*द्विवेदी जी,समाधि:यशोमय जीवन की साधना* को सुनकर बहुत अच्छा लगा *बस इतना ही लिखा जा सकता है कि* इसपर किसी प्रकार की टिप्पणी करना मेरे बस की बात नहीं💐🙏🏽
आदरणीय कठेरिया जी ने बहुत ही सुन्दर ढंग से जिज्ञासा की है कि यदि यह समझा जाए कि धारित शरीर के पतन के पूर्व यदि शरीर तैयार हो जाती है तो विश्व भर मानवों की संख्या वर्षानुवर्ष बढ़ रही है ,इसे कैसे समझा जाए? सनातन चिन्तन में समझा जाता है कि जीव अपने कर्मों के परिणाम भुगतने हेतु शरीर प्राप्त करता है ऐसी स्थिति में यह संभव है कि कीड़े-मकोड़े का शरीर धारी भी मानव शरीर धारी हो सकता है और मानव शरीर धारी भी कीड़े मकोड़े का शरीर धारी हो सकता है। ऐसी स्थिति में जब मानव संख्या बढ़ रही है तो जंगल कम हो रहे हैं ढेर सारे अन्य शरीरधारी मानव शरीर धारी हो रहे हैं तो अन्य शरीरधारियों की संख्या घट रही है। मेरी व्याख्या तो देही शब्द की व्याख्या पर आधारित है।
🙏🙏
आप ने समाधि कि के बारे मे सुंदर व्याख्या की है.l 👌🙏
*द्विवेदी जी,समाधि:यशोमय जीवन की साधना*
को सुनकर बहुत अच्छा लगा *बस इतना ही लिखा जा सकता है कि* इसपर किसी प्रकार की टिप्पणी करना मेरे बस की बात नहीं💐🙏🏽
धन्यवाद सर!यह आपका मेरे प्रति सम्मान है।
अति सुंदर प्रस्तुति आदरणीय
शुभकामनाएं।
आपने गीता के व्यवहारिक पक्ष को सुन्दर ढंग से प्रस्तुत किया है.
धन्यवाद बन्धु!
Jai ho
धन्यवाद,
Sunder
@@MamtaChaubey-i3m धन्यवाद।
आदरणीय कठेरिया जी ने बहुत ही सुन्दर ढंग से जिज्ञासा की है कि यदि यह समझा जाए कि धारित शरीर के पतन के पूर्व यदि शरीर तैयार हो जाती है तो विश्व भर मानवों की संख्या वर्षानुवर्ष बढ़ रही है ,इसे कैसे समझा जाए?
सनातन चिन्तन में समझा जाता है कि जीव अपने कर्मों के परिणाम भुगतने हेतु शरीर प्राप्त करता है ऐसी स्थिति में यह संभव है कि कीड़े-मकोड़े का शरीर धारी भी मानव शरीर धारी हो सकता है और मानव शरीर धारी भी कीड़े मकोड़े का शरीर धारी हो सकता है।
ऐसी स्थिति में जब मानव संख्या बढ़ रही है तो जंगल कम हो रहे हैं ढेर सारे अन्य शरीरधारी मानव शरीर धारी हो रहे हैं तो अन्य शरीरधारियों की संख्या घट रही है।
मेरी व्याख्या तो देही शब्द की व्याख्या पर आधारित है।
व्यक्ति अनुभवों से सीखता है और जब वह पुरानी गलतियों से सीख नहीं लेगा तब वह सही निर्णय नहीं ले सकेगा।
@@Vaf23230 धन्यवाद, बहुत ही सारगर्भित टिप्पणी।
जब कोई आत्महत्या करता है तो वह भी तो उस समय बिना किसी विकल्प के रह जाता है। क्या ऐसा आदमी समाधिस्थ होता है?