देवशयनी एकादशी: महत्त्व,पूजा विधि ,पौराणिक कथा:महाराज बलि की कथा

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  • Опубликовано: 15 сен 2024
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    देवशयनी एकादशी: महत्त्व, पूजा विधि, व्रत नियम और पौराणिक कथाएं
    **देवशयनी एकादशी**, जिसे हरिशयनी एकादशी या पद्मनाभा एकादशी भी कहा जाता है, हिंदू धर्म में विशेष महत्व रखती है। आषाढ़ शुक्ल पक्ष की इस एकादशी से भगवान विष्णु चार महीने के लिए क्षीरसागर में योगनिद्रा में चले जाते हैं। यह समय चातुर्मास्य कहलाता है और देव प्रबोधिनी एकादशी तक चलता है। इस व्रत के पीछे कई पौराणिक कथाएं और धार्मिक मान्यताएं हैं।
    पुराणिक कथाएं:
    #### कथा 1: राजा मांधाता की कथा
    प्राचीन काल में मांधाता नामक एक धर्मनिष्ठ राजा था। उसके राज्य में एक वर्ष तक वर्षा नहीं हुई, जिससे राज्य में सूखा पड़ गया और प्रजा दुखी हो गई। राजा ने मुनि अंगिरा से परामर्श लिया। मुनि अंगिरा ने राजा को देवशयनी एकादशी का व्रत करने का सुझाव दिया। राजा ने इस व्रत का पालन किया और उसके बाद राज्य में वर्षा होने लगी और प्रजा सुखी हो गई।
    #### कथा 2: महाराज बलि की कथा
    त्रेतायुग में, अयोध्या के महाराज बलि ने अपने राज्य में असुरों के प्रकोप से मुक्ति पाने के लिए वशिष्ठ मुनि से परामर्श लिया। वशिष्ठ मुनि ने उन्हें देवशयनी एकादशी का व्रत करने की सलाह दी। महाराज बलि ने अपने परिवार और प्रजा के साथ मिलकर इस व्रत का पालन किया, जिससे भगवान विष्णु की कृपा प्राप्त हुई और असुरों का विनाश हुआ।
    व्रत और पूजा विधि:
    1. **स्नान और संकल्प**: प्रातःकाल स्नान करके स्वच्छ वस्त्र धारण करें और व्रत का संकल्प लें।
    2. **भगवान विष्णु की पूजा**: भगवान विष्णु की मूर्ति या तस्वीर के सामने घी का दीपक जलाएं। पंचामृत (दूध, दही, घी, शहद, और शक्कर) से अभिषेक करें। तुलसी दल, फूल, धूप, चंदन, फल, मिठाई आदि अर्पित करें।
    3. **विष्णु सहस्रनाम का पाठ**: भगवान विष्णु के 1000 नामों का पाठ करें या 'ॐ नमो भगवते वासुदेवाय' मंत्र का जाप करें।
    4. **भजन और कीर्तन**: भगवान विष्णु के भजन और कीर्तन करें।
    5. **निर्जल व्रत**: निर्जल व्रत रखें, अर्थात् पानी भी न पिएं। अगर स्वास्थ्य कारणों से संभव न हो, तो फलाहार कर सकते हैं।
    6. **रात्रि जागरण**: रात्रि को जागरण करें और भगवान विष्णु का ध्यान करते हुए भजन-कीर्तन करें।
    7. **व्रत का पारण**: द्वादशी के दिन व्रत का पारण करें। ब्राह्मणों को भोजन कराएं और दान दें।
    व्रत का महत्व:
    देवशयनी एकादशी का व्रत करने से व्यक्ति को पापों से मुक्ति मिलती है और भगवान विष्णु की कृपा प्राप्त होती है। इस व्रत को विधिपूर्वक करने से जीवन में सुख-समृद्धि और शांति बनी रहती है। चातुर्मास्य व्रत की शुरुआत भी इसी दिन से होती है, जो चार महीने तक चलता है और धार्मिक और आध्यात्मिक साधना का समय होता है।
    अन्य नाम:
    देवशयनी एकादशी को विभिन्न नामों से भी जाना जाता है:
    1. हरिशयनी एकादशी
    2. पद्मनाभा एकादशी
    3. त्रयम्बक एकादशी
    4. शयनी एकादशी
    5. देवपद्म एकादशी
    6. पद्मा एकादशी
    7. महिषी एकादशी
    8. शयन एकादशी
    इन नामों का उपयोग विभिन्न क्षेत्रों और धार्मिक ग्रंथों में होता है, लेकिन इन सभी का एक ही महत्व है, जो भगवान विष्णु की शयन की स्थिति और उनकी पूजा से संबंधित है।
    निष्कर्ष
    देवशयनी एकादशी का व्रत और पूजा करने से भगवान विष्णु की विशेष कृपा प्राप्त होती है। यह व्रत सभी पापों से मुक्ति दिलाने वाला है और व्यक्ति को मोक्ष की प्राप्ति कराता है। विधिपूर्वक और श्रद्धापूर्वक इस व्रत का पालन करने से जीवन में सुख-शांति और समृद्धि बनी रहती है।
    देवशयनी एकादशी पर क्या न करें?
    मास-मदिरा- देवशयनी एकादशी के दिन भूलकर भी मास-मदिरा का सेवन नहीं करना चाहिए। इस दिन तामसिक भोजन का सेवन करने से भगवान विष्णु नाराज हो सकते हैं।
    तुलसी की पत्तियां- तुलसी की पत्तियां भगवान श्री हरि विष्णु को बेहद प्रिय हैं, जिनके बिना भगवान को भोग नहीं लगाया जाता है। इसलिए देवशयनी एकादशी के दिन भूलकर भी तुलसी की पत्तियों को न तो स्पर्श करना चाहिए और न ही इन्हें तोड़ना चाहिए। तुलसी की पत्तियां तोड़ने से मां लक्ष्मी नाराज हो सकती हैं।
    चावल- देवशयनी एकादशी पर चावल का सेवन बिल्कुल भी नहीं करना चाहिए। मान्यता है इस दिन चावल का सेवन करने से दोष लगता है।
    देवशयनी एकादशी सबसे शुभ दिनों में से एक है जब बड़ी संख्या में हिंदू भक्त भगवान विष्णु की अगाध भक्ति और समर्पण के साथ पूजा करते हैं। इस दिन का हिंदू धर्म में बहुत बड़ा धार्मिक और आध्यात्मिक महत्व है।

Комментарии • 3

  • @DharmikKatha13
    @DharmikKatha13  2 месяца назад +2

    llॐ नमो भगवते वासुदेवायll

  • @seematuli7385
    @seematuli7385 2 месяца назад +1

    Jai shri hari

    • @DharmikKatha13
      @DharmikKatha13  2 месяца назад +1

      विष्णु शान्ताकारं मंत्र ॥
      शान्ताकारं भुजंगशयनं पद्मनाभं सुरेशं
      विश्वाधारं गगन सदृशं मेघवर्ण शुभांगम् ।
      लक्ष्मीकांत कमलनयनं योगिभिर्ध्यानगम्यं
      वन्दे विष्णु भवभयहरं सर्व लौकेक नाथम्