Maa Sheetala Chalisa | Guru Katha | HD Chalisa

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  • Опубликовано: 27 ноя 2024
  • श्री शीतला चालीसा
    || दोहा ||
    जय जय माता शीतला तुमही धरे जो ध्यान।
    होय बिमल शीतल हृदय विकसे बुद्धी बल ज्ञान ॥
    घट घट वासी शीतला शीतल प्रभा तुम्हार।
    शीतल छैंय्या शीतल मैंय्या पल ना दार ॥
    || चौपाई ||
    जय जय श्री शीतला भवानी । जय जग जननि सकल गुणधानी ॥
    गृह गृह शक्ति तुम्हारी राजती । पूरन शरन चंद्रसा साजती ॥
    विस्फोटक सी जलत शरीरा । शीतल करत हरत सब पीड़ा ॥
    मात शीतला तव शुभनामा । सबके काहे आवही कामा ॥
    शोक हरी शंकरी भवानी । बाल प्राण रक्षी सुखदानी ॥
    सूचि बार्जनी कलश कर राजै । मस्तक तेज सूर्य सम साजै ॥
    चौसट योगिन संग दे दावै । पीड़ा ताल मृदंग बजावै ॥
    नंदिनाथ भय रो चिकरावै । सहस शेष शिर पार ना पावै ॥
    धन्य धन्य भात्री महारानी । सुर नर मुनी सब सुयश बधानी ॥
    ज्वाला रूप महाबल कारी । दैत्य एक विश्फोटक भारी ॥
    हर हर प्रविशत कोई दान क्षत । रोग रूप धरी बालक भक्षक ॥
    हाहाकार मचो जग भारी । सत्यो ना जब कोई संकट कारी ॥
    तब मैंय्या धरि अद्भुत रूपा । कर गई रिपुसही आंधीनी सूपा ॥
    विस्फोटक हि पकड़ी करी लीन्हो । मुसल प्रमाण बहु बिधि कीन्हो ॥
    बहु प्रकार बल बीनती कीन्हा । मैय्या नहीं फल कछु मैं कीन्हा ॥
    अब नही मातु काहू गृह जै हो । जह अपवित्र वही घर रहि हो ॥
    पूजन पाठ मातु जब करी है । भय आनंद सकल दुःख हरी है ॥
    अब भगतन शीतल भय जै हे । विस्फोटक भय घोर न सै हे ॥
    श्री शीतल ही बचे कल्याना । बचन सत्य भाषे भगवाना ॥
    कलश शीतलाका करवावै । वृजसे विधीवत पाठ करावै ॥
    विस्फोटक भय गृह गृह भाई । भजे तेरी सह यही उपाई ॥
    तुमही शीतला जगकी माता । तुमही पिता जग के सुखदाता ॥
    तुमही जगका अतिसुख सेवी । नमो नमामी शीतले देवी ॥
    नमो सूर्य करवी दुख हरणी । नमो नमो जग तारिणी धरणी ॥
    नमो नमो ग्रहोंके बंदिनी । दुख दारिद्रा निस निखंदिनी ॥
    श्री शीतला शेखला बहला । गुणकी गुणकी मातृ मंगला ॥
    मात शीतला तुम धनुधारी । शोभित पंचनाम असवारी ॥
    राघव खर बैसाख सुनंदन । कर भग दुरवा कंत निकंदन ॥
    सुनी रत संग शीतला माई । चाही सकल सुख दूर धुराई ॥
    कलका गन गंगा किछु होई । जाकर मंत्र ना औषधी कोई ॥
    हेत मातजी का आराधन । और नही है कोई साधन ॥
    निश्चय मातु शरण जो आवै । निर्भय ईप्सित सो फल पावै ॥
    कोढी निर्मल काया धारे । अंधा कृत नित दृष्टी विहारे ॥
    बंधा नारी पुत्रको पावे । जन्म दरिद्र धनी हो जावे ॥
    सुंदरदास नाम गुण गावत । लक्ष्य मूलको छंद बनावत ॥
    या दे कोई करे यदी शंका । जग दे मैंय्या काही डंका ॥
    कहत राम सुंदर प्रभुदासा । तट प्रयागसे पूरब पासा ॥
    ग्राम तिवारी पूर मम बासा । प्रगरा ग्राम निकट दुर वासा ॥
    अब विलंब भय मोही पुकारत । मातृ कृपाकी बाट निहारत ॥
    बड़ा द्वार सब आस लगाई । अब सुधि लेत शीतला माई ॥
    यह चालीसा शीतला पाठ करे जो कोय ।
    सपनेउ दुःख व्यापे नही नित सब मंगल होय ॥
    बुझे सहस्र विक्रमी शुक्ल भाल भल किंतू ।
    जग जननी का ये चरित रचित भक्ति रस बिंतू ॥
    ॥ इति श्री शीतला चालीसा समाप्त॥
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