आप दोनों को सुनना सुखद रहा और जेसीबी संस्कृति के संबंध में आपकी सोच और आपके नजरिए को जाना। कुल मिलाकर अनीस अंकुर का यह साक्षात्कार एक बेहतर विमर्श बन गया जो बड़ी तफसील से जेसीबी से उपजे हालातों को उकेरता है। हाँ, यह विमर्श तब और संतुलित होता जब भिन्न विचार वाले भी आपके साथ मौजूद होते और अपनी बात गहराई से रखते। वैसे, अनीस अंकुर जी को अच्छी तरह जानत हूँ, बड़े ही मानवीय और अपने विचार और कर्म में ईमानदार और निष्ठावान हैं। आपको बेशक खूब करीब से जनता ही हूँ। आपकी चिंता वाजिब ही नहीं है, मानवीय है। लेकिन दूसरे पक्ष को भी जानना-समझना आवश्यक है, जब कि हम एक खास विचारधारा (राजनीतिक) के पोषक-समर्थक हों। इस विमर्श के लिए आप सब का बहुत-बहुत शुक्रिया❤
दूसरा पक्ष तो उप्र, मप्र, आसाम या गुजरात के संबंधित अफ़सर या मंत्री ही हो सकते थे न वीरेंद्र जी! ध्यान रहे, क़ानून हर राज्य का समान हैं और सत्ता तथा प्रशासन को क़ानून के अनुसार ही काम करना होता है । क़ानून प्राकृतिक न्याय एवं संविधान के सिद्धांतों के विपरीत नहीं हो सकता । संविधान के अनुच्छेद 21 के अनुसार क़ानूनी प्रक्रिया just and proper होनी चाहिए, arbitrary नहीं । सुनवाई का पर्याप्त अवसर देकर अंतिम आदेश पारित किया जाना चाहिए । स्पष्ट है कि जो सत्ता और प्रशासन इन प्रदेशों में बुलडोज़र से घर ढाह दे रहा है, सुप्रीम कोर्ट ने भी प्रक्रिया पर गंभीर टिप्पणी की है। अब यदि उन्हीं से कोई बात आप करेंगे तो वे अपनी कार्रवाई को येन-केन-प्रकारेण न्याय संगत ठहराने के अलावा दूसरा कुछ तो कहेंगे नहीं! तो दूसरे पक्ष से बात करने का मतलब होगा, बेवजह का विवाद । क्या आप चाहते हैं कि बे वजह का विवाद पैदा किया जाए? 😌😌😌😊😊😊
Bahut Achchha.
🙏🌹
धन्यवाद 🎉
👏👏💐💐
Thanks 🎉
सही कहा आपने सर 🙏
Thanks 🎉
शे
यर कर रहा हूं।
ख़ुशी हुई 🌹🌹🌹
Very pertinent interview. Congratulations.
Thank you so much for watching and appreciation! 🌹🌹🌹
Very nice and Good luckiest Sir
Thanks 🌹🪔
आप दोनों को सुनना सुखद रहा और जेसीबी संस्कृति के संबंध में आपकी सोच और आपके नजरिए को जाना। कुल मिलाकर अनीस अंकुर का यह साक्षात्कार एक बेहतर विमर्श बन गया जो बड़ी तफसील से जेसीबी से उपजे हालातों को उकेरता है।
हाँ, यह विमर्श तब और संतुलित होता जब भिन्न विचार वाले भी आपके साथ मौजूद होते और अपनी बात गहराई से रखते।
वैसे, अनीस अंकुर जी को अच्छी तरह जानत हूँ, बड़े ही मानवीय और अपने विचार और कर्म में ईमानदार और निष्ठावान हैं। आपको बेशक खूब करीब से जनता ही हूँ। आपकी चिंता वाजिब ही नहीं है, मानवीय है। लेकिन दूसरे पक्ष को भी जानना-समझना आवश्यक है, जब कि हम एक खास विचारधारा (राजनीतिक) के पोषक-समर्थक हों।
इस विमर्श के लिए आप सब का बहुत-बहुत शुक्रिया❤
दूसरा पक्ष तो उप्र, मप्र, आसाम या गुजरात के संबंधित अफ़सर या मंत्री ही हो सकते थे न वीरेंद्र जी! ध्यान रहे, क़ानून हर राज्य का समान हैं और सत्ता तथा प्रशासन को क़ानून के अनुसार ही काम करना होता है । क़ानून प्राकृतिक न्याय एवं संविधान के सिद्धांतों के विपरीत नहीं हो सकता । संविधान के अनुच्छेद 21 के अनुसार क़ानूनी प्रक्रिया just and proper होनी चाहिए, arbitrary नहीं । सुनवाई का पर्याप्त अवसर देकर अंतिम आदेश पारित किया जाना चाहिए । स्पष्ट है कि जो सत्ता और प्रशासन इन प्रदेशों में बुलडोज़र से घर ढाह दे रहा है, सुप्रीम कोर्ट ने भी प्रक्रिया पर गंभीर टिप्पणी की है। अब यदि उन्हीं से कोई बात आप करेंगे तो वे अपनी कार्रवाई को येन-केन-प्रकारेण न्याय संगत ठहराने के अलावा दूसरा कुछ तो कहेंगे नहीं! तो दूसरे पक्ष से बात करने का मतलब होगा, बेवजह का विवाद । क्या आप चाहते हैं कि बे वजह का विवाद पैदा किया जाए? 😌😌😌😊😊😊
बढ़िया विमर्श
धन्यवाद 🌹