहचान पाते। वे आत्मा और परमात्मा को अलग-अलग मानते हैं। कवि ईश्वर की अद्वैतता का प्रमाण देते हुए कहता है कि संसार में एक जैसी हवा बहती है, एक जैसा पानी है तथा एक ही प्रकाश सबमें समाया हुआ है। कुम्हार भी एक ही तरह की मिट्टी से सब बर्तन बनाता है, भले ही बर्तनों का आकार-प्रकार अलग-अलग हो। बढ़ई लकड़ी को तो काट सकता है, परंतु आग को नहीं काट सकता। इसी प्रकार शरीर नष्ट हो जाता है, परंतु उसमें व्याप्त आत्मा सदैव रहती है। परमात्मा हरेक के हृदय में समाया हुआ है भले ही उसने कोई भी रूप धारण किया हो। यह संसार माया के जाल में फैसा हुआ है। और वही संसार को लुभाता है। इसलिए मनुष्य को किसी भी बात को लेकर घमंड नहीं करना चाहिए। प्रस्तुत पद के अंत में कबीर दास कहते हैं कि जब मनुष्य निर्भय हो जाता है तो उसे कुछ नहीं सताता। कबीर भी अब निर्भय हो गया है तथा ईश्वर का दीवाना हो गया है।

  • @diwakarkumar2679
    @diwakarkumar2679 Год назад +3

    Kabir is supremo good

    • @k.psingh4701
      @k.psingh4701 Год назад

      हम तौ एक करि जांनानं जांनां ।
      दोइ कहैं तिनहीं कौं दोजग जिन नाहिंन पहिचांनां।
      जैसे बढ़ी काष्ट ही कार्ट अगिनि न काटे कोई।
      सब घटि अंतरि तूही व्यापक धरै सरूपै सोई।
      एकै पवन एक ही पानीं एकै जाेति समांनां।
      एकै खाक गढ़े सब भांडै एकै काेंहरा सांनां।
      माया देखि के जगत लुभांनां कह रे नर गरबांनां
      निरभै भया कछू नहि ब्यापै कहैं कबीर दिवांनां। (पृष्ठ 131)
      शब्दार्थ
      एक-परमात्मा, एक। दोई-दो। तिनहीं-उनको। दोजग-नरक। नाहिंन-नहीं। एकै-एक। पवन-हवा। जोति-प्रकाश। समाना-व्याप्त। खाक-मिट्टी। गढ़े-रचे हुए। भांड़े-बर्तन। कोहरा-कुम्हार। सांनां-एक साथ मिलकर। बाढ़ी-बढ़ई। काष्ट-लकड़ी। अगिनि-आग। घटि-घड़ा, हृदय। अंतरि-भीतर, अंदर। व्यापक-विस्तृत। धरे-रखे। सरूपै-स्वरूप। सोई-वही। जगत-संसार। लुभाना-मोहित होना। नर-मनुष्य। गरबानां-गर्व करना। निरभै-निडरा भया-हुआ। दिवानां-बैरागी।
      प्रसंग-प्रस्तुत पद पाठ्यपुस्तक आरोह भाग-1 में संकलित निर्गुण परंपरा के सर्वश्रेष्ठ कवि कबीर के पदों से उद्धृत है। इस पद में, कबीर ने एक ही परम तत्व की सत्ता को स्वीकार किया है, जिसकी पुष्टि वे कई उदाहरणों से करते हैं।
      व्याख्या-कबीरदास कहते हैं कि हमने तो जान लिया है कि ईश्वर एक ही है। इस तरह से मैंने ईश्वर के अद्वैत रूप को पहचान लिया है। हालाँकि कुछ लोग ईश्वर को अलग-अलग बताते हैं; उनके लिए नरक की स्थिति है, क्योंकि वे वास्तविकता को नहीं पहचान पाते। वे आत्मा और परमात्मा को अलग-अलग मानते हैं। कवि ईश्वर की अद्वैतता का प्रमाण देते हुए कहता है कि संसार में एक जैसी हवा बहती है, एक जैसा पानी है तथा एक ही प्रकाश सबमें समाया हुआ है। कुम्हार भी एक ही तरह की मिट्टी से सब बर्तन बनाता है, भले ही बर्तनों का आकार-प्रकार अलग-अलग हो। बढ़ई लकड़ी को तो काट सकता है, परंतु आग को नहीं काट सकता। इसी प्रकार शरीर नष्ट हो जाता है, परंतु उसमें व्याप्त आत्मा सदैव रहती है। परमात्मा हरेक के हृदय में समाया हुआ है भले ही उसने कोई भी रूप धारण किया हो। यह संसार माया के जाल में फैसा हुआ है। और वही संसार को लुभाता है। इसलिए मनुष्य को किसी भी बात को लेकर घमंड नहीं करना चाहिए। प्रस्तुत पद के अंत में कबीर दास कहते हैं कि जब मनुष्य निर्भय हो जाता है तो उसे कुछ नहीं सताता। कबीर भी अब निर्भय हो गया है तथा ईश्वर का दीवाना हो गया है।

  • @manakkumawat8057
    @manakkumawat8057 Год назад

    Great knowledge pramatma S

  • @DHARMVEERSINGH-mr4uq
    @DHARMVEERSINGH-mr4uq 7 месяцев назад

    सत् साहेब जी

  • @DharmendraPandit-n4z
    @DharmendraPandit-n4z 27 дней назад

    Sat saheb ji ki jai

  • @Suresh-je1rc
    @Suresh-je1rc 9 месяцев назад

    Sat guru rampal Maraj ji kabir rup mai aai hai

  • @aurovilprasad4024
    @aurovilprasad4024 4 месяца назад

    Devi Durga represents as cosmic energy

  • @omkeshkumar3978
    @omkeshkumar3978 Год назад +3

    🥀🌹🥀🥀🙏🙏🙏

  • @pardeepdas7346
    @pardeepdas7346 9 месяцев назад

    Bahut Achcha

  • @menkadas7268
    @menkadas7268 Год назад

    Jai Mata di 🙏 🙏

  • @revantram6344
    @revantram6344 Год назад +1

    गरीब तीनों देवा कमल दल बसे बमहा विष्णु महेश पहले इनकी वदना फिर सुन सतगुरु उपदेश

  • @mathuraprasad5170
    @mathuraprasad5170 Год назад +5

    🙏🙏🙏

  • @satsaheb5775
    @satsaheb5775 Год назад

    Sat saheb ji 🌹🌹🌹🙏🙏🙏⚘⚘⚘🙏🙏🙏🥀🥀🥀🙏🏼🙏🏼🙏🏼🌺🌺🌺🙏🏼🙏🏼🙏🏼

  • @ambikaprasad1734
    @ambikaprasad1734 Год назад +5

    चुक गई तो चुक जान दे // कर सतगुरु से हेत , सतगुरु दीन दयाल है // फिर उपजा दे खेत🙏🙏↪️ बंदी छोड़ सतगुरु रामपाल जी भगवान जी की जय हो

  • @jogendrasingh978
    @jogendrasingh978 10 месяцев назад

    Narayan hi saty hai

  • @sunilkhasa8486
    @sunilkhasa8486 10 месяцев назад

    Jai mata di 🙏

  • @PappuKumar-u2u
    @PappuKumar-u2u Месяц назад

    Sat saheb

  • @user-wd1el5bc1u
    @user-wd1el5bc1u 9 месяцев назад

    🔮भारत में उत्पन्न वह पूर्ण संत गौर वर्ण के हैं, उनके न दाढ़ी है, ना मूछें हैं और उनके सर पर सफेद बाल हैं। - फ्लोरेंस
    अमेरिका की इस प्रसिद्ध भविष्यवक्ता की उपरोक्त भविष्यवाणी संत रामपाल जी महाराज पर बिल्कुल खरी उतरती है।

  • @pavitarsidhu3206
    @pavitarsidhu3206 Месяц назад

    🙏🙏🙏🙏

  • @sunitakujur7801
    @sunitakujur7801 Год назад +4

    इस का किसी भी शास्त्र में उल्लेख नहीं कि नशा करें।
    यह मानव समाज को बर्बाद कर रहा है।

  • @user-vr6zn7pf8p
    @user-vr6zn7pf8p 9 месяцев назад

    ❤bandi chchod satguru rampal jee bhagwan jee ki jai ho sat saheb guru jee❤

  • @devokedevkavirdev
    @devokedevkavirdev Год назад +6

    Kabir is Supreme God

  • @bhagwatilalmeena9312
    @bhagwatilalmeena9312 Год назад +1

    मनुष्य जन्म में आकर पूर्ण गुरु के चरण नहीं लोगे तो हर एक आत्मा का यह दशा होगा जो इस गोडे पशु के हो रहा है

  • @uttamsing7016
    @uttamsing7016 10 месяцев назад

    👏👏

    • @SHYAMBIHARI-fn7bc
      @SHYAMBIHARI-fn7bc 9 месяцев назад

      Satguru, rampal, ji, kokoti, ko to, dandvat, pranam, karti hu, 😂😂😂😂😂😂

  • @uttamsing7016
    @uttamsing7016 10 месяцев назад

    👏🙏🏻

  • @julumsingh6472
    @julumsingh6472 10 месяцев назад

    ❤❤❤❤sat😂 saheb 😂je 🎉🎉🎉🎉🎉🎉🎉🎉🎉🎉❤❤❤❤❤❤❤❤❤❤😂😂😂😂😂😂😂😂😂😂

  • @SurendraSingh-je1lq
    @SurendraSingh-je1lq Год назад +5

    इस नवरात्रि पर जानिए कौन है वह पूर्ण परमेश्वर जो सभी कष्टों को दूर करके दुखों का अंत कर सकता है। उस पूर्ण परमेश्वर की जानकारी के लिये अवश्य पढ़ें ज्ञान गंगा।

  • @dollysahu3751
    @dollysahu3751 Год назад +4

    Kabeer is supreme power of god

    • @k.psingh4701
      @k.psingh4701 Год назад

      हम तौ एक करि जांनानं जांनां ।
      दोइ कहैं तिनहीं कौं दोजग जिन नाहिंन पहिचांनां।
      जैसे बढ़ी काष्ट ही कार्ट अगिनि न काटे कोई।
      सब घटि अंतरि तूही व्यापक धरै सरूपै सोई।
      एकै पवन एक ही पानीं एकै जाेति समांनां।
      एकै खाक गढ़े सब भांडै एकै काेंहरा सांनां।
      माया देखि के जगत लुभांनां कह रे नर गरबांनां
      निरभै भया कछू नहि ब्यापै कहैं कबीर दिवांनां। (पृष्ठ 131)
      शब्दार्थ
      एक-परमात्मा, एक। दोई-दो। तिनहीं-उनको। दोजग-नरक। नाहिंन-नहीं। एकै-एक। पवन-हवा। जोति-प्रकाश। समाना-व्याप्त। खाक-मिट्टी। गढ़े-रचे हुए। भांड़े-बर्तन। कोहरा-कुम्हार। सांनां-एक साथ मिलकर। बाढ़ी-बढ़ई। काष्ट-लकड़ी। अगिनि-आग। घटि-घड़ा, हृदय। अंतरि-भीतर, अंदर। व्यापक-विस्तृत। धरे-रखे। सरूपै-स्वरूप। सोई-वही। जगत-संसार। लुभाना-मोहित होना। नर-मनुष्य। गरबानां-गर्व करना। निरभै-निडरा भया-हुआ। दिवानां-बैरागी।
      प्रसंग-प्रस्तुत पद पाठ्यपुस्तक आरोह भाग-1 में संकलित निर्गुण परंपरा के सर्वश्रेष्ठ कवि कबीर के पदों से उद्धृत है। इस पद में, कबीर ने एक ही परम तत्व की सत्ता को स्वीकार किया है, जिसकी पुष्टि वे कई उदाहरणों से करते हैं।
      व्याख्या-कबीरदास कहते हैं कि हमने तो जान लिया है कि ईश्वर एक ही है। इस तरह से मैंने ईश्वर के अद्वैत रूप को पहचान लिया है। हालाँकि कुछ लोग ईश्वर को अलग-अलग बताते हैं; उनके लिए नरक की स्थिति है, क्योंकि वे वास्तविकता को नहीं पहचान पाते। वे आत्मा और परमात्मा को अलग-अलग मानते हैं। कवि ईश्वर की अद्वैतता का प्रमाण देते हुए कहता है कि संसार में एक जैसी हवा बहती है, एक जैसा पानी है तथा एक ही प्रकाश सबमें समाया हुआ है। कुम्हार भी एक ही तरह की मिट्टी से सब बर्तन बनाता है, भले ही बर्तनों का आकार-प्रकार अलग-अलग हो। बढ़ई लकड़ी को तो काट सकता है, परंतु आग को नहीं काट सकता। इसी प्रकार शरीर नष्ट हो जाता है, परंतु उसमें व्याप्त आत्मा सदैव रहती है। परमात्मा हरेक के हृदय में समाया हुआ है भले ही उसने कोई भी रूप धारण किया हो। यह संसार माया के जाल में फैसा हुआ है। और वही संसार को लुभाता है। इसलिए मनुष्य को किसी भी बात को लेकर घमंड नहीं करना चाहिए। प्रस्तुत पद के अंत में कबीर दास कहते हैं कि जब मनुष्य निर्भय हो जाता है तो उसे कुछ नहीं सताता। कबीर भी अब निर्भय हो गया है तथा ईश्वर का दीवाना हो गया है।

  • @abhishekkumar-ey4mg
    @abhishekkumar-ey4mg Год назад +1

    Abhishek kumar das

  • @DineshKumar-ib3hv
    @DineshKumar-ib3hv Год назад +5

    pavitra shridevi bhagwat mahapuran jismein chauthe skand mein Diya hua hai prakaran ki Shri Durga ji khud Apne se Kisi Anya dusre parmatma ke Sharan mein jaane ke liye kahati aur kahate ki meri bhakti bhi mat karo aur iska Om mantra hai aur braham antriksh mein brahmalok mein rahata hai aur keval aur sabhi bhakti chhodkar keval usi ki bhakti karo aur tumhara Kalyan hoga aur ISI sabit hota hai ki Durga ji jo hai sherawali man purn parmatma Nahin hai arthat janm mein aati hai dhanyvad

  • @heeralalkhatawlia2694
    @heeralalkhatawlia2694 Год назад +4

    राम नाम कड़वा लगे, मीठे लागे दाम। दुविधा में दोनों गए, माया मिली न राम।।

    • @k.psingh4701
      @k.psingh4701 Год назад

      हम तौ एक करि जांनानं जांनां ।
      दोइ कहैं तिनहीं कौं दोजग जिन नाहिंन पहिचांनां।
      जैसे बढ़ी काष्ट ही कार्ट अगिनि न काटे कोई।
      सब घटि अंतरि तूही व्यापक धरै सरूपै सोई।
      एकै पवन एक ही पानीं एकै जाेति समांनां।
      एकै खाक गढ़े सब भांडै एकै काेंहरा सांनां।
      माया देखि के जगत लुभांनां कह रे नर गरबांनां
      निरभै भया कछू नहि ब्यापै कहैं कबीर दिवांनां। (पृष्ठ 131)
      शब्दार्थ
      एक-परमात्मा, एक। दोई-दो। तिनहीं-उनको। दोजग-नरक। नाहिंन-नहीं। एकै-एक। पवन-हवा। जोति-प्रकाश। समाना-व्याप्त। खाक-मिट्टी। गढ़े-रचे हुए। भांड़े-बर्तन। कोहरा-कुम्हार। सांनां-एक साथ मिलकर। बाढ़ी-बढ़ई। काष्ट-लकड़ी। अगिनि-आग। घटि-घड़ा, हृदय। अंतरि-भीतर, अंदर। व्यापक-विस्तृत। धरे-रखे। सरूपै-स्वरूप। सोई-वही। जगत-संसार। लुभाना-मोहित होना। नर-मनुष्य। गरबानां-गर्व करना। निरभै-निडरा भया-हुआ। दिवानां-बैरागी।
      प्रसंग-प्रस्तुत पद पाठ्यपुस्तक आरोह भाग-1 में संकलित निर्गुण परंपरा के सर्वश्रेष्ठ कवि कबीर के पदों से उद्धृत है। इस पद में, कबीर ने एक ही परम तत्व की सत्ता को स्वीकार किया है, जिसकी पुष्टि वे कई उदाहरणों से करते हैं।
      व्याख्या-कबीरदास कहते हैं कि हमने तो जान लिया है कि ईश्वर एक ही है। इस तरह से मैंने ईश्वर के अद्वैत रूप को पहचान लिया है। हालाँकि कुछ लोग ईश्वर को अलग-अलग बताते हैं; उनके लिए नरक की स्थिति है, क्योंकि वे वास्तविकता को नहीं पहचान पाते। वे आत्मा और परमात्मा को अलग-अलग मानते हैं। कवि ईश्वर की अद्वैतता का प्रमाण देते हुए कहता है कि संसार में एक जैसी हवा बहती है, एक जैसा पानी है तथा एक ही प्रकाश सबमें समाया हुआ है। कुम्हार भी एक ही तरह की मिट्टी से सब बर्तन बनाता है, भले ही बर्तनों का आकार-प्रकार अलग-अलग हो। बढ़ई लकड़ी को तो काट सकता है, परंतु आग को नहीं काट सकता। इसी प्रकार शरीर नष्ट हो जाता है, परंतु उसमें व्याप्त आत्मा सदैव रहती है। परमात्मा हरेक के हृदय में समाया हुआ है भले ही उसने कोई भी रूप धारण किया हो। यह संसार माया के जाल में फैसा हुआ है। और वही संसार को लुभाता है। इसलिए मनुष्य को किसी भी बात को लेकर घमंड नहीं करना चाहिए। प्रस्तुत पद के अंत में कबीर दास कहते हैं कि जब मनुष्य निर्भय हो जाता है तो उसे कुछ नहीं सताता। कबीर भी अब निर्भय हो गया है तथा ईश्वर का दीवाना हो गया है।

  • @reshminagesh9919
    @reshminagesh9919 10 месяцев назад

    Kabir is god

  • @vikashkumarkumar7639
    @vikashkumarkumar7639 Год назад +2

    🙏🙏🙏🙏🙏🥀🥀🥀🥀🥀🌺🌺🌺🌺🌺🌺🌺🌺🙏🙏🌷🌷🌷🌷🌷🌷🙏🙏🌹🌹🌹🌹🌹🌹🌹🌺🌷🌷🌺🌺🥀🥀🥀🙏🙏🙏🙏🙏🙏🙏🙏🙏

  • @Harekrishana633
    @Harekrishana633 Год назад +3

    आप में विद्वता है... लेकिन महोदय कबीरदास संत थे नकि कोई ब्रह्म। आप वेद और भागवत को कबीर जी से क्यों जोड़कर बतातें है?

  • @preetikumari-rt7qo
    @preetikumari-rt7qo Год назад

    माता दुर्गा को प्रसन्न करने का वास्तविक मंत्र क्या है।।

    • @SubhankarShivay
      @SubhankarShivay Месяц назад

      He Devi Om Om Om maha ommaha DURGA mahamaya trimaya maha Devi subhankar ARDHANGINI Devi adi SAKTI NOMO NAMAHA NOMOSTUTE 21 bar ye mantra ko 21 din pat Karo UCCHARAn k sath

  • @Dungeon_motivation
    @Dungeon_motivation Год назад +1

    Book is naam koi bata sktaa haii ki ye kaha sey vyakhyaa rkhii huii a

  • @Axu7798
    @Axu7798 Год назад +1

    Guru ji mortii puja❌❌❌galat

  • @user-dl5ek2ox4r
    @user-dl5ek2ox4r 3 месяца назад

    Yr tuc meri maa de pishe kio paye hoe a meri maa hi sab kush a

  • @safaltaghimere7858
    @safaltaghimere7858 8 месяцев назад

    Lasun peyag khanay wala kaisay sadu huwa

  • @MayaramKumar-yi9nn
    @MayaramKumar-yi9nn 2 месяца назад

    😂🎉😊😊

  • @Darshyadav24
    @Darshyadav24 Год назад +1

    Yo murk h

    • @k.psingh4701
      @k.psingh4701 Год назад

      Paka murkh hain ek number ka ye Wali baat nahi batayega. Logo ko 33:01 हम तौ एक करि जांनानं जांनां ।
      दोइ कहैं तिनहीं कौं दोजग जिन नाहिंन पहिचांनां।
      जैसे बढ़ी काष्ट ही कार्ट अगिनि न काटे कोई।
      सब घटि अंतरि तूही व्यापक धरै सरूपै सोई।
      एकै पवन एक ही पानीं एकै जाेति समांनां।
      एकै खाक गढ़े सब भांडै एकै काेंहरा सांनां।
      माया देखि के जगत लुभांनां कह रे नर गरबांनां
      निरभै भया कछू नहि ब्यापै कहैं कबीर दिवांनां। (पृष्ठ 131)
      शब्दार्थ
      एक-परमात्मा, एक। दोई-दो। तिनहीं-उनको। दोजग-नरक। नाहिंन-नहीं। एकै-एक। पवन-हवा। जोति-प्रकाश। समाना-व्याप्त। खाक-मिट्टी। गढ़े-रचे हुए। भांड़े-बर्तन। कोहरा-कुम्हार। सांनां-एक साथ मिलकर। बाढ़ी-बढ़ई। काष्ट-लकड़ी। अगिनि-आग। घटि-घड़ा, हृदय। अंतरि-भीतर, अंदर। व्यापक-विस्तृत। धरे-रखे। सरूपै-स्वरूप। सोई-वही। जगत-संसार। लुभाना-मोहित होना। नर-मनुष्य। गरबानां-गर्व करना। निरभै-निडरा भया-हुआ। दिवानां-बैरागी।
      प्रसंग-प्रस्तुत पद पाठ्यपुस्तक आरोह भाग-1 में संकलित निर्गुण परंपरा के सर्वश्रेष्ठ कवि कबीर के पदों से उद्धृत है। इस पद में, कबीर ने एक ही परम तत्व की सत्ता को स्वीकार किया है, जिसकी पुष्टि वे कई उदाहरणों से करते हैं।
      व्याख्या-कबीरदास कहते हैं कि हमने तो जान लिया है कि ईश्वर एक ही है। इस तरह से मैंने ईश्वर के अद्वैत रूप को पहचान लिया है। हालाँकि कुछ लोग ईश्वर को अलग-अलग बताते हैं; उनके लिए नरक की स्थिति है, क्योंकि वे वास्तविकता को नहीं पहचान पाते। वे आत्मा और परमात्मा को अलग-अलग मानते हैं। कवि ईश्वर की अद्वैतता का प्रमाण देते हुए कहता है कि संसार में एक जैसी हवा बहती है, एक जैसा पानी है तथा एक ही प्रकाश सबमें समाया हुआ है। कुम्हार भी एक ही तरह की मिट्टी से सब बर्तन बनाता है, भले ही बर्तनों का आकार-प्रकार अलग-अलग हो। बढ़ई लकड़ी को तो काट सकता है, परंतु आग को नहीं काट सकता। इसी प्रकार शरीर नष्ट हो जाता है, परंतु उसमें व्याप्त आत्मा सदैव रहती है। परमात्मा हरेक के हृदय में समाया हुआ है भले ही उसने कोई भी रूप धारण किया हो। यह संसार माया के जाल में फैसा हुआ है। और वही संसार को लुभाता है। इसलिए मनुष्य को किसी भी बात को लेकर घमंड नहीं करना चाहिए। प्रस्तुत पद के अंत में कबीर दास कहते हैं कि जब मनुष्य निर्भय हो जाता है तो उसे कुछ नहीं सताता। कबीर भी अब निर्भय हो गया है तथा ईश्वर का दीवाना हो गया है।

  • @Darshyadav24
    @Darshyadav24 Год назад +1

    संत रामपाल 😛😛🤧👻💀👏👏

    • @k.psingh4701
      @k.psingh4701 Год назад

      Pakhandi hain dekho toh sahi kaise logo ko murkh bana raha hain 😂jabki devi mata Durga ji utpati mahisasur ki badh ke liye bhram Vishnu mahesh aur saare devtawo ne apni sakti se utpan kiya lekin ye swamghoshit nalayak shant Jo ki dhogi hain sidh karne pe laga hain😅😅😅😅

  • @SurajRaj-oy7mc
    @SurajRaj-oy7mc 6 месяцев назад

    Nakul muh

  • @riteshanandgautam007
    @riteshanandgautam007 Год назад +2

    Kitna fenk rhe ho uncle ji.

  • @_aankush__
    @_aankush__ Год назад

    🤣🤣

  • @MithleshSharma-rj5vh
    @MithleshSharma-rj5vh Год назад

    Hamare najar ye e ek dhongi hai kyoki maa durga jagatjanni ko na hi koi pap chhu sakta hai na na hi koi papi to durga ki balatkar jaise bate karnewala ye dhongi ye Jan le pahle Kabir koi parmatma nahi sant hai or wo sant kabir ki chhwai sanatan sanskriti me girate ja rahe hai

    • @k.psingh4701
      @k.psingh4701 Год назад

      Dhongi kiya. Pakka dongi hai 😂😂😂

    • @user-dl5ek2ox4r
      @user-dl5ek2ox4r 3 месяца назад

      Sahi kaha meri maa hi sab kush hai

  • @MithleshSharma-rj5vh
    @MithleshSharma-rj5vh Год назад

    To aapka kahna hai ki kabir ek agriment banaye hai ki jo meri agriment manega wo satyalik or jo nahi Mane wo narklok ye kaisa agriment hai or jab kabir parmatma hai to unke samne Gita ka value to tum Gita ka sahara kyon le raha hai dhongi

    • @k.psingh4701
      @k.psingh4701 Год назад

      हम तौ एक करि जांनानं जांनां ।
      दोइ कहैं तिनहीं कौं दोजग जिन नाहिंन पहिचांनां।
      जैसे बढ़ी काष्ट ही कार्ट अगिनि न काटे कोई।
      सब घटि अंतरि तूही व्यापक धरै सरूपै सोई।
      एकै पवन एक ही पानीं एकै जाेति समांनां।
      एकै खाक गढ़े सब भांडै एकै काेंहरा सांनां।
      माया देखि के जगत लुभांनां कह रे नर गरबांनां
      निरभै भया कछू नहि ब्यापै कहैं कबीर दिवांनां। (पृष्ठ 131)
      शब्दार्थ
      एक-परमात्मा, एक। दोई-दो। तिनहीं-उनको। दोजग-नरक। नाहिंन-नहीं। एकै-एक। पवन-हवा। जोति-प्रकाश। समाना-व्याप्त। खाक-मिट्टी। गढ़े-रचे हुए। भांड़े-बर्तन। कोहरा-कुम्हार। सांनां-एक साथ मिलकर। बाढ़ी-बढ़ई। काष्ट-लकड़ी। अगिनि-आग। घटि-घड़ा, हृदय। अंतरि-भीतर, अंदर। व्यापक-विस्तृत। धरे-रखे। सरूपै-स्वरूप। सोई-वही। जगत-संसार। लुभाना-मोहित होना। नर-मनुष्य। गरबानां-गर्व करना। निरभै-निडरा भया-हुआ। दिवानां-बैरागी।
      प्रसंग-प्रस्तुत पद पाठ्यपुस्तक आरोह भाग-1 में संकलित निर्गुण परंपरा के सर्वश्रेष्ठ कवि कबीर के पदों से उद्धृत है। इस पद में, कबीर ने एक ही परम तत्व की सत्ता को स्वीकार किया है, जिसकी पुष्टि वे कई उदाहरणों से करते हैं।
      व्याख्या-कबीरदास कहते हैं कि हमने तो जान लिया है कि ईश्वर एक ही है। इस तरह से मैंने ईश्वर के अद्वैत रूप को पहचान लिया है। हालाँकि कुछ लोग ईश्वर को अलग-अलग बताते हैं; उनके लिए नरक की स्थिति है, क्योंकि वे वास्तविकता को नहीं पहचान पाते। वे आत्मा और परमात्मा को अलग-अलग मानते हैं। कवि ईश्वर की अद्वैतता का प्रमाण देते हुए कहता है कि संसार में एक जैसी हवा बहती है, एक जैसा पानी है तथा एक ही प्रकाश सबमें समाया हुआ है। कुम्हार भी एक ही तरह की मिट्टी से सब बर्तन बनाता है, भले ही बर्तनों का आकार-प्रकार अलग-अलग हो। बढ़ई लकड़ी को तो काट सकता है, परंतु आग को नहीं काट सकता। इसी प्रकार शरीर नष्ट हो जाता है, परंतु उसमें व्याप्त आत्मा सदैव रहती है। परमात्मा हरेक के हृदय में समाया हुआ है भले ही उसने कोई भी रूप धारण किया हो। यह संसार माया के जाल में फैसा हुआ है। और वही संसार को लुभाता है। इसलिए मनुष्य को किसी भी बात को लेकर घमंड नहीं करना चाहिए। प्रस्तुत पद के अंत में कबीर दास कहते हैं कि जब मनुष्य निर्भय हो जाता है तो उसे कुछ नहीं सताता। कबीर भी अब निर्भय हो गया है तथा ईश्वर का दीवाना हो गया है।

  • @aurovilprasad4024
    @aurovilprasad4024 4 месяца назад

    Faltu story mat bolo

  • @ramkeshyadav8184
    @ramkeshyadav8184 Год назад

    Sant rampal Tu Kabir beta hai jail making hai 12 park NY

    • @k.psingh4701
      @k.psingh4701 Год назад

      हम तौ एक करि जांनानं जांनां ।
      दोइ कहैं तिनहीं कौं दोजग जिन नाहिंन पहिचांनां।
      जैसे बढ़ी काष्ट ही कार्ट अगिनि न काटे कोई।
      सब घटि अंतरि तूही व्यापक धरै सरूपै सोई।
      एकै पवन एक ही पानीं एकै जाेति समांनां।
      एकै खाक गढ़े सब भांडै एकै काेंहरा सांनां।
      माया देखि के जगत लुभांनां कह रे नर गरबांनां
      निरभै भया कछू नहि ब्यापै कहैं कबीर दिवांनां। (पृष्ठ 131)
      शब्दार्थ
      एक-परमात्मा, एक। दोई-दो। तिनहीं-उनको। दोजग-नरक। नाहिंन-नहीं। एकै-एक। पवन-हवा। जोति-प्रकाश। समाना-व्याप्त। खाक-मिट्टी। गढ़े-रचे हुए। भांड़े-बर्तन। कोहरा-कुम्हार। सांनां-एक साथ मिलकर। बाढ़ी-बढ़ई। काष्ट-लकड़ी। अगिनि-आग। घटि-घड़ा, हृदय। अंतरि-भीतर, अंदर। व्यापक-विस्तृत। धरे-रखे। सरूपै-स्वरूप। सोई-वही। जगत-संसार। लुभाना-मोहित होना। नर-मनुष्य। गरबानां-गर्व करना। निरभै-निडरा भया-हुआ। दिवानां-बैरागी।
      प्रसंग-प्रस्तुत पद पाठ्यपुस्तक आरोह भाग-1 में संकलित निर्गुण परंपरा के सर्वश्रेष्ठ कवि कबीर के पदों से उद्धृत है। इस पद में, कबीर ने एक ही परम तत्व की सत्ता को स्वीकार किया है, जिसकी पुष्टि वे कई उदाहरणों से करते हैं।
      व्याख्या-कबीरदास कहते हैं कि हमने तो जान लिया है कि ईश्वर एक ही है। इस तरह से मैंने ईश्वर के अद्वैत रूप को पहचान लिया है। हालाँकि कुछ लोग ईश्वर को अलग-अलग बताते हैं; उनके लिए नरक की स्थिति है, क्योंकि वे वास्तविकता को नहीं पहचान पाते। वे आत्मा और परमात्मा को अलग-अलग मानते हैं। कवि ईश्वर की अद्वैतता का प्रमाण देते हुए कहता है कि संसार में एक जैसी हवा बहती है, एक जैसा पानी है तथा एक ही प्रकाश सबमें समाया हुआ है। कुम्हार भी एक ही तरह की मिट्टी से सब बर्तन बनाता है, भले ही बर्तनों का आकार-प्रकार अलग-अलग हो। बढ़ई लकड़ी को तो काट सकता है, परंतु आग को नहीं काट सकता। इसी प्रकार शरीर नष्ट हो जाता है, परंतु उसमें व्याप्त आत्मा सदैव रहती है। परमात्मा हरेक के हृदय में समाया हुआ है भले ही उसने कोई भी रूप धारण किया हो। यह संसार माया के जाल में फैसा हुआ है। और वही संसार को लुभाता है। इसलिए मनुष्य को किसी भी बात को लेकर घमंड नहीं करना चाहिए। प्रस्तुत पद के अंत में कबीर दास कहते हैं कि जब मनुष्य निर्भय हो जाता है तो उसे कुछ नहीं सताता। कबीर भी अब निर्भय हो गया है तथा ईश्वर का दीवाना हो गया है।

  • @sonamshrivas6563
    @sonamshrivas6563 8 месяцев назад

    Acchi fenkata hai yah😂

  • @sonamshrivas6563
    @sonamshrivas6563 8 месяцев назад

    Murkh Chand😂😂😂😢