पंछिड़ा भाई वन-वन क्यों डोले रे || Panchida Bhai van van kyu Dole re || Prahlad Singh Tipanya

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  • Опубликовано: 8 фев 2025
  • पंछिड़ा भाई वन-वन क्यों डोले रे || Panchida Bhai van van kyu Dole re || Prahlad Singh Tipanya
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    सखी- कबीर गुरु ने गम कही ,भेद दिया अरथाय,
    सुरत कलम के अंतरे,निराधार पद पाय।।१।।
    गुरु मूर्ति आगे खड़ी ,द्वितीय भेद कुछ नाय।
    उन्ही को प्रमाण करूँ, सकल तिमिर मिटि जाय।।२।।
    भजन - पंछिड़ा रे भाई तू वन-वन क्यों डोले रे ।
    थारी काया रे नगरी में सोहम ,थारा हरियाला बांगा में सतनाम ।
    सो हँसो बोले रे ,वन-वन क्यों डोले रे ।।टेक।।
    १ पंछिड़ा भाई अंधियारा में बैठो रे ,
    थारी देही का देवलिया में जगे जोत।
    गुरु गम झिलमिल झलके रे । वन-वन …।।
    २ पंछिड़ा भाई कई बैठो तरसायो रे ,
    पीले त्रिवेणी का घाटे गंगा नीर ,
    मनड़ा को मैलो धोले रे । वन-वन…।।
    ३ पंछिड़ा भाई कई बैठो अकड़ायो रे,
    थारी गुरुजी जगावे हैलां पाड़,
    घट केरी खिड़कियाँ ने खोलो रे । वन-वन…।।
    ४ पंछिड़ा रे भाई हीरा वाली हाटां में ,
    इणी माला का मोतीड़ा बिख्रया जाय रे ,
    सुरता में नूरता पोले रे ।वन-वन ..।।
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    Credits
    Main Vocal : Padmashri Prahlad Singh Tipaniya
    Choras & Manjira : Ashok Tipaniya
    Violin : Devnarayan Saroliya
    Dholak : Ajay Tipaniya
    poster by : Himanshu Tipaniya
    Sound Mixing : Peter jamra
    Video Editing : Mayank Tipaniya
    Video by : Mayank Tipaniya & Pritam Tipaniya
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