सनाढ्य ब्राह्मणों का पूर्ण परिचय ||Complete Information about Sanadya Brahmans.
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- Опубликовано: 8 сен 2024
- सनाढ्य का शाब्दिक अर्थ दो शब्दों से मिलकर बना
है,सन्+आढय जिसका अर्थ सन् अर्थात तप और
आढ्य अर्थात ब्रम्हा। ब्रम्हा के तप से उत्पन्न ब्राम्हण
और तपस्या में रत रहने बाले अर्थात तपस्वी।सनाढ्य
या गौड़ सनाढ्य ब्राहमण मुख्यत पच्छिमी उत्तरप्रदेश,
दिल्ली,राजस्थान, मध्यप्रदेश के क्षेत्र में रहते हैं।
सनाढ्य ब्राह्मणों में एक ख़ास बात ये हैं की यह सभी
अपने मूल ग्रामो से जाने जाते हैं उन्ही ग्रामो से
विख्यात हैं यह अपने ग्रामो के नामो को ही(जहाँ से
इनका निकास हुआ उस ग्राम/गाओं का नाम ही)
अपना गौत्र बताते हैं,कहने का भाव ये हैं की ये
अपने ग्रामो/गाँव का नाम ही अपने उपनाम या
अपने आस्पद के रूप में बताते हैं
सनाढ्य ब्राह्मणों में बड़ी विचित्रता यह हैं कि
कहीं इनका कन्या संबंध गौड़ ब्राह्मणों में होता हैं
और कहीं कहीं सारस्वत ब्राह्मणों में भी होता देखा
व सुना गया हैं मूलत: सनाढ्यों के गौत्र जगत
प्रसिद्ध हमारे ऋषियों के नामों से ही प्रसिद्ध हैं वैसे
तों सभी मूलत:ब्रह्मऋषियों,देवऋषियों व राजऋषियों
की ही संताने हैं राजऋषि- महाराज मनु,विश्वामित्र
. ब्रह्मऋषि-वशिष्ठ,भरद्वाज,अगस्त्य,अंगिरा. देवऋषि-
नारद आदि आदि और अगर दूसरे परिप्रेक्ष्य से देखा
जाये तों सभी कश्यप ऋषि की ही संताने हैं पुराणों
के कथनानुसार से देवी भागवत पुराण अथवा
भागवतपुराण आदि
सनाढ्य ब्राह्मणों में एक बात यह भी हैं की इनमे
विवाह कई बार एक ही आस्पद या एक ही उपनाम
के परिवारों में सम्बन्ध होते देखें हैं उदाहरण के
लिए की जैसे एक परिवार उपाध्याय आस्पद/
उपनाम का हैं पर उसका गौत्र भारद्वाज हैं और
जिससे सम्बन्ध होना हैं उस परिवार का भी
उपाध्याय आस्पद/उपनाम ही हैं पर उसका गौत्र
अगस्त्य हैं इन दोनों एक जैसे उपनामों में भिन्नता
सिर्फ गौत्र की हैं आप सोच रहे होंगे की यह कैसे
तों मै आपको बता देना चाहता हूँ की यह जो
आप सोच रहे हैं ऐसा नहीं हैं उपाध्याय गौत्र नहीं
होता उपाध्याय एक पदवी होती हैं पर कुछ लोग
उन्हें गौत्र के रूप में परिभाषित करते हैं ये कोई
बड़ी बात नहीं हैं अब इन बातों को और किसी
उपनाम/आस्पद के परिवारों के गोत्रों से घटा
लीजिये दुबे,दीक्षित,चौबे, तिवारी,शुक्ला,पाठक,
पण्डित(ये भी अब एक उपनाम/आस्पद हो चला)
,पांडे,त्रिपाठी आदि आदि
वर्तमान में सनाढ्य ब्राह्मणों के बहुत सारे उपनाम
हैं या कह लीजिये आस्पद हैं उदाहरण के लिए
नीचे निम्नलिखित पूरे उत्तर भारत में प्रसिद्ध
आस्पदों/उपनामों की सूची पढ़िए:
शर्मा आस्पद तों बहुत मशहूर हैं ये सिर्फ ब्राह्मणों
के लिए ही परिभाषित किया जाता मनुस्मृति के
अनुसार
1. उपाध्याय 2. दुबे 3. शुक्ला 4. दीक्षित 5.
पाठक 6. मिश्रा 7. जोशी 8. त्रिवेदी 9. त्रिपाठी
10.द्विवेदी 11.चतुर्वेदी 12.पांडेय 13.अग्निहोत्री
14.त्यागी ये सभी आस्पद या उपनाम उत्तरभारत
में सर्वविदित अथवा सर्वज्ञात हैं सभी जन को
लेकिन! इसके इलावा सनाढ्य ब्राह्मणों में कई
ऐसे भी आस्पद या उपनाम प्रचलित हैं जो एक ही
आस्पद उपनाम के होते हुए भी विभिन्न प्रकार के
ऋषि गोत्रों का दावा करते हैं उदाहरण के लिए
निम्नलिखित सूची देखें: 1.जगरिया/झगरिया 2.
माहेरे/माहेरिया 3.लवानिया/लमानिया 4.पचोरी/
पचोरिया 5.भिरथरे 6.वैदेले-वैदले 7.रावत 8.
पंचगैया 9.जगनवंशी 10.त्रिगुनाई 11.वैशंधरे 12.
वेदसार 13.करोलिया 14.काँकोलिया 15.चौरासिया
16.पिपरोलिया 17.तीखे 18.तिहोंनगुरिया/तेहनगुरिया
19.मसेनिया 20.भमरेले अन्य और भी 300 से ज्यादा
आस्पद/उपनाम हैं सनाढ्यों के जो अपने ग्रामो के नाम
से विख्यात हैं और अपने अपने क्षेत्र के ग्रामो तक ही
सीमित रह गये हैं, ‘सनाढ्य’ में ‘सन्’ तप वाचक है।
अर्थात तप द्वारा जिनका पाप दूर हो गया है वे सनाढ्य
ब्राह्मण कहे जाते हैं। इनका उद्भव आदिगौड़ ब्राह्मणों से
ही हुआ है। सनाढ्य ब्राह्मण कान्यकुब्ज ब्राह्मणों की चौथी
शाखा है। अतः इनका वर्णन भी पंचगौड़ ब्राह्मणों के
अंतर्गत किया जाता है।
त्रेता युग में श्री राम ने अपने पिता के वचन की पालना
हेतु 14 वर्षों के लिए वनवास किया। इसके पश्चात्
संग्राम में रावण का वध कर सीता और लक्ष्मण सहित
अयोध्या लौटे। राज्याभिषेक के बाद ब्रह्महत्या के दोष
के निवारण के लिए यज्ञ का आयोजन किया। उस यज्ञ
में आदि गौड़ ब्राह्मणों को निमंत्रित किया गया। आदि
गौड़ ब्राह्मणों ने विधिविधानपूर्वक यज्ञ करवाया। यज्ञ
की समाप्ति पर अवभृथ स्नान करके प्रथम वरण किए
हुए आदि गौड़ ब्राह्मणों को दान देने को तत्पर हुए।
किंतु ब्रह्महत्या के दोषी राजा रामचंद्र से उन्होंने
दक्षिणा नहीं ली और वे चले गए। बचे हुए 750
कान्यकुब्ज आदि ब्राह्मणों ने दक्षिणा स्वरूप राम
द्वारा प्रदत्त 750 ग्राम आदि दान सहर्ष स्वीकार कर
लिए। उन ग्रामों के नाम से आज भी अवंटक
(शासन) या कुरीगांव प्रख्यात हैं।
भगवान राम द्वारा किए गए इस यज्ञ में 1001
ब्राह्मण याज्ञिक थे जिन्होंने यज्ञ में दान स्वीकार
किया। इनमें 251 कान्यकुब्ज ब्राह्मण थे जिन्होंने
गाय और साढ़े दस गांव दान में प्राप्त किए। 750
ग्राम अन्य विद्वान ब्राह्मणों को दान स्वरूप दिए
गए जो सभी प्रकार के मिले-जुले ब्राह्मण थे। इस
प्रकार का दान देकर भगवान राम ने उन 750
ब्राह्मणों को सनाढ्य ब्राह्मण नाम की संज्ञा से
अलंकृत किया। यह 750 ग्राम गंगा-यमुना के
विस्तार क्षेत्र में है। साढ़े दस गाँव 251
कान्यकुब्ज ब्राह्मणों को दिये जो अयोध्या के
दक्षिण भाग में है और उन्हें कान्यकुब्ज संज्ञा से
अभिनीत किया। इस प्रकार सनाढ्य ब्राह्मण
वंश का कान्यकुब्ज ब्राह्मणों से ही संबंध है।
सनाढ्य ब्राह्मणों का क्षेत्र गंगा यमुना के मध्य
क्षेत्र के 8 जिलों -1.मथुरा 2.एटा 3.अलीगढ़
4.बुलंदशहर 5.मेरठ 6.बदायूं 7.मैनपुरी 8
.आगरा आदि में फैला हुआ है।
शानदार
सनाढ्य ब्राह्मण के नौपुत्रा गोत्र के ऋषि गौत्र की जानकारी साझा करने की कृपा करें.
ब्राह्मण इतना विभाजित हो चुके हैं कि इनमें उपनाम तथा गोत्र पता लगाना मुश्किल हो पा रहा है
धन्यवाद
श्रीमान मैं सनाढ्य ब्राह्मण हूं (उपाध्याय)। मेरे आसपास के अन्य ब्राह्मण कान्यकुब्ज सर्युपारी ब्राह्मण आदि.... सनाढ्य ब्राह्मण को निचला, तुछ कहते है। एक ब्राह्मण होने के पश्चात भी जातिगत अपमान महसूस होता है।
!😮
aap log puja krwate ho ya shradh
Garg koun se brahman hote h
इन मूर्खों से पूछना की कौन से शास्त्र ,ग्रथ , संहिता में लिखा है कि कौन से ब्राह्मण बड़ें या छोटे होते हैं ?
Sanadya Brahmin samaj jindabad jindabad jindabad
👍👌
बैक राऊंड साउंड की जरूरत नहीं, डिस्टर्ब होता हैं
Metal birahambad ke bare me kuch batao kucha log enhe badhaee kahte h
Mai bhi ek sanadhya brahmin hun mera gotra chaman or 3½ ghar se belong karta hun ,sharma ji ka beta hun 😌
ब्राह्मण के इतने उपनाम है कि कब नाम से पता ही नहीं चल पाता की शूद्र है या ब्राह्मण
Sonali brahmanon ko karna chahie ki Apne Gaon ko chhodkar Apne surname vedon se se Jude Jaise Shukla Tiwari Pande Mishra Rab Brahman Hai To brahmanon ko Gaon Se matlab Nahin Hota brahmanon ko Ved Shastra se matlab hai Kai bar aapke Brahman hai aapko Brahman samajhne Mein jata hai
सनाढ्य का अर्थ प्रधान या मुख्य होता है
और गोड का अर्थ गोंड होता है
अतः सनाढ्य सबमें श्रेष्ठ होता है।
अच्छी तरह से जानकारी दें या करें
आपके पास गलत जानकारी है।
Basista rusi ka bibi ka naam arundati , arundati ek chandal Kanya thaee ,
लवानिया उपनाम राजस्थान के लवान गांव पर आधारित है।
Aur bi btaye eske baare me
Lavania village
Katya Brahmando ke gotra बताये
Jhunjhunu Rajasthan ke bharhaman
सन् का अर्थ होता है जो हमेशा से है। या आदि से तप करते हैं ।
सबसे श्रेष्ठ होता है।
सही ज्ञान करो।
डा रामनिवास शर्मा
महासचिव
अखिल भारतीय ब्राह्मण महासभा राजस्थान
जी श्री मान जी, आपके आदेश का अवश्य पालन किया जाएगा।
यह बात तो लाखों हजारों वर्ष पुरानी है अभी रामलीला की स्थापना हुई थी तो मिथिला से कौन से ब्राह्मण आए थे नामखोलो
Sandhya chaurasiya brahmin
Shandilya gotra
Badai Sharma aur Brahman Sharma mai kya antar hai
Savaalakhi
ब्रिटिश हमे बट दिया है हम गोत्र से ही पहचाने जाते थे
जी सही कहा राणा जी
जिस समय मर्यादा पुरुषोत्तम राम को ब्रह्म हत्या लग जाती है मिथिला से कौन से ब्राह्मण बुलाए थे और क्यों इंकार कर दिया उन मिथिला के ब्राह्मणों ने छुपाते क्यों हो वीडियो में साफ साफ बताओ यह मैंने कह रहा हूं यह हमारी रामायण रामचरित करी है सुखसागर और भागवत बोल रही है सच बोलना सीख लो बड़े भैया
ब्राह्मण कोइव जाती नहि है। सनातन धर्म ितना महान है कि इसका ज्ञान अभीतक योरोप , अमरिका , आफ्रिका, विश्वमे फैलना चाहिैए था।
यह भारतमेहि सिमित रहा । क्यो?
शुक्लाजी सनातन धर्ममे ब्रह्मण कि परिभाषा एसि है। ब्रह्म याने परमात्मा याने इश्वर । ब्रह्म का छोटा हिस्सा याने
ब्राह्मण जिसको आत्मा कहते है हर जीव मे होता है। ब्राह्मण हर जिव मे होता है।ब्राह्मण के कारण जिवन होता है।
अहं ब्रह्मास्मि महावाक्य
का शाब्दिक अर्थ है मैं ब्रह्म हूँ, यहाँ 'अस्मि' शब्द से ब्रह्म और जीव की एकता का बोध होता है।
जब ब्राह्मण याने आत्मा शरिरको छोडता है म्रुत्यु हो
जाती है। ब्राह्मण एक जिवको
छोडने के बाद या तो ब्रह्मामे विलिनहो जाता है जिस अवस्थाको मोक्ष केहते है। कुछ ब्राह्मणोको मोक्ष नहि मिलता वो दुसरे जिवनमे
जाते है , जिसको पुनःह जन्म केहते है।
कोइ क्षुद्र नहि होता । सबमे ब्राह्मण होता है। हर हिंदु ब्रह्मामे विलिन मतलब मोक्ष पाना
चाहता है।
ब्राह्मण जाति का नाम नहि है।
आज जाति व्यवस्था प्रासंगिक नहीं है और गलत हिंदू पौराणिक कथाएं भी पुरानी और अप्रासंगिक हैं। कटु अतीत को भुलाकर हिन्दू समाज में सुधार लाना अच्छा है। ब्राह्मण और क्षुद्र की जाति आवश्यक नहीं है।
सनातन धर्मको पेहचानो।
रामायणकार वाल्मिकि उतनेहि श्रेष्ठ थे वह
ज्ञानि हिंदु थे।
आज जाति व्यवस्था प्रासंगिक नहीं है और गलत हिंदू पौराणिक कथाएं भी पुरानी और अप्रासंगिक हैं। कटु अतीत को भुलाकर हिन्दू समाज में सुधार लाना अच्छा है। ब्राह्मण और क्षुद्र की जाति आवश्यक नहीं है।
हम सब हि्दु है इतनाहि काफ़ि है। सनातन को फ़ैलाओ।
ब्रह्मामे विलिन होनाहि हिंदु ओका उद्देश्य
है। बाकि सब कुछ अर्थहिन है।
मुझे एक सनाढ्य ब्राह्मण मिला , उसने मुझसे कहा की वो लोग मैथिल ब्राह्मण से उच्च जाति के होते है,
क्या ऐसा है? कृपया बताये।
Knowledge ki Kami ke Karan hota bhai ye sabhi . In logo Brahmin mai bhi uch nich baana diya
Bahut to badhee apne ko Mathul Brahmin batate hain
Mera Sanadhya me Lawaniya Gotra hai
Kya shanadhya brhamin ladke ki shadi kanyakubj ladki se ho skti haai??
Nahi😊
@@shashankupadhayay4526 kyu ?
शर्मा तो बढ़ई भी लिखने लगे है
जो आपने लिखा है इसकी उत्पत्ति कहां से है अब वक्त बदलचुका है
Yah Galt bol Raha ho trivedi brraman kanyakubj hai
श्रीमान जी सनाढ्य और सारस्वत ब्राह्मण में शादी संबंध होते हैं क्या
Ji ho jate hain.
@@ReetKnowledgeTV sir dakshir mein upadhyay ko brhaman nahi jogi kaha jaata hai aisa kyon
Kya sanadaya aur shandilya same hota hai
Aur Goswami kaunse brahmin hote hai
@@lavleshvashishtha1488 बहुत सुन्दर प्रस्तुति ।
Saryupari me shadi nhi kar sakte sanadhya
Reply kariye please bataiye
Sandilya or bats methil hote he krpya glt jankari na de
Bhai ne pura google se chap diya😜😜😜
गूगल पर भी किसी ज्ञानी ने ही छापा होगा गौरव भाई
Budholiya