ऋषि कश्यप वंशावली | rishi kashyap vanshavali

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  • Опубликовано: 28 ноя 2024
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    Acharya Bharat Bhushan Gaur
    कश्यप कुल की कई शाखाएं हैं। पिप्पल, नीम, कदंब, कर्दम, केम, केन, बड़, सूर्यवंशी, चंद्रवंशी, नाग आदि उपनाम या गोत्र हिन्दू समाज में पाए जाते हैं। ये सभी मरीचिवंशी है। यहां प्रमुख शाखाओं की बात करते हैं। ऋषि कश्यप ब्रह्माजी के पुत्र मरीचि के विद्वान पुत्र थे। मरीचि के दूसरे पुत्र ऋषि अत्रि थे जिनसे अत्रिवंश चला। ऋषि मरीचि पहले मन्वंतर के पहले सप्तऋषियों की सूची के पहले ऋषि हैं। ये दक्ष के दामाद और शंकर के साढू थे। इनकी पत्नी दक्षकन्या संभूति थी। इनकी 2 और पत्नियां थी- कला और उर्णा। संभवतः उर्णा को ही धर्मव्रता भी कहा जाता है। दक्ष के यज्ञ में मरीचि ने भी शंकर का अपमान किया था। इस पर शंकर ने इन्हें भस्म कर डाला था। इन्होंने ही भृगु को दंडनीति की शिक्षा दी है। ये सुमेरू के एक शिखर पर निवास करते हैं और महाभारत में इन्हें चित्रशिखंडी कहा गया है। इन्हीं के पुत्र थे कश्यप ऋषि।
    मरीचि ने कला नाम की स्त्री से विवाह किया और उनसे उन्हें कश्यप नामक एक पुत्र मिला। कश्यप की माता 'कला' कर्दम ऋषि की पुत्री और ऋषि कपिलदेव की बहन थी। मान्यता के अनुसार कश्यप को ही अरिष्टनेमी के नाम से भी जाना जाता है। सुर और असुरों के मूल पुरुष ऋषि कश्यप का आश्रम मेरू पर्वत के शिखर पर था। आज भी सुर और असुरों की जाति भारतवर्ष में विद्यमान है।
    ब्रह्मा के पोते ऋषि कश्यप ने ब्रह्मा के पुत्र दक्ष की 13 कन्याओं से विवाह किया था। श्रीमद्भागवत के अनुसार दक्ष प्रजापति ने अपनी 60 कन्याओं में से 10 कन्याओं का विवाह धर्म के साथ, 13 कन्याओं का विवाह ऋषि कश्यप के साथ, 27 कन्याओं का विवाह चन्द्रमा के साथ, 2 कन्याओं का विवाह भूत के साथ, 2 कन्याओं का विवाह अंगिरा के साथ, 2 कन्याओं का विवाह कृशाश्व के साथ किया था। शेष 4 कन्याओं (विनीता, कद्रू, पतंगी और यामिनी) का विवाह तार्ध्य कश्यप के हुआ था।
    कश्यप की पत्नियां : इस प्रकार ऋषि कश्यप की
    अदिति, दिति, दनु, काष्ठा, अरिष्टा, सुरसा, इला, मुनि, क्रोधवशा, ताम्रा, सुरभि, सुरसा, तिमि, विनीता, कद्रू, पतांगी और यामिनी आदि पत्नियां बनीं।
    1. अदिति : पुराणों के अनुसार कश्यप ने अपनी पत्नी
    अदिति के गर्भ से 12 आदित्यों को जन्म दिया। माना जाता है कि चाक्षुष मन्वंतर काल में तुषित नामक 12 श्रेष्ठगणों ने 12 आदित्यों के रूप में जन्म लिया, जो कि इस प्रकार थे- विवस्वान्, अर्यमा, पूषा, त्वष्टा, सविता, भग, धाता, विधाता, वरुण, मित्र, इन्द्र और त्रिविक्रम (भगवान वामन)। ऋषि कश्यप के पुत्र विस्वान से वैवस्वत मनु का जन्म हुआ। अदिति के पुत्र ही देव और सुर कहलाए। इनके राजा इन्द्र थे।
    वैवस्वत मनु के 10 पुत्र थे- 1. इल, 2. इक्ष्वाकु, 3.
    कुशनाम, 4. अरिष्ट, 5. धृष्ट, 6. नरिष्यंत, 7. करुष, 8. महाबली, 9. शर्याति और 10. पृषध। राजा इक्ष्वाकु के कुल में जैन और हिन्दू धर्म के महान तीर्थंकर, भगवान, राजा, साधु-महात्मा और सृजनकारों का जन्म हुआ है।
    वैवस्वत मनु से ही सूर्यवंश की स्थापना हुई। मनु के दसों पुत्रों का वंश अलग-अलग चला और सभी की रोचक जीवन गाथाएं हैं। मनु ने अपने ज्येष्ठ पुत्र इल को राज्य पर अभिषिक्त किया और वे स्वयं तप के लिए वन को चले गए। इक्ष्वाकु ने अपना अलग राज्य बसाया। भगवान राम इसी कुल में जन्मे थे।
    इक्ष्वाकु का वंश : मनु के दूसरे पुत्र इक्ष्वाकु के 3 पुत्र
    हुए- 1. कुक्षि, 2. निमि और 3. दण्डक। इक्ष्वाकु के प्रथम पुत्र कुक्षि के पुत्र का नाम विकुक्षि था। विकुक्षि के पुत्र बाण और बाण के पुत्र अनरण्य हुए। अनरण्य से पृथु और पृथु और पृथु से त्रिशंकु का जन्म हुआ। त्रिशंकु के पुत्र धुंधुमार हुए। धुंधुमार के पुत्र का नाम युवनाश्व था। युवनाश्व के पुत्र मान्धाता हुए और मान्धाता से सुसन्धि का जन्म हुआ। सुसन्धि के 2 पुत्र हुए- ध्रुवसंधि एवं प्रसेनजित। ध्रुवसंधि के पुत्र भरत हुए।
    कुक्षि के कुल में भरत से आगे चलकर सगर, भागीरथ, रघु, अम्बरीष, ययाति, नाभाग, दशरथ और भगवान राम हुए। उक्त सभी ने अयोध्या पर राज्य किया। पहले अयोध्या भारतवर्ष की राजधानी हुआ करती थी, बाद में हस्तिनापुर हो गई। इक्ष्वाकु के दूसरे पुत्र निमि मिथिला के राजा थे। इसी इक्ष्वाकु वंश में बहुत आगे चलकर राजा जनक हुए। राजा निमि के गुरु थे- ऋषि वसिष्ठ। निमि जैन धर्म के 21 वें तीर्थंकर बने।
    2. दिति : कश्यप ऋषि ने दिति के गर्भ से हिरण्यकश्यप और हिरण्याक्ष नामक 2 पुत्र एवं सिंहिका नामक 1 पुत्री को जन्म दिया। श्रीमद्भागवत् के अनुसार इन 3 संतानों के अलावा दिति के गर्भ से कश्यप के 49 अन्य पुत्रों का जन्म भी हुआ, जो कि मरुन्दण कहलाए। कश्यप के ये पुत्र निःसंतान रहे जबकि हिरण्यकश्यप के 4 पुत्र थे- अनुहल्लाद, हल्लाद, भक्त प्रह्लाद और संहल्लाद। दिति के पुत्र ही दैत्य और असुर कहलाए। इनके काल में महान विरोचन और राजा बलि हुए। वर्तमान में अधिकतर दलित लोग खुद को दिति के कुल का मानते हैं, जोकि पूर्णतः सही नहीं है। सभी के अलग अलग है।
    3. दनु : ऋषि कश्यप को उनकी पत्नी दनु के गर्भ से
    द्विमुर्धा, शम्बर, अरिष्ट, हयग्रीव, विभावसु, अरुण, अनुतापन, धूम्रकेश, विरुपाक्ष, दुर्जय, अयोमुख, शंकुशिरा, कपिल, शंकर, एकचक्र, महाबाहु, तारक, महाबल, स्वर्भानु, वृषपर्वा, महाबली पुलोम और विप्रचिति आदि 61 महान पुत्रों की प्राप्ति हुई।
    4. अन्य पत्नियां : रानी काष्ठा से घोड़े आदि एक खुर
    वाले पशु उत्पन्न हुए। पत्नी अरिष्टा से गंधर्व पैदा हुए। सुरसा नामक रानी से यातुधान (राक्षस) उत्पन्न हुए। इला से वृक्ष, लता आदि पृथ्वी पर उत्पन्न होने वाली वनस्पतियों का जन्म हुआ। मुनि के गर्भ से अप्सराएं जन्मीं। कश्यप की क्रोधवशा नामक रानी ने सांप, बिच्छु आदि विषैले जंतु पैदा किए।
    ताम्रा ने बाज, गिद्ध आदि शिकारी पक्षियों को अपनी संतान के रूप में जन्म दिया। सुरभि ने भैंस, गाय तथा दो खुर वाले पशुओं की उत्पत्ति की। रानी सरसा ने बाघ आदि हिंसक जीवों को पैदा किया।

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