देवी दुर्गा का जन्म कैसे हुआ ? Navratri 2024 | Maa Durga ka janam | Sant Rampal Ji

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  • Опубликовано: 26 окт 2024

Комментарии • 151

  • @darrentsolanki1880
    @darrentsolanki1880 2 года назад +7

    Sat SahebJi🙏🙏🌹🌹🌺🌺🌺
    very very great ,informative Tatva gyaan by jagat Guru Sant Rampal ji Maharaj
    Sat SahebJi 🙏🙏🌹🌹🌺🌺🌺

  • @VinodVinod-vi1sx
    @VinodVinod-vi1sx 2 года назад +14

    Sat guru sant Rampal Mahraj ki ki jai ho👏🙏🙏🙏🙏🙏🙏🙏🙏🙏💓💓💓💓🌻🌷🌼🏵🏵🏵🌹🌹🌹🥀🥀🥀💐💐🌸💮💮💮🏵🏵🌹🌹🥀🥀🐚

    • @k.psingh4701
      @k.psingh4701 Год назад

      हम तौ एक करि जांनानं जांनां ।
      दोइ कहैं तिनहीं कौं दोजग जिन नाहिंन पहिचांनां।
      जैसे बढ़ी काष्ट ही कार्ट अगिनि न काटे कोई।
      सब घटि अंतरि तूही व्यापक धरै सरूपै सोई।
      एकै पवन एक ही पानीं एकै जाेति समांनां।
      एकै खाक गढ़े सब भांडै एकै काेंहरा सांनां।
      माया देखि के जगत लुभांनां कह रे नर गरबांनां
      निरभै भया कछू नहि ब्यापै कहैं कबीर दिवांनां। (पृष्ठ 131)
      शब्दार्थ
      एक-परमात्मा, एक। दोई-दो। तिनहीं-उनको। दोजग-नरक। नाहिंन-नहीं। एकै-एक। पवन-हवा। जोति-प्रकाश। समाना-व्याप्त। खाक-मिट्टी। गढ़े-रचे हुए। भांड़े-बर्तन। कोहरा-कुम्हार। सांनां-एक साथ मिलकर। बाढ़ी-बढ़ई। काष्ट-लकड़ी। अगिनि-आग। घटि-घड़ा, हृदय। अंतरि-भीतर, अंदर। व्यापक-विस्तृत। धरे-रखे। सरूपै-स्वरूप। सोई-वही। जगत-संसार। लुभाना-मोहित होना। नर-मनुष्य। गरबानां-गर्व करना। निरभै-निडरा भया-हुआ। दिवानां-बैरागी।
      प्रसंग-प्रस्तुत पद पाठ्यपुस्तक आरोह भाग-1 में संकलित निर्गुण परंपरा के सर्वश्रेष्ठ कवि कबीर के पदों से उद्धृत है। इस पद में, कबीर ने एक ही परम तत्व की सत्ता को स्वीकार किया है, जिसकी पुष्टि वे कई उदाहरणों से करते हैं।
      व्याख्या-कबीरदास कहते हैं कि हमने तो जान लिया है कि ईश्वर एक ही है। इस तरह से मैंने ईश्वर के अद्वैत रूप को पहचान लिया है। हालाँकि कुछ लोग ईश्वर को अलग-अलग बताते हैं; उनके लिए नरक की स्थिति है, क्योंकि वे वास्तविकता को नहीं पहचान पाते। वे आत्मा और परमात्मा को अलग-अलग मानते हैं। कवि ईश्वर की अद्वैतता का प्रमाण देते हुए कहता है कि संसार में एक जैसी हवा बहती है, एक जैसा पानी है तथा एक ही प्रकाश सबमें समाया हुआ है। कुम्हार भी एक ही तरह की मिट्टी से सब बर्तन बनाता है, भले ही बर्तनों का आकार-प्रकार अलग-अलग हो। बढ़ई लकड़ी को तो काट सकता है, परंतु आग को नहीं काट सकता। इसी प्रकार शरीर नष्ट हो जाता है, परंतु उसमें व्याप्त आत्मा सदैव रहती है। परमात्मा हरेक के हृदय में समाया हुआ है भले ही उसने कोई भी रूप धारण किया हो। यह संसार माया के जाल में फैसा हुआ है। और वही संसार को लुभाता है। इसलिए मनुष्य को किसी भी बात को लेकर घमंड नहीं करना चाहिए। प्रस्तुत पद के अंत में कबीर दास कहते हैं कि जब मनुष्य निर्भय हो जाता है तो उसे कुछ नहीं सताता। कबीर भी अब निर्भय हो गया है तथा ईश्वर का दीवाना हो गया है।

  • @sureshpandit4161
    @sureshpandit4161 2 года назад +9

    Sat saheb ji sat🙏 saheb😊🙏🙏🙏🙏🙏 sat saheb🙏

  • @purusottamnayak2676
    @purusottamnayak2676 2 года назад +9

    Anmol Gyan 👌

  • @PremKumar-kd9vq
    @PremKumar-kd9vq 2 года назад +14

    Satguru dev ki jay

  • @guru_bhagwan_
    @guru_bhagwan_ 2 года назад +10

    Sat saheb Sat guru rampal ji maharaj ki jay

  • @chandravatidevi2535
    @chandravatidevi2535 2 года назад +7

    Bahut achha satsang h

  • @swashnachand5379
    @swashnachand5379 2 года назад +4

    very nice and powerful satsang
    bandi chor sat guru Rampal ji maharaj ki jai jo
    sat saheb

  • @dharmendravishwakarma4248
    @dharmendravishwakarma4248 2 года назад +11

    Sat Saheb Ji

  • @jatadhari2136
    @jatadhari2136 2 года назад +6

    Way of worship

  • @ChamelivermaChameliverma
    @ChamelivermaChameliverma 18 дней назад

    Sat Sahib Ji bhole satguru Dev ki Jay Bandi chhod satguru Rampal Ji Bhagwan ki

  • @ISWARIPRASAD-ws8ur
    @ISWARIPRASAD-ws8ur 20 дней назад +1

    पूर्ण बृहम परमेश्वर साहेब कबीर परमेश्वर ही मौजूद हैं संत रामपाल जीमहाराज जी के रूप मेंजगत के तारणहार हैंअबिलमब आंन लाइन निशुल्क नाम दीक्षित होकर मर्यादित रह कर भक्तीकर संसार के सभी भाइओंंऔर और बहनों सच कर मांननां। ।

  • @ashokghodke6709
    @ashokghodke6709 Год назад +4

    Satguru Rampal Ji Maharaj

  • @creativess8567
    @creativess8567 2 года назад +12

    केवल एक मात्र सत आध्यात्मिक ज्ञान 🙇🙇🙇🙇🙏🙏🙏🙏🤲🤲🤲🤲

  • @AbhishekKumar-um2mn
    @AbhishekKumar-um2mn 2 года назад +6

    Sat saheb ji 🙏

  • @bhagwannayak-vt5iq
    @bhagwannayak-vt5iq 22 дня назад

    Sant Rampal Ji Maharaj Achcha Gyan Dete Hain

  • @Ratiram.55
    @Ratiram.55 2 года назад +6

    सत साहेब

  • @jaipalsingh4648
    @jaipalsingh4648 2 года назад +13

    🙏🙏🙏🙏sat guru dev ji ki jai ho 🙏

  • @omprakashsharma1791
    @omprakashsharma1791 Год назад +3

    🙏🌺🙏Bandi chod sat guru Rampal ji bhagwan ki jai 🙏🌺🙏Sat Saheb 🙏🌺🙏

  • @deviramkhasa2046
    @deviramkhasa2046 2 года назад +8

    जगत गुरु तत्व दर्शी संत रामपाल जी को कोटि कोटि दंडवत प्रणाम जी👋👋 जय बंदी छोड़ की सत साहेब जी🙏🙏

    • @k.psingh4701
      @k.psingh4701 Год назад +1

      हम तौ एक करि जांनानं जांनां ।
      दोइ कहैं तिनहीं कौं दोजग जिन नाहिंन पहिचांनां।
      जैसे बढ़ी काष्ट ही कार्ट अगिनि न काटे कोई।
      सब घटि अंतरि तूही व्यापक धरै सरूपै सोई।
      एकै पवन एक ही पानीं एकै जाेति समांनां।
      एकै खाक गढ़े सब भांडै एकै काेंहरा सांनां।
      माया देखि के जगत लुभांनां कह रे नर गरबांनां
      निरभै भया कछू नहि ब्यापै कहैं कबीर दिवांनां। (पृष्ठ 131)
      शब्दार्थ
      एक-परमात्मा, एक। दोई-दो। तिनहीं-उनको। दोजग-नरक। नाहिंन-नहीं। एकै-एक। पवन-हवा। जोति-प्रकाश। समाना-व्याप्त। खाक-मिट्टी। गढ़े-रचे हुए। भांड़े-बर्तन। कोहरा-कुम्हार। सांनां-एक साथ मिलकर। बाढ़ी-बढ़ई। काष्ट-लकड़ी। अगिनि-आग। घटि-घड़ा, हृदय। अंतरि-भीतर, अंदर। व्यापक-विस्तृत। धरे-रखे। सरूपै-स्वरूप। सोई-वही। जगत-संसार। लुभाना-मोहित होना। नर-मनुष्य। गरबानां-गर्व करना। निरभै-निडरा भया-हुआ। दिवानां-बैरागी।
      प्रसंग-प्रस्तुत पद पाठ्यपुस्तक आरोह भाग-1 में संकलित निर्गुण परंपरा के सर्वश्रेष्ठ कवि कबीर के पदों से उद्धृत है। इस पद में, कबीर ने एक ही परम तत्व की सत्ता को स्वीकार किया है, जिसकी पुष्टि वे कई उदाहरणों से करते हैं।
      व्याख्या-कबीरदास कहते हैं कि हमने तो जान लिया है कि ईश्वर एक ही है। इस तरह से मैंने ईश्वर के अद्वैत रूप को पहचान लिया है। हालाँकि कुछ लोग ईश्वर को अलग-अलग बताते हैं; उनके लिए नरक की स्थिति है, क्योंकि वे वास्तविकता को नहीं पहचान पाते। वे आत्मा और परमात्मा को अलग-अलग मानते हैं। कवि ईश्वर की अद्वैतता का प्रमाण देते हुए कहता है कि संसार में एक जैसी हवा बहती है, एक जैसा पानी है तथा एक ही प्रकाश सबमें समाया हुआ है। कुम्हार भी एक ही तरह की मिट्टी से सब बर्तन बनाता है, भले ही बर्तनों का आकार-प्रकार अलग-अलग हो। बढ़ई लकड़ी को तो काट सकता है, परंतु आग को नहीं काट सकता। इसी प्रकार शरीर नष्ट हो जाता है, परंतु उसमें व्याप्त आत्मा सदैव रहती है। परमात्मा हरेक के हृदय में समाया हुआ है भले ही उसने कोई भी रूप धारण किया हो। यह संसार माया के जाल में फैसा हुआ है। और वही संसार को लुभाता है। इसलिए मनुष्य को किसी भी बात को लेकर घमंड नहीं करना चाहिए। प्रस्तुत पद के अंत में कबीर दास कहते हैं कि जब मनुष्य निर्भय हो जाता है तो उसे कुछ नहीं सताता। कबीर भी अब निर्भय हो गया है तथा ईश्वर का दीवाना हो गया है।

  • @mathuraprasad5170
    @mathuraprasad5170 2 года назад +11

    Bandi chhod sadguru rampal mahraj ji ki jai ho

  • @jatinderrakhra
    @jatinderrakhra 2 года назад +5

    satgur dev ki jai🙏🙇‍♂️🙏🙇‍♂️

  • @ChandrakishorKumar-bb7qz
    @ChandrakishorKumar-bb7qz 11 месяцев назад +2

    Sat saheb ji

  • @SureshChodhri-h5j
    @SureshChodhri-h5j 10 месяцев назад

    Jay Ho Jagat Guru Sant Sahib

  • @naveenpharma8874
    @naveenpharma8874 2 года назад +3

    Jay bandichor ke

  • @ashokdass8126
    @ashokdass8126 Год назад

    बंदी छोड़ परमपिता परमेश्वर जी के संत रामपाल जी भगवान जी के चरणों में कॉल रिकॉर्डिंग प्रणाम परमेश्वर जी संत रामपाल जी महाराजदूर देखें एक बार

  • @patelrinkupatel7956
    @patelrinkupatel7956 2 года назад +8

    Supreme God is Kabir

    • @k.psingh4701
      @k.psingh4701 Год назад

      हम तौ एक करि जांनानं जांनां ।
      दोइ कहैं तिनहीं कौं दोजग जिन नाहिंन पहिचांनां।
      जैसे बढ़ी काष्ट ही कार्ट अगिनि न काटे कोई।
      सब घटि अंतरि तूही व्यापक धरै सरूपै सोई।
      एकै पवन एक ही पानीं एकै जाेति समांनां।
      एकै खाक गढ़े सब भांडै एकै काेंहरा सांनां।
      माया देखि के जगत लुभांनां कह रे नर गरबांनां
      निरभै भया कछू नहि ब्यापै कहैं कबीर दिवांनां। (पृष्ठ 131)
      शब्दार्थ
      एक-परमात्मा, एक। दोई-दो। तिनहीं-उनको। दोजग-नरक। नाहिंन-नहीं। एकै-एक। पवन-हवा। जोति-प्रकाश। समाना-व्याप्त। खाक-मिट्टी। गढ़े-रचे हुए। भांड़े-बर्तन। कोहरा-कुम्हार। सांनां-एक साथ मिलकर। बाढ़ी-बढ़ई। काष्ट-लकड़ी। अगिनि-आग। घटि-घड़ा, हृदय। अंतरि-भीतर, अंदर। व्यापक-विस्तृत। धरे-रखे। सरूपै-स्वरूप। सोई-वही। जगत-संसार। लुभाना-मोहित होना। नर-मनुष्य। गरबानां-गर्व करना। निरभै-निडरा भया-हुआ। दिवानां-बैरागी।
      प्रसंग-प्रस्तुत पद पाठ्यपुस्तक आरोह भाग-1 में संकलित निर्गुण परंपरा के सर्वश्रेष्ठ कवि कबीर के पदों से उद्धृत है। इस पद में, कबीर ने एक ही परम तत्व की सत्ता को स्वीकार किया है, जिसकी पुष्टि वे कई उदाहरणों से करते हैं।
      व्याख्या-कबीरदास कहते हैं कि हमने तो जान लिया है कि ईश्वर एक ही है। इस तरह से मैंने ईश्वर के अद्वैत रूप को पहचान लिया है। हालाँकि कुछ लोग ईश्वर को अलग-अलग बताते हैं; उनके लिए नरक की स्थिति है, क्योंकि वे वास्तविकता को नहीं पहचान पाते। वे आत्मा और परमात्मा को अलग-अलग मानते हैं। कवि ईश्वर की अद्वैतता का प्रमाण देते हुए कहता है कि संसार में एक जैसी हवा बहती है, एक जैसा पानी है तथा एक ही प्रकाश सबमें समाया हुआ है। कुम्हार भी एक ही तरह की मिट्टी से सब बर्तन बनाता है, भले ही बर्तनों का आकार-प्रकार अलग-अलग हो। बढ़ई लकड़ी को तो काट सकता है, परंतु आग को नहीं काट सकता। इसी प्रकार शरीर नष्ट हो जाता है, परंतु उसमें व्याप्त आत्मा सदैव रहती है। परमात्मा हरेक के हृदय में समाया हुआ है भले ही उसने कोई भी रूप धारण किया हो। यह संसार माया के जाल में फैसा हुआ है। और वही संसार को लुभाता है। इसलिए मनुष्य को किसी भी बात को लेकर घमंड नहीं करना चाहिए। प्रस्तुत पद के अंत में कबीर दास कहते हैं कि जब मनुष्य निर्भय हो जाता है तो उसे कुछ नहीं सताता। कबीर भी अब निर्भय हो गया है तथा ईश्वर का दीवाना हो गया है।

  • @mahisingh6166
    @mahisingh6166 Год назад +1

    Bandi chhod satguru Rampal Ji Bhagwan Ji ki Jay Ho

  • @manoharlalkumarkumar7913
    @manoharlalkumarkumar7913 2 года назад +6

    Sat Saheb guru ji Maharaj ke charano me dandvat pranam gareeb das ko 🙏🙏🙏🙏🙏🙏

  • @SurendraKumar-x9q
    @SurendraKumar-x9q 7 месяцев назад

    जय सतगुरू देव जी की

  • @sobitgour3851
    @sobitgour3851 2 года назад +4

    Sat Sahib ji 🙇

  • @राधेश्यामगाडरी-ड7थ

    ❤❤ संत साहेब कबीर दास जी महाराज कोटी कोटी‌ परनाम

  • @shivamcreativeyt6650
    @shivamcreativeyt6650 Год назад +2

    Anmol satsang

  • @mathuraprasad5170
    @mathuraprasad5170 2 года назад +10

    Aap sabhi bhai aur bahno ko sat saheb ji

  • @ManishRAIKWAIR-i8s
    @ManishRAIKWAIR-i8s 3 месяца назад

    Jaisatguru dev ki❤

  • @ratandass1733
    @ratandass1733 Год назад +2

    सत्य ज्ञान है

  • @Sanya_gupta
    @Sanya_gupta 2 месяца назад

    Rampal Ji Bhagwan ki Jay Sat Sahib

  • @amitkorde2356
    @amitkorde2356 Год назад +3

    🙏❤🙏

  • @shrikantsirecs3916
    @shrikantsirecs3916 2 года назад +2

    That's true srishti rachana.

  • @uditnarayan7437
    @uditnarayan7437 2 года назад +8

    True spiritual knowledge

  • @Manoj-vi8hb
    @Manoj-vi8hb Год назад +1

    Bandi Chhod Rampal Ji Maharaj ki Jay Ho

  • @Desigaming1170
    @Desigaming1170 Год назад +3

    Sat sahib

  • @poojaachagava
    @poojaachagava 2 года назад +8

    Sat Saheb ji 🌹🙏🏻

  • @surendraparihar2022
    @surendraparihar2022 2 года назад +10

    True knowledge 💯

    • @k.psingh4701
      @k.psingh4701 Год назад

      हम तौ एक करि जांनानं जांनां ।
      दोइ कहैं तिनहीं कौं दोजग जिन नाहिंन पहिचांनां।
      जैसे बढ़ी काष्ट ही कार्ट अगिनि न काटे कोई।
      सब घटि अंतरि तूही व्यापक धरै सरूपै सोई।
      एकै पवन एक ही पानीं एकै जाेति समांनां।
      एकै खाक गढ़े सब भांडै एकै काेंहरा सांनां।
      माया देखि के जगत लुभांनां कह रे नर गरबांनां
      निरभै भया कछू नहि ब्यापै कहैं कबीर दिवांनां। (पृष्ठ 131)
      शब्दार्थ
      एक-परमात्मा, एक। दोई-दो। तिनहीं-उनको। दोजग-नरक। नाहिंन-नहीं। एकै-एक। पवन-हवा। जोति-प्रकाश। समाना-व्याप्त। खाक-मिट्टी। गढ़े-रचे हुए। भांड़े-बर्तन। कोहरा-कुम्हार। सांनां-एक साथ मिलकर। बाढ़ी-बढ़ई। काष्ट-लकड़ी। अगिनि-आग। घटि-घड़ा, हृदय। अंतरि-भीतर, अंदर। व्यापक-विस्तृत। धरे-रखे। सरूपै-स्वरूप। सोई-वही। जगत-संसार। लुभाना-मोहित होना। नर-मनुष्य। गरबानां-गर्व करना। निरभै-निडरा भया-हुआ। दिवानां-बैरागी।
      प्रसंग-प्रस्तुत पद पाठ्यपुस्तक आरोह भाग-1 में संकलित निर्गुण परंपरा के सर्वश्रेष्ठ कवि कबीर के पदों से उद्धृत है। इस पद में, कबीर ने एक ही परम तत्व की सत्ता को स्वीकार किया है, जिसकी पुष्टि वे कई उदाहरणों से करते हैं।
      व्याख्या-कबीरदास कहते हैं कि हमने तो जान लिया है कि ईश्वर एक ही है। इस तरह से मैंने ईश्वर के अद्वैत रूप को पहचान लिया है। हालाँकि कुछ लोग ईश्वर को अलग-अलग बताते हैं; उनके लिए नरक की स्थिति है, क्योंकि वे वास्तविकता को नहीं पहचान पाते। वे आत्मा और परमात्मा को अलग-अलग मानते हैं। कवि ईश्वर की अद्वैतता का प्रमाण देते हुए कहता है कि संसार में एक जैसी हवा बहती है, एक जैसा पानी है तथा एक ही प्रकाश सबमें समाया हुआ है। कुम्हार भी एक ही तरह की मिट्टी से सब बर्तन बनाता है, भले ही बर्तनों का आकार-प्रकार अलग-अलग हो। बढ़ई लकड़ी को तो काट सकता है, परंतु आग को नहीं काट सकता। इसी प्रकार शरीर नष्ट हो जाता है, परंतु उसमें व्याप्त आत्मा सदैव रहती है। परमात्मा हरेक के हृदय में समाया हुआ है भले ही उसने कोई भी रूप धारण किया हो। यह संसार माया के जाल में फैसा हुआ है। और वही संसार को लुभाता है। इसलिए मनुष्य को किसी भी बात को लेकर घमंड नहीं करना चाहिए। प्रस्तुत पद के अंत में कबीर दास कहते हैं कि जब मनुष्य निर्भय हो जाता है तो उसे कुछ नहीं सताता। कबीर भी अब निर्भय हो गया है तथा ईश्वर का दीवाना हो गया है।

  • @meenapundir8516
    @meenapundir8516 2 года назад +6

    Great spiritual knowledge

  • @truespiritual533
    @truespiritual533 11 месяцев назад +1

    सभी भाइयों और बहनों को दास का सत साहेब

  • @shivamcreativeyt6650
    @shivamcreativeyt6650 Год назад +2

    Anmol vachan

  • @prakashgaikwad3313
    @prakashgaikwad3313 9 месяцев назад

    ❤ Thanks Universe Thanks gaid

  • @shashithakur2458
    @shashithakur2458 19 дней назад

    Amazing🙏🙏👍

  • @heeralalkhatawlia2694
    @heeralalkhatawlia2694 2 года назад +3

    मानुष जन्म दुर्लभ है, मिले ना बारम्बार। ज्यों तरुवर से पत्ता टूट गिरे, बहुर ना लगता डार।।

  • @DharmendraPandit-n4z
    @DharmendraPandit-n4z 3 месяца назад

    Sat saheb ji ki jai

  • @mathuraprasad5170
    @mathuraprasad5170 2 года назад +5

    🙏🙏🙏

  • @avirajmarkandey5802
    @avirajmarkandey5802 2 года назад +2

    Satya gyan

  • @omkeshkumar3978
    @omkeshkumar3978 2 года назад +3

    🥀🌹🥀🥀🙏🙏🙏

  • @SunilDas-dk5oi
    @SunilDas-dk5oi 15 дней назад

    🎉🎉🎉🎉🎉🎉🎉🎉🎉🎉🎉🎉🎉🎉🎉🎉🎉🎉🎉🎉🎉🎉🎉

  • @rambahadurrambahadur8625
    @rambahadurrambahadur8625 Год назад +2

    Sat saheb sabko ji

  • @Suresh-je1rc
    @Suresh-je1rc Год назад

    Sat guru rampal Maraj ji kabir rup mai aai hai

  • @aurovilprasad4024
    @aurovilprasad4024 6 месяцев назад

    Devi Durga represents as cosmic energy

  • @DHARMVEERSINGH-mr4uq
    @DHARMVEERSINGH-mr4uq 9 месяцев назад

    सत् साहेब जी

  • @ISWARIPRASAD-ws8ur
    @ISWARIPRASAD-ws8ur 19 дней назад

    काग चेष्टा बको ध्यानम स्वांन निंद्य तथैब च।
    अल्पाहारी ग्रह त्यागी बिद्यारथी पंच लक्ष्मणम। ।

  • @uttamsing7016
    @uttamsing7016 Год назад

    👏👏

    • @SHYAMBIHARI-fn7bc
      @SHYAMBIHARI-fn7bc Год назад

      Satguru, rampal, ji, kokoti, ko to, dandvat, pranam, karti hu, 😂😂😂😂😂😂

  • @menkadas7268
    @menkadas7268 Год назад

    Jai Mata di 🙏 🙏

  • @rajuchauhan7603
    @rajuchauhan7603 Год назад

    Sant guru ram pal mahraj tavt gnani Dand vand kotee kotee parnam sad guruji me appse diksh Leana chaha tacho

  • @manakkumawat8057
    @manakkumawat8057 Год назад

    Great knowledge pramatma S

  • @diwakarkumar2679
    @diwakarkumar2679 2 года назад +3

    Kabir is supremo good

    • @k.psingh4701
      @k.psingh4701 Год назад

      हम तौ एक करि जांनानं जांनां ।
      दोइ कहैं तिनहीं कौं दोजग जिन नाहिंन पहिचांनां।
      जैसे बढ़ी काष्ट ही कार्ट अगिनि न काटे कोई।
      सब घटि अंतरि तूही व्यापक धरै सरूपै सोई।
      एकै पवन एक ही पानीं एकै जाेति समांनां।
      एकै खाक गढ़े सब भांडै एकै काेंहरा सांनां।
      माया देखि के जगत लुभांनां कह रे नर गरबांनां
      निरभै भया कछू नहि ब्यापै कहैं कबीर दिवांनां। (पृष्ठ 131)
      शब्दार्थ
      एक-परमात्मा, एक। दोई-दो। तिनहीं-उनको। दोजग-नरक। नाहिंन-नहीं। एकै-एक। पवन-हवा। जोति-प्रकाश। समाना-व्याप्त। खाक-मिट्टी। गढ़े-रचे हुए। भांड़े-बर्तन। कोहरा-कुम्हार। सांनां-एक साथ मिलकर। बाढ़ी-बढ़ई। काष्ट-लकड़ी। अगिनि-आग। घटि-घड़ा, हृदय। अंतरि-भीतर, अंदर। व्यापक-विस्तृत। धरे-रखे। सरूपै-स्वरूप। सोई-वही। जगत-संसार। लुभाना-मोहित होना। नर-मनुष्य। गरबानां-गर्व करना। निरभै-निडरा भया-हुआ। दिवानां-बैरागी।
      प्रसंग-प्रस्तुत पद पाठ्यपुस्तक आरोह भाग-1 में संकलित निर्गुण परंपरा के सर्वश्रेष्ठ कवि कबीर के पदों से उद्धृत है। इस पद में, कबीर ने एक ही परम तत्व की सत्ता को स्वीकार किया है, जिसकी पुष्टि वे कई उदाहरणों से करते हैं।
      व्याख्या-कबीरदास कहते हैं कि हमने तो जान लिया है कि ईश्वर एक ही है। इस तरह से मैंने ईश्वर के अद्वैत रूप को पहचान लिया है। हालाँकि कुछ लोग ईश्वर को अलग-अलग बताते हैं; उनके लिए नरक की स्थिति है, क्योंकि वे वास्तविकता को नहीं पहचान पाते। वे आत्मा और परमात्मा को अलग-अलग मानते हैं। कवि ईश्वर की अद्वैतता का प्रमाण देते हुए कहता है कि संसार में एक जैसी हवा बहती है, एक जैसा पानी है तथा एक ही प्रकाश सबमें समाया हुआ है। कुम्हार भी एक ही तरह की मिट्टी से सब बर्तन बनाता है, भले ही बर्तनों का आकार-प्रकार अलग-अलग हो। बढ़ई लकड़ी को तो काट सकता है, परंतु आग को नहीं काट सकता। इसी प्रकार शरीर नष्ट हो जाता है, परंतु उसमें व्याप्त आत्मा सदैव रहती है। परमात्मा हरेक के हृदय में समाया हुआ है भले ही उसने कोई भी रूप धारण किया हो। यह संसार माया के जाल में फैसा हुआ है। और वही संसार को लुभाता है। इसलिए मनुष्य को किसी भी बात को लेकर घमंड नहीं करना चाहिए। प्रस्तुत पद के अंत में कबीर दास कहते हैं कि जब मनुष्य निर्भय हो जाता है तो उसे कुछ नहीं सताता। कबीर भी अब निर्भय हो गया है तथा ईश्वर का दीवाना हो गया है।

  • @SantRampalJiSpecialSatsang
    @SantRampalJiSpecialSatsang 2 года назад +6

    Kabir is Supreme God

  • @ambikaprasad1734
    @ambikaprasad1734 2 года назад +5

    चुक गई तो चुक जान दे // कर सतगुरु से हेत , सतगुरु दीन दयाल है // फिर उपजा दे खेत🙏🙏↪️ बंदी छोड़ सतगुरु रामपाल जी भगवान जी की जय हो

  • @SantRampalJiSpecialSatsang
    @SantRampalJiSpecialSatsang 2 года назад +6

    Kabir is Supreme power

    • @k.psingh4701
      @k.psingh4701 Год назад

      हम तौ एक करि जांनानं जांनां ।
      दोइ कहैं तिनहीं कौं दोजग जिन नाहिंन पहिचांनां।
      जैसे बढ़ी काष्ट ही कार्ट अगिनि न काटे कोई।
      सब घटि अंतरि तूही व्यापक धरै सरूपै सोई।
      एकै पवन एक ही पानीं एकै जाेति समांनां।
      एकै खाक गढ़े सब भांडै एकै काेंहरा सांनां।
      माया देखि के जगत लुभांनां कह रे नर गरबांनां
      निरभै भया कछू नहि ब्यापै कहैं कबीर दिवांनां। (पृष्ठ 131)
      शब्दार्थ
      एक-परमात्मा, एक। दोई-दो। तिनहीं-उनको। दोजग-नरक। नाहिंन-नहीं। एकै-एक। पवन-हवा। जोति-प्रकाश। समाना-व्याप्त। खाक-मिट्टी। गढ़े-रचे हुए। भांड़े-बर्तन। कोहरा-कुम्हार। सांनां-एक साथ मिलकर। बाढ़ी-बढ़ई। काष्ट-लकड़ी। अगिनि-आग। घटि-घड़ा, हृदय। अंतरि-भीतर, अंदर। व्यापक-विस्तृत। धरे-रखे। सरूपै-स्वरूप। सोई-वही। जगत-संसार। लुभाना-मोहित होना। नर-मनुष्य। गरबानां-गर्व करना। निरभै-निडरा भया-हुआ। दिवानां-बैरागी।
      प्रसंग-प्रस्तुत पद पाठ्यपुस्तक आरोह भाग-1 में संकलित निर्गुण परंपरा के सर्वश्रेष्ठ कवि कबीर के पदों से उद्धृत है। इस पद में, कबीर ने एक ही परम तत्व की सत्ता को स्वीकार किया है, जिसकी पुष्टि वे कई उदाहरणों से करते हैं।
      व्याख्या-कबीरदास कहते हैं कि हमने तो जान लिया है कि ईश्वर एक ही है। इस तरह से मैंने ईश्वर के अद्वैत रूप को पहचान लिया है। हालाँकि कुछ लोग ईश्वर को अलग-अलग बताते हैं; उनके लिए नरक की स्थिति है, क्योंकि वे वास्तविकता को नहीं पहचान पाते। वे आत्मा और परमात्मा को अलग-अलग मानते हैं। कवि ईश्वर की अद्वैतता का प्रमाण देते हुए कहता है कि संसार में एक जैसी हवा बहती है, एक जैसा पानी है तथा एक ही प्रकाश सबमें समाया हुआ है। कुम्हार भी एक ही तरह की मिट्टी से सब बर्तन बनाता है, भले ही बर्तनों का आकार-प्रकार अलग-अलग हो। बढ़ई लकड़ी को तो काट सकता है, परंतु आग को नहीं काट सकता। इसी प्रकार शरीर नष्ट हो जाता है, परंतु उसमें व्याप्त आत्मा सदैव रहती है। परमात्मा हरेक के हृदय में समाया हुआ है भले ही उसने कोई भी रूप धारण किया हो। यह संसार माया के जाल में फैसा हुआ है। और वही संसार को लुभाता है। इसलिए मनुष्य को किसी भी बात को लेकर घमंड नहीं करना चाहिए। प्रस्तुत पद के अंत में कबीर दास कहते हैं कि जब मनुष्य निर्भय हो जाता है तो उसे कुछ नहीं सताता। कबीर भी अब निर्भय हो गया है तथा ईश्वर का दीवाना हो गया है।

  • @sunilkhasa8486
    @sunilkhasa8486 Год назад

    Jai mata di 🙏

  • @satsaheb5775
    @satsaheb5775 Год назад

    Sat saheb ji 🌹🌹🌹🙏🙏🙏⚘⚘⚘🙏🙏🙏🥀🥀🥀🙏🏼🙏🏼🙏🏼🌺🌺🌺🙏🏼🙏🏼🙏🏼

  • @pardeepdas7346
    @pardeepdas7346 Год назад

    Bahut Achcha

  • @NirmalSingh-n5z
    @NirmalSingh-n5z 7 месяцев назад

    Sat sahib ji 🙏🙏

  • @revantram6344
    @revantram6344 Год назад +2

    गरीब तीनों देवा कमल दल बसे बमहा विष्णु महेश पहले इनकी वदना फिर सुन सतगुरु उपदेश

  • @jogendrasingh978
    @jogendrasingh978 Год назад

    Narayan hi saty hai

  • @GaganmaranGaganmaran
    @GaganmaranGaganmaran Год назад

    🔮भारत में उत्पन्न वह पूर्ण संत गौर वर्ण के हैं, उनके न दाढ़ी है, ना मूछें हैं और उनके सर पर सफेद बाल हैं। - फ्लोरेंस
    अमेरिका की इस प्रसिद्ध भविष्यवक्ता की उपरोक्त भविष्यवाणी संत रामपाल जी महाराज पर बिल्कुल खरी उतरती है।

  • @pavitarsidhu3206
    @pavitarsidhu3206 3 месяца назад

    🙏🙏🙏🙏

  • @PappuKumar-u2u
    @PappuKumar-u2u 3 месяца назад

    Sat saheb

  • @ISWARIPRASAD-ws8ur
    @ISWARIPRASAD-ws8ur 19 дней назад +1

    बिस्व के पवित्र सभी धर्म ग्रंथ साक्क्षी हैंऔर श्रीमद्भागवतगीता पबित्र पुस्तक चारों बेदों का सार ग्रंथ है और पवित्र कुरांन सरीफ बाईबिल मेंभी बरिणित है आयत 25में 52 से 59मेंऔर पवित्र पुस्तक गुरु गृंथ साहेब में बरिणित नानक देव ने कहा अल्लाह बड़ा कबीर है पढिए पबित्र पुस्तक ज्ञांन गंगा इति सिद्धम। ।

  • @manakkumawat8057
    @manakkumawat8057 Год назад

    Sat saheb ji

  • @uttamsing7016
    @uttamsing7016 Год назад

    👏🙏🏻

  • @dollysahu3751
    @dollysahu3751 2 года назад +4

    Kabeer is supreme power of god

    • @k.psingh4701
      @k.psingh4701 Год назад

      हम तौ एक करि जांनानं जांनां ।
      दोइ कहैं तिनहीं कौं दोजग जिन नाहिंन पहिचांनां।
      जैसे बढ़ी काष्ट ही कार्ट अगिनि न काटे कोई।
      सब घटि अंतरि तूही व्यापक धरै सरूपै सोई।
      एकै पवन एक ही पानीं एकै जाेति समांनां।
      एकै खाक गढ़े सब भांडै एकै काेंहरा सांनां।
      माया देखि के जगत लुभांनां कह रे नर गरबांनां
      निरभै भया कछू नहि ब्यापै कहैं कबीर दिवांनां। (पृष्ठ 131)
      शब्दार्थ
      एक-परमात्मा, एक। दोई-दो। तिनहीं-उनको। दोजग-नरक। नाहिंन-नहीं। एकै-एक। पवन-हवा। जोति-प्रकाश। समाना-व्याप्त। खाक-मिट्टी। गढ़े-रचे हुए। भांड़े-बर्तन। कोहरा-कुम्हार। सांनां-एक साथ मिलकर। बाढ़ी-बढ़ई। काष्ट-लकड़ी। अगिनि-आग। घटि-घड़ा, हृदय। अंतरि-भीतर, अंदर। व्यापक-विस्तृत। धरे-रखे। सरूपै-स्वरूप। सोई-वही। जगत-संसार। लुभाना-मोहित होना। नर-मनुष्य। गरबानां-गर्व करना। निरभै-निडरा भया-हुआ। दिवानां-बैरागी।
      प्रसंग-प्रस्तुत पद पाठ्यपुस्तक आरोह भाग-1 में संकलित निर्गुण परंपरा के सर्वश्रेष्ठ कवि कबीर के पदों से उद्धृत है। इस पद में, कबीर ने एक ही परम तत्व की सत्ता को स्वीकार किया है, जिसकी पुष्टि वे कई उदाहरणों से करते हैं।
      व्याख्या-कबीरदास कहते हैं कि हमने तो जान लिया है कि ईश्वर एक ही है। इस तरह से मैंने ईश्वर के अद्वैत रूप को पहचान लिया है। हालाँकि कुछ लोग ईश्वर को अलग-अलग बताते हैं; उनके लिए नरक की स्थिति है, क्योंकि वे वास्तविकता को नहीं पहचान पाते। वे आत्मा और परमात्मा को अलग-अलग मानते हैं। कवि ईश्वर की अद्वैतता का प्रमाण देते हुए कहता है कि संसार में एक जैसी हवा बहती है, एक जैसा पानी है तथा एक ही प्रकाश सबमें समाया हुआ है। कुम्हार भी एक ही तरह की मिट्टी से सब बर्तन बनाता है, भले ही बर्तनों का आकार-प्रकार अलग-अलग हो। बढ़ई लकड़ी को तो काट सकता है, परंतु आग को नहीं काट सकता। इसी प्रकार शरीर नष्ट हो जाता है, परंतु उसमें व्याप्त आत्मा सदैव रहती है। परमात्मा हरेक के हृदय में समाया हुआ है भले ही उसने कोई भी रूप धारण किया हो। यह संसार माया के जाल में फैसा हुआ है। और वही संसार को लुभाता है। इसलिए मनुष्य को किसी भी बात को लेकर घमंड नहीं करना चाहिए। प्रस्तुत पद के अंत में कबीर दास कहते हैं कि जब मनुष्य निर्भय हो जाता है तो उसे कुछ नहीं सताता। कबीर भी अब निर्भय हो गया है तथा ईश्वर का दीवाना हो गया है।

  • @Muskandasi-z1w
    @Muskandasi-z1w 11 месяцев назад

    ❤bandi chchod satguru rampal jee bhagwan jee ki jai ho sat saheb guru jee❤

  • @jyotipress5605
    @jyotipress5605 15 дней назад

    सभी तीनों देवताओं की, दुर्गा माता व गणेश जी की पूजा करते हैं। जबकि इसका प्रमाण किसी भी शास्त्र में नहीं है। यह शास्त्र विरुद्ध है। क्योंकि गीता अध्याय 9 श्लोक 23 में देवताओं की पूजा शास्त्रों के विरुद्ध बताई गई है।

  • @abhishekkumar-ey4mg
    @abhishekkumar-ey4mg 2 года назад +1

    Abhishek kumar das

  • @bhagwatilalmeena9312
    @bhagwatilalmeena9312 2 года назад +1

    मनुष्य जन्म में आकर पूर्ण गुरु के चरण नहीं लोगे तो हर एक आत्मा का यह दशा होगा जो इस गोडे पशु के हो रहा है

  • @Harekrishana633
    @Harekrishana633 2 года назад +11

    आप में विद्वता है... लेकिन महोदय कबीरदास संत थे नकि कोई ब्रह्म। आप वेद और भागवत को कबीर जी से क्यों जोड़कर बतातें है?

  • @vikashkumarkumar7639
    @vikashkumarkumar7639 Год назад +2

    🙏🙏🙏🙏🙏🥀🥀🥀🥀🥀🌺🌺🌺🌺🌺🌺🌺🌺🙏🙏🌷🌷🌷🌷🌷🌷🙏🙏🌹🌹🌹🌹🌹🌹🌹🌺🌷🌷🌺🌺🥀🥀🥀🙏🙏🙏🙏🙏🙏🙏🙏🙏

  • @heeralalkhatawlia2694
    @heeralalkhatawlia2694 2 года назад +4

    राम नाम कड़वा लगे, मीठे लागे दाम। दुविधा में दोनों गए, माया मिली न राम।।

    • @k.psingh4701
      @k.psingh4701 Год назад

      हम तौ एक करि जांनानं जांनां ।
      दोइ कहैं तिनहीं कौं दोजग जिन नाहिंन पहिचांनां।
      जैसे बढ़ी काष्ट ही कार्ट अगिनि न काटे कोई।
      सब घटि अंतरि तूही व्यापक धरै सरूपै सोई।
      एकै पवन एक ही पानीं एकै जाेति समांनां।
      एकै खाक गढ़े सब भांडै एकै काेंहरा सांनां।
      माया देखि के जगत लुभांनां कह रे नर गरबांनां
      निरभै भया कछू नहि ब्यापै कहैं कबीर दिवांनां। (पृष्ठ 131)
      शब्दार्थ
      एक-परमात्मा, एक। दोई-दो। तिनहीं-उनको। दोजग-नरक। नाहिंन-नहीं। एकै-एक। पवन-हवा। जोति-प्रकाश। समाना-व्याप्त। खाक-मिट्टी। गढ़े-रचे हुए। भांड़े-बर्तन। कोहरा-कुम्हार। सांनां-एक साथ मिलकर। बाढ़ी-बढ़ई। काष्ट-लकड़ी। अगिनि-आग। घटि-घड़ा, हृदय। अंतरि-भीतर, अंदर। व्यापक-विस्तृत। धरे-रखे। सरूपै-स्वरूप। सोई-वही। जगत-संसार। लुभाना-मोहित होना। नर-मनुष्य। गरबानां-गर्व करना। निरभै-निडरा भया-हुआ। दिवानां-बैरागी।
      प्रसंग-प्रस्तुत पद पाठ्यपुस्तक आरोह भाग-1 में संकलित निर्गुण परंपरा के सर्वश्रेष्ठ कवि कबीर के पदों से उद्धृत है। इस पद में, कबीर ने एक ही परम तत्व की सत्ता को स्वीकार किया है, जिसकी पुष्टि वे कई उदाहरणों से करते हैं।
      व्याख्या-कबीरदास कहते हैं कि हमने तो जान लिया है कि ईश्वर एक ही है। इस तरह से मैंने ईश्वर के अद्वैत रूप को पहचान लिया है। हालाँकि कुछ लोग ईश्वर को अलग-अलग बताते हैं; उनके लिए नरक की स्थिति है, क्योंकि वे वास्तविकता को नहीं पहचान पाते। वे आत्मा और परमात्मा को अलग-अलग मानते हैं। कवि ईश्वर की अद्वैतता का प्रमाण देते हुए कहता है कि संसार में एक जैसी हवा बहती है, एक जैसा पानी है तथा एक ही प्रकाश सबमें समाया हुआ है। कुम्हार भी एक ही तरह की मिट्टी से सब बर्तन बनाता है, भले ही बर्तनों का आकार-प्रकार अलग-अलग हो। बढ़ई लकड़ी को तो काट सकता है, परंतु आग को नहीं काट सकता। इसी प्रकार शरीर नष्ट हो जाता है, परंतु उसमें व्याप्त आत्मा सदैव रहती है। परमात्मा हरेक के हृदय में समाया हुआ है भले ही उसने कोई भी रूप धारण किया हो। यह संसार माया के जाल में फैसा हुआ है। और वही संसार को लुभाता है। इसलिए मनुष्य को किसी भी बात को लेकर घमंड नहीं करना चाहिए। प्रस्तुत पद के अंत में कबीर दास कहते हैं कि जब मनुष्य निर्भय हो जाता है तो उसे कुछ नहीं सताता। कबीर भी अब निर्भय हो गया है तथा ईश्वर का दीवाना हो गया है।

  • @sunitakujur7801
    @sunitakujur7801 2 года назад +4

    इस का किसी भी शास्त्र में उल्लेख नहीं कि नशा करें।
    यह मानव समाज को बर्बाद कर रहा है।

  • @julumsingh6472
    @julumsingh6472 Год назад

    ❤❤❤❤sat😂 saheb 😂je 🎉🎉🎉🎉🎉🎉🎉🎉🎉🎉❤❤❤❤❤❤❤❤❤❤😂😂😂😂😂😂😂😂😂😂

  • @SurendraSingh-je1lq
    @SurendraSingh-je1lq 2 года назад +5

    इस नवरात्रि पर जानिए कौन है वह पूर्ण परमेश्वर जो सभी कष्टों को दूर करके दुखों का अंत कर सकता है। उस पूर्ण परमेश्वर की जानकारी के लिये अवश्य पढ़ें ज्ञान गंगा।

  • @reshminagesh9919
    @reshminagesh9919 Год назад

    Kabir is god

  • @preetikumari-rt7qo
    @preetikumari-rt7qo Год назад

    माता दुर्गा को प्रसन्न करने का वास्तविक मंत्र क्या है।।

    • @SubhankarShivay
      @SubhankarShivay 4 месяца назад

      He Devi Om Om Om maha ommaha DURGA mahamaya trimaya maha Devi subhankar ARDHANGINI Devi adi SAKTI NOMO NAMAHA NOMOSTUTE 21 bar ye mantra ko 21 din pat Karo UCCHARAn k sath

  • @MayaramKumar-yi9nn
    @MayaramKumar-yi9nn 4 месяца назад

    😂🎉😊😊

  • @Dungeon_motivation
    @Dungeon_motivation Год назад +1

    Book is naam koi bata sktaa haii ki ye kaha sey vyakhyaa rkhii huii a

  • @paisaykamanykasahitarikaat9956
    @paisaykamanykasahitarikaat9956 24 дня назад +1

    जेल से बाहर ना आने पाये😂

  • @DineshKumar-ib3hv
    @DineshKumar-ib3hv 2 года назад +5

    pavitra shridevi bhagwat mahapuran jismein chauthe skand mein Diya hua hai prakaran ki Shri Durga ji khud Apne se Kisi Anya dusre parmatma ke Sharan mein jaane ke liye kahati aur kahate ki meri bhakti bhi mat karo aur iska Om mantra hai aur braham antriksh mein brahmalok mein rahata hai aur keval aur sabhi bhakti chhodkar keval usi ki bhakti karo aur tumhara Kalyan hoga aur ISI sabit hota hai ki Durga ji jo hai sherawali man purn parmatma Nahin hai arthat janm mein aati hai dhanyvad

  • @paisaykamanykasahitarikaat9956
    @paisaykamanykasahitarikaat9956 24 дня назад +1

    जेल वाले बाबब

  • @Darshyadav24
    @Darshyadav24 Год назад +1

    संत रामपाल 😛😛🤧👻💀👏👏

    • @k.psingh4701
      @k.psingh4701 Год назад

      Pakhandi hain dekho toh sahi kaise logo ko murkh bana raha hain 😂jabki devi mata Durga ji utpati mahisasur ki badh ke liye bhram Vishnu mahesh aur saare devtawo ne apni sakti se utpan kiya lekin ye swamghoshit nalayak shant Jo ki dhogi hain sidh karne pe laga hain😅😅😅😅

  • @Axu7798
    @Axu7798 Год назад +1

    Guru ji mortii puja❌❌❌galat