सांत्वनाष्टक (Saantvanashtak)

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  • Опубликовано: 2 янв 2025
  • Saantvanashtak
    With the immense blessings of Pujya Guruma (Bal Bhramachari Sandhya Gandhi) and with the continuous guidance and knowledge on the Eternal path by Pujya Gurubhai (Bal Bhramachari Nanalal Parekh), Bijal Jigar Gala is presenting this Soulful Bhakti written by Pujya Ravindraji (Aatman).
    Singer: Bijal Gala
    Lyrics: Pujya Ravindraji (Aatman)
    Music Director: Vipul Samani
    Studio: Panchamrut Arts
    Lyrics:
    शान्तचित्त हो निर्विकल्प हो, आत्मन् निज में तृप्त रहो। व्यग्र न होओ क्षुब्ध न होओ, चिदानन्द रस सहज पिओ ॥टेक॥
    स्वयं स्वयं में सर्व वस्तुएँ, सदा परिणमित होती हैं। इष्ट-अनिष्ट न कोई जग में, व्यर्थ कल्पना झूठी है ॥ धीर-वीर हो मोहभाव तज, आतम अनुभव किया करो ॥१॥
    देखो प्रभु के ज्ञान माँहिं, सब लोकालोक झलकता है।
    फिर भी सहज मग्न अपने में, लेश नहीं आकुलता है।
    सच्चे भक्त बनो प्रभुवर के, वही पथ का अनुसरण करो ॥२॥
    देखो मुनिराजों पर भी, कैसे-कैसे उपसर्ग हुए।
    धन्य-धन्य वे साधु साहसी, आराधन से नहीं चिगे ॥
    उनको निज-आदर्श बनाओ, उर में समताभाव धरो ॥३॥
    व्याकुल होना तो, दुख से बचने का कोई उपाय नहीं।
    होगा भारी पाप बंध ही, होवे भव्य अपाय' नहीं ॥ ज्ञानाभ्यास करो मन माहीं, दुर्विकल्प दुखरूप तजो ॥४॥
    अपने में सर्वस्व है अपना, परद्रव्यों में लेश नहीं ।
    हो विमूढ़ पर में ही क्षण-क्षण, करो व्यर्थ संक्लेश नहीं ॥ अरे विकल्प अकिंचित्कर ही, ज्ञाता हो ज्ञाता ही रहो ||५॥
    अन्तर्दृष्टि से देखो नित, परमानन्दमय आत्मा ।
    स्वयंसिद्ध निर्द्वन्द्व निरामय, शुद्ध बुद्ध परमात्मा
    आकुलता का काम नहीं कुछ, ज्ञानानन्द का वेदन हो ||६||
    सहज तत्त्व की सहज भावना, ही आनन्द प्रदाता है।
    जो भावे निश्चय शिव पावे, आवागमन मिटाता है। सहजतत्त्व ही सहज ध्येय है, सहजरूप नित ध्यान धरो ॥७॥
    उत्तम जिन वचनामृत पाया, अनुभव कर स्वीकार करो। पुरुषार्थी हो स्वाश्रय से इन, विषयों का परिहार करो।। ब्रह्मभावमय मंगल चर्या, हो निज में ही मग्न रहो ||८||

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