राम तजूँ पै गुरु न बिसारूँ। गुरु के सम हरि कूँ न निहारूँ॥ हरि न जन्म दियो जगमगाहीं। गुरु ने आवागमन छुटाहीं॥ हरि ने पांच चोर दिये साथा। गुरु ने लइ लुटाय अनाथा॥ हरि ने कुटुँब जाल में गेरी। गुरु ने काटी ममता बेरी॥ हरि ने रोग भोग उरझायो। गुरु जोगी कर सबै छुटायो। हरि ने कर्म मर्म भरमायो। गुरु ने आतम रूप लखायो॥ फिर हरि बंध मुक्ति गति लाये। गुरु ने सब ही मर्म मिटाये॥ चरन दास पर तन मन वारूँ। गुरु न तजूँ हरि को तजि डारूँ॥
आपका बहुत बहुत धन्यवाद । हम भी थे इस शिविर में पर वीडियो बना नही पाए कारण की पहला शिविर था और पहली बार सुन रहा था ये भजन जैसे जैसे भजन आगे बढ़ता गया वैसे वैसे भजन की ओर खींचता चला गया और कुछ पता ही नही चला । गुरु का क्या महत्व है जीवन में ये भजन साफ कर देता है । इस भजन को सुनने के बाद जैसे तत्काल मैं उससे प्रभावित हो गया और गुरु का सम्मान मेरी नजरो में और बढ़ गया । गुरु गोविंद दो खरे काके लागूं पांव बलहारी गुरु आपने गोविंद दियो बताए । यदि गुरु ना होते तो कौन हमें भगवान के बारे में बताता । गुरु ही तो हमें भगवान से मिलाते है । गुरु ही तो हमें ज्ञान देते है । गुरु का इतने महान होते है की यदि गुरु और गोविंद ( भगवान ) दोनो एक साथ खरे हो तो हम गुरु के सामने सर झुकाते है क्यों की गुरु के कारण ही भगवान को जान रहे है नही तो हमें कभी पता नही चलता ही भगवान कौन है । शिविर से जब बाहर आए तो हम दुबारा इस भजन को यूट्यूब पर सुने पर इसके जैसा आनंद नही आया बाद में हम बहुत प्रयास भी किए की कही हमें ये वीडियो मिल जाए पर आज तक नही मिला । पर पता नही क्यों आज मेरी तलास अचानक से पूरी हो गई । मैं इस भजन को दुबारा सुन कर आज बहुत खुश हूं । आपका बहुत बहुत धन्यवाद । यदि पहले दिन का भी वीडियो हो तो आप जरूर डालें।
इस भजन में गुरु की महिमा को बताया गया है सहजो बाई द्वारा अर्थ गहरी तो है कबीर साहब जी भी कहते है सब धरती कागद करौं, लेखनि सब बनराय । सात समंद की मसि करौं गुरु गुन लिखा न जाय 🙇🏻♀️♥️
मुझे जितना समझ आया मैं आपको समझने को कोशिश करती हूं ये सहजो बाई द्वारा गुरु के लिए गाया गया भजन है। गुरु की महिमा का वर्णन इस भजन में है। इसमें गुरु को ईश्वर से भी बड़ा बताया जा रहा कबीर साहब भी तो कहते है _ गुरु गोविंद दोऊ खड़े का को लागू पाव बलिहारी गुरु आपने गोविंद दियो बताय मैं थोड़ा बहुत समझी तो आपसे सांझा करती हूं किंतु अगर कोई त्रुटि हो तो मुझे माफ करें। इस प्रकार _ राम अर्थात् ईश्वर को भी त्याग सकती किंतु गुरु को न भूलूं। गुरु के समान हरि को न देखूं।। हरि ने इस जगत में जन्म दिया। किंतु गुरु ने मुक्ति राह दिखा कर इस संसार के आवागमन से हमे छुटाया।। हरि ने पांच चोर ( five senses) को इस शरीर के साथ दिया जिससे जीव इस संसार में बिना विचारे भागता रहता है और कहीं तृप्ति नहीं पाता।किंतु गुरु ने इन सबको लेकर लूट लिया हमसे।। हरि ने परिवार के मोह जाल में रखा। जबकि गुरु ने इस ममता की बंधन को काट डाला।। हरि ने ये शरीर दिया जो संसार के विभिन्न भोगों में उलझा रहता है। जबकि गुरु ने उस हरि से ही हमारी प्रीति जोड़ कर अर्थात् हमे जोगी बनाकर सबकुछ छुड़ाया।। हरि ने शरीर रूपी जीव को कर्म में डाले। किंतु गुरु ने खुद में ईश्वर का रूप हमे दिखाए ।। फिर हरि बंधन और मुक्ति रूपी दुष्चक्र जीवन की गति में लाए। और गुरु ने हमे सही राह दिखाकर इन सबको दूर किया।। सहजो बाई जी के गुरू चरणदास जी है।तो आगे कहती है कि अपने गुरु चरनदास पर मै अपना तन और मन वार दूं। गुरु को न छोड़ूं बल्कि हरि को छोड़ दूं क्योंकि हम परमात्मा को खुद से आंखों में पट्टी बांधे देख नही सकते इसलिए हमे सच्चे गुरु की तलाश करनी चाहिए जो हमे हमसे ही खाली कर दे और सचिदानंद परमात्मा का दर्शन करा दे।
सहजो बाई जी के इस पद में गुरु की महिमा का उल्लेख है
इस पद को आचार्य जी के सानिध्य में समझते है🙇🏻♀️♥️
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Pranam
🙏💛
आनंद हो🙏
क्या ऐसी भजन संध्या प्रत्येक वेदांत महोत्सव में होती हैं 😍😍
जी 😊
Ha bilkul... session k start hone s pahle bhi or badme bhi...
हां
😢😢😢😢😢😢😢😢😢😢❤❤❤❤
राम तजूँ पै गुरु न बिसारूँ। गुरु के सम हरि कूँ न निहारूँ॥
हरि न जन्म दियो जगमगाहीं। गुरु ने आवागमन छुटाहीं॥
हरि ने पांच चोर दिये साथा। गुरु ने लइ लुटाय अनाथा॥
हरि ने कुटुँब जाल में गेरी। गुरु ने काटी ममता बेरी॥
हरि ने रोग भोग उरझायो। गुरु जोगी कर सबै छुटायो।
हरि ने कर्म मर्म भरमायो। गुरु ने आतम रूप लखायो॥
फिर हरि बंध मुक्ति गति लाये। गुरु ने सब ही मर्म मिटाये॥
चरन दास पर तन मन वारूँ। गुरु न तजूँ हरि को तजि डारूँ॥
मानुष जीवन का उद्देश्य मुक्ति
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भजन संध्या साझा करने के लिए बहुत आभार 🙏
इस भजन में गुरु की महिमा का आभार है।
मनुष्य का जीवन दुर्लभ है और उसका परम लक्ष्य मुक्ति की साधना है।
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Thanku thanku so much Kabir ji ke bhjn itni sunderta ke sath gaya apne💕💕💕💕💕💕💕🙏😍😍😍😍💕💕
मनुष्य जीवन का उद्देश्य समझे
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आपका बहुत बहुत धन्यवाद । हम भी थे इस शिविर में पर वीडियो बना नही पाए कारण की पहला शिविर था और पहली बार सुन रहा था ये भजन जैसे जैसे भजन आगे बढ़ता गया वैसे वैसे भजन की ओर खींचता चला गया और कुछ पता ही नही चला । गुरु का क्या महत्व है जीवन में ये भजन साफ कर देता है । इस भजन को सुनने के बाद जैसे तत्काल मैं उससे प्रभावित हो गया और गुरु का सम्मान मेरी नजरो में और बढ़ गया ।
गुरु गोविंद दो खरे काके लागूं पांव
बलहारी गुरु आपने गोविंद दियो बताए ।
यदि गुरु ना होते तो कौन हमें भगवान के बारे में बताता । गुरु ही तो हमें भगवान से मिलाते है । गुरु ही तो हमें ज्ञान देते है ।
गुरु का इतने महान होते है की यदि गुरु और गोविंद ( भगवान ) दोनो एक साथ खरे हो तो हम गुरु के सामने सर झुकाते है क्यों की गुरु के कारण ही भगवान को जान रहे है नही तो हमें कभी पता नही
चलता ही भगवान कौन है ।
शिविर से जब बाहर आए तो हम दुबारा इस भजन को यूट्यूब पर सुने पर इसके जैसा आनंद नही आया बाद में हम बहुत प्रयास भी किए की कही हमें ये वीडियो मिल जाए पर आज तक नही मिला ।
पर पता नही क्यों आज मेरी तलास अचानक से पूरी हो गई ।
मैं इस भजन को दुबारा सुन कर आज बहुत खुश हूं ।
आपका बहुत बहुत धन्यवाद ।
यदि पहले दिन का भी वीडियो हो तो आप जरूर डालें।
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मनुष्य जीवन का उद्देश्य समझे
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Thanks for sharing it🙏
😊🙏
this is so emotional ❤
😍😍😍😍😍😍😍😍😍😍😍
मनुष्य जीवन का उद्देश्य समझे
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Jina aaya hehi nahi fatu jo he
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Is tarah ke bhajan hum kaha se Sun sakte hai Rojana
Workshop me Bhajan bhi sammilit hai aap Acharya Prashant ki daily video me bhi Bhajan ke part dekh skte ho
follow kabir sajab bhajan acharya prashant.
आप मुझे माफ करना कि इस दोहे को मैने भजन कहा। इस दोहे का अर्थ बहुत गहरा प्रतीत होता है । तभी आप सभी इस दोहे को भजन रूप में गा रहे हैं।
इस भजन में गुरु की महिमा को बताया गया है सहजो बाई द्वारा
अर्थ गहरी तो है
कबीर साहब जी भी कहते है
सब धरती कागद करौं, लेखनि सब बनराय । सात समंद की मसि करौं गुरु गुन लिखा न जाय
🙇🏻♀️♥️
🙏 मै आपसे निवेदन करता हूं कि आप मुझे इस भजन का अर्थ समझा सकते हो। ताकि मैं इसका अर्थ समझ सकूं। जिससे मैं इसे समझ कर । मैं भी गा पाऊं। कृपया मदद करे।
आचार्य जी ने इस भजन के अंश को समझाया है
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मुझे जितना समझ आया मैं आपको समझने को कोशिश करती हूं
ये सहजो बाई द्वारा गुरु के लिए गाया गया भजन है। गुरु की महिमा का वर्णन इस भजन में है। इसमें गुरु को ईश्वर से भी बड़ा बताया जा रहा कबीर साहब भी तो कहते है _
गुरु गोविंद दोऊ खड़े का को लागू पाव
बलिहारी गुरु आपने गोविंद दियो बताय
मैं थोड़ा बहुत समझी तो आपसे सांझा करती हूं किंतु अगर कोई त्रुटि हो तो मुझे माफ करें।
इस प्रकार _
राम अर्थात् ईश्वर को भी त्याग सकती किंतु गुरु को न भूलूं। गुरु के समान हरि को न देखूं।।
हरि ने इस जगत में जन्म दिया। किंतु गुरु ने मुक्ति राह दिखा कर इस संसार के आवागमन से हमे छुटाया।।
हरि ने पांच चोर ( five senses) को इस शरीर के साथ दिया जिससे जीव इस संसार में बिना विचारे भागता रहता है और कहीं तृप्ति नहीं पाता।किंतु गुरु ने इन सबको लेकर लूट लिया हमसे।।
हरि ने परिवार के मोह जाल में रखा। जबकि गुरु ने इस ममता की बंधन को काट डाला।।
हरि ने ये शरीर दिया जो संसार के विभिन्न भोगों में उलझा रहता है। जबकि गुरु ने उस हरि से ही हमारी प्रीति जोड़ कर अर्थात् हमे जोगी बनाकर सबकुछ छुड़ाया।।
हरि ने शरीर रूपी जीव को कर्म में डाले। किंतु गुरु ने खुद में ईश्वर का रूप हमे दिखाए ।।
फिर हरि बंधन और मुक्ति रूपी दुष्चक्र जीवन की गति में लाए। और गुरु ने हमे सही राह दिखाकर इन सबको दूर किया।।
सहजो बाई जी के गुरू चरणदास जी है।तो आगे कहती है कि अपने गुरु चरनदास पर मै अपना
तन और मन वार दूं। गुरु को न छोड़ूं बल्कि हरि को छोड़ दूं क्योंकि हम परमात्मा को खुद से आंखों में पट्टी बांधे देख नही सकते इसलिए हमे सच्चे गुरु की तलाश करनी चाहिए जो हमे हमसे ही खाली कर दे और सचिदानंद परमात्मा का दर्शन करा दे।
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@@nikhilnegi3064 😊🙏
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