Itihaas Or buddhiman vyaktiyo k baare me padh kr ye pata chal ra h ki hmare sath baudhik roop se kitna atyachaar hua h aaj b ho rha h. Mai apki har ek videos ko dekh ra hu dhyaan se aap har baat ko facts k sath rakh k bata rahe h dhanyawaad. Mai isk baare me apne dosto Or logo se charcha krunga
The cabal of dishonest secularists and missionary-minded historians have brought us to a point where an honest history researcher who wants to know things without any bias is forced to do everything himself: learn the classical languages, find, read, and translate primary documents, collate the conclusions with other historians' works and then draw one's own conclusions. Such is the stupendous task before sincere & honest historians in India.
आज कल के समय की अगर बात करे तो सब ग़ुलाम है काग़जी नोट के, यहाँ तक सरकारें भी, इस लिए हर इंसान वहीँ पर भागता जहा से उसे वोह नोट ज्यादा मात्रा में मिलेगा। बैंकर इस बात को अच्छी तरह से जानते है इस लिए वो technology में ज्यादा पैसा देते है और उस का प्रचार भी करते है ता जो वो दुनिया को ग़ुलाम बना कर रखें।
बडी मजबूरी में पांचजन्य पत्रिका में करने की क्षमता भानुप्रताप शुक्ल के पास भी नहीं था एक बार स्वामी दयानंद के नाम का उल्लेख दैनिक जागरण में बड़ी मजबूरी में किया था
वन्दे मातरम् किशोर जी, आप दयानंद जी के प्रति इतने अधिक आग्रही क्यों हैं मैं समझ नहीं पा रहा हूं, जबकि श्री दयानन्द सरस्वती जी में इतना कुछ भी नहीं है जितना कि उन्हें आप महत्व प्रदान कर रहे हैं। जिन पुराणों को दयानन्द जी ने अस्वीकार किया है, वही पुराण नासा तथा इसरो इत्यादि के शोध के विषय समय-समय पर बनते रहते हैं। जिस निर्गुण निराकार ब्रह्म की व्याख्या दयानंद जी ने की है उससे कहीं अधिक व्याख्या पूज्यपाद श्री शंकराचार्य जी महाभाग ने की है किन्तु उसके बाद भी श्री शंकराचार्य जी महाभाग ने भगवान श्रीकृष्णचंद्र प्रभु को साक्षात परमात्मा के रूप में भी स्वीकार किया है किन्तु वहीं दयानंद जी ने भगवान श्रीकृष्ण प्रभु को मात्र एक वैदिक महापुरुष ही स्वीकार किया है। मुझे नहीं लगता है कि पूज्य दयानंद सरस्वती जी भगवत्पाद आदि शंकराचार्य जी महाभाग के समक्ष किसी भी आयाम मेंसमान रूप से खड़े रह सकते हैं तो जब श्री शंकराचार्य जी महाभाग ईश्वर के अवतारत्व को एवं पौराणिक हिन्दू साहित्य को ससम्मान स्वीकारते थे तब फिर आर्य समाज को पौराणिक हिन्दू धर्म से परहेज़ क्यों, वैसे इस विषय पर अनेक बातें कही जा सकती हैं किन्तु लेख की मर्यादा के रक्षण के लिए कुछ सामान्य विषय ही और लेखनीय हैं जोकि निम्नलिखित है--- देखिए ! त्रिपाठी जी, मेरी समझ से अध्यात्म 'भाव' के अतिरिक्त कोई अन्य विषय भी है या हो सकता है मुझे समझ में नहीं आता है क्योंकि ईश्वर साक्षात्कार का एकमात्र उपाय "भाव की सान्द्रता" ही है। जैसे कि हम देखते हैं कि अपनी वैदिक हिन्दू संस्कृति में एक काल प्रमुख रूप से "भक्त्ति आंदोलन" काल के रूप में बीत चुका है जिसमें कि एक से बढ़कर एक मानसिक तथा आध्यात्मिक उच्चता को प्राप्त महापुरुष हो गये हैं, जहां कि हमारे देखने में आता है कि उस काल में भाव की सान्द्रता के आधिक्य के कारण साक्षात श्रीभगवान ही अपने प्यारे भक्तों को दर्शन देते थे एवं उनके साथ अपनी इच्छा से प्रेम पूर्ण लीलाएं भी करते थे तथा आज भी करते हैं, इत्यादि। पुनश्च- विषय- "आपसे एक अनुरोध" आपसे मेरा अनुरोध यह है कि कृपया कृपया कम से कम तब तक कोई अपनी आध्यात्मिक धारणा को निश्चित/निर्धारित न करें जब तक कि आपके द्वारा अन्य-अन्य हिंदू संस्कृति के साहित्य का समुचित परिचय न प्राप्त कर लिया जाये। आपको इसी क्रम में कुछ महापुरुषों की रचनाएं एवं उन महापुरुषों के मात्र नाम का ही उल्लेख करना मैं उचित समझता हूं--- आप श्री रामकृष्ण देव जी का उपदेशामृत- श्रीरामकृष्ण वचनामृत अवश्य ही पढ़ें, आप श्री करपात्री जी महाराज की ज्ञान विषयक रचनाएं अवश्य पढ़ें,आप नवभक्तमाल ग्रंथ अवश्य पढ़ें तथा आप जगतगुरु श्री राम कृपालु त्रिपाठी जी महाराज की अद्भुत रचना 'प्रेम रस सिद्धांत' भी अवश्य अवश्य ही पढ़ें, इत्यादि। अब इसमें एक बात और है जैसा कि आपका शायद प्रथम बार ही पौराणिक भक्त्ति सिद्धांत से परिचिय होगा तो आपको चाहिए कि आप पौराणिक तथा उपर्युक्त निर्दिष्ट रचनाओं के माध्यम से प्राप्त निर्देशों का पालन करने का भी प्रयास करें तत्पश्चात आप किसी निर्णय पर पहुंच सकते हैं कि "हां जी" पौराणिक कथाएं तथा ईश्वर के अवतारत्व इत्यादि विषय सही हैं अथवा मात्र मिथक ही हैं, इत्यादि। एक अंतिम बात यदि मेरी बात अनुचित लगे तो कृपया कृपया मुझे क्षमा करने की महानता करें। हर हर महादेव
स्वामी दयानंद की घोर उपेक्षा राष्ट्रीय स्वयंसेवकसंघ ने किया है स्वामी दयानंद की उपेक्षा राष्ट्र की उपेक्षा है ऐसा पाप राष्ट्रीय स्वयंसेवकसंघ ने किया है यह ऐसा पाप है जो क्षम्य नहीं है
Itihaas Or buddhiman vyaktiyo k baare me padh kr ye pata chal ra h ki hmare sath baudhik roop se kitna atyachaar hua h aaj b ho rha h. Mai apki har ek videos ko dekh ra hu dhyaan se aap har baat ko facts k sath rakh k bata rahe h dhanyawaad. Mai isk baare me apne dosto Or logo se charcha krunga
Professor Saran presents his arguments quite well...
That he does!
Best reason i hd ever found thank you so much sir ❤❤
Awsmmmm
100 saal jiyo aap
Masterly shot video... Superb Content...
Very nice sir ji
Very well explained
Great
Ekdum sateek visleshan.
The cabal of dishonest secularists and missionary-minded historians have brought us to a point where an honest history researcher who wants to know things without any bias is forced to do everything himself: learn the classical languages, find, read, and translate primary documents, collate the conclusions with other historians' works and then draw one's own conclusions. Such is the stupendous task before sincere & honest historians in India.
सैनिक इतिहास अध्ययन की विषय वस्तु क्या है? इसके बारे मे बताये
🙏🏾👍🏾👍🏾👍🏾👍🏾🙏🏾
आज कल के समय की अगर बात करे तो सब ग़ुलाम है काग़जी नोट के, यहाँ तक सरकारें भी, इस लिए हर इंसान वहीँ पर भागता जहा से उसे वोह नोट ज्यादा मात्रा में मिलेगा।
बैंकर इस बात को अच्छी तरह से जानते है इस लिए वो technology में ज्यादा पैसा देते है और उस का प्रचार भी करते है ता जो वो दुनिया को ग़ुलाम बना कर रखें।
उचित लंबाई की क्लिप, धन्यवाद।
बडी मजबूरी में पांचजन्य पत्रिका में करने की क्षमता भानुप्रताप शुक्ल के पास भी नहीं था एक बार स्वामी दयानंद के नाम का उल्लेख दैनिक जागरण में बड़ी मजबूरी में किया था
वन्दे मातरम्
किशोर जी,
आप दयानंद जी के प्रति इतने अधिक आग्रही क्यों हैं मैं समझ नहीं पा रहा हूं, जबकि श्री दयानन्द सरस्वती जी में इतना कुछ भी नहीं है जितना कि उन्हें आप महत्व प्रदान कर रहे हैं।
जिन पुराणों को दयानन्द जी ने अस्वीकार किया है, वही पुराण नासा तथा इसरो इत्यादि के शोध के विषय समय-समय पर बनते रहते हैं।
जिस निर्गुण निराकार ब्रह्म की व्याख्या दयानंद जी ने की है उससे कहीं अधिक व्याख्या पूज्यपाद श्री शंकराचार्य जी महाभाग ने की है किन्तु उसके बाद भी श्री शंकराचार्य जी महाभाग ने भगवान श्रीकृष्णचंद्र प्रभु को साक्षात परमात्मा के रूप में भी स्वीकार किया है किन्तु वहीं दयानंद जी ने भगवान श्रीकृष्ण प्रभु को मात्र एक वैदिक महापुरुष ही स्वीकार किया है।
मुझे नहीं लगता है कि पूज्य दयानंद सरस्वती जी भगवत्पाद आदि शंकराचार्य जी महाभाग के समक्ष किसी भी आयाम मेंसमान रूप से खड़े रह सकते हैं तो जब श्री शंकराचार्य जी महाभाग ईश्वर के अवतारत्व को एवं पौराणिक हिन्दू साहित्य को ससम्मान स्वीकारते थे तब फिर आर्य समाज को पौराणिक हिन्दू धर्म से परहेज़ क्यों,
वैसे इस विषय पर अनेक बातें कही जा सकती हैं किन्तु लेख की मर्यादा के रक्षण के लिए कुछ सामान्य विषय ही और लेखनीय हैं जोकि निम्नलिखित है---
देखिए !
त्रिपाठी जी, मेरी समझ से अध्यात्म 'भाव' के अतिरिक्त कोई अन्य विषय भी है या हो सकता है मुझे समझ में नहीं आता है क्योंकि ईश्वर साक्षात्कार का एकमात्र उपाय "भाव की सान्द्रता" ही है।
जैसे कि हम देखते हैं कि अपनी वैदिक हिन्दू संस्कृति में एक काल प्रमुख रूप से "भक्त्ति आंदोलन" काल के रूप में बीत चुका है जिसमें कि एक से बढ़कर एक मानसिक तथा आध्यात्मिक उच्चता को प्राप्त महापुरुष हो गये हैं, जहां कि हमारे देखने में आता है कि उस काल में भाव की सान्द्रता के आधिक्य के कारण साक्षात श्रीभगवान ही अपने प्यारे भक्तों को दर्शन देते थे एवं उनके साथ अपनी इच्छा से प्रेम पूर्ण लीलाएं भी करते थे तथा आज भी करते हैं, इत्यादि।
पुनश्च-
विषय- "आपसे एक अनुरोध"
आपसे मेरा अनुरोध यह है कि कृपया कृपया कम से कम तब तक कोई अपनी आध्यात्मिक धारणा को निश्चित/निर्धारित न करें जब तक कि आपके द्वारा अन्य-अन्य हिंदू संस्कृति के साहित्य का समुचित परिचय न प्राप्त कर लिया जाये।
आपको इसी क्रम में कुछ महापुरुषों की रचनाएं एवं उन महापुरुषों के मात्र नाम का ही उल्लेख करना मैं उचित समझता हूं---
आप श्री रामकृष्ण देव जी का उपदेशामृत- श्रीरामकृष्ण वचनामृत अवश्य ही पढ़ें, आप श्री करपात्री जी महाराज की ज्ञान विषयक रचनाएं अवश्य पढ़ें,आप नवभक्तमाल ग्रंथ अवश्य पढ़ें तथा आप जगतगुरु श्री राम कृपालु त्रिपाठी जी महाराज की अद्भुत रचना 'प्रेम रस सिद्धांत' भी अवश्य अवश्य ही पढ़ें, इत्यादि।
अब इसमें एक बात और है जैसा कि आपका शायद प्रथम बार ही पौराणिक भक्त्ति सिद्धांत से परिचिय होगा तो आपको चाहिए कि आप पौराणिक तथा उपर्युक्त निर्दिष्ट रचनाओं के माध्यम से प्राप्त निर्देशों का पालन करने का भी प्रयास करें तत्पश्चात आप किसी निर्णय पर पहुंच सकते हैं कि "हां जी" पौराणिक कथाएं तथा ईश्वर के अवतारत्व इत्यादि विषय सही हैं अथवा मात्र मिथक ही हैं, इत्यादि।
एक अंतिम बात यदि मेरी बात अनुचित लगे तो कृपया कृपया मुझे क्षमा करने की महानता करें।
हर हर महादेव
स्वामी दयानंद की घोर उपेक्षा राष्ट्रीय स्वयंसेवकसंघ ने किया है स्वामी दयानंद की उपेक्षा राष्ट्र की उपेक्षा है ऐसा पाप राष्ट्रीय स्वयंसेवकसंघ ने किया है यह ऐसा पाप है जो क्षम्य नहीं है
प्रणाम सर
आप अपना मोबाईल नंबर दे दीजिए...
कभी कभी शंकर शरण अब एक आध बार स्वामी दयानंद का उल्लेख किया है ऐसा लगता है कि जब स्वामी दयानंद का नाम लेंगे तो इनकी जीभ कट कर गिर जाएगा