पुणे 1996 का यह वक्तव्य श्रम का तत्वग्यान और व्यावहारिक संगठन की दृष्टीसे आज भी उतनाही रेलेव्हट है ! बीच बीच में जो श्रोता-दृश्य आप दिखा रहे है, वो एक ही है जो बार बार दिखाया है, उसे देखनेसे यह भावना होती है कि इतना महत्वपूर्ण वक्तव्य चल रहा है लेकिन कोई ध्यान से नहि सुन रहा है ! अगर ये अनावश्यक दृश्य बीच से हटाया गया तो और ठीक रहेगा !
आपका कहना उचित है वीडियो एडिट करते समय ऐसा विचार आया कि भारतीय मजदूर संघ के उस समय के केंद्रीय कार्य समिति के सदस्य है उनको महत्व देने के लिए बार बार दिखाया है। अन्यथा वह कार्यक्रम शुरू होने से पहले का दृश्य है।
विचार ठीक है हि, परंतु श्रोताओं का दृश्य ऐसी तरह से बीच में आता है कि, अत्यंत गंभीर विषय चल रहा है .... श्रोताओंमें वहाँ कोई हाथ थपथपा रहा है कोई घडी देख रहा है कोई आपसमें बोल रहा है कोई ऊपर देख रहा है कोई नोटबुकमें कुछ लिख रहा है कोई इधर उधर जा रहा है... याने कि, श्रोताओं में वक्ता का विषय गंभीरता से नहिं लिया जा रहा है.... ऐसा प्रतीत होता है, मूल दृश्य जो बैठक शुरू होने से पहले का होगा वह पहले समझ में आ सकता है, लेकिन बाद में वही अस्थिरता का दृश्य ठीक नही लगता है। क्षमस्व
वाक स्वातंत्र्य - कर्म नियंत्रण
बहुत-बहुत धन्यवाद आभार !
ऐसे बौद्धिक से हम लोग समृद्ध हो रही हैं.दत्तोपंथ जी को प्रणाम।
बहुत बहुत धन्यवाद
नमस्ते सदा वत्सले मातृभूमे
बहुत-बहुत धन्यवाद आभार !
आप शॉर्ट्स रीलस करिये...भ्रष्ट चीजे भी आजकाल reels बनती है अपके पास तो ज्ञान का भांडार है
दत्तोपंत जी जैसे मेधावान व्यक्ती के विचार सब लोग सूने
नमस्ते वंदे मातरम जय हिंद
@@anirudhprasad6890 बहुत-बहुत धन्यवाद।
बहुत बहुत आभार
बहुत-बहुत धन्यवाद आभार !
जय श्रीराम
बहुत-बहुत धन्यवाद आभार !
लोकशासक्ती को जगायेंगे
बहुत-बहुत धन्यवाद आभार !
chiranjivi bangayaji hamari manme
बहुत-बहुत धन्यवाद आभार !
जय हो
बहुत बहुत धन्यवाद
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पुणे 1996 का यह वक्तव्य श्रम का तत्वग्यान और व्यावहारिक संगठन की दृष्टीसे आज भी उतनाही रेलेव्हट है !
बीच बीच में जो श्रोता-दृश्य आप दिखा रहे है, वो एक ही है जो बार बार दिखाया है, उसे देखनेसे यह भावना होती है कि इतना महत्वपूर्ण वक्तव्य चल रहा है लेकिन कोई ध्यान से नहि सुन रहा है ! अगर ये अनावश्यक दृश्य बीच से हटाया गया तो और ठीक रहेगा !
आपका कहना उचित है वीडियो एडिट करते समय ऐसा विचार आया कि भारतीय मजदूर संघ के उस समय के केंद्रीय कार्य समिति के सदस्य है उनको महत्व देने के लिए बार बार दिखाया है। अन्यथा वह कार्यक्रम शुरू होने से पहले का दृश्य है।
विचार ठीक है हि, परंतु श्रोताओं का दृश्य ऐसी तरह से बीच में आता है कि, अत्यंत गंभीर विषय चल रहा है .... श्रोताओंमें वहाँ कोई हाथ थपथपा रहा है कोई घडी देख रहा है कोई आपसमें बोल रहा है कोई ऊपर देख रहा है कोई नोटबुकमें कुछ लिख रहा है कोई इधर उधर जा रहा है... याने कि, श्रोताओं में वक्ता का विषय गंभीरता से नहिं लिया जा रहा है.... ऐसा प्रतीत होता है,
मूल दृश्य जो बैठक शुरू होने से पहले का होगा वह पहले समझ में आ सकता है, लेकिन बाद में वही अस्थिरता का दृश्य ठीक नही लगता है। क्षमस्व
आप ठीक कह रहे हैं। इस वीडियो को पुन: एडिट करके अपलोड करेंगे। हम आपकी भावनाओं का सम्मान करते हैं।
जय श्रीराम
अरविंद जी नमस्कार! बहुत-बहुत धन्यवाद आभार !
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