आपकी टिप्पणी बिल्कुल सही है। आपकी चेतना ही देवता का रुप धारण करके आपके सामने आती है और आंनद देती है। जो आप देखते हैं वह आपका ही स्वरूप है। वह आप ही हैं।
ज्योति प्रकृति है।जैसे प्रकाश सूर्य का सुक्ष्म विस्तार है ऐसे ही प्रकृति हमारी चेतना का सुक्ष्म विस्तार है। Nature is subtle expansion of consciousness like Sun light is subtle expansion of Sun. The expansion of Sun light is automatic but expansion of our consciousness is manual and some how in our hands. Means we can expand our attention where we want according to our desire.
अहम ब्रह्मस्मी वाले का कोइ बिशेष दोष नहि है,मात्र इनका इतना हि दोष है कि तत्त्वज्ञानि तथा योगि अध्यात्मिक होते नहि ,परन्तु अध्ययन के बल पर ग्यानी एवं योगि सब कुछ स्वयं को हि कहते,असल मे ये परमात्म के हि प्रतिबिम्ब या प्रतिछाया होते है,ये ठिक वहि होते है जो सुर्य जल के वर्तन मे प्रतिबिम्ब होता है,शेष भगवद कृपा
ओम नमः
ॐ
आपकी टिप्पणी बिल्कुल सही है। आपकी चेतना ही देवता का रुप धारण करके आपके सामने आती है और आंनद देती है। जो आप देखते हैं वह आपका ही स्वरूप है। वह आप ही हैं।
ॐ
आत्मा निराकार है, उसका कोई विशेष रूप नहीं है। उसको देख नहीं सकते। आत्मा बोधस्वरूप है।
ॐ
Sunder ❤❤
ॐ
Bhout hi achche vichar ji
Thanks
ॐ
Om om
ॐ
ज्योति प्रकृति है।जैसे प्रकाश सूर्य का सुक्ष्म विस्तार है ऐसे ही प्रकृति हमारी चेतना का सुक्ष्म विस्तार है। Nature is subtle expansion of consciousness like Sun light is subtle expansion of Sun. The expansion of Sun light is automatic but expansion of our consciousness is manual and some how in our hands. Means we can expand our attention where we want according to our desire.
ॐ
Thanks brother ji ❤
ॐ
अहम ब्रह्मस्मी वाले का कोइ बिशेष दोष नहि है,मात्र इनका इतना हि दोष है कि तत्त्वज्ञानि तथा योगि अध्यात्मिक होते नहि ,परन्तु अध्ययन के बल पर ग्यानी एवं योगि सब कुछ स्वयं को हि कहते,असल मे ये परमात्म के हि प्रतिबिम्ब या प्रतिछाया होते है,ये ठिक वहि होते है जो सुर्य जल के वर्तन मे प्रतिबिम्ब होता है,शेष भगवद कृपा
ॐ
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Kripa nath😂 कोई vaishya नहीं आयेगी कलयुग में 😂
ॐ