एक ही तरीका मोह के पार जाने का || आचार्य प्रशांत, भगवद् गीता पर (2019)

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  • Опубликовано: 28 мар 2023
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    वीडियो जानकारी: शब्दयोग सत्संग, 28.07.2019, अद्वैत बोधस्थल ,ग्रेटर नॉएडा , भारत
    प्रसंग:
    श्रीमद्भगवद्गीता (अध्याय ३, श्लोक ३५)
    श्रेयान्स्वधर्मो विगुणःपरधर्मात्स्वनुष्ठितात् ।
    स्वधर्मे निधनं श्रेयःपरधर्मो भयावहः ॥
    भावार्थः
    दूसरों के कर्तव्य का भली-भाँति अनुसरण करने की अपेक्षा
    स्वधर्म को दोष-पूर्ण ढंग से करना भी अधिक कल्याणकारी है ।
    दूसरे के कर्तव्य का अनुसरण करने से भय उत्पन्न होता है,
    और स्वधर्म में मरना भी श्रेयस्कर होता है।
    ~ क्या मन की गति भी सूक्ष्म कर्म है और मोह उसका कारण है?
    ~ मोह को करीब से कैसे जाने?
    ~ मोह-माया से कैसे बचें?
    संगीत: मिलिंद दाते
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