है प्रभु काश कार्तिक मेहनतकश और कुछ कर गुजरने वाले लोगो के रास्ते की रुकावटो को भी समझ सकते।कार्तिक जी रूकावटे ही नहीं एक अनोखा भ्रम जाल भी है।जिसे समझना कभी कभी इतना मुश्किल होता है की शब्दो में बताया नहीं जा सकता।फिर एक ही रास्ता रह जाता है रूको और समझो फिर चलो।इसे आलस्य की संज्ञा दी जाती है साहब।
है प्रभु काश कार्तिक मेहनतकश और कुछ कर गुजरने वाले लोगो के रास्ते की रुकावटो को भी समझ सकते।कार्तिक जी रूकावटे ही नहीं एक अनोखा भ्रम जाल भी है।जिसे समझना कभी कभी इतना मुश्किल होता है की शब्दो में बताया नहीं जा सकता।फिर एक ही रास्ता रह जाता है रूको और समझो फिर चलो।इसे आलस्य की संज्ञा दी जाती है साहब।
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