कुली बेगार आन्दोलन | Bloodless Revolution | प्रतिरोध EPS01
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- Опубликовано: 10 фев 2025
- 14 जनवरी 1921. मकर संक्रांति का दिन था. दोपहर के करीब डेढ़ बज रहे थे. कुमाऊं स्थित बागेश्वर में सरयू नदी के किनारे हज़ारों लोग उत्तरायणी मेले में शरीक होने पहुंचे थे. सरयू और गोमती नदी के संगम पर बसी ये जगह सरयूबगड़ के नाम से भी जानी जाती है. इसी जगह कुमाऊं परिषद के कुछ नेता करीब 10 हजार लोगों की एक विशाल जनसभा को संबोधित कर रहे थे. कुमाऊं परिषद् के ये नेता कुछ ही दिन पहले अपने 50 से ज़्यादा कार्यकर्ताओं के साथ बागेश्वर पहुंचे थे. इनमें बद्रीदत्त पाण्डे, हरगोविन्द पंत और चिरंजीलाल साह जैसे नाम शामिल थे. ये जनसभा कुली बेगार के विरोध में हो रही थी, जहां कई नेता भाषण देते हुए कुली बेगार के खिलाफ हुंकार भर रहे थे. जब बद्रीदत्त पाण्डे की बारी आई तो उन्होंने जोशीले अंदाज़ में बागनाथ मंदिर की शपथ लेकर कुली बेगार को कभी न मानने का आह्वाहन किया. कुछ देर तक तो हजारों की इस भीड़ के बीच सन्नाटा पसर गया लेकिन जल्द ही सभी लोगों ने सामूहिक स्वर में शपथ लेते हुए कहा - हम कुली नहीं बनेंगे. इसके साथ ही मालगुजारों ने अपने-अपने गांवों के कुली रजिस्टरों को सरयू नदी में फेंकना शुरू कर दिया. देखते ही देखते सारे रजिस्टर सरयू नदी के प्रवाह में बहा दिए गए. इस घटना को देखकर अंग्रेज अधिकारियों के होश फ़ाख़्ता हो गए. उन्होंने जनता के इस विद्रोह को काबू करने की कोशिश की मगर हज़ारों लोगों के इस आक्रामक प्रतिरोध को देखते हुए अंग्रेज विफल रहे. इसी ऐतिहासिक घटना के साथ उत्तराखण्ड में व्याप्त सैकड़ों साल पुरानी कुप्रथा कुली बेगार का अंत हुआ. उत्तराखण्ड के इतिहास में इस घटना को 'रक्तहीन क्रांति' के नाम से जाना जाता है.
उत्तराखंड में आंदोलनों के समृद्ध इतिहास को समर्पित बारामासा की नई सीरीज़ ‘प्रतिरोध'.
संदर्भ -
टिहरी गढ़वाल राज्य का इतिहास -भाग 2 (डॉ0 शिव प्रसाद डबराल)
उत्तराखण्ड का समग्र राजनैतिक इतिहास (डॉ0 अजय सिंह रावत)
उत्तराखण्ड के जनान्दोलन (गजेन्द्र रौतेला)
कुमाँऊ का इतिहास (बद्रीदत्त पाण्डे)
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