ऐतिहासिक योद्धा भगवान परशुराम का रोचक इतिहास || Lord Parshuram Story

Поделиться
HTML-код
  • Опубликовано: 8 сен 2024
  • Lord Parshuram Story and history || ऐतिहासिक योद्धा भगवान परशुराम का इतिहास
    ॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐ………….
    ॐ जामदग्न्याय विद्महे महावीराय धीमहि, तन्नोपरशुराम: प्रचोदयात्। यह था परशुराम गायत्री श्लोक। इस श्लोक से आप समज ही गए होंगे की हम किसकी बात करने वाले है।
    ॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐ………….
    #योद्धा #भगवान #परशुराम #इतिहास
    नमस्कार, में बजरंग प्रजापति आपका शब्द-बाण के एक और वीडियो में आपका स्वागत करता हूँ. इस वीडियो में हम जिन की बात करने वाले है उनके बारे में हम यह नहीं कह सकते है की वे इतने साल तक जिए या इतने वर्षो तक शासन किया. यह मान्यता है की वे त्रेता एवं द्वापर युग से ही अमर है.
    अब आप समज ही गए होंगे की हम किसकी बात कर रहे है. हम बात कर रहे है भगवान परशुराम की. जो की आज भी जीवित है. परशुरामजी का उल्लेख रामायण, महाभारत, भागवत पुराण और कल्कि पुराण इत्यादि अनेक ग्रन्थों में किया गया है।
    भगवान परशुराम के भारत में कई जगहों पर मंदिर है. परशुराम मंदिर, आंध्र प्रदेश, उत्तर प्रदेश, जम्मू और कश्मीर, राजस्थान, महाराष्ट्र, हिमाचल प्रदेश और मध्य प्रदेश के इंदौर स्थित जनपव हिल पर जिसे उनका जन्म स्थल भी माना जाता है.
    अगर आप के पास कोई रोचक जानकारी है तो हमारे साथ शेयर करे हम उस पर रिसर्च करके एक वीडियो बनाएंगे और आपका नाम भी बताएंगे।
    इस विषय पर हमे वीडियो बनाने के लिए हमे शब्द-बाण के ही एक व्यूअर आर्यन त्यागी ने suggest किया था। हम उनका शब्द-बाण चैनल की तरफ से धन्यवाद करते है।
    सबसे पहले जानते है उनका जन्म कैसे हुआ?
    उनके जन्म से संबंधित अलग अलग कथा प्रचलित है। प्राचीन काल में कन्नौज में गाधि नाम के एक राजा राज्य करते थे। उनकी सत्यवती नाम की एक अत्यन्त रूपवती कन्या थी। राजा गाधि ने सत्यवती का विवाह भृगुनन्दन ऋषीक के साथ कर दिया। सत्यवती के विवाह के पश्‍चात् वहाँ भृगु ऋषि ने आकर अपनी पुत्रवधू को आशीर्वाद दिया और उससे वर माँगने के लिये कहा। इस पर सत्यवती ने श्‍वसुर को प्रसन्न देखकर उनसे अपने और अपनी माता के लिये एक पुत्र की याचना की। सत्यवती की याचना पर भृगु ऋषि ने उसे दो चरु पात्र देते हुये कहा कि जब तुम और तुम्हारी माता ऋतु स्नान कर चुकी हो तब तुम्हारी माँ पुत्र की इच्छा लेकर पीपल का आलिंगन करना और तुम उसी कामना को लेकर गूलर का आलिंगन करना। फिर मेरे द्वारा दिये गये इन चरुओं का सावधानी के साथ अलग अलग सेवन कर लेना। इधर जब सत्यवती की माँ ने देखा कि भृगु ने अपने पुत्रवधू को उत्तम सन्तान होने का चरु दिया है तो उसने अपने चरु को अपनी पुत्री के चरु के साथ बदल दिया। इस प्रकार सत्यवती ने अपनी माता वाले चरु का सेवन कर लिया। योगशक्‍ति से भृगु को इस बात का ज्ञान हो गया और वे अपनी पुत्रवधू के पास आकर बोले कि पुत्री! तुम्हारी माता ने तुम्हारे साथ छल करके तुम्हारे चरु का सेवन कर लिया है। इसलिये अब तुम्हारी सन्तान ब्राह्मण होते हुये भी क्षत्रिय जैसा आचरण करेगी और तुम्हारी माता की सन्तान क्षत्रिय होकर भी ब्राह्मण जैसा आचरण करेगी। इस पर सत्यवती ने भृगु से विनती की कि आप आशीर्वाद दें कि मेरा पुत्र ब्राह्मण का ही आचरण करे, भले ही मेरा पौत्र क्षत्रिय जैसा आचरण करे। भृगु ने प्रसन्न होकर उसकी विनती स्वीकार कर ली। समय आने पर सत्यवती के गर्भ से जमदग्नि का जन्म हुआ। जमदग्नि अत्यन्त तेजस्वी थे। बड़े होने पर उनका विवाह प्रसेनजित की कन्या रेणुका से हुआ। रेणुका के पाँच पुत्र हुए जिनके नाम थे - रुक्मवान, सुखेण, वसु, विश्‍वानस और परशुराम। भगवान परशुराम जी का जन्म वैशाख शुक्ल तृतीया के दिन हुआ था।
    यह थी परशुराम के जन्म की कहानी
    अब सुनेंगे हम उनका नाम परसुराम केसे रखा गया|
    बचपन में परशुराम जी को उनके माता-पिता राम कहकर बुलाते थे. बाद में जब वह बड़े हुए तब उनके पिता जमदग्रि ने उन्हें हिमालय जाकर भगवान शिव की आराधना करने को कहा. पिता की आज्ञा मानकर राम ने ऐसा ही किया. उनके तप से प्रसन्न होकर शिव ने उन्हें दर्शन दिए और असुरों के नाश का आदेश दिया. राम ने अपना पराक्रम दिखाया और असुरो का नाश हो गया. राम के इस पराक्रम को देखकर भगवान शिव ने उन्हें परशु नाम का एक शस्त्र दिया. इसलिए वह राम से परशुराम हो गये.
    दोस्तों अब देखते है की परसुराम ने क्यों अपनी ही माता का सर काटा?
    एक कथा बहोत ही प्रचलित है की भगवान परशुराम ने ही अपनी माता और भाइयो के सर काट दिए थे. लेकिन उन्होंने ऐसा क्यों किया यह बहुत कम लोग ही जानते है.
    एक बार जमदग्नि ऋषि ने अपनी पत्नी रेणुका को जल लेने के लिए भेजा तब रेणुका नदी में चित्ररथ अप्सराओ के साथ स्नान कर रहे थे यह देख रेणुका कुछ समय के लिए वही रुक गई इधर यज्ञ का समय व्यतीत होते ही जमदग्नि ऋषि ने अपनी दिव्य दृष्टि से देख लिया और रेणुका को लौटने के बाद कहा की तुमने घोर पाप किया है. उन्होंने अपने चारो पुत्रो को अपनी माँ का गला काटने का आदेश दिया लेकिन माता प्रेम के लिए चारो भाइयो में से किसीने उनको नहीं मारा. उतने में ही परशुराम जी वहां आए और उनको अपने पिताजी जमदग्नि ने अपनी माता और चारो भाइयो के सर काटने का आदेश दिया. भगवान परशुराम ने अपने पिता के आदेश के मुताबिक अपनी माता और भाइयो के सर काट दिए. परशुराम जी से प्रसन्न हो के उनके पिताजी ने उनसे वरदान मांगने के लिए कहा. परशुराम जी ने वरदान माँगा की उनके भाई और माता फिरसे जीवित हो जाए और उनको इस घटना को वो भूल जाए
    दोस्तों अब देखते है क्यों 21 बार क्षत्रियों का विनाश किया?

Комментарии • 3,5 тыс.