हिमाचल का सबसे रहस्मयी मंदिर | Baijnath Shiv Temple | आज भी यंहा रावण का पुतला नहीं जलाया जाता |
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- Опубликовано: 17 дек 2024
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हिमाचल प्रदेश जिसको देव भूमि के नाम से भी जाना जाता है जिसकी बजह यंहा स्थित कई ऐतिहासिक और रहस्मयी धार्मिक स्थान है, जो आज भी अपने अंदर कई पौराणिक कथाओ और रहस्यों को समाए हुए है। ऐसा ही एक ऐतिहासिक धार्मिक स्थान है जो महाभारत काल से सम्वन्धित है "बैजनाथ शिव मंदिर" जो हिमाचल प्रदेश के काँगड़ा जिले में पठानकोट मंडी राष्ट्रीय राजमार्ग के साथ ही स्थित है। यह मंदिर भगवान शिव को समर्पित है और इसे उत्तर भारत के सबसे प्राचीन और पवित्र शिव मंदिरों में से एक माना जाता है। यहाँ भगवान शिव की आराधना "वेदों के देवता" के रूप में होती है, और इसे धार्मिक और ऐतिहासिक दृष्टि से अत्यंत महत्वपूर्ण माना जाता है। यह मंदिर शिव के बारह ज्योतिर्लिंगों में से एक है।
विनवा नदी जो इस मंदिर के किनारे बहती है इस धार्मिक स्थान को और भी आकर्षित और खूबसूरत बना देती है मानो जैसे प्रकृति ने इस स्थान को इस धार्मिक स्थान के लिए ही बनाया हो, साथ ही बर्फ से ढके धौलाधार के ऊँचे ऊँचे खूबसूरत पहाड़ इसकी सुंदरता को चार चाँद लगा देते है,
इस ऐतिहासिक बैजनाथ मंदिर का निर्माण बारह सौ चार ईस्वी में दो स्थानीय व्यापारियों, आहुक और मन्हुक ने करवाया था। आज भी इस मंदिर में एक शिलालेख भी है जो इसके निर्माण की तारीख और इतिहास की पुष्टि करता है। ऐसा माना जाता है कि इस पवित्र स्थान पर रावण ने भगवान शिव की पूजा की थी और उनसे अमरता का वरदान प्राप्त किया था। बैजनाथ का उल्लेख पौराणिक ग्रंथों में आज भी मिलता है। आज भी इस स्थान में रावण का पुतला नहीं जलाया जाता ना ही यंहा दशहरा मनाया जाता है। ऐसा इस लिए क्युकी कहा जाता है की कंही न कही उनकी इस स्थान में विराजमान होने में रावण का महत्वपूर्ण योगदान रहा है, रावण ने कई हजार साल तपस्या कर उनसे अमरता का बरदान प्राप्त किया था।
ऐसा भी माना जाता है कि इस धार्मिक स्थान का संबंध त्रेता युग से है। कथा के अनुसार, यहां भगवान शिव ने रावण को अमरता का वरदान देने के लिए एक लिंगम स्थापित किया था। इसी लिंगम को "वेद व्यास" और "बैजनाथ" नाम से जाना जाता है, साथ ही मंदिर के अंदर शिवलिंग अर्धनारेश्वर है जो शिव और शक्ति रूप में स्थापित है।
पौराणिक कथाओ के अनुसार कहा जाता है की रावण भगवान् शिव के बहुत बड़े भक्त थे, उन्होंने कई सालो की पूजा और तपस्या के बाद भगवान् शिव को प्रसन्न कर उन्हें लंका में स्थापित होने का वरदान माँगा था, उन्होंने अपने शीश काट कर शिव भगवान् अर्पण किये थे इसी लिए इस स्थान को रावण की तपोस्थली भी कहा जाता है। जिसके बाद भगवान शिव ने रावण की कई सालो की कठोर पूजा और तपस्या से खुश होकर अपना एक अंश शिवलिंग के रूप में रावण को दिया और कहा की इस शिवलिंग को जंहा भी रखोगे में वहीं शिवलिंग के रूप में स्थापित हो जाएगा और लोग मेरे दर्शन शिवलिंग के रूप में कर पाएंगे। ऐसे में जब रावण शिलिंग को लेकर लंका की और प्रस्थान कर रहे थे तो रास्ते में उन्होंने विश्राम करने के लिए शिलिंग एक भेड़पालक को दिया, एक प्रहर बीत जाने के बाद भी जब रावण अपनी नींद से नहीं उठा तो गड़रिये ने भी थक कर शिवलिंग को उसी स्थान में नीचे रख दिया, जिसके बाद शिवलिंग उसी स्थान में स्थापित हो गया, रावण ने बहुत कोशिश की मगर यह शिवलिंग अपने स्थान से नहीं जिसके बाद ही यह शिलिंग आज तक इस स्थान में विराजमान है।
यह मंदिर कई युद्ध और कई शाशन काल देख चूका है, आज भी यह मंदिर अपनी कलाकृति के लिए देश भर में जाना जाता है, इस मंदिर की यह नागर शैली की वास्तुकला का एक उत्कृष्ट उदाहरण है। मंदिर की दीवारों पर भगवान शिव, विष्णु, गणेश और अन्य देवी-देवताओं की सुंदर मूर्तियाँ उकेरी गई हैं। मंदिर के शिखर पर intricate carvings और मूर्तियाँ हैं, जो हिमालय की धार्मिक धरोहर की झलक दिखाती हैं।
मंदिर का मुख्य गर्भगृह एक शिवलिंग को समर्पित है, जिसे "वैद्यनाथ" या "बैजनाथ" कहा जाता है।आज भी कई हजार सालो से इस धार्मिक स्थान में महाशिवरात्रि का पर्व बड़े ही धूमधाम से मनाया जाता है, जिसमें हजारों श्रद्धालु देशभर से आते हैं।
इस मंदिर की खास बात यह है की आज भी आपको इस मंदिर के क्षेत्र के आस पास कोई भी आभूषण की दूकान नहीं मिलेगी, पौराणिक कथाओ के अनुसार कहा जाता है की जो भी बैजनाथ में आभूषण की दूकान खोलता है उस पर दुखो का पहाड़ टूट जाता है, लगभग 40 वर्ष पहले कुछ लोगो ने इस स्थान में आभूषण की दूकान खोली थी, जिसके बाद उनकी दूकान जल गयी, साथ ही उनके परिवार में मानो जैसे दुखो का पहाड़ टूट गया हो, कहा जाता है की उनमे से कई लोगो की मृत्यु भी हो गयी थी जिसके बाद आज तक यंहा कोई भी आभूषण की दूकान नहीं खोलता।
यह मंदिर इक्यावन फुट लम्बा और इकतीस फुट छोड़ा है, प्राचीन काल में यंहा एक दुर्लभ नगर और तराशिवालय का वर्णन, जालंधर पीठ, और नीलतन्त्र जैसी पुस्तकों में भी आया है, इस मंदिर को लेकर यह भी कहा जाता है की इस स्थान में एक बहुत बड़ा नगर और विशाल मंदिर था जिसको महाभारत काल में पांडवो ने ही बनवाया था, इसी क्षेत्र से चीनी तुर्कस्थान से हस्तिनापुर मार्ग भी हुआ करता था, साथ ही यह भी कहा जाता है की की नगर के एक कौन विनवा नदी के किनारे एक बड़ी सेना की छावनी भी हुआ करती थी, जिसे खनखेत्र कहा जाता है।
Har har mahadev om namah shivay 🙏🙏🙏🙏🙏🙏🙏
हर हर महादेव🙏🙏🙏🙏
Jai Baba Vishwanath 🎉🎉🎉🎉
Jai shree Baijnath Mahadev ji ki jai ho
Har har mahadev
This is too good brother 🔥👌♥️
Very informative video❤🎉
Khoop..sundar....🕉
❤
Jai ho
JAI HO BABA BAIJNATH JI PRABHU JI KI JAI 🕉️🕉️🕉️💐🙏🚩🪔🇮🇳
હર હર મહાદેવ ❤
Jai shri ardhnarishwar😊
Jai bholenath
❤❤❤
Main bhi is mandir main jaana chahta hoon❤❤❤🕉️🕉️🕉️⛳⛳🙏🙏
❤❤❤❤🎉🎉🎉
Nyc bro
Nice Information ❤
🙏🙏🙏🙏
❤🎉❤🎉❤
Please,make video on Baba Balak Nath Jee temple Deotsidh.
baijnath deoghar wala jyotirling hai, aur jo kissa aap ravan se sabandhit suna rahe wo deoghar hai
❤❤❤❤🎉🎉🎉🎉🎉🎉
हर हर महादेव🙏❤️❤️
Jai ho
Jai bhole nath