Real Rakshaks of Sanatan Dharm || A poem about Sanatan's real saviours by Deepankur Bhardwaj

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  • Опубликовано: 3 окт 2024
  • This poem is a harsh reality of today's era. How we are forgetting our real heroes and calling those people Dharm Rakshak who are actually ruining our Dharm by ruining our History....
    Listen to this and think...
    Jai Shree Krishna ❤️
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    Lyrics:
    अनन्त इस ब्रह्माण्ड के
    एक छोर पर है घूमती,
    अज्ञानता के दलदल में वसुंधरा
    आज एक धर्मयोद्धा है ढूंढती।
    नहीं रहा ये वक्त जिसे
    इतिहास पर गुमान था,
    नहीं ये वीर भोग्य वसुंधरा
    जिसमें रणबांकुरों का गुणगान था।
    आज युवा पीढ़ी को ही ना ज्ञात
    उनका इतिहास है,
    शौर्य नहीं तभी इनकी भुजाओं में
    चित्त में भी केवल तमस
    किंचित नहीं प्रकाश है।
    कुछ झूठे प्रेम प्रसंग हैं सजा रहे
    महकती शामों के अधीन हैं,
    वैभव और विलास की कमी नहीं
    किंतु मनुज चरित्र से दीन हीन है।
    जो कुछ धर्म से जुड़े हुए
    भारत भू को उनसे भी कुछ
    खास नहीं आस है,
    सन्यासी खुद को बता रहे
    भूल बैठे सनातन संस्कृति का सन्यास हैं।
    कह रहे कुछ आए थे
    जिन्होंने धर्म को बचा दिया,
    प्रभु के नाम का रस
    सबको चखा दिया।
    मन गड़त कथाएं रचकर
    कुछ संस्थाओं के संस्थापक को भी
    राम कृष्ण का अवतार ही बता दिया
    शस्त्र सुहाते हैं जिन भुजाओं में
    उनमें कमंडल थमा दिया
    कुछ बुद्धिजीवी भी कह रहे
    इन धर्म द्रोहियों ने धर्म को बचा दिया
    ग्रंथों में करके मिलावट इन्होंने
    सनातन धर्म का मज़ाक ही बना दिया
    खुद से कथाएं रच रहे
    राम कृष्ण का समस्त इतिहास ही छुपा दिया
    अरे आज भी ये खुद से पंडालों में
    झूठ बेचते पाए जाते हैं,
    ग्रंथ खुद से तो सनातनी पढ़ते नहीं
    केवल इनकी मनोहर कहानियां सुन आते हैं
    और इन्ही पाखंडियों को फिर सभी
    धर्म रक्षक बताते हैं
    आज भारत भू के रक्षकों से
    चलो तुमको मिलवाते हैं
    ईश्वर के भेजे असली महापुरुषों के
    दर्शन करवाते हैं
    सनातन संस्कृति के रक्षकों को
    नमन करके आते हैं ।
    सनातन धर्म में सच्चे तपस्वी का
    अर्थ तुमको समझाते हैं।
    एक तपस्वी हुआ मराठा
    मां भवानी का भक्त बड़ा ही प्यारा था,
    धर्मरक्षा के लिए मुगलों को धूल चटाई
    छत्रपति वो न्यारा था
    जब पीड़ित हुआ था धर्म सनातन
    मुगलों के अत्याचारों से
    तब उस वीर शिवाजी ने
    म्लेच्छों को रण हेतु ललकारा था
    जब आंख मूंद भजन में
    नाच रहे थे धर्मरक्षक तथाकथित तपस्वी
    तब धर्मरक्षा हेतु मातृभूमि ने
    जीजा मां को पुकारा था
    जीजा मां की कोख से प्रकट हुआ था
    या शायद ईश्वर वो अवतारा था
    मां भवानी का भक्त वो महातपस्वी
    छत्रपति शिवाजी महाराज हमारा था
    मां भवानी का भक्त वो महातपस्वी
    छत्रपति शिवाजी महाराज हमारा था
    उस विकट संकट की घड़ी में वो
    सनातन संस्कृति का पालनहारा था
    उत्तर से दक्खन तक लेकर उसी की बदौलत
    गूंजता हिंदवी स्वराज्य का नारा था
    जब ओरंगजेब के ताप से पीड़ित थी ये सनातनी मिट्टी
    तब वीर शिवाजी मुगलों की छाती चढ़के दहाड़ा था।
    जब ओरंगजेब के ताप से पीड़ित थी ये सनातनी मिट्टी
    तब वीर शिवाजी मुगलों की छाती चढ़के दहाड़ा था।
    एक संत जिसे कहो तुम हरिदास
    उसका शिष्य अत्याचारी अकबर का मन बहलाता था
    उसी के सिंहासन तले बैठ बैठ
    गाता और बजाता था
    बहन बेटियों का मीना बाज़ार लगाने वाले का
    गर्व से दास कहलाता था
    वहीं दूजी और एकलिंग का भक्त निराला
    मेवाड़ का सूरज वो महातस्वी
    धर्मरक्षा से किंचित ना कतराता था
    दुराचारी उस अकबर की सेना को रण में
    नाकों चने चबवाता था
    मुगलिया सल्तनत का सरोकार तो
    उस महाकाल भक्त के समक्ष आने से कतराता था
    रण में जब राणा करे पराक्रम
    कालभैरव उतर धरा पर जाता था
    जब ये तथाकथित धर्मरक्षक संत समाज
    सनातन धर्म को अंधविश्वास सिखलाता था
    मां बहनों की रक्षा हेतु जिनको शस्त्र उठाने थे उन हाथों में
    तूंबे और मंजीरे थमाकर जाता था
    उनका उत्तम शिष्य तानसेन भी
    मुगलों के तलवे चाटकर आता था
    उसी समय मेरा आराध्य महाराणा
    धर्मरक्षा हेतु अकबर की सेना से रण में
    लोहा लेकर आता था
    चाहता तो झूठे मोक्ष की खातिर सन्यास ले लेता
    लेकिन रण को धर्मरक्षा का कर्म समझकर
    सनातन संस्कृति का रक्षक वो बन जाता था
    अकबर के सेना पर वो चेतक सवार
    कालभैरव बन चढ़ जाता था
    मात्रभूमि को नोचने वाले हर वहशी को
    रण में काल की भेंट चढ़ाता था
    इसीलिए मेरे महाराणा के सर पर
    सदैव धर्मरक्षक का ताज सुहाता था
    ऐसे ही नही वो मेवाड़ी सूरज
    एकलिंग भक्त कहलाता था
    महाकाल की भक्ति में रण में तांडव था करता
    और रणचंडी का खप्पर भी भरकर लाता था।
    महाकाल की भक्ति में रण में तांडव था करता
    और रणचंडी का खप्पर भी भरकर लाता था।
    अब कहो क्यों ना वीरों के सर पर
    धर्मरक्षा का ताज धरूं
    जिनके तप से आज भी खुशहाल ये सनातनी मिट्टी
    क्यों ना उन वीर तपस्वियों का गुणगान करूं
    जो ग्रंथों की महिमा छोड़ मन गढंत मनोहर कथाएं सुनाते
    क्या ख़ाक उनका सम्मान करूं
    इसीलिए तो सनातन संस्कृति की रक्षा की खातिर
    ग्रंथों के सत्य का मैं बखान करूं
    जिस विरासत को है सौंपा हमको वीरों ने
    उसपे न्यौछावर मैं अपने प्राण करूं
    तुम पूजो संत फकीरों को
    मैं राणा का जयगान करूं
    तुम पूजो संत फकीरों को
    मैं राणा का जयगान करूं

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