AIGIRI NANDINI || MAA DURGA BHAJAN || NAVRATRI || Dr SMRUTI PRIYADARSINI KAR

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  • Опубликовано: 9 окт 2024
  • AIGIRI NANDINI
    ►Singer: Dr Smruti Priyadarsini Kar
    ►Music Arrangement: ‪Prafulla Behera
    ►Mixing and Mastering: ‪Milan Studio
    ►Drums: Anil Das
    ►Synthesizer Keyboard: Chinmay
    ►DOP & Edit: Jeet (AB Films)
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    Aigiri Nandini lyrics
    अयिगिरि नन्दिनि नन्दितमेदिनि विश्वविनोदिनि नन्दिनुते
    गिरिवरविन्ध्यशिरोधिनिवासिनि विष्णुविलासिनि जिष्णुनुते
    भगवति हे शितिकण्ठकुटुम्बिनि भूरिकुटुम्बिनि भूरिकृते
    जय जय हे महिषासुर मर्दिनि रम्यकपर्दिनि शैलसुते ॥ १ ॥
    सुरवरवर्षिणि दुर्धरधर्षिणि दुर्मुखमर्षिणि हर्षरते
    त्रिभुवनपोषिणि शङ्करतोषिणि किल्बिषमोषिणि घोषरते
    दनुजनिरोषिणि दितिसुतरोषिणि दुर्मदशोषिणि सिन्धुसुते
    जय जय हे महिषासुर मर्दिनि रम्यकपर्दिनि शैलसुते ॥ २ ॥
    अयि जगदम्ब मदम्ब कदम्बवनप्रियवासिनि हासरते
    शिखरिशिरोमणितुङ्गहिमालयशृङ्गनिजालयमध्यगते
    मधुमधुरे मधुकैटभगञ्जिनि कैटभभञ्जिनि रासरते
    जय जय हे महिषासुर मर्दिनि रम्यकपर्दिनि शैलसुते ॥ ३ ॥
    अयि शतखण्ड विखण्डितरुण्ड वितुण्डितशुण्ड गजाधिपते
    रिपुगजगण्ड विदारणचण्ड पराक्रमशुण्ड मृगाधिपते
    निजभुजदण्ड निपातितखण्डविपातितमुण्डभटाधिपते
    जय जय हे महिषासुर मर्दिनि रम्यकपर्दिनि शैलसुते ॥ ४ ॥
    अयि रणदुर्मद शत्रुवधोदित दुर्धरनिर्जर शक्तिभृते
    चतुरविचारधुरीण महाशिव दूतकृत प्रमथाधिपते
    दुरितदुरीहदुराशयदुर्मतिदानवदूतकृतान्तमते
    जय जय हे महिषासुर मर्दिनि रम्यकपर्दिनि शैलसुते ॥ ५ ॥
    अयि शरणागतवैरिवधूवर वीरवराभयदायकरे
    त्रिभुवन मस्तक शूलविरोधिशिरोधिकृतामल शूलकरे
    दुमिदुमितामर दुन्दुभिनाद महो मुखरीकृत तिग्मकरे
    जय जय हे महिषासुर मर्दिनि रम्यकपर्दिनि शैलसुते ॥ ६ ॥
    अयि निजहुङ्कृतिमात्र निराकृत धूम्रविलोचन धूम्रशते
    समरविशोषित शोणितबीज समुद्भवशोणित बीजलते
    शिव शिव शुम्भ निशुम्भ महाहव तर्पित भूत पिशाचरते
    जय जय हे महिषासुर मर्दिनि रम्यकपर्दिनि शैलसुते ॥ ७ ॥
    धनुरनुसङ्ग रणक्षणसङ्ग परिस्फुरदङ्ग नटत्कटके
    कनक पिशङ्गपृषत्कनिषङ्गरसद्भट शृङ्ग हतावटुके
    कृतचतुरङ्ग बलक्षितिरङ्ग घटद्बहुरङ्ग रटद्बटुके
    जय जय हे महिषासुर मर्दिनि रम्यकपर्दिनि शैलसुते ॥ ८ ॥
    सुरललना ततथेयि तथेयि कृताभिनयोदर नृत्यरते
    कृत कुकुथः कुकुथो गडदादिकताल कुतूहल गानरते
    धुधुकुट धुक्कुट धिन्धिमित ध्वनि धीर मृदङ्ग निनादरते
    जय जय हे महिषासुर मर्दिनि रम्यकपर्दिनि शैलसुते ॥ ९ ॥
    जय जय जप्य जये जय शब्दपरस्तुति तत्पर विश्वनुते
    भण भण भिञ्जिमि भिङ्कृतनूपुर सिञ्जितमोहित भूतपते
    नटितनटार्ध नटीनटनायक नाटितनाट्य सुगानरते
    जय जय हे महिषासुर मर्दिनि रम्यकपर्दिनि शैलसुते ॥ १० ॥
    अयि सुमनः सुमनः सुमनः सुमनः सुमनोहर कान्तियुते
    श्रित रजनी रजनी रजनी रजनी रजनीकर वक्त्रवृते
    सुनयन विभ्रमर भ्रमर भ्रमर भ्रमर भ्रमराधिपते
    जय जय हे महिषासुर मर्दिनि रम्यकपर्दिनि शैलसुते ॥ ११ ॥
    सहित महाहव मल्लम तल्लिक मल्लित रल्लक मल्लरते
    विरचित वल्लिक पल्लिक मल्लिक भिल्लिक भिल्लिक वर्ग वृते
    सितकृत पुल्लिसमुल्लसितारुण तल्लज पल्लव सल्ललिते
    जय जय हे महिषासुर मर्दिनि रम्यकपर्दिनि शैलसुते ॥ १२ ॥
    अविरलगण्डगलन्मदमेदुर मत्तमतङ्गज राजपते
    त्रिभुवनभूषणभूतकलानिधि रूपपयोनिधि राजसुते
    अयि सुदतीजन लालसमानस मोहनमन्मथ राजसुते
    जय जय हे महिषासुर मर्दिनि रम्यकपर्दिनि शैलसुते ॥ १३ ॥
    कमलदलामल कोमलकान्ति कलाकलितामल भाललते
    सकलविलास कलानिलयक्रम केलिचलत्कल हंसकुले
    अलिकुल सङ्कुल कुवलय मण्डल मौलिमिलद्भकुलालि कुले
    जय जय हे महिषासुर मर्दिनि रम्यकपर्दिनि शैलसुते ॥ १४ ॥
    करमुरलीरववीजितकूजित लज्जितकोकिल मञ्जुमते
    मिलित पुलिन्द मनोहर गुञ्जित रञ्जितशैल निकुञ्जगते
    निजगुणभूत महाशबरीगण सद्गुणसम्भृत केलितले
    जय जय हे महिषासुर मर्दिनि रम्यकपर्दिनि शैलसुते ॥ १५ ॥
    कटितटपीत दुकूलविचित्र मयूखतिरस्कृत चन्द्ररुचे
    प्रणतसुरासुर मौलिमणिस्फुरदंशुलसन्नख चन्द्ररुचे
    जितकनकाचल मौलिपदोर्जित निर्भरकुञ्जर कुम्भकुचे
    जय जय हे महिषासुर मर्दिनि रम्यकपर्दिनि शैलसुते ॥ १६ ॥
    विजित सहस्रकरैक सहस्रकरैक सहस्रकरैकनुते
    कृत सुरतारक सङ्गरतारक सङ्गरतारक सूनुसुते
    सुरथसमाधि समानसमाधि समाधिसमाधि सुजातरते
    जय जय हे महिषासुर मर्दिनि रम्यकपर्दिनि शैलसुते ॥ १७ ॥
    पदकमलं करुणानिलये वरिवस्यति योऽनुदिनं स शिवे
    अयि कमले कमलानिलये कमलानिलयः स कथं न भवेत्
    तव पदमेव परम्पदमित्यनुशीलयतो मम किं न शिवे
    जय जय हे महिषासुर मर्दिनि रम्यकपर्दिनि शैलसुते ॥ १८ ॥
    कनकलसत्कल सिन्धुजलैरनु सिञ्चिनुतेगुण रङ्गभुवं
    भजति स किं न शचीकुचकुम्भ तटीपरिरम्भ सुखानुभवम्
    तव चरणं शरणं करवाणि नतामरवाणि निवासि शिवं
    जय जय हे महिषासुर मर्दिनि रम्यकपर्दिनि शैलसुते ॥ १९ ॥
    तव विमलेन्दुकुलं वदनेन्दुमलं सकलं ननु कूलयते
    किमु पुरुहूत पुरीन्दुमुखी सुमुखीभिरसौ विमुखीक्रियते
    मम तु मतं शिवनामधने भवती कृपया किमुत क्रियते
    जय जय हे महिषासुर मर्दिनि रम्यकपर्दिनि शैलसुते ॥ २० ॥
    अयि मयि दीनदयालुतया कृपयैव त्वया भवितव्यमुमे
    अयि जगतो जननी कृपयासि यथासि तथाऽनुभितासिरते
    यदुचितमत्र भवत्युररि कुरुतादुरुतापमपाकुरुते
    जय जय हे महिषासुर मर्दिनि रम्यकपर्दिनि शैलसुते ॥ २१ ॥
    इति श्री महिषासुर मर्दिनि स्तोत्रम् ||
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