ये मोह मोह के धागे

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  • Опубликовано: 7 фев 2025
  • 30 January 2025
    ये मोह मोह के धागे तेरी उँगलियों से जा उलझे
    कोई टोह टोह ना लागे, किस तरह गिरह ये सुलझे
    है रोम रोम एक तारा, जो बादलों में से गुज़रे
    तु होगा ज़रा पागल तूने मुझको है चुना
    कैसे तूने अनकहा, तूने अनकहा सब सुना
    तु दिन सा है, मैं रात
    आना दोनों मिल जाए शामों की तरह
    ये मोह मोह के धागे...
    के ऐसा बेपरवाह मन पहले तो ना था
    चिट्ठियों को जैसे मिल गया, जैसे इक नया सा पता
    खाली राहें, हम आँख मूंदें जाएँ
    पहुंचे कहीं तो बेवजह
    ये मोह मोह के धागे...
    के तेरी झूठी बातें मैं सारी मान लूँ
    आँखों से तेरे सच सभी, सब कुछ अभी जान लूँ
    तेज है धारा, बहते से हम आवारा
    आ थम के साँसे ले यहाँ
    ये मोह मोह के धागे...

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