Bahauddin Khan Qawwal🎶Jigar Moradabadi - Hairat-e-Ishq Nahin Shauq Junoon Posh Nahin​

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  • Опубликовано: 7 янв 2025
  • Bahauddin Khan Qawwal🎶Jigar Moradabadi - Hairat-e-Ishq Nahin, Shauq Junoon-Posh Nahin
    शायर (Poet) - जिगर मुरादाबादी (Jigar Moradabadi)
    हैरत-ए-इश्क नहीं, शौक़ जुनून-पोश* नहीं
    बे-हिज़ाबाना चले आओ मुझे होश नहीं
    रिंद* जो मुझको समझते हैं, उन्हें होश नहीं
    मयक़दा साज़ हूँ मैं, मयक़दा बरदोश* नहीं
    कौन सा जल्वा यहाँ आते ही बेहोश नहीं
    दिल मिरा दिल है कोई साग़र-ए-सर* जोश नहीं
    हुस्न से 'इश्क़ जुदा है न जुदा 'इश्क़ से हुस्न
    कौन सी शै* है जो आग़ोश-दर-आग़ोश नहीं
    मिट चुके ज़ेहन से सब याद-ए-गुज़िश्ता* के नुक़ूश*
    फिर भी इक चीज़ है ऐसी कि फ़रामोश* नहीं
    कह गयी कान में आ कर तेरे दामन की हवा
    साहिब-ए-होश वही है, कि जिसे होश नहीं
    कभी उन मद-भरी आँखों से पिया था एक जाम
    आज तक होश नहीं, होश नहीं, होश नहीं
    पाँव उठ सकते नहीं मंज़िल-ए-जाना के ख़िलाफ़
    और अगर होश की पूछो तो मुझे होश नहीं
    अब तो तासीर-ए-ग़म-ए-इश्क़* यहाँ तक पहुंची
    के इधर होश अगर है तो उधर होश नहीं
    'इश्क़ गर हुस्न के जल्वों का है मरहून-ए-करम*
    हुस्न भी 'इश्क़ के एहसाँ से सुबुक-दोश* नहीं
    महव-ए-तस्बीह* तो सब हैं मगर इदराक* कहाँ
    ज़िंदगी ख़ुद ही 'इबादत है मगर होश नहीं
    मिल के इक बार गया तो है कोई जिस से 'जिगर'
    मुझ को ये वहम है जैसे वो हर आग़ोश नहीं
    स्रोत (Source) : कुल्लियात-ए-जिगर
    (Kulliyat-e-Jigar)
    लेखक : जिगर मुरादाबादी
    प्रकाशक : लिबर्टी पब्लिशर एंड प्रिंटर, हैदराबाद
    प्रकाशन वर्ष : 1958
    भाषा : Urdu
    श्रेणियाँ : शायरी
    उप श्रेणियां : कुल्लियात
    पृष्ठ : 353
    सहयोगी : रेख़्ता (www.rekhta.org...)
    Hairat-e-ishq nahin, shauq junoon-posh nahin
    Be-hijabana chale aao mujhe hosh nahin
    Rind jo mujh ko samajhte hain, unhein hosh nahin
    Maikada saaz hoon main maikada bardosh nahin
    Kah gai kaan mein aa kar tere daaman ki hawa
    Sahib-e-hosh wohi hai, ke jise hosh nahin
    Kabhi un mad-bhari aankhon se piya tha ek jaam
    Aaj tak hosh nahin, hosh nahin, hosh nahin
    Mehw-e-tasbeeh hi to sab hain magar idraaq kahaan
    Zindagi khud hi ibaadat hai magar hosh nahin
    Mil ke ek bar gaya to hai jis se 'jigar'
    Mujh ko ye waham hai ki wo har aagosh nahin
    ***शब्दार्थ: पोश = छिपानेवाला; रिंद= शराबी, लापरवाह; 'मयकदा बरदोश' शब्दावली में बरदोश का तात्पर्य 'गुलाम' है; सागर-ए-सर = सागर - शराब का प्याला; सर - जीतना; शै = चीज़, वस्तु याद-ए-गुज़िश्ता = बीते समय की यादें; फ़रामोश = भूला हुआ, विस्मृत, नुक़ूश = चित्र, नक्श (singular); तासीर-ए-ग़म-ए-इश्क़ = प्रेम के दुःख का प्रभाव/असर; मरहून-ए-करम = मरहून - गिरवी, करम - कृपा; सुबुक-दोश = ज़िम्मेदारी से मुक्त, हल्का, सुबुक = रोशनी, नाज़ुक; दोश = दोष, ग़लत या पाप; दोश = कंधा या आखिरी रात; महव = तल्लीन; तस्बीह = भगवान का नाम या मंत्र जपने वाली माला; इदराक = अगोचर वस्तुओं का अनुभव, ज्ञान, बोध, समझ-बूझ

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