सुदामा कुटी दर्शन वृंदावन- Jahan Sab Kuch Free|| दामोदरदास बाबा असली साधु ||भजन आश्रम - Vrindavan

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  • Опубликовано: 21 окт 2024
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    आश्रम महंत भगवानदास कहते हैं कि “सुदामा बाबा जीव सेवा नींव रखी थी। वहीं इस कुटी के संस्थापक थे। एक वर्ष रामबाग में रहने के बाद महाराज जी यमुना किनारे इस स्थान पर कुटी बनाकर भगवद् भजन करने लगे। माधुकरी करना, प्रसाद बनाना और साधु संतों को खिलाना सुदामा बाबा नित्य नियम था। खुद भूखे रहकर वह दूसरों सेवा करते थे। एक बार मध्यरात्रि में एक महात्मा कुटिया में आए। बाबा ने उन्हें दोपहर रखी रोटी दी। तब महात्मा कहा, तुम अपने संकल्प से मत डिगना, यहां से कोई भूखा नहीं जाएगा।” कुटी में सुबह, दोपहर, शाम तीन समय भोजन बनता है। श्रावण मास में करीब तीन हजार लोग प्रतिदिन प्रसाद पाते हैं। आश्रम में 300 संत रहते हैं। वहीं सारी सेवा संभालते हैं। यहां आज भी माधुकरी की जाती है। गर्मियों में आश्रम के साधु भिक्षाटन को जाते हैं। देश भर में सुदामा कुटी के 20 आश्रम है।
    नंगे पैर हाथ में डंडा, दामोदरदास का कैसा फंडा! असली साधु मिला वृंदावन में,
    मथुरा-वृंदावन रोड स्थित श्रीपाद गोशाला के संचालक बाबा दामोदर दास पिछले 20 वर्षों से यहां सेवा में लगे हैं। यहां की सभी गाय बाबा के इशारों पर चलती हैं। चारा मिलाने के लिए यहां अलग मशीन है तो बीमार गायों के इलाज के लिए अलग से मेडिकल स्टोर। इस गोशाला की खासियत यह है कि गायों से सिर्फ उतना ही दूध दुहा जाता है जितना की गोशाला को जरूरत हो। चारा डालने के लिए यहां जेसीबी और ट्रैक्टर की मदद ली जाती है, जिसके संचालन के लिए 30 लोगों की लेबर कार्यरत है। बाबा दामोदर दास कहते हैं कि उन्होंने कभी किसी के आगे हाथ नहीं फैलाया। समय-समय पर सेवाभावी लोग गायों की सेवा करने आगे आ जाते हैं। गोशाला में कुछ सांड़ भी हैं।
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    स्वामी श्री हरिदास जी की शिष्य परंपरा के सातवे आचार्य श्री ललित किशोरी जी ने इस भूमि को अपनी भजन स्थली बनाया था। उनके शिष्य महंत श्री ललितमोहनदास जी ने सं १८२३ में इस स्थान पर ठाकुर श्री मोहिनी बिहारी जी को प्रतिष्ठित किया था।तभी चारो ओर बॉस की तटिया लगायी गई थी तभी से यहाँ के सेवा पुजाधिकारी विरक्त साधू ही चले आ रहे है.उनकी विशेष वेशभूषा भी है।विग्रह: श्रीमोहिनी बिहारी जी का श्री विग्रह प्रतिष्ठित है।
    मंदिर का अनोखा नियम...
    ऐसा सुना जाता है कि श्री ललितमोहिनिदास जी के समय इस स्थान का यह नियम था कि जो भी आटा-दाल-घी दूध भेट में आवे उसे उसी दिन ही ठाकुर भोग ओर साधू सेवा में लगाया जाता है।
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