महर्षि मेँहीँ महापरिनिर्वाण दिवस | एक पावन झलक | सद्गुरु ज्ञान महोत्सव | Maharshi Mehi | Santmat

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  • Опубликовано: 6 окт 2024
  • 🚩महर्षि मेँहीँ महापरिनिर्वाण दिवस (सद्गुरु ज्ञान-महोत्सव), दिनांक- 31 मई 2022,
    स्थान- महर्षि मेँहीँ धाम, मणियारपुर, मंदार पर्वत, बौंसी, जिला- बाँका, बिहार।
    📙 महर्षि मेँहीँ परमहंस जी महाराज की जीवनी 📙
    महर्षि मेँहीँ परमहंस जी महाराज का अवतरण विक्रमी संवत् 1942 के वैशाख शुक्ल पक्ष की चतुर्दशी तिथि तदनुसार 28 अप्रैल , सन् 1885 ई० , मंगलवार को बिहार राज्यान्तर्गत सहरसा जिले ( अब मधेपुरा जिले ) के उदाकिशुनगंज थाने के खोखशी श्याम ( मझुआ ) नामक ग्राम में अपने नाना के यहाँ हुआ था । जन्म से ही इनके सिर पर सात जटाएँ थीं , जो प्रतिदिन कंघी से सुलझा दिये जाने पर भी दूसरे दिन प्रातःकाल पुनः अपने - आप सात - की - सात जटाओं में उलझ जाती थीं । लोगों ने समझा कि अवश्य ही किन्हीं योगी - महात्मा का जन्म हुआ है ।
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    📙सन् 1904 ई० की 3 जुलाई से प्रारंभ हो रही एन्ट्रेस के फर्स्ट क्लास ( आधुनिक मैट्रिक ) की परीक्षा में ये सम्मिलित हुए । दूसरे दिन की अंगरेजी परीक्षा के प्रश्नपत्र के पहले प्रश्न में ' Builders ' ( बिल्डर्स ) नामक कविता की जिन प्रारंभिक चार पंक्तियों को उद्धृत करके उनकी व्याख्या अंगरेजी में लिखने का निर्देश किया गया था , वे इस प्रकार दो For the structure that we raise , Time is with material's field . Our todays and yesterdays , Are the blocks with which we build . इन पंक्तियों को उद्धृत करके इनकी व्याख्या लिखते - लिखते इनमें वैराग्य की भावना इतनी प्रबल हो गयी कि इन्होंने मानस की यह अर्धाली "देह घरे कर यहि फल भाई । भजिय राम सब काम बिहाई ॥ " लिखकर परीक्षा - भवन का परित्याग कर दिया और यहीं इनकी स्कूली शिक्षा का भी अन्त हो गया । इन्होंने आजीवन ब्रह्मचारी रहकर ईश्वर की भक्ति में अपना समस्त जीवन बिता देने का संकल्प किया। इन्होंने 1909 ई 1909० में बाबा देवी साहब - द्वारा निर्दिष्ट दृष्टियोग की विधि भागलपुर नगर के मायागंज - निवासी बाबू श्रीराजेन्द्रनाथ सिंहजी से प्राप्त की , तो इन्हें बड़ा सहारा मिला । उसी वर्ष विजया दशमी के शुभ अवसर पर श्रीराजेन्द्रनाथ सिंहजी ने भागलपुर में ही बाबा देवी साहब से इनकी भेंट कराकर उनके हाथ में इनका हाथ थमा दिया । बाबा देवी साहब - जैसे महान् सन्त को पाकर ये निहाल - से हो गये। # ईश्वर प्राप्ति और नादानुसंधान साधना # सन् 1912 ई ० में बाबा देवी साहब ने स्वेच्छा से इन्हें शब्दयोग की विधि बतलाते हुए कहा कि अभी तुम दस वर्ष तक केवल दृष्टियोग का ही अभ्यास करते रहो । दृष्टियोग में पूर्ण हो जाने पर ही शब्दयोग का अभ्यास करना । शब्दयोग की विधि अभी मैंने तुम्हें इसलिए बता दी कि यह तुम्हारी जानकारी में रहे। सन् 1919 ई ० में सिकलीगढ़ धरहरा में इन्होंने जमीन के नीचे एक ध्यान - कूप बनाया और उसमें लगातार तीन महीने तक अकेले रहकर तपस्यापूर्ण साधना की , जिसमें इनका शरीर अत्यन्त क्षीण हो गया । सन् 1933-34 ई ० में इन्होंने पूर्ण तत्परता के साथ 18 महीने तक भागलपुर नगर के मायागंज महल्ले के पास गंगा - तट पर अवस्थित कुप्पाघाट की गुफा में शब्दयोग की गंभीर साधना की , फलस्वरूप ये आत्मसाक्षात्कार करने में सफल हो गये । अब इनका ध्यान सन्तमत - सत्संग के प्रचार - प्रसार की ओर विशेष रूप से गया । इन्होंने सत्संग की एक विशेष नियमावली तैयार की । फिर क्या था ? जिलास्तर पर दो दिनों के लिए और अखिल भारतीय स्तर पर तीन दिनों के लिए जगह - जगह वार्षिक सत्संग - अधिवेशन होने लगे । ढाई - तीन सौ से अधिक सत्संग - आश्रम देश - विदेशों में स्थापित हो चुके हैं । संसाररूपी रंगमंच पर आकर प्रत्येक प्राणी अपनी भूमिका अदा करके चल देता है । अध्यात्म - गगन के यह महान् सूर्य भी 8 जून , सन् 1986 ई० , रविवार को अपने जीवन के 101 वर्ष पूरे करके हमारी आँखों से ओझल हो ब्रह्मलीन हो गये।
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