आने वाले 30 दिनों के अंदर अत्यंत महत्वपूर्ण योगों की संपूर्ण जानकारी सिर्फ इस एक वीडियो में
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- Опубликовано: 5 фев 2025
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इन पुण्यदायी तिथियों व योगों का अवश्य उठायें लाभ
२२ जनवरी : बुधवारी अष्टमी (सूर्योदय से दोपहर ३-१८ तक) (यह सूर्यग्रहण तुल्य है। इसमें ध्यान, जप, मौन आदि का अक्षय प्रभाव होता है।)
२५ जनवरी : षट्तिला एकादशी (इस दिन स्नान, उबटन, जलपान, भोजन, दान व होम में तिल का उपयोग पापों का नाश करता है।)
२९ जनवरी व्यतीपात योग (रात्रि ९-२२ से ३० जनवरी शाम ६-३३ तक),
व्यतिपात योग की ऐसी महिमा है कि उस समय जप पाठ प्राणायम, माला से जप या मानसिक जप करने से भगवान की और विशेष कर भगवान सूर्यनारायण की प्रसन्नता प्राप्त होती है जप करने वालों को, व्यतिपात योग में जो कुछ भी किया जाता है उसका १ लाख गुना फल मिलता है। - वाराह पुराण
२ फरवरी : वसंत पंचमी (इस दिन सारस्वत्य मंत्र का अधिक-से-अधिक जप करना चाहिए।)
४ फरवरी : माघ शुक्ल
सप्तमी (प्रातः पुण्यस्नान, व्रत करके गुरु का पूजन करनेवाला सम्पूर्ण माघ मास के स्नान का फल व वर्षभर के रविवार व्रत का पुण्य पा लेता है। यह सम्पूर्ण पापों को हरनेवाली सुख-सौभाग्य की वृद्धि करनेवाली है।)
५ फरवरी : भीष्माष्टमी (भीष्म पितामह श्राद्ध दिवस) ('वसूनामवताराय शन्तनोरात्मजाय च । अर्घ्य ददामि भीष्माय आबालब्रह्मचारिणे ॥' इस मंत्र से भीष्माष्टमी के दिन भीष्मजी को तिल, गंध, पुष्प, गंगाजल व कुश मिश्रित अर्घ्य देने से अभीष्ट सिद्ध होता है ।), बुधवारी अष्टमी (सूर्योदय से रात्रि १२-३५ तक) (यह सूर्यग्रहण तुल्य है। इसमें ध्यान, जप, मौन आदि का अक्षय प्रभाव होता है ।)
८ फरवरी : जया एकादशी (इसका व्रत ब्रह्महत्या जैसे पाप तथा पिशाचत्व का भी विनाश करता है। इसके व्रती को कभी प्रेतयोनि में नहीं जाना पड़ता ।)
१० फरवरी : दिनत्रय व्रत (माघ शुक्ल त्रयोदशी से माघी पूर्णिमा तक प्रातः पुण्यस्नान तथा दान, व्रतादि पुण्यकर्म करने से सम्पूर्ण माघ- स्नान का फल मिलता है। - पद्म पुराण)
१२ फरवरी :विष्णुपदी- कुम्भ संक्रांति (पुण्यकाल : दोपहर १२-४१ से सूर्यास्त तक)
(इसमें किये गये ध्यान, जप व पुण्यकर्म का फल लाख गुना होता है । - पद्म पुराण)
२४ फरवरी : विजया एकादशी (इसका व्रत करनेवाले को इस लोक में विजय प्राप्ति होती है और परलोक भी अक्षय बना रहता है।)
२४ फरवरी व्यतीपात योग (सुबह १०-५ से २५ फरवरी सुबह ८-१५ तक)
व्यतिपात योग में जो कुछ भी किया जाता है उसका १ लाख गुना फल मिलता है। - वाराह पुराण
ऋषि प्रसाद - जनवरी २०२५ व आश्रम की डायरी से संकलित