देवता श्री हुरंग नारायण | 27 नवंबर | नए रथ निर्माण की कार्यवाही | AK37 स्टूडियो

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  • Опубликовано: 9 ноя 2024
  • देवता श्री हुरंग नारायण जी के नए रथ निर्माण की कार्यवाही
    हिमाचल को " देवभूमि " के नाम से जाना जाता है और जिसमें कुल्लू जिला को " ठारह करडू की सौह " के नाम से जाना जाता है । देवभूमि होने के कारण यहां पर हर एक रीति रिवाज हमेशा देवताओं से सम्बंधित रहते है ।
    कुल्लू जिला के देवी - देवताओं को हम ' पालकियों ' यानि ' रथ ' के रूप में देखते है जो कि हमारे दिलों में बसते हैं । वैसे ही इन पालकियों का निर्माण भी बड़ा रोचक है । अब इस निर्माण के सम्बन्ध में " प्रभु श्री हुरंग नारायण जी " के शुरुआती रथ निर्माण प्रक्रिया को समझेंगे ।
    सर्वप्रथम देवता " प्रभु श्री हुरंग नारायण जी " की आज्ञा से देवता के रथ निर्माण के लिए दिन निर्धारित किया जाता है।
    रथ निर्माण के लिए " उंगु " नामक पेड़ की लकड़ी लगघाटी के सबसे अंतिम गांव ' तिउन ' के जंगल " चेउ " नामक स्थान से हारियानों द्वारा जाती है । इसके लिए देवता द्वारा तिथि निर्धारित की जाती है ।
    देवता श्री हुरंग नारायण जी के नए रथ ( यहां की स्थानीय भाषा में चिड़ग ) का निर्माण 20 - 25 वर्षो बाद किया जा रहा है , इसमें सम्पूर्ण रूप से देवता की आज्ञा होती है ।
    सर्वप्रथम देवता द्वारा तिथि निर्धारित की गई जिसमें देवता ने 27 नवंबर , रविवार को लकड़ी लाने का आदेश दिया , जिस करके हारियानों का 26 नवंबर , शनिवार को निकलना पड़ा ।
    अब पूरी प्रक्रिया की बात करते हैं -
    26 नवंबर , शनिवार को भूमतीर गांव से देवता अपने मुख्य निशान " घुण्डी - धोरच्छ " , करनाल , रणसिंघा और वाध्य यंत्र लिए हारियानों सहित कम से कम 250 लोग तिउन के जंगल ' चेउ ' नामक स्थान की ओर निकल गए । रात्रि का ठहराव सभी प्रजाजनों का उसी जंगल मे हुआ ।
    27 नवंबर , रविवार की प्रातः ( ब्रह्महुर्त के समय ) देवता के गूर द्वारा देवता की आज्ञानुसार " उंगु " का पेड़ निर्धारित किया गया । फिर उसे विधि - विधान पूर्वक पूजा गया उसके पश्चात बिना आधुनिक यंत्रो का उपयोग किये बिना उसे पौराणिक धातुओ से काटा गया । काटने के पश्चात उन सभी पवित्र लकड़ियों को इकठ्ठा का पूजा गया , उसके उपरान्त देवता के पुजारी द्वारा उस लकड़ी को कंधा दिया गया ततपश्चात वापिस मन्दिर की यात्रा आरम्भ हुई ।
    ऐसा माना जाता है कि उस पवित्र लकड़ी में देवी - देवताओं की पवित्र शक्तियों का वास होता है और उसके पश्चात उसे मन्दिर पहुंचने तक जमीन में नहीं रखा जाता ।
    ततपश्चात वापसी में गदयाडा मंदिर की ओर यात्रा आरंभ होती है । सभी प्रजावासी बारी - बारी लकड़ियों को कंधा देते हुए मन्दिर की ओर बढ़ते चले जाते है । इसमें सबसे रोचक बात यही रहती है कि लकड़ी को नीचे नहीं रखा जाता यद्यपि कोई थक जाये तो दूसरा कोई आकर कंधा लगा देते है इसी प्रकार पूरी यात्रा को अंजाम दिया जाता है ।
    शाम के समय " गदयाडा मन्दिर " पहुंचने के बाद मन्दिर परिसर में एक काफी बड़ा गड्डा खोद दिया जाता है जिसमे इन पवित्र लकड़ियों को कम से कम 1 वर्ष के लिए रखा जाता है । गड्ढे में रखने से पूर्व विधि विधान पूर्वक इनकी पूजा की जाती है फिर इसमें लाल मिट्टी , शुद्ध गोबर और शुद्ध घी से इन लकडी की लिपाई की जाती है उसके उपरांत इन्हें गड्ढे में भर कर 1 वर्ष के लिए बंद कर दिया जाता है । इसका मुख्य कारण लकडी की पवित्रता के साथ - साथ इसकी मजबूती भी है जिस कारण इसे काफी समय तक बंद रखा जाता है ।
    अब आगे 1 वर्ष पश्चात कारीगरों द्वारा इसे एक " चिड़ग यानि रथ " के रूप में उत्कृष्ट नक्काशी से तैयार किया जाएगा । जिसमे देवता नए रथ के रुप में विराजमान होंगे और उसके पश्चात देवता जी अपनी समस्त हारियानों सहित पवित्र संगम स्थल पर शाही स्नान व शुद्धि हेतु जाएंगे ।
    🙏 " ॐ जय श्री हुरंग नारायण जी " 🙏

Комментарии • 3

  • @chandershekhar6635
    @chandershekhar6635 Год назад

    Jai ho

  • @rashithakur218
    @rashithakur218 Год назад

    जय हुरंग नारायण🙏🏻🦚❤️

  • @chaudharyarman8062
    @chaudharyarman8062 Месяц назад

    जय देव हुरंग नारायण 🙏🙏🌺🌺🌺🌺
    19:26 चाचा जी फुल मूड में हैं 😂