Pranam Maharaj ji, you have an amazing style of teaching an abstract subject in such a simple way, you are a blessing for spiritual seekers ❤❤❤ I am Vinayak Kaurwar
मैं निरंतर सत्य की खोज में रहता हूँ और आपके विचारों ने मेरी सोच को गहरा किया है। यह आद्यात्मिक प्रवृत्ति जो आपने साझा की है, हमें यह सिखाती है कि विश्व एक धारणा, भावना, और मानव मनोबल का परिचायक हो सकता है, जो हमें अपनी असलीता को समझने के लिए प्रेरित करता है। इस उदार दृष्टिकोण के साथ, आपने हमें आत्म-समीक्षा और अद्वितीयता की ऊंचाइयों की ओर प्रवृत्त किया है। धन्यवाद, इस आध्यात्मिक यात्रा के लिए। 🙏
Hamari programming hi isi tarah ki jati hai Hamari teaching bhi yahi hai Nahi to sansar me jine ke liye ye jaruri bhi hai Aur ye programming hi hame dusre praniyo se alag karti hai Ye to hamare vivek par hai ki ham iska kitna sadupyog karte hai. Pratyek vastu ke kuchh n kuchh gun dosh to rahenge.
हमारे लिए संसार हमारे अस्तित्व से है। परंतु हमारा अस्तित्व मिट जाने से संसार का अस्तित्व नहीं मिटता है। भाषा अपने विचार को प्रकट करने का साधन है। पेड़ का अस्तित्व हमारी भाषा पर निर्भर नहीं है। पहाड़ का अस्तित्व हमारी भाषा पर निर्भर नहीं है। संसार विचार नहीं है। संसार को समझने, समझाने के लिए हम विचार करते हैं। हमारे अंदर जो संसार की समझ है, वह एक विचार है। परंतु जो संसार है, वह विचार नहीं है। हमारी सोच के बिना भी संसार है। हमारे शब्दों के बिना भी संसार है। हमारे देखे बिना, महसूस किए बिना भी संसार है। हमारे पैदा होने से पहले भी संसार था। हमारे मरने के बाद भी संसार रहेगा। आज हम इस रूप में हैं और संसार को इस तरह महसूस करते हैं। कल किसी और रूप में होगें और संसार को अलग तरह से महसूस करेंगे। पृथ्वी न रहे, सूर्य न रहे, अकाश गंगा न रहे। संसार का ये रुप न हो कोई और रूप हो। संसार तो तब भी रहेगा। हम तो इसका कण मात्र है। फिर भी हम इसकी व्याख्या करना चाहते हैं!! यही तो इन्सानी फितरत है।
Abhi agar es dharti ke sare jeevit prani achanak gahri neend me so jaayen yani ek sath sab so jaayen! Tab kya hoga? Astitwa to fir bhi rahega ya nahi? Magar esko abhi main dekh Raha hoon kalpana se! Ye alag baat hai ki hamare so Jane se vo hai hi nahi us time period me! Magar astitwa to uska rahega! Ye bari vilachhan baat hai ki vichar ke karan hona hai.
प्रणाम! कृपया अपने प्रश्न और सुझाव हमें नीचे दिए गए ईमेल पते पर भेजें ताकि हम महाराज जी द्वारा आपको विस्तृत समुचित उत्तर उपलब्ध करवा सके: ईमेल आईडी: satya_ki_aur@yahoo.com सत्य की ओर - हंसानंद जी महाराज
Pranam Maharaj ji, you have an amazing style of teaching an abstract subject in such a simple way, you are a blessing for spiritual seekers ❤❤❤ I am Vinayak Kaurwar
Verry clear ❤❤
धन्यवाद का भी धन्यवाद गुरू-माऊली धन्यवाद।
Pranam Maharaj ji 🙏🙏🙏,
मैं निरंतर सत्य की खोज में रहता हूँ और आपके विचारों ने मेरी सोच को गहरा किया है। यह आद्यात्मिक प्रवृत्ति जो आपने साझा की है, हमें यह सिखाती है कि विश्व एक धारणा, भावना, और मानव मनोबल का परिचायक हो सकता है, जो हमें अपनी असलीता को समझने के लिए प्रेरित करता है। इस उदार दृष्टिकोण के साथ, आपने हमें आत्म-समीक्षा और अद्वितीयता की ऊंचाइयों की ओर प्रवृत्त किया है। धन्यवाद, इस आध्यात्मिक यात्रा के लिए। 🙏
शब्द, स्पर्श, रुप, रस, गंध पंचतन्मात्रा जिन्हे सूक्ष्म महाभूत भी कहा जाता है।
🙏दंडवत प्रणाम महाराज जी🙏
अति सुंदर महाराज जी आपका सत्संग
लगा अपने बहुत कम शब्दों में संसार का महत्व समझाया बहुत अच्छा सत्संग लगा
🙏🙏🙏
प्रणाम महाराज जी 🙏 हम जैसे है संसार हमे वैसा ही दिखाई देता है। धन्यवाद महाराज जी इतने विस्तार से इस जटिल विषय को इतने सरल तरीके से समझाने के लिए।
Excellent
धन्यवाद जी 🙏🙏🙏🙏🌹🌹🌹🌹
Prnam Maharaj ji.
इतने ज्ञानी महापुरुष हैं स्वामीजी। ईश्वर उन्हें मेरी भी उमर लगा दें 🎉
Satsang bahut hi saral aur spasht hai Ek thahrav hai ek shanti h bahut achha hai
🙏 प्रणाम महाराज जी 🙏
Dandvat pranam maharaj ji🙏
Hamari programming hi isi tarah ki jati hai
Hamari teaching bhi yahi hai
Nahi to sansar me jine ke liye ye jaruri bhi hai
Aur ye programming hi hame dusre praniyo se alag karti hai
Ye to hamare vivek par hai ki ham iska kitna sadupyog karte hai.
Pratyek vastu ke kuchh n kuchh gun dosh to rahenge.
So without knower no world or samsara it's amazing
If I don't know I'm this body then there is no World No words no mind no body no world 🛐🛐🛐
Thanks
🙏
हमारे लिए संसार हमारे अस्तित्व से है। परंतु हमारा अस्तित्व मिट जाने से संसार का अस्तित्व नहीं मिटता है। भाषा अपने विचार को प्रकट करने का साधन है। पेड़ का अस्तित्व हमारी भाषा पर निर्भर नहीं है। पहाड़ का अस्तित्व हमारी भाषा पर निर्भर नहीं है।
संसार विचार नहीं है। संसार को समझने, समझाने के लिए हम विचार करते हैं। हमारे अंदर जो संसार की समझ है, वह एक विचार है। परंतु जो संसार है, वह विचार नहीं है। हमारी सोच के बिना भी संसार है। हमारे शब्दों के बिना भी संसार है। हमारे देखे बिना, महसूस किए बिना भी संसार है। हमारे पैदा होने से पहले भी संसार था। हमारे मरने के बाद भी संसार रहेगा। आज हम इस रूप में हैं और संसार को इस तरह महसूस करते हैं। कल किसी और रूप में होगें और संसार को अलग तरह से महसूस करेंगे। पृथ्वी न रहे, सूर्य न रहे, अकाश गंगा न रहे। संसार का ये रुप न हो कोई और रूप हो। संसार तो तब भी रहेगा। हम तो इसका कण मात्र है। फिर भी हम इसकी व्याख्या करना चाहते हैं!! यही तो इन्सानी फितरत है।
Koti koti pranam maharaj 🌹🌹🌹🌹🌹
🙏🙏🙏🙏🙏🙏
🙏🏼🙏🏼🙏🏼
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महाराज जी के दर्शन कहां होंगे 🙏🏻
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Abhi agar es dharti ke sare jeevit prani achanak gahri neend me so jaayen yani ek sath sab so jaayen! Tab kya hoga? Astitwa to fir bhi rahega ya nahi? Magar esko abhi main dekh Raha hoon kalpana se! Ye alag baat hai ki hamare so Jane se vo hai hi nahi us time period me! Magar astitwa to uska rahega! Ye bari vilachhan baat hai ki vichar ke karan hona hai.
Where does he stay? So that we can see him.
प्रणाम!
कृपया अपने प्रश्न और सुझाव हमें नीचे दिए गए ईमेल पते पर भेजें ताकि हम महाराज जी द्वारा आपको विस्तृत समुचित उत्तर उपलब्ध करवा सके:
ईमेल आईडी: satya_ki_aur@yahoo.com
सत्य की ओर - हंसानंद जी महाराज
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