एक साधक की साधना गायत्री आदि सत्य साहिब जी से प्रश्नोउत्तरी यात्रा प्रसंग।

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  • Опубликовано: 30 окт 2024
  • *🌞मेरी गायत्री सिद्धि और ये इष्ट दर्शनों तक ही साहयक है इस सम्बंध में अनेक सिद्धों के प्रमाण स्वरूप दर्शन:-*उस समय मेरे मन में अनेक प्रसिद्ध महात्माओ-जैसे-साईबाबा-हरिहर बाबा-उड़िया आदि के जीवन दर्शन को पढ़ कर जैसे-
    मनीषी की लोकयात्रा पुस्तक में डॉ.गोपीनाथ कविराज ने लिखा है की कभी कभी मैं और गुरुदेव विशुद्धानन्द जी जब नाव से हरिहर बाबा से मिलने जाते थे तो मैं उन्हें भांग घोटकर बर्तन में ले जाता था और वे उसे पीकर बड़े तृप्त होते।और ऐसे ही सन्त चरित्र गीता प्रेस में लिखा है की हरिहर बाबा ने पहले पन्द्रह दिन अखण्ड गायत्री जप साधना की फिर लाभ नहीं देख कर वे काशी की एक एकांत गुफा में लगातार छः माह अखण्ड जप करने पर उन्हें गायत्री के दर्शन हुए और उन्हें गायत्री ने प्रकट होकर उनके इष्ट के विषय में बताया जिससे उन्हें अपने इष्ट की सिद्धि हुयी ठीक ऐसे ही उड़िया बाबा के विषय में लिखा था की उन्हें गायत्री ने प्रकट होकर ज्वालादेवी पर उनके इष्ट के विषय में बताया और तब उन्हें अपने इष्ट की सिद्धि हुयी।और उस काल के हमारे क्षेत्र के निवासी अनेक व्रद्ध भक्तों ने भी मुझे अपने ऐसे ही अनुभव इन सन्तों के विषय में बताया।ऐसे ही महाराष्ट के प्रसिद्ध संत योगी गजानन महाराज भी जब शेय गांव आये तब उसके कुछ काल उपरांत उनके एक भक्त काशी क्षेत्र से आकर उसने अपनी मनसा आजीवन चिलम पिलाने की रखीं जो उन्होंने पीकर पूरी करी,और वे कहते थे की पूवजन्म की कोई भी अपूर्ण इच्छा की पूर्ति योगी को भी आगामी जन्म में करनी पड़ती है और ऐसे ही शिरड़ी के साई बाबा के विषय में उनके साई चरित्र ग्रन्थ में लिखा है-की वे जब चाँद पाटिल को उसके घोड़ी नहीं मिलने के प्रसंग में दर्शन देते है तब वे एक सोलह साल के युवक जो भूमि में चिमटा मार कर अग्नि का अंगार निकाल अपनी चिलम भर उसकी घूँट मारते हुए उसे घोड़ी का पता बताते है और आजीवन चिलम पीते रहे थे जबकि अबके उनके भक्त उनके मन्दिर में उनका प्रिय प्रसाद चिलम तो चढ़ाते ही नहीं है,न उनकी फिल्मों में दिखाया जाता है-की कहीं उनके भक्त ही बाबा के प्रेम में चिलम नहीं पीने लग जाये,ऐसे ही अनेक लोग मेरे आसपास और सदूर क्षेत्रों तक यहीं सब बीड़ी,भांग,चिलम पीकर लोगों के भूत भविष्य बताते हुए गद्दी लगते थे और अभी है उनमें कितने सत्य है और प्रसिद्ध है केवल उनका उल्लेख किया है और आलोचना विषय नहीं है।
    यो ये मेरे सामने अस्पष्ट था की ये लोग इतने समाधि सम्पन्न और चमत्कारिक होकर भी कोई भांग पीता था, तो कोई चिलम पीता था, जबकि ये एक दुव्यसन ही है तथा की जब जिस संत को एक बार समाधि अवस्था प्राप्त हो गयी हो वो उसके उपरांत भी इस प्रकार के भांग,धूम्रपान चिलम का आजीवन पीने का क्या औचित्य है?
    जिसे एक बार आत्म आनन्द की प्राप्त हो गयी वो क्यूँ क्रतिम आनन्द प्राप्ति के विषय को अपनाएगा? अनेक तर्क बनते है,परंतु मूल प्रश्न का उत्तर नहीं मिला। साथ ही मैने पढ़ा और इनके प्राचीन भक्तों से समुख सुना की-जैसे-हरिहर बाबा और उड़िया बाबा,इन्होंने पहले गायत्री सिद्धि की तब ज्वाला देवी तीर्थ पर इन्हें गायत्री शक्ति ने प्रकट होकर इनके इष्ट के विषय में बताया तब उस इष्ट की सिद्धि कर ये लोकसिद्ध हुए,तब प्रश्न बनता है? कि-क्या गायत्री स्वयं में सिद्धि नहीं है? ये साधक को उसके इष्ट मार्ग के विषय में मात्र पथप्रदर्शक है? क्या तभी ये वेद और उनके मन्त्रों की कुंजी है? तभी भगवान विश्वामित्र को सर्वप्रथम गायत्री मंत्र और उसकी शक्ति का आत्मसाक्षात्कार हुआ था,परंतु ये गायत्री शक्ति ने उनकी भी महाराज सत्यव्रत यानि त्रिशंकु की सशरीर स्वर्ग जाने और विश्वामित्र द्धारा भेजने की मनोकामना को जब पूर्ण करने असामर्थ्यता प्रकट की,तब विश्वामित्र जी ने गायत्री शक्ति को शाप देकर कीलित कर दिया,फिर जगत कल्याण के लिए ही उन्होंने गायत्री शक्ति को पुनः अपनी आत्मशक्ति से उत्कीलन कर मुक्त किया था-की जो भी प्रातः,मध्यांह,साय और रात्रि के चारों पहर में निम्न विधि से गायत्री का उत्कीलन करके जप करेगा, तब ये उसे संसारिक और आध्यात्मिक संसार के मनोरथों को सम्पूर्ण करने में साहयक होंगी।यो यहाँ वो सही स्वरूप की उत्कीलन विधि कहीं नहीं संज्ञान में आई,की वो क्या विधि है? यही सब जानने को मेने उस समय अपने नित्य हनुमान चालीसा के पाठों को बंद कर केवल गायत्री का अनुष्ठान करने के विषय में मैने ठानी।समस्या ये थी उस समय जो भी गायत्री से जुड़े साधक लोग थे उनमें अनेको के परिवार अपनी परिवारिक समस्या निराकरण को मेरे पास आते थे,यो विधि कैसे पता चले? अब अपनी अन्तःप्रेरणा का ही सहारा लिया।तब प्रेरणा हुयी की-प्रातः प्रथम पहर में उठकर स्नान करो और पूर्वमुखी होकर यज्ञानुष्ठान करो,उसमें सर्वप्रथम दो लोंग और दो बताशे घी में लगा कर ये बोलो कि-हे-ब्रह्म देव मैं ये गायत्री अनुष्ठान कर रहा हूँ कृप्या आप ये भोग स्वीकार कर मेरे ज्ञान हेतु गायत्री शक्ति को बन्धन मुक्त करें और स्वयं सहित गायत्री मुझ पर प्रसन्न हो और घी बताशे लोंग की आहुति यज्ञ में प्रदान करें-अब ऐसे ही विश्वामित्र ब्रह्मर्षि और फिर ब्रहर्षि वशिष्ठ के दें इसके उपरांत हे- चारों पहर की गायत्री को प्रदान करें और अब यज्ञ में प्रज्वलित ज्योति को देखते हुए सामान्य प्रचलित गायत्री मंत्र के अंत में स्वाहा बोलते हुए यज्ञ करें।मेने ऐसे ही किया और नित्य 22सो आहुति देता और दिन और रात्रि में स्पष्ट और धीरे गायत्री मंत्र जपता रहता हुआ सवा लाख जप का संकल्प किया था,तब और कोई आरती या चालीसा या स्त्रोत्रपाठ या अन्य किसी भी देवी देव का स्मरण आदि नहीं करता था और दैनिक संकट निवारण गद्दी भी देखता था।तब मुझे 24-9-2002(मंगलवार) श्राद्ध चल रहे है उसकी प्रातः ध्यानदर्शन हुए की- मैं एक पुस्तक विक्रेता के यहाँ गया हूँ और वहाँ मैने उसकी अलवारी में सिद्ध संत नाम से- उड़िया बाबा,साई बाबा,हरिहर बाबा लिखे नामों वाली पुस्तकें देखी मैने सिद्ध संत नामक प्राचीन सी लगने वाली एक पुस्तक को निकाला और www.satyasmeemission. org

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