समर्पण (Samarpann)

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  • Опубликовано: 18 сен 2024
  • मुझे मोक्ष मत देना मोहन,
    मत करना मुक्ति मार्ग प्रशस्त।
    संध्या की जब बेला आये,
    और हो जीवन का सूर्य अस्त॥
    नहीं कामना वैकुण्ठ की मुझको,
    न चाहूँ इंद्र का सिंहासन।
    सम्पूर्ण सृष्टि में नहीं बना कुछ,
    मेरी भारत भूमि सा पावन॥
    श्वेत किरीट शोभित मस्तक पर,
    करे पयोधि पद-प्रक्षालन।
    सप्तसिंधु से सिंचित ये भूमि,
    सर्वोच्च सदा से रही सनातन॥
    इस पुण्य भूमि में क्रीड़ा करने,
    ईश्वर स्वयं मनुज बन आते।
    सौभाग्य यहाँ आने का पाकर,
    यक्ष देव किन्नर इठलाते॥
    बार बार लूँ जन्म यहीं पर,
    बार बार यहीं मर-मिट जाऊँ।
    समिधा बन इस पवित्र यज्ञ में,
    हर जीवन सार्थक कर पाऊँ॥
    मुझे लोभ नहीं मुझे मोह नहीं,
    ये भक्ति और समर्पण है।
    मातृभूमि के पावन चरणों में,
    अपना सब कुछ अर्पण है॥
    स्वरचित
    विवेक अग्रवाल 'अवि'
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