हर हर महादेव सभी हिंदू भाई ध्यान दें। यदि आप चाहते हैं कि संस्था आपके लिए शास्त्रों में शोध अनुसंधान करके धर्म के गंभीर विषयों को आपके समक्ष रखे तो आप कृपया संस्था को सहयोग करें। संस्था को पुस्तकालय निर्माण के लिए धन की बहुत आवश्यकता है। संस्था को दान करने पर 80जी के तहत आप टैक्स में छूट भी पा सकते हैं। Name- JAGADGURU SHANKARACHARYA SANATANDHARMA SANRAKSHAN NYAS PhonePe, GooglePay, Paytm UPI No. 8439945763 किसी भी जानकारी के लिए संस्था के इस नंबर पर संपर्क करें। 8439945762
सनातन का मूल वर्णव्यवस्था है। जिस धर्म मे आधार को निकाल दिया जाता है वह धर्म टिक नही सकता ना कभी सनातन हो सकता। जब वर्ण व्यवस्था नहीं होंगी और सनातन और म्लेछ धर्म औरविधर्मी मे अंतर क्या। मूर्ति पूजा तो सनातन मे मूर्त से अमूर्त मे जाने का मार्ग है। मूर्ति रक्षा सनातन है भी नही। सनातन जितना महत्व सत का उतना ही वर्ण है। जाति जन्म से होती है कर्म से नही राजनीति की रोटियाँ के लिए विधर्मियों ने सत्यानाश किया हुआ है। एक मनुष्य एक दिन मे शुभ से शाम तक सभी वर्ण के कार्य करता है तो क्या उसकी जाति क्षण बदलते रहे मुर्ख लोगो। क्या इन आर्य समाज के पास इतना भी विवेक नहीं। आर्य समाज, जैन, सिख, और बौद्ध, इस्कॉन् की तरह खोखला है। और अधर्म के सिवा कुछ नही। गुण और मर्यादा जाती से आती है कर्म से नहीं। एक शुद्र कितना विद्वान क्यों न हो उसके अंदर द्विज के गुण नहीं पैदा हो सकते। ना वो धर्म की पालन ही कर सकता है उसका धर्म बस ढकोसला होगा जैसे आज की RSS -BJP, कांगेस और अन्य सभी दल।
ऋग्वेद सबसे प्राचीन माना जाता है। ऋग्वेद के तीसरा मण्डल ऋषि विश्वामित्र ने रचा है विश्वा मित्र जन्म से क्षत्रिय थे पर कर्म से ब्राह्मण। वे भी अपनी जाती नही बदल सके थे। उन्हे क्षत्रिय ही वेद मानते है। महाभारत मे कृपाचार्य, द्रोन, अश्वथामा, कर्म से क्षत्रिय थे पर उन्हें क्षत्रिय न मान कर ब्राह्मण ही माना गया। परशुराम जी भी इसका उदाहरण है।।। श्लोक " जन्म जयते शुद्र------" द्विजो के संधर्भ मे है। एक द्विज का जब तक उप नयन संसकार नही होता उस शूद्र कहते है। क्युकी शुद्र का उप नयन नहीं होता जो शुद्र करता है या जो द्विज करवाता है दोनों अपने पितरो को नर्क का भागी बनाते है
@@ankitjat2575 द्वीज माने जीसका दो बार जन्म हुआ हो यानी उपनयन के पहले का शूद्र जन्म और उपनयन के बाद दुसरा जन्म ब्राम्हण होता है यानी संस्कारीत ब्राम्हण को द्वीज कहा जाता है तो आज आप कीसी भी शूद्र वर्ण के व्यक्तिका उपनयन नही कर सकते क्योंकी 3 पीढ़ीयां बीना उपनयन कीए चली गई तो चौथी पीढ़ी के व्यक्ति को उपनयन का अधीकार नही होता कारण; 3 पीढ़ी के बाद सावित्रीछेदन होता है इस लीए आज के शूद्र समाज को उपनयन करने का तनीक भी शास्त्रीय अधीकार नहिं है क्योंकी इस समाज ने कई शतकों पुर्व ही उपनयन परंपरा का हनन कर दिया है तो आज शूद्र समाज द्वीज नही बन सकता लेकीन ब्राह्मण समाज ने उपनयन का त्याग नही कीया आज भी ब्राम्हणों की 8 वर्ष की आयू में ही उपनयन हो जाता है वक्त पर परंपरागत रुप से उपनयन करना उपनयन होते ही उस एक दीन ही सही लेकीन भिक्षा मांगना गुरुघृहे वेदाध्ययन करना स्नान संध्या करना इन कर्मों के कारण ब्राम्हण आज भी ब्राह्मण ही है ब्राम्हण ने सेवक का कार्य करने से हम उसे शूद्र नही मान सकते क्यों की वह संस्कारीत उपनीत है पुजा अनुष्ठान उस ब्राम्हण से नहिं करवाना चाहीए जो ब्राह्मण मांसाहारी होक्यों की मात्र मांसाहार ही वह क्रीया है जो उपनय संध्यावंदन आदी ब्राह्मण कर्मों का हनन करके ब्राह्मण को संस्कार रहीत बनाता है मांसाहार करने मात्र से उपनना दी सभी ब्राम्हण संस्कार समाप्त हो जाते है जय माँ काली
अनार्य दयानन्द समाज के 2 नियम 👉 अपने आचरण को शास्त्रानुकूल मत करो शास्त्रों को खींचतान करके अपने अनुकूल बनाओ। 👉 सिर से लेकर पांव तक जोर लगाने के बाद भी जब उत्तर ना बन पड़े तो धर्मग्रंथों को ही मिलावट कहकर भाग जाओ और जब वही बात अन्य किसी ग्रंथ में मिले तो उसे भी मिलावट बोलकर भाग जाओ
@@धर्म-अधर्म इस क्रम में दया समाजी सबसे आगे हैं ! और अब तो दया के चेले चालाकी में दया से भी आगे निकल चुके हैं( जैसा कि धर्मरक्षक पण्डित कालूराम शास्त्री जी ने पहले ही अपनी पुस्तक आर्यसमाज की मौत में लिखा था ) ! उदाहरण : दया ने अपनी पुस्तक अंधकार में मनुस्मृति के कईं श्लोकों को मूल माना है परंतु जीवन पर्यंत दूसरों के लिए गड्ढा खोदने वाले दया , के चेले सुरेन्द्र कुमार झज्जरवाला ने अपनी नवीन कांट छांट मनुस्मृति में (मनुस्मृति के आधे से अधिक श्लोकों को उड़ाने के बाद) दया द्वारा प्रमाण स्वरूप अपनी पुस्तक "अंधकार" में उद्धृत किए गए श्लोकों को भी प्रक्षिप्त घोषित कर अपनी विशुद्ध मनुस्मृति से निकाल बाहर किया है ! कुछ चालाकियों के नमूने 1_ प्रत्येक वह श्लोक मिलावटी है जो हमारी मान्यता के विरुद्ध है ! 2_ दया के जन्म से पूर्व भारत भूमि पर कोई वैदिक नहीं था ! क्योंकि किसी को वेदभाष्य करना आता ही नहीं था 3_ वेद का सही भाष्य अंग्रेजी शासनकाल में दया द्वारा किया गया और आज उसके चेलों द्वारा किया जा रहा है 3_ जिन ब्राह्मणों ने हम तक वेद पहुंचाया उन्हें पंडा पंडा कहकर दिन रात अपमानित करो उनके द्वारा सौंपे गए वेद को तो सही मानो परंतु आमजन का उन्हीं ब्राह्मण पर विश्वास और शास्त्रों को मिलावट मिलावट चिल्लाकर धर्म शास्त्रों को शंका के घेरे में लाकर एक आम आदमी के ह्रदय से शास्त्र निष्ठा ही समाप्त कर दो। 4_ क्योंकि कोई भी व्यक्ति तब तक नास्तिक नहीं हो सकता जब तक उसके ह्रदय में अपने धर्मग्रंथों के प्रति सम्मान है और संदेह होने पर वह उसका अर्थ आचार्यों से पूछता है और उनका सम्मान करता है! जब उसके मन में अपने ही शास्त्रों और आचार्यों के प्रति अविश्वास उत्पन्न हो जायेगा फिर उसे भक्ति मार्ग से हटाकर नास्तिक और झगड़ालू बना दो ! 5_ दिनरात पुराणों को उल्टा सीधा बोलो परंतु जब वर्ण व्यवस्था पर विरोधियों से बात करनी हो तो उसी पुराण की चौखट पर सर पटक कर जन्मना जायते शूद्र का राग अलापना शुरू कर दो!
आर्य समाजी से भी बड़े अपराधी तो वो है जो अपने वृद्ध और असहाय माता-पिता को वृंदावन में भीख मांगने के लिए छोड़ आते है। और फिर उनकी मृत्यु के बाद गया जाते है, श्राद्ध करने। आर्य समाजी से भी बड़ा अपराधी वो है जो मंदिर में मूर्तियों को भोग लगाते है और अपने माँ-बाप को पेट भर भोजन भी नही कराते । और मारपीट भी करते है। श्री अनिरुद्धाचार्य जी के आश्रम में जितने भी वृद्ध और असहाय माताएं आती है। वो न तो आर्य समाजी है और न तो उनके बच्चों का आर्य समाज से कोई संबंध है। वे सभी मूर्ति पूजक ही है। आर्य समाजी से भी बड़े अपराधी वो है जो प्रत्येक मंगलवार को हनुमान जी के मंदिर तो जाते है लेकिन हनुमान जी की तरह न तो बुद्धिमान, बलवान , ब्रह्मचर्य का पालन करने वाला और वेदज्ञानी बनने की कोशिश करते है बल्कि व्यभिचारी आचरण वाले होते है। वो तो और भी दुष्ट है जो हमारे योगिराज श्रीकृष्ण को चोर और व्यभिचारी बताकर स्वयं भी उसी काम को करने गौरवान्वित महसूस करते है। शैव मत वाले वैष्णव मत के खिलाफ बकते है और वैष्णव वाले शैव मत के खिलाफ बकते है। इससे ज्यादे क्या बताऊंगा नहीं तो गैर आर्यसमाजियों को (तुम्हारे अनुसार) रात को नींद भी नही आ पाएगी। कम से कम दयानंद सरस्वती का सच्चा सैनिक तो ऐसा नही होता है। 👉दयानंद सरस्वती का जन्म भी ब्राह्मण कुल में हुआ था और कर्म से भी ब्राह्मण थे।💪 👉ब्राह्मण चाहे जैसा भी हो पूजनीय होता है, ऐसा पौराणिक मान्यता है।🤞
Aapne aap ko Hindu kehne wale sharm krna chahiye Kisi bhi granth me Hindu naam nhi hai Only Arya hai Ved ramayan Mahabharat aadi aadi Pehle apne dharm ghranth Ved ke baare me jano uske baad kutark karna
Ine guru ghantalon ke Karan yah hamara dharm luft hone ke kagar per hai kyunki ram krishna ke chitra ko nahin chaitra ki puja karni chahie photo keval smaran ke liye rahata Hai yah hamare mahapurush hai isliye charitra se prernay Lena chahie
सनातन का मूल वर्णव्यवस्था है। जिस धर्म मे आधार को निकाल दिया जाता है वह धर्म टिक नही सकता ना कभी सनातन हो सकता। जब वर्ण व्यवस्था नहीं होंगी और सनातन और म्लेछ धर्म औरविधर्मी मे अंतर क्या। मूर्ति पूजा तो सनातन मे मूर्त से अमूर्त मे जाने का मार्ग है। मूर्ति रक्षा सनातन है भी नही। सनातन जितना महत्व सत का उतना ही वर्ण है। जाति जन्म से होती है कर्म से नही राजनीति की रोटियाँ के लिए विधर्मियों ने सत्यानाश किया हुआ है। एक मनुष्य एक दिन मे शुभ से शाम तक सभी वर्ण के कार्य करता है तो क्या उसकी जाति क्षण बदलते रहे मुर्ख लोगो। क्या इन आर्य समाज के पास इतना भी विवेक नहीं। आर्य समाज, जैन, सिख, और बौद्ध, इस्कॉन् की तरह खोखला है। और अधर्म के सिवा कुछ नही। गुण और मर्यादा जाती से आती है कर्म से नहीं। एक शुद्र कितना विद्वान क्यों न हो उसके अंदर द्विज के गुण नहीं पैदा हो सकते। ना वो धर्म की पालन ही कर सकता है उसका धर्म बस ढकोसला होगा जैसे आज की RSS -BJP, कांगेस और अन्य सभी दल।
Arre nastik mayawadi 😂 , jaake Sayan ka kapol kalpit bhashya utha , uska Rigveda bhashya ka Mandal 6 , Sukt 46 , Mantra 3 - Indra ko 1000 ling waala bola 😂 . Sayan ka Rigveda bhashya ka Mandal 7 , Sukt 33 , Mantra 11 - Mitra aur varun ne urwashi ko dekhkar apna virya Skahlit kar diya aur usse Vasisht paida hogaye 😂 Sayan ka Rigveda bhashya Mandal 6 , sukt 27 mantra 8 padhle - Ladkiya daan mein di jaa rahi hai , waah 🤣 kya bhed Bhashya kiya hai naastik mayawadio ne 😂 . Jaake Mahidar aur Karpatri ka Yajurveda 23/19-21 ka bhashya padhle 😂 , ghore ka ling manushya stree ki yoni mein , lol 🤣 Saath hi tune kaha ki Arya Samaji aadha ved nahi maante , arre pop aadmi 😂 , Ashwalayan Grihyasutram 3/3/1 aur Taittreya Aranyak 2/9 mein Brahmin Granth ko Puran bola hai ! Puran aur Ved sabd dono virodha bhaasi sabd hai , toh Brahmin Granth ved kaise hogaya !? Shatpath Brahmin 1/4/1/35 mein kaha ki Shakha Samhitao ka paath karna yagya ki heenta hai kyoki wo manushya krit hai , isiliye keval Ishwarokt Ved Mantra Samhita ka paath karo ! Toh shakha samhita ved kaise hogaya !? Issi prakar Nirukt 5/4 aur Ashtadhyayi 4/2/65 jaise pramaano se clear hota hai ki Brahmin Granth keval vyakhya bhaag hai !! Ashtadhyayi 5/1/7 aur Mahabhashyam 5/1/1 ya uske aage piche karke dhund lena , usme saaf likha hai ki Brahmin Granth ka vakya keval Brahmin Granth ka vakya hai !! Baat rahi tumare kapol kalpit tatha kathit 18 purano ko manne ki toh jo tum naastiko ne devi devtao ka charitra haran kiya hai , wo atyant sharmnaak hai ! Aise bhi tumhare Adi Shankaracharya ne apne BrihadAranyaka Upanishad 2/4/10 ke Shankar Bhashya mein Brahmin Granth ko Itihas Puran bola hai , poora Kandika ka bhashya padhna explanation part wala bhi ! Usme Brahmin Grantho ko shrishti ke aarambh mein asatya kaha hai , jisse phir siddh hua ki Brahmin Granth ved nahi hai !! Aur Ashwalayan Grihyasutram aur Taittreya Aranyak se maine bataya ki Itihas Puran sangya Brahmin Granth ke liye hai , naaki tumhare tatha kathit 18 Puran ke liye !! Aur baat rahi Mahabharat mein Ashtadash puran sabd ki toh Mahabharat mein Itihas Puran aur Ashtadash puran sangya dono hai ! Usme Itihas Puran sangya Brahmin Granth ke liye hai aur Ashtadash puran sangya 18 parvo ke liye hai kyoki Mahabharat - Adiparv , Adhyay 2 (Parv Sangrah) , Slok 386 mein likha hai ki saare 18 Puran issi Mahabharat mein hai . Yaani Ashtadash puran 18 Parv hai !! Naaki Bhagwat aadi kapol kalpit granth !! Saath hi Vedo mein bhi puran sabd aaya hai aur hum maante hai ki Brahmin Granth puran hai , par isse yeh siddh nahi hota ki Vedo mein Brahmin Granth ka naam hai toh Brahmin Granth ved ho gaya ! Asal mein Vedo mein Puran sabd Brahmin Granth ke liye hai hi nahi ! Aapke khudke Pauranik bhashyakaar Sayan aur Acharya Venkat Madhav ne kabhi Vedo mein puran sabd ko 18 Puran aur Brahmin Granth nahi kaha !! Aur Radha rani , lol 🤣 , Mahabharat mein uska naam tak nahi aur Ussi Mahabharat , adi Parv , Adhyay 2 (Parv Sangrah) slok 388 mein kaha ki jo katha ka varnan Mahabharat mein nahi , wo Itihas mein kabhi hua hi nahi . Isiliye gayi tumhari kapol kalpit charitra heen radha rani 😂😂
Sabhi 5 Acharyo ki granth ko padhe toh clearly bolte hai ki jo Bramhan yoni me paida ho k 8-9 varsh me upnayan karte hai sirf woh hi Ved padh sakte hai. Usme Jo trika adi sadya aur Gayatri ki vidhi purvak jap karte hai woh hi Ved ki adhikari hai. Iska reason : Koi jeev bohot janmo me pashu yoni me acchi karma karr k manushya yoni prapt karta hai uske baad 100 janma manushya yoni me punya karma karne k baad 1 janma Bharat bhumi me janm milti hai, aaise 100 Bharat bhumi janma me Hari bhakti k baad ek Bramhan yoni me janma milta hai. Agar aap Bramhan yoni se nahi toh samjh lijiye aap iss janam me bohot bhakti kijiye. Purano ki rachna hi isiliye huvi thi ki ved k adhikari sab nahi hai Parr Gyan aur bhakti sab ko milni chahiye.
सनातन धर्म केवल पंच देव पूजा की आज्ञा देता है :- भगवान नारायण , भगवान रुद्र, भगवान गनपति, माता शक्ति(दुर्गा), भगवान सूर्या। इनके अंतर किसी देव की न तो यज्ञ होता है ने वेद आज्ञा देता है। आज कलयुग मे लोगो ने अपने मन से देवी देवता बनाये है। और सनातन धर्म का नशा किया हुआ है। 33 वैदिक देवता :-8 वशु ( नारायण), 12 आदित्य ( सूर्या), 11 रुद्र ( रुद्र), 1 द्यौ,(गनपति), 1 अर्मण्य ( शक्ति) का प्रतिक है। केवल इन्ही की पूजा होती है। इसके अंतर वेद की एक रिचा नही है। न ही पुराण, और धर्म शास्त्र। आज ना जाने कितने मिथ्या देव बन गए है। आप जानकर हो। ये सनतःन धर्म नही अधर्म होगा।
Dhanyawad! agar naam ke hisaab se thik hai, lekin ek mantra ke hisaab se Guru ki upadesh jaroori hai. Naam bhi guru ki deeksha se mantra banjata hai. Phir wah lene Wale ko shigr apna phal dega. Narayan🙏
तो यहां पर दो तरह के छल हो रहे हैं एक वह है जो सीधे कहते हैं कि राधा जी काल्पनिक है, , और दूसरे कपटी वो है, जो ये कहता है कि राधा जी काल्पनिक नहीं है और राधा जी और कृष्णा जी के प्रेम भरे मित्रता को एकदम मॉडर्न लव अफेयर की तरह इतना बढ़ा चढ़ा कर गाया और सुनाया जाता है कि वह भी घातक है, , यहां तक की इन लोगों ने श्री कृष्णा भगवान को संगीत में चूड़ी बेचने वाला तक बना दिया राधा जी के प्रेम में, , और गीत समाज में फैलाया की श्याम चूड़ी बेचने आया, , दोनों तरह की आती सनातन समाज को नुकसान पहुंचा रही है, , श्री कृष्ण भगवान के राजनीतिक जीवन योग के जीवन , शक्ति बल के जीवन युद्ध कला के जीवन और ईश्वर के प्रति समर्पण का जीवन चरित्र यह सभी चीजों को मिटा दिया गया और उन्हें एक लवर ब्वॉय बनाकर समाज में परोसा जा रहा है, , आर्य समाज और इस्लामी जिहादी इसाई यह सभी मित्र बनकर सनातन धर्म के पीठ पर वार करते जा रहे हैं, , और भगवान श्री कृष्ण ने हमें यही समझाया है कि चाहे अपना भाई क्यों ना हो अपने दादा अपने गुरु ही क्यों ना हो अगर वो, गलत सिद्धांतों पर चलते हैं तो उनसे धर्म युद्ध करो, , उनका वध करो, , और आज यही हमारे सनातन समाज को करना होगा, , जब तक हम अर्जुन की तरह समाज के में छिछोर लोगों को अपने जैसा मानते रहेंगे तब तक उनके प्रति हमारे मन में शत्रु भाव उत्पन्न नहीं हो पाएगा, , और जब तक शत्रु भाव उत्पन्न नहीं होता तब तक हम उन परिवार कर ही नहीं पाएंगे, , इसलिए हमें भगवान श्री कृष्णा के बताए रास्ते पर चलना है और दुश्मनों का संघार करना है, , लोकतंत्र का विनाश करना है और सनातन राज धर्म की स्थापना करनी है, , महाराज मनु के सिद्धांतों को संविधान की तरह लागू करना है, , हमें उन्हें संविधान को लागू करना है जो भगवान राम ने लागू किया था महाराज पृथ्वी ने लागू किया था राजा विक्रमादित्य ने लागू किया था
दिनों कुल से होता है। एक मातृ कुल है दूसरा पितृ । 7 पीढ़ी की व्यवस्था तो कलयुग के लिए है द्वपर मे ये 16 पीढ़ी रहती थी। 7 पीढ़ी मतलब है पिता परिवर ( बाई - बहन):- पितामह परिवर ( भाई - बहन) :- पर पितामह ( भाई - बहन) - इस तरह 7 पीढ़ी तक पीछे। और इसी तरह माता की तरफ से । यह नियम सामन गोत्र होने वाली दशा मे है वैसे तो द्विज को चाहिए अपने पिता के गोत्र और माता के गोत्र मे विवाह करे ही नहीं।। इसे नातर प्रथा कहते है। जो द्विजो पर लागू होती है। जो द्विज ( ब्राह्मण, क्षत्रिय, वैश्य) इसका उलंगन करे वह शुद्र ही माना जायेगा। धर्मशास्त्र अनुसार और माता या पिता दोनों गोत्र के अंदर शादी करने वाला अशुर ही तो है।
नहीं, वेद, पुराण मे हनुमान नाम का देव नही है। हनुमान की रुद्र रूप मे पूजा हो शक्ति है पर हनुमान रूप मे नहीं। यह वेद और शास्त्र दोनों के खिलाफ है। हनुमान को 11 रुद्र मे एक माना जाता है इसलिए रुद्र रूप मे पूजा सभव है। पर बानर रूप मे नहीं। ठीक राम/ कृष्ण की नारायण रूप मे पूजा होती है ना की मानव देह राम/ कृष्ण के रूप मै। जो ऐसा करते है वे नरक के भागी है
द्विज की जाती केवल जन्म से प्राप्त होती है। एक द्विज अपनी जाती से बाहर ( अंतर्जाति विवाह) से जाया जा सकता है। परवेद पुराण मे दुवारा अंदर आने का कोई मार्ग नही है वह पुन्ह केवल जन्म से द्विज हो सकता है। सनातन धर्म कभी प्रचार - प्राशर की आज्ञा नही देता जो यह करता है वह भी पाप है। फिर भी किसी म्लेछ को सनातन मे आना है उसे मात्र ईश्वर नाम के जब की आज्ञा है। और कामना करे उसे अगला जन्म द्विज का हो। क्युकी द्विज जन्म ही मनुष्य मे मुक्ति का मार्ग है। पर यदि कोई द्विज बुरे कर्म करता है उसे अगला जन्म :- वर्ण शनकर, म्लेछ ( अब्राहिम् धर्म), नास्तिक ( जैन बौद्ध, सिख, आर्य समाज), या शूद्र योनी मे जन्म लेना पड़ता है
Tulsidas ji ki bat ki na Apne - Tulsi das ji ki Ram chatrit Manas (500 years old) Vs Valmiki Ramayana 1) Valmiki Ramayana me Parvati ji thi aur Ramcharit Manas me Sati ji jinse Shiv ji rusht ho Gaye the 😂. 2) Valmiki Ramayana me Ram ji ne Ahilya ji ke pair chue aur unhe tapswani bulaya aur Ramcharit Manas me .... Kaun Sahi hai aur kaun galat Ap hi bata dijiye . Koi to galat hoga hi na ? Ya fir Dono alag alag mahayug ke ram ji ki bat kar rahe hai ? 😂😂.
द्विज की जाती केवल जन्म से प्राप्त होती है। एक द्विज अपनी जाती से बाहर ( अंतर्जाति विवाह) से जाया जा सकता है। परवेद पुराण मे दुवारा अंदर आने का कोई मार्ग नही है वह पुन्ह केवल जन्म से द्विज हो सकता है। सनातन धर्म कभी प्रचार - प्राशर की आज्ञा नही देता जो यह करता है वह भी पाप है। फिर भी किसी म्लेछ को सनातन मे आना है उसे मात्र ईश्वर नाम के जब की आज्ञा है। और कामना करे उसे अगला जन्म द्विज का हो। क्युकी द्विज जन्म ही मनुष्य मे मुक्ति का मार्ग है। पर यदि कोई द्विज बुरे कर्म करता है उसे अगला जन्म :- वर्ण शनकर, म्लेछ ( अब्राहिम् धर्म), नास्तिक ( जैन बौद्ध, सिख, आर्य समाज), या शूद्र योनी मे जन्म लेना पड़ता है
@@user-fi3wp3ht9e sahi hai. Lekin Aaj kal sabko mantra aur bade bade Pooja mein Ruchi hai lekin uske karne niyam par nahin. Yahi Kaliyug ka swabav hai.
गुरुजी प्रणाम गीता में कृष्ण कहते है की || चातुर्वर्ण्य मया शिष्टं गुण कर्म विभागश : || श्री कृष्ण जी ने ही जन्म से जाति होने का घंड़न कीया है तो क्या यह गलत है वैसे मै ब्राह्मण हुं लेकीन इस श्लोक के अनुसार क्या शूद्र समाज के लोग उपनयन करवाके ब्राम्हण कर्म कर सकते है ? 🙏🙏🙏🙏🙏🙏🙏🙏🙏🙏🙏🙏🙏🙏🕉🕉🕉🕉🕉🕉🕉🕉🕉🕉🕉🕉🕉🕉🕉
जहाँ वर्ण व्यवस्था नहीं हो और शास्त्र आचरण वो सनातन न होकर अधर्म है। आर्य समाज, इस्कॉन्, जैन, सिख, बौद्ध ये विधर्मी है। सनातन का मूल वर्ण और जाती हैं यही सनातन की सबसे महत्वपूर्ण कड़ी है
@@user-fi3wp3ht9e हां लेकीन इसी वर्ण व्यवस्था को शस्त्र बनाकर विधर्मी लोग सनातन पर प्रहार कर रहे है मै शांडील्य गोत्रीय ब्राम्हण हुं और पांड़ीत्य भी करता हुं लेकीन आक कल वैश्य समाज यानी वणीक समाज जो खुद को लिंगायतवाणी मानते है वह भी आज वर्तमान में ब्राह्मणों के कर्म कर रहे है यह कर्म उनके लीए नीहीत नही है फीर भी व्यावसाय की भांती वह ब्राम्हणों की नकल कर रहे है😞😞
Iswar ke andar to sara brahamand samaya he uski murti kis akar ki banaye? Iswar jb sb jagah he koi jagah khali nhi he to iswar ke ana jana kese ho sakta He?
आर्य समाज अमर रहे। वेद की ज्योति जलती रहे। ओ3म् का झंडा ऊंचा रहे जो बोले सो अभय, वैदिक धर्म की जय। महर्षि वेदव्यास के बाद महर्षि दयानंद ने ही वेदों को बचाया है। आर्य समाज ही संपूर्ण विश्व में सत्य सनातन वैदिक धर्म का बिगुल बजा रहा है। हम सब आर्य हैं आप भी आर्य हैं। पर हिंदू शब्द सनातन धर्म ग्रंथ में कहीं नहीं मिलता है आर्य समाज चेतन मूर्ति की पूजा करता है पाषाण मूर्ति की पूजा नहीं । चार वेद छह शास्त्र और उपनिषदों में यहां तक बाल्मीकि रामायण और वेदव्यास कृत महाभारत में पाषाण पूजा का नामोनिशान उल्लेख नहीं है ।तुम मठाधीश में बैठ कर आराम कर रहे हो। और धर्म का चोला पहनकर अपनी जीविका चला रहे हो । -----जय आर्यावर्त जय भारत।
🤣😂🤣😂 सनातन धर्म ग्रंथों में पाषान की मूर्ती पुजा का उल्लेख नही है यह बात सर्वथा असत्य है जब शास्त्रों ने मूर्ती प्राणप्रतिष्ठा का विधान बताया है तो आब कीस ग्रह से आए आर्य है जो मूर्ती पुजा का खंडन कर रहे है बीना ग्रंथ पढ़े ग्रंथों पर भाष्य नही करते और खासकर रामायण में मूर्ती पुजा का उल्लेख नही है एसा तो कभी मत कहना वर्णा मुर्खों की श्रेणी में शामील हो जाओगे
नहीं ,ऐसा नहीं है आर्य समाज की विचारधारा ठीक है । और दयानंद सरस्वती जी का वेदभाष्य उत्तम है । आप लोग तो वेदों में गौ-वध मानते हो और स्वयं को गौभक्त बताते हो
Arre nastik mayawadi 😂 , jaake Sayan ka kapol kalpit bhashya utha , uska Rigveda bhashya ka Mandal 6 , Sukt 46 , Mantra 3 - Indra ko 1000 ling waala bola 😂 . Sayan ka Rigveda bhashya ka Mandal 7 , Sukt 33 , Mantra 11 - Mitra aur varun ne urwashi ko dekhkar apna virya Skahlit kar diya aur usse Vasisht paida hogaye 😂 Sayan ka Rigveda bhashya Mandal 6 , sukt 27 mantra 8 padhle - Ladkiya daan mein di jaa rahi hai , waah 🤣 kya bhed Bhashya kiya hai naastik mayawadio ne 😂 . Jaake Mahidar aur Karpatri ka Yajurveda 23/19-21 ka bhashya padhle 😂 , ghore ka ling manushya stree ki yoni mein , lol 🤣 Saath hi tune kaha ki Arya Samaji aadha ved nahi maante , arre pop aadmi 😂 , Ashwalayan Grihyasutram 3/3/1 aur Taittreya Aranyak 2/9 mein Brahmin Granth ko Puran bola hai ! Puran aur Ved sabd dono virodha bhaasi sabd hai , toh Brahmin Granth ved kaise hogaya !? Shatpath Brahmin 1/4/1/35 mein kaha ki Shakha Samhitao ka paath karna yagya ki heenta hai kyoki wo manushya krit hai , isiliye keval Ishwarokt Ved Mantra Samhita ka paath karo ! Toh shakha samhita ved kaise hogaya !? Issi prakar Nirukt 5/4 aur Ashtadhyayi 4/2/65 jaise pramaano se clear hota hai ki Brahmin Granth keval vyakhya bhaag hai !! Ashtadhyayi 5/1/7 aur Mahabhashyam 5/1/1 ya uske aage piche karke dhund lena , usme saaf likha hai ki Brahmin Granth ka vakya keval Brahmin Granth ka vakya hai !! Baat rahi tumare kapol kalpit tatha kathit 18 purano ko manne ki toh jo tum naastiko ne devi devtao ka charitra haran kiya hai , wo atyant sharmnaak hai ! Aise bhi tumhare Adi Shankaracharya ne apne BrihadAranyaka Upanishad 2/4/10 ke Shankar Bhashya mein Brahmin Granth ko Itihas Puran bola hai , poora Kandika ka bhashya padhna explanation part wala bhi ! Usme Brahmin Grantho ko shrishti ke aarambh mein asatya kaha hai , jisse phir siddh hua ki Brahmin Granth ved nahi hai !! Aur Ashwalayan Grihyasutram aur Taittreya Aranyak se maine bataya ki Itihas Puran sangya Brahmin Granth ke liye hai , naaki tumhare tatha kathit 18 Puran ke liye !! Aur baat rahi Mahabharat mein Ashtadash puran sabd ki toh Mahabharat mein Itihas Puran aur Ashtadash puran sangya dono hai ! Usme Itihas Puran sangya Brahmin Granth ke liye hai aur Ashtadash puran sangya 18 parvo ke liye hai kyoki Mahabharat - Adiparv , Adhyay 2 (Parv Sangrah) , Slok 386 mein likha hai ki saare 18 Puran issi Mahabharat mein hai . Yaani Ashtadash puran 18 Parv hai !! Naaki Bhagwat aadi kapol kalpit granth !! Saath hi Vedo mein bhi puran sabd aaya hai aur hum maante hai ki Brahmin Granth puran hai , par isse yeh siddh nahi hota ki Vedo mein Brahmin Granth ka naam hai toh Brahmin Granth ved ho gaya ! Asal mein Vedo mein Puran sabd Brahmin Granth ke liye hai hi nahi ! Aapke khudke Pauranik bhashyakaar Sayan aur Acharya Venkat Madhav ne kabhi Vedo mein puran sabd ko 18 Puran aur Brahmin Granth nahi kaha !! Aur Radha rani , lol 🤣 , Mahabharat mein uska naam tak nahi aur Ussi Mahabharat , adi Parv , Adhyay 2 (Parv Sangrah) slok 388 mein kaha ki jo katha ka varnan Mahabharat mein nahi , wo Itihas mein kabhi hua hi nahi . Isiliye gayi tumhari kapol kalpit charitra heen radha rani 😂😂
Radha chlo Arya samaj ke liye kalpanik or dayanand nhi niyogacharya shree dayanand 🤡🤡 Yeh acha h na or kis Mahabharat ki baat apne khud ke added wale yr khud ke likhea so called Mahabharat or us ke translation 🤣😂😂sahi h Just Arya namazi things acha h kro 😂😂
जहाँ वर्ण व्यवस्था नहीं हो और शास्त्र आचरण वो सनातन न होकर अधर्म है। आर्य समाज, इस्कॉन्, जैन, सिख, बौद्ध ये विधर्मी है। सनातन का मूल वर्ण और जाती हैं यही सनातन की सबसे महत्वपूर्ण कड़ी है
11 नियोग की पैदायीश पवित्र वेदो से अश्लीलता निकालने वाला अधर्मी दयानंद था सब पढ रहे 😂एकदम नियोगानंद था चरस्वती ओ आज होता तो हम हिंदु जुतो से पिटाई करते जो इस दृष्ट ने भगवान शिव जी के बारे मे कहा है। इसको तो नर्क ही मिला होगा सब नियोग निकला होगा वहा 😂
जी नही जहाँ वर्ण व्यवस्था नहीं हो और शास्त्र आचरण वो सनातन न होकर अधर्म है। आर्य समाज, इस्कॉन्, जैन, सिख, बौद्ध ये विधर्मी है। सनातन का मूल वर्ण और जाती हैं यही सनातन की सबसे महत्वपूर्ण कड़ी है।
@@rishabhyadav6705 Naa tum naastik purand namazi Sanatan se alag ho ! Hindu sabd kisi Shashtra mein nahi aur Arya apne aap ko bolte nahi tum , Ved Virodhi mallech katue purand namazi 🤣
हर हर महादेव
सभी हिंदू भाई ध्यान दें।
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सत्य सनातन धर्म की जै।
धर्म सम्राट स्वामी करपात्री जी महाराज
आदि शंकराचार्य भगवान शंकराचार्य जी की जै।
Bhagwan🤣 kirpatri jaatiwadi tha
सनातन का मूल वर्णव्यवस्था है। जिस धर्म मे आधार को निकाल दिया जाता है वह धर्म टिक नही सकता ना कभी सनातन हो सकता। जब वर्ण व्यवस्था नहीं होंगी और सनातन और म्लेछ धर्म औरविधर्मी मे अंतर क्या। मूर्ति पूजा तो सनातन मे मूर्त से अमूर्त मे जाने का मार्ग है। मूर्ति रक्षा सनातन है भी नही। सनातन जितना महत्व सत का उतना ही वर्ण है। जाति जन्म से होती है कर्म से नही राजनीति की रोटियाँ के लिए विधर्मियों ने सत्यानाश किया हुआ है। एक मनुष्य एक दिन मे शुभ से शाम तक सभी वर्ण के कार्य करता है तो क्या उसकी जाति क्षण बदलते रहे मुर्ख लोगो। क्या इन आर्य समाज के पास इतना भी विवेक नहीं। आर्य समाज, जैन, सिख, और बौद्ध, इस्कॉन् की तरह खोखला है। और अधर्म के सिवा कुछ नही। गुण और मर्यादा जाती से आती है कर्म से नहीं। एक शुद्र कितना विद्वान क्यों न हो उसके अंदर द्विज के गुण नहीं पैदा हो सकते। ना वो धर्म की पालन ही कर सकता है उसका धर्म बस ढकोसला होगा जैसे आज की RSS -BJP, कांगेस और अन्य सभी दल।
ऋग्वेद सबसे प्राचीन माना जाता है। ऋग्वेद के तीसरा मण्डल ऋषि विश्वामित्र ने रचा है विश्वा मित्र जन्म से क्षत्रिय थे पर कर्म से ब्राह्मण। वे भी अपनी जाती नही बदल सके थे। उन्हे क्षत्रिय ही वेद मानते है।
महाभारत मे
कृपाचार्य, द्रोन, अश्वथामा, कर्म से क्षत्रिय थे पर उन्हें क्षत्रिय न मान कर ब्राह्मण ही माना गया। परशुराम जी भी इसका उदाहरण है।।।
श्लोक " जन्म जयते शुद्र------" द्विजो के संधर्भ मे है। एक द्विज का जब तक उप नयन संसकार नही होता उस शूद्र कहते है। क्युकी शुद्र का उप नयन नहीं होता जो शुद्र करता है या जो द्विज करवाता है दोनों अपने पितरो को नर्क का भागी बनाते है
@@harsh312harshh Aur tum chutiya ho zhatu dimag se sochne wale
@@ankitjat2575 द्वीज माने जीसका दो बार जन्म हुआ हो यानी उपनयन के पहले का शूद्र जन्म और उपनयन के बाद दुसरा जन्म ब्राम्हण होता है यानी संस्कारीत ब्राम्हण को द्वीज कहा जाता है
तो आज आप कीसी भी शूद्र वर्ण के व्यक्तिका उपनयन नही कर सकते
क्योंकी 3 पीढ़ीयां बीना उपनयन कीए चली गई तो चौथी पीढ़ी के व्यक्ति को उपनयन का अधीकार नही होता कारण; 3 पीढ़ी के बाद सावित्रीछेदन होता है इस लीए आज के शूद्र समाज को उपनयन करने का तनीक भी शास्त्रीय अधीकार नहिं है क्योंकी इस समाज ने कई शतकों पुर्व ही उपनयन परंपरा का हनन कर दिया है तो आज शूद्र समाज द्वीज नही बन सकता
लेकीन ब्राह्मण समाज ने उपनयन का त्याग नही कीया आज भी ब्राम्हणों की 8 वर्ष की आयू में ही उपनयन हो जाता है
वक्त पर परंपरागत रुप से उपनयन करना उपनयन होते ही उस एक दीन ही सही लेकीन भिक्षा मांगना गुरुघृहे वेदाध्ययन करना स्नान संध्या करना इन कर्मों के कारण ब्राम्हण आज भी ब्राह्मण ही है
ब्राम्हण ने सेवक का कार्य करने से हम उसे शूद्र नही मान सकते क्यों की वह संस्कारीत उपनीत है
पुजा अनुष्ठान उस ब्राम्हण से नहिं करवाना चाहीए जो ब्राह्मण मांसाहारी होक्यों की मात्र मांसाहार ही वह क्रीया है जो उपनय संध्यावंदन आदी ब्राह्मण कर्मों का हनन करके ब्राह्मण को संस्कार रहीत बनाता है मांसाहार करने मात्र से उपनना दी सभी ब्राम्हण संस्कार समाप्त हो जाते है
जय माँ काली
जय श्री सीताराम
आपने बिल्कुल ठीक कहा
अनार्य दयानन्द समाज के 2 नियम
👉 अपने आचरण को शास्त्रानुकूल मत करो शास्त्रों को खींचतान करके अपने अनुकूल बनाओ।
👉 सिर से लेकर पांव तक जोर लगाने के बाद भी जब उत्तर ना बन पड़े तो धर्मग्रंथों को ही मिलावट कहकर भाग जाओ और जब वही बात अन्य किसी ग्रंथ में मिले तो उसे भी मिलावट बोलकर भाग जाओ
एक अनार्य नमाज़ी , दूसरा इस्काॅन , तीसरा गायत्री परिवार वाले और चौथे राजनैतिक हिन्दु --- यह सब अपने अनुसार शास्त्र की रचना करते हैं ।। 😆😆😆🤣🤣🤣
@@धर्म-अधर्म इस क्रम में दया समाजी सबसे आगे हैं ! और अब तो दया के चेले चालाकी में दया से भी आगे निकल चुके हैं( जैसा कि धर्मरक्षक पण्डित कालूराम शास्त्री जी ने पहले ही अपनी पुस्तक आर्यसमाज की मौत में लिखा था ) ! उदाहरण : दया ने अपनी पुस्तक अंधकार में मनुस्मृति के कईं श्लोकों को मूल माना है परंतु जीवन पर्यंत दूसरों के लिए गड्ढा खोदने वाले दया , के चेले सुरेन्द्र कुमार झज्जरवाला ने अपनी नवीन कांट छांट मनुस्मृति में (मनुस्मृति के आधे से अधिक श्लोकों को उड़ाने के बाद) दया द्वारा प्रमाण स्वरूप अपनी पुस्तक "अंधकार" में उद्धृत किए गए श्लोकों को भी प्रक्षिप्त घोषित कर अपनी विशुद्ध मनुस्मृति से निकाल बाहर किया है !
कुछ चालाकियों के नमूने
1_ प्रत्येक वह श्लोक मिलावटी है जो हमारी मान्यता के विरुद्ध है !
2_ दया के जन्म से पूर्व भारत भूमि पर कोई वैदिक नहीं था ! क्योंकि किसी को वेदभाष्य करना आता ही नहीं था
3_ वेद का सही भाष्य अंग्रेजी शासनकाल में दया द्वारा किया गया और आज उसके चेलों द्वारा किया जा रहा है
3_ जिन ब्राह्मणों ने हम तक वेद पहुंचाया उन्हें पंडा पंडा कहकर दिन रात अपमानित करो उनके द्वारा सौंपे गए वेद को तो सही मानो परंतु आमजन का उन्हीं ब्राह्मण पर विश्वास और शास्त्रों को मिलावट मिलावट चिल्लाकर धर्म शास्त्रों को शंका के घेरे में लाकर एक आम आदमी के ह्रदय से शास्त्र निष्ठा ही समाप्त कर दो।
4_ क्योंकि कोई भी व्यक्ति तब तक नास्तिक नहीं हो सकता जब तक उसके ह्रदय में अपने धर्मग्रंथों के प्रति सम्मान है और संदेह होने पर वह उसका अर्थ आचार्यों से पूछता है और उनका सम्मान करता है! जब उसके मन में अपने ही शास्त्रों और आचार्यों के प्रति अविश्वास उत्पन्न हो जायेगा फिर उसे भक्ति मार्ग से हटाकर नास्तिक और झगड़ालू बना दो !
5_ दिनरात पुराणों को उल्टा सीधा बोलो परंतु जब वर्ण व्यवस्था पर विरोधियों से बात करनी हो तो उसी पुराण की चौखट पर सर पटक कर जन्मना जायते शूद्र का राग अलापना शुरू कर दो!
प्रणाम करता हूँ🙏🙏🙏🙏🙏
हर हर महादेव 🙏🛕⛳
हर आर्य समाज के लोग भी सनातनी है
प्रणाम करता हूं
🙏🏻❤️ महादेव महादेव महादेव ❤️❤️
Ye arya samaji sabse bade apradhi aur murkh hai jo shiv ling aur bhagwan ke vigrah ko patthar mante hain
आर्य समाजी से भी बड़े अपराधी तो वो है जो अपने वृद्ध और असहाय माता-पिता को वृंदावन में भीख मांगने के लिए छोड़ आते है।
और फिर उनकी मृत्यु के बाद गया जाते है, श्राद्ध करने।
आर्य समाजी से भी बड़ा अपराधी वो है जो मंदिर में मूर्तियों को भोग लगाते है और अपने माँ-बाप को पेट भर भोजन भी नही कराते । और मारपीट भी करते है।
श्री अनिरुद्धाचार्य जी के आश्रम में जितने भी वृद्ध और असहाय माताएं आती है। वो न तो आर्य समाजी है और न तो उनके बच्चों का आर्य समाज से कोई संबंध है। वे सभी मूर्ति पूजक ही है।
आर्य समाजी से भी बड़े अपराधी वो है जो प्रत्येक मंगलवार को हनुमान जी के मंदिर तो जाते है लेकिन हनुमान जी की तरह न तो बुद्धिमान, बलवान , ब्रह्मचर्य का पालन करने वाला और वेदज्ञानी बनने की कोशिश करते है बल्कि व्यभिचारी आचरण वाले होते है।
वो तो और भी दुष्ट है जो हमारे योगिराज श्रीकृष्ण को चोर और व्यभिचारी बताकर स्वयं भी उसी काम को करने गौरवान्वित महसूस करते है।
शैव मत वाले वैष्णव मत के खिलाफ बकते है और वैष्णव वाले शैव मत के खिलाफ बकते है।
इससे ज्यादे क्या बताऊंगा नहीं तो गैर आर्यसमाजियों को (तुम्हारे अनुसार) रात को नींद भी नही आ पाएगी।
कम से कम दयानंद सरस्वती का सच्चा सैनिक तो ऐसा नही होता है।
👉दयानंद सरस्वती का जन्म भी ब्राह्मण कुल में हुआ था और कर्म से भी ब्राह्मण थे।💪
👉ब्राह्मण चाहे जैसा भी हो पूजनीय होता है, ऐसा पौराणिक मान्यता है।🤞
Aapne aap ko Hindu kehne wale sharm krna chahiye
Kisi bhi granth me Hindu naam nhi hai
Only Arya hai Ved ramayan Mahabharat aadi aadi
Pehle apne dharm ghranth Ved ke baare me jano uske baad kutark karna
Chaaro vedo me kahi nhi hai murti puja
Bhagwan ko aap murti ke naam per tiraskar karte ho paap lagega
Ine guru ghantalon ke Karan yah hamara dharm luft hone ke kagar per hai
kyunki ram krishna ke chitra ko nahin chaitra ki puja karni chahie photo keval smaran ke liye rahata Hai yah hamare mahapurush hai isliye charitra se prernay Lena chahie
Baki Koi shanka ho ya koi vishay per baten karni ho hamara man taiyar Hai Ham charcha Karne wale parampara se hai
अनार्य आचरणों व विचार वाले (अन)आर्य समाजी कोप करें। आर्य समाजी अपने संगठन के नाम से आर्य शब्द हटाकर आर्य शब्द की निन्दा करना बंद करदे।
सनातन का मूल वर्णव्यवस्था है। जिस धर्म मे आधार को निकाल दिया जाता है वह धर्म टिक नही सकता ना कभी सनातन हो सकता। जब वर्ण व्यवस्था नहीं होंगी और सनातन और म्लेछ धर्म औरविधर्मी मे अंतर क्या। मूर्ति पूजा तो सनातन मे मूर्त से अमूर्त मे जाने का मार्ग है। मूर्ति रक्षा सनातन है भी नही। सनातन जितना महत्व सत का उतना ही वर्ण है। जाति जन्म से होती है कर्म से नही राजनीति की रोटियाँ के लिए विधर्मियों ने सत्यानाश किया हुआ है। एक मनुष्य एक दिन मे शुभ से शाम तक सभी वर्ण के कार्य करता है तो क्या उसकी जाति क्षण बदलते रहे मुर्ख लोगो। क्या इन आर्य समाज के पास इतना भी विवेक नहीं। आर्य समाज, जैन, सिख, और बौद्ध, इस्कॉन् की तरह खोखला है। और अधर्म के सिवा कुछ नही। गुण और मर्यादा जाती से आती है कर्म से नहीं। एक शुद्र कितना विद्वान क्यों न हो उसके अंदर द्विज के गुण नहीं पैदा हो सकते। ना वो धर्म की पालन ही कर सकता है उसका धर्म बस ढकोसला होगा जैसे आज की RSS -BJP, कांगेस और अन्य सभी दल।
Arre nastik mayawadi 😂 , jaake Sayan ka kapol kalpit bhashya utha , uska Rigveda bhashya ka Mandal 6 , Sukt 46 , Mantra 3 - Indra ko 1000 ling waala bola 😂 .
Sayan ka Rigveda bhashya ka Mandal 7 , Sukt 33 , Mantra 11 - Mitra aur varun ne urwashi ko dekhkar apna virya Skahlit kar diya aur usse Vasisht paida hogaye 😂
Sayan ka Rigveda bhashya Mandal 6 , sukt 27 mantra 8 padhle - Ladkiya daan mein di jaa rahi hai , waah 🤣 kya bhed Bhashya kiya hai naastik mayawadio ne 😂 .
Jaake Mahidar aur Karpatri ka Yajurveda 23/19-21 ka bhashya padhle 😂 , ghore ka ling manushya stree ki yoni mein , lol 🤣
Saath hi tune kaha ki Arya Samaji aadha ved nahi maante , arre pop aadmi 😂 , Ashwalayan Grihyasutram 3/3/1 aur Taittreya Aranyak 2/9 mein Brahmin Granth ko Puran bola hai ! Puran aur Ved sabd dono virodha bhaasi sabd hai , toh Brahmin Granth ved kaise hogaya !? Shatpath Brahmin 1/4/1/35 mein kaha ki Shakha Samhitao ka paath karna yagya ki heenta hai kyoki wo manushya krit hai , isiliye keval Ishwarokt Ved Mantra Samhita ka paath karo ! Toh shakha samhita ved kaise hogaya !? Issi prakar Nirukt 5/4 aur Ashtadhyayi 4/2/65 jaise pramaano se clear hota hai ki Brahmin Granth keval vyakhya bhaag hai !! Ashtadhyayi 5/1/7 aur Mahabhashyam 5/1/1 ya uske aage piche karke dhund lena , usme saaf likha hai ki Brahmin Granth ka vakya keval Brahmin Granth ka vakya hai !!
Baat rahi tumare kapol kalpit tatha kathit 18 purano ko manne ki toh jo tum naastiko ne devi devtao ka charitra haran kiya hai , wo atyant sharmnaak hai ! Aise bhi tumhare Adi Shankaracharya ne apne BrihadAranyaka Upanishad 2/4/10 ke Shankar Bhashya mein Brahmin Granth ko Itihas Puran bola hai , poora Kandika ka bhashya padhna explanation part wala bhi ! Usme Brahmin Grantho ko shrishti ke aarambh mein asatya kaha hai , jisse phir siddh hua ki Brahmin Granth ved nahi hai !! Aur Ashwalayan Grihyasutram aur Taittreya Aranyak se maine bataya ki Itihas Puran sangya Brahmin Granth ke liye hai , naaki tumhare tatha kathit 18 Puran ke liye !! Aur baat rahi Mahabharat mein Ashtadash puran sabd ki toh Mahabharat mein Itihas Puran aur Ashtadash puran sangya dono hai ! Usme Itihas Puran sangya Brahmin Granth ke liye hai aur Ashtadash puran sangya 18 parvo ke liye hai kyoki Mahabharat - Adiparv , Adhyay 2 (Parv Sangrah) , Slok 386 mein likha hai ki saare 18 Puran issi Mahabharat mein hai . Yaani Ashtadash puran 18 Parv hai !! Naaki Bhagwat aadi kapol kalpit granth !! Saath hi Vedo mein bhi puran sabd aaya hai aur hum maante hai ki Brahmin Granth puran hai , par isse yeh siddh nahi hota ki Vedo mein Brahmin Granth ka naam hai toh Brahmin Granth ved ho gaya ! Asal mein Vedo mein Puran sabd Brahmin Granth ke liye hai hi nahi ! Aapke khudke Pauranik bhashyakaar Sayan aur Acharya Venkat Madhav ne kabhi Vedo mein puran sabd ko 18 Puran aur Brahmin Granth nahi kaha !! Aur Radha rani , lol 🤣 , Mahabharat mein uska naam tak nahi aur Ussi Mahabharat , adi Parv , Adhyay 2 (Parv Sangrah) slok 388 mein kaha ki jo katha ka varnan Mahabharat mein nahi , wo Itihas mein kabhi hua hi nahi . Isiliye gayi tumhari kapol kalpit charitra heen radha rani 😂😂
शायद आप सही कह रहे हैं.
Sayd nhi 100% sahi h
Acharya ji kya koi shudra ved ko padh sakta hai 🙏 kripya is par prakash daliye 🙏🙏
Sabhi 5 Acharyo ki granth ko padhe toh clearly bolte hai ki jo Bramhan yoni me paida ho k 8-9 varsh me upnayan karte hai sirf woh hi Ved padh sakte hai. Usme Jo trika adi sadya aur Gayatri ki vidhi purvak jap karte hai woh hi Ved ki adhikari hai.
Iska reason : Koi jeev bohot janmo me pashu yoni me acchi karma karr k manushya yoni prapt karta hai uske baad 100 janma manushya yoni me punya karma karne k baad 1 janma Bharat bhumi me janm milti hai, aaise 100 Bharat bhumi janma me Hari bhakti k baad ek Bramhan yoni me janma milta hai. Agar aap Bramhan yoni se nahi toh samjh lijiye aap iss janam me bohot bhakti kijiye.
Purano ki rachna hi isiliye huvi thi ki ved k adhikari sab nahi hai Parr Gyan aur bhakti sab ko milni chahiye.
Ved ka vistar puran hindi shabdarth padh sakte hain. गुरुजी se shrawan karke sanskrit stotra bhi padh sakte hain.
Parayan adi nahi kar sakte.
Jay Gurudev
Gurudeb bahut se log sri radha ji ko kalpanik kehtai hai kripya iska khandan karen🙏🏻
पहले ही खंडन किया हुआ है बहुत से शास्त्रीय प्रमाणों के आधार पर बहुत से संतों ने ।
सनातन धर्म केवल पंच देव पूजा की आज्ञा देता है :- भगवान नारायण , भगवान रुद्र, भगवान गनपति, माता शक्ति(दुर्गा), भगवान सूर्या।
इनके अंतर किसी देव की न तो यज्ञ होता है ने वेद आज्ञा देता है। आज कलयुग मे लोगो ने अपने मन से देवी देवता बनाये है। और सनातन धर्म का नशा किया हुआ है। 33 वैदिक देवता :-8 वशु ( नारायण), 12 आदित्य ( सूर्या), 11 रुद्र ( रुद्र), 1 द्यौ,(गनपति), 1 अर्मण्य ( शक्ति) का प्रतिक है। केवल इन्ही की पूजा होती है। इसके अंतर वेद की एक रिचा नही है। न ही पुराण, और धर्म शास्त्र।
आज ना जाने कितने मिथ्या देव बन गए है। आप जानकर हो। ये सनतःन धर्म नही अधर्म होगा।
Rig ved, khila prava parishista :- एकम् ज्योति रभूद द्वेधा राधा माधव रूपकम्
@@user-fi3wp3ht9e जैसे तुम्हे बहुत ज्ञान है ना ?
@@merogirdharnagar5743boht badhiya anpadh 😂 , matlab kahi bhi Radha sabd aagya toh aadha rani bana doge ! Arre jaahil aadmi Nirukt 12/10 aur Mahabhashyam 3/3/1 ya 3/3/3 mein likha hai ki Vedo mein roodhi sabd nahi isiliye Vedo mein Itihas nahi !
🎉🎉 जय सियाराम की 🎉🎉
🙏🙏
Sahi kaha apne
Jiska upnayan sanskar nahi hua umar nikal jaye to kya kare?
8:28 hare Ram wala mantra hai! Woh Guru ke Bina kaise jao karein
Kar sakte hai bina guru ke bhi
कोई भी जप सकता है
Dhanyawad! agar naam ke hisaab se thik hai, lekin ek mantra ke hisaab se Guru ki upadesh jaroori hai.
Naam bhi guru ki deeksha se mantra banjata hai. Phir wah lene Wale ko shigr apna phal dega. Narayan🙏
वैदिक मंत्र जप की आज्ञा केवल द्विज को है पर पुराणिक मंत्र शुद्र भी जप कर सकते है।
@@user-fi3wp3ht9e paurànic stotra. Bilkul
Oreo namaji😂
आर्य समाजी नहीं दयानन्दी कहकर संबोधित करें इन मिलावट समाजियों को
जय जय श्री राम
हर हर महादेव।
तो यहां पर दो तरह के छल हो रहे हैं एक वह है जो सीधे कहते हैं कि राधा जी काल्पनिक है, ,
और दूसरे कपटी वो है, जो ये कहता है कि राधा जी काल्पनिक नहीं है और राधा जी और कृष्णा जी के प्रेम भरे मित्रता को एकदम मॉडर्न लव अफेयर की तरह इतना बढ़ा चढ़ा कर गाया और सुनाया जाता है कि वह भी घातक है, ,
यहां तक की इन लोगों ने श्री कृष्णा भगवान को संगीत में चूड़ी बेचने वाला तक बना दिया राधा जी के प्रेम में, ,
और गीत समाज में फैलाया की श्याम चूड़ी बेचने आया, ,
दोनों तरह की आती सनातन समाज को नुकसान पहुंचा रही है, ,
श्री कृष्ण भगवान के राजनीतिक जीवन योग के जीवन , शक्ति बल के जीवन युद्ध कला के जीवन और ईश्वर के प्रति समर्पण का जीवन चरित्र यह सभी चीजों को मिटा दिया गया और उन्हें एक लवर ब्वॉय बनाकर समाज में परोसा जा रहा है, ,
आर्य समाज और इस्लामी जिहादी इसाई यह सभी मित्र बनकर सनातन धर्म के पीठ पर वार करते जा रहे हैं, ,
और भगवान श्री कृष्ण ने हमें यही समझाया है कि चाहे अपना भाई क्यों ना हो अपने दादा अपने गुरु ही क्यों ना हो अगर वो, गलत सिद्धांतों पर चलते हैं तो उनसे धर्म युद्ध करो, ,
उनका वध करो, ,
और आज यही हमारे सनातन समाज को करना होगा, ,
जब तक हम अर्जुन की तरह समाज के में छिछोर लोगों को अपने जैसा मानते रहेंगे तब तक उनके प्रति हमारे मन में शत्रु भाव उत्पन्न नहीं हो पाएगा, ,
और जब तक शत्रु भाव उत्पन्न नहीं होता तब तक हम उन परिवार कर ही नहीं पाएंगे, ,
इसलिए हमें भगवान श्री कृष्णा के बताए रास्ते पर चलना है और दुश्मनों का संघार करना है, ,
लोकतंत्र का विनाश करना है और सनातन राज धर्म की स्थापना करनी है, ,
महाराज मनु के सिद्धांतों को संविधान की तरह लागू करना है, ,
हमें उन्हें संविधान को लागू करना है जो भगवान राम ने लागू किया था महाराज पृथ्वी ने लागू किया था राजा विक्रमादित्य ने लागू किया था
हर हर महादेव 🙏
NAMAH PARVATI PATAYE
HAR HAR MAHADEV ⚔️⚔️⚔️🕉️🕉️🚩🚩🚩
Orio samaj😂
😂😂😂
दिनों कुल से होता है।
एक मातृ कुल है दूसरा पितृ । 7 पीढ़ी की व्यवस्था तो कलयुग के लिए है द्वपर मे ये 16 पीढ़ी रहती थी।
7 पीढ़ी मतलब है
पिता परिवर ( बाई - बहन):- पितामह परिवर ( भाई - बहन) :- पर पितामह ( भाई - बहन) - इस तरह 7 पीढ़ी तक पीछे।
और इसी तरह माता की तरफ से । यह नियम सामन गोत्र होने वाली दशा मे है वैसे तो द्विज को चाहिए अपने पिता के गोत्र और माता के गोत्र मे विवाह करे ही नहीं।। इसे नातर प्रथा कहते है। जो द्विजो पर लागू होती है। जो द्विज ( ब्राह्मण, क्षत्रिय, वैश्य) इसका उलंगन करे वह शुद्र ही माना जायेगा। धर्मशास्त्र अनुसार और माता या पिता दोनों गोत्र के अंदर शादी करने वाला अशुर ही तो है।
हर हर महादेव
Hanumanji ki prtitha ho to bahar konse dev ki prtitha karni cahiye guruji
😅
नहीं, वेद, पुराण मे हनुमान नाम का देव नही है। हनुमान की रुद्र रूप मे पूजा हो शक्ति है पर हनुमान रूप मे नहीं। यह वेद और शास्त्र दोनों के खिलाफ है। हनुमान को 11 रुद्र मे एक माना जाता है इसलिए रुद्र रूप मे पूजा सभव है। पर बानर रूप मे नहीं। ठीक राम/ कृष्ण की नारायण रूप मे पूजा होती है ना की मानव देह राम/ कृष्ण के रूप मै। जो ऐसा करते है वे नरक के भागी है
द्विज की जाती केवल जन्म से प्राप्त होती है। एक द्विज अपनी जाती से बाहर ( अंतर्जाति विवाह) से जाया जा सकता है। परवेद पुराण मे दुवारा अंदर आने का कोई मार्ग नही है वह पुन्ह केवल जन्म से द्विज हो सकता है। सनातन धर्म कभी प्रचार - प्राशर की आज्ञा नही देता जो यह करता है वह भी पाप है। फिर भी किसी म्लेछ को सनातन मे आना है उसे मात्र ईश्वर नाम के जब की आज्ञा है। और कामना करे उसे अगला जन्म द्विज का हो। क्युकी द्विज जन्म ही मनुष्य मे मुक्ति का मार्ग है। पर यदि कोई द्विज बुरे कर्म करता है उसे अगला जन्म :- वर्ण शनकर, म्लेछ ( अब्राहिम् धर्म), नास्तिक ( जैन बौद्ध, सिख, आर्य समाज), या शूद्र योनी मे जन्म लेना पड़ता है
@@user-fi3wp3ht9e bhai insta id do apna kuch bat krni hai
hindu dharam ke maths aur science ke baare me video bannao
जय श्री राम
Karoli sarkar ki jay.
Tulsidas ji ki bat ki na Apne -
Tulsi das ji ki Ram chatrit Manas (500 years old) Vs Valmiki Ramayana
1) Valmiki Ramayana me Parvati ji thi aur Ramcharit Manas me Sati ji jinse Shiv ji rusht ho Gaye the 😂.
2) Valmiki Ramayana me Ram ji ne Ahilya ji ke pair chue aur unhe tapswani bulaya aur Ramcharit Manas me ....
Kaun Sahi hai aur kaun galat Ap hi bata dijiye . Koi to galat hoga hi na ? Ya fir Dono alag alag mahayug ke ram ji ki bat kar rahe hai ? 😂😂.
Joh log Christian ya Muslim jab sanatan Dharma apnana chahe tho woh kis Varna ko woh palan karein aur woh kounse Kanya se shadi karein?
द्विज की जाती केवल जन्म से प्राप्त होती है। एक द्विज अपनी जाती से बाहर ( अंतर्जाति विवाह) से जाया जा सकता है। परवेद पुराण मे दुवारा अंदर आने का कोई मार्ग नही है वह पुन्ह केवल जन्म से द्विज हो सकता है। सनातन धर्म कभी प्रचार - प्राशर की आज्ञा नही देता जो यह करता है वह भी पाप है। फिर भी किसी म्लेछ को सनातन मे आना है उसे मात्र ईश्वर नाम के जब की आज्ञा है। और कामना करे उसे अगला जन्म द्विज का हो। क्युकी द्विज जन्म ही मनुष्य मे मुक्ति का मार्ग है। पर यदि कोई द्विज बुरे कर्म करता है उसे अगला जन्म :- वर्ण शनकर, म्लेछ ( अब्राहिम् धर्म), नास्तिक ( जैन बौद्ध, सिख, आर्य समाज), या शूद्र योनी मे जन्म लेना पड़ता है
@@user-fi3wp3ht9e sahi hai. Lekin Aaj kal sabko mantra aur bade bade Pooja mein Ruchi hai lekin uske karne niyam par nahin. Yahi Kaliyug ka swabav hai.
Om Namah Shivay
गुरुदेव मेरा शुद्र मित्र ने गौमास सेवन किया था बाल अवस्था मे वो वापस हिंदू धर्म के अनुसार जीवन व्यतीत करना चाहता है उसके वीज क्या प्रायश्चित्त होगा
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गुरुजी प्रणाम
गीता में कृष्ण कहते है की
|| चातुर्वर्ण्य मया शिष्टं गुण कर्म विभागश : ||
श्री कृष्ण जी ने ही जन्म से जाति होने का घंड़न कीया है तो क्या यह गलत है
वैसे मै ब्राह्मण हुं लेकीन इस श्लोक के अनुसार क्या शूद्र समाज के लोग उपनयन करवाके ब्राम्हण कर्म कर सकते है ?
🙏🙏🙏🙏🙏🙏🙏🙏🙏🙏🙏🙏🙏🙏🕉🕉🕉🕉🕉🕉🕉🕉🕉🕉🕉🕉🕉🕉🕉
वर्ण और जाति मे क्या अंतर है?
@@santanupkamath कोई अंतर नही
जहाँ वर्ण व्यवस्था नहीं हो और शास्त्र आचरण वो सनातन न होकर अधर्म है। आर्य समाज, इस्कॉन्, जैन, सिख, बौद्ध ये विधर्मी है। सनातन का मूल वर्ण और जाती हैं यही सनातन की सबसे महत्वपूर्ण कड़ी है
@@user-fi3wp3ht9e हां लेकीन इसी वर्ण व्यवस्था को शस्त्र बनाकर विधर्मी लोग सनातन पर प्रहार कर रहे है
मै शांडील्य गोत्रीय ब्राम्हण हुं और पांड़ीत्य भी करता हुं
लेकीन आक कल वैश्य समाज यानी वणीक समाज जो खुद को लिंगायतवाणी मानते है वह भी आज वर्तमान में ब्राह्मणों के कर्म कर रहे है यह कर्म उनके लीए नीहीत नही है फीर भी व्यावसाय की भांती वह ब्राम्हणों की नकल कर रहे है😞😞
Mukhay dev hanumanji he
Iswar ke andar to sara brahamand samaya he uski murti kis akar ki banaye?
Iswar jb sb jagah he koi jagah khali nhi he to iswar ke ana jana kese ho sakta He?
Murkh brahmano aap log kab sudhroge.. sampurn Bharat Desh - Sanatan Hindu Dharm - Samapt ho jane ke baad...yah Vishal Bharat Desh kitna sikud+simat gaya hai.....RSS MODI YOGI ka Dhanyawad mano.. JATI-PATI ka kukarm khel band karo... Kewal aur kewal HINDU+SANATANI Bano... Jay Shree RAAM Ji...🙏🙏...
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सबसे बड़ा वेद को बर्बाद तो आप लोग किये है
नमस्ते जी 🙏
मैं आपसे इस विषय पर शास्त्रार्थ करना चाहता हूं मैं आपको चैलेंज करता हूं शास्त्रार्थ के लिए
कीस विषय पर 🤔
@@kruvichoksi5599 jis vishay per yah Arya samaj ka naam lekar kutark kar rahe hain yah dharmguru is vishay per
@@rajnishrai7034 गुदा है?
Kya shudra vaigyanik ban sakta hai kya???
आप कुछ भी बन सकते है महोदय, कर्म का अधिकार सभी को है। पर वर्ण जन्म से तय होता है।
आर्य समाज अमर रहे।
वेद की ज्योति जलती रहे।
ओ3म् का झंडा ऊंचा रहे
जो बोले सो अभय, वैदिक धर्म की जय।
महर्षि वेदव्यास के बाद महर्षि दयानंद ने ही वेदों को बचाया है। आर्य समाज ही संपूर्ण विश्व में सत्य सनातन वैदिक धर्म का बिगुल बजा रहा है।
हम सब आर्य हैं आप भी आर्य हैं। पर हिंदू शब्द सनातन धर्म ग्रंथ में कहीं नहीं मिलता है आर्य समाज चेतन मूर्ति की पूजा करता है पाषाण मूर्ति की पूजा नहीं । चार वेद छह शास्त्र और उपनिषदों में यहां तक बाल्मीकि रामायण और वेदव्यास कृत महाभारत में पाषाण पूजा का नामोनिशान उल्लेख नहीं है ।तुम मठाधीश में बैठ कर आराम कर रहे हो। और धर्म का चोला पहनकर अपनी जीविका चला रहे हो । -----जय आर्यावर्त जय भारत।
🤣😂🤣😂 सनातन धर्म ग्रंथों में पाषान की मूर्ती पुजा का उल्लेख नही है यह बात सर्वथा असत्य है
जब शास्त्रों ने मूर्ती प्राणप्रतिष्ठा का विधान बताया है तो आब कीस ग्रह से आए आर्य है जो मूर्ती पुजा का खंडन कर रहे है
बीना ग्रंथ पढ़े ग्रंथों पर भाष्य नही करते
और खासकर रामायण में मूर्ती पुजा का उल्लेख नही है एसा तो कभी मत कहना वर्णा मुर्खों की श्रेणी में शामील हो जाओगे
Jay aryvart jay satya sanatan vedic dharm ese puranik hindu nich he
गधा दयानंद 🐐
@Ankit JAT डॉगी दयानंद 😅🦙
@Ankit JAT तेरा बाप अज्ञानी
नहीं ,ऐसा नहीं है आर्य समाज की विचारधारा ठीक है । और दयानंद सरस्वती जी का वेदभाष्य उत्तम है । आप लोग तो वेदों में गौ-वध मानते हो और स्वयं को गौभक्त बताते हो
Chalo kisi ne toh Satya bola
Kon sa nasha krta hai bhai😂😂
@@miteshrajsrivastava7257 wo toh tere purano ke shiv karte hai Nasha 🤣
@@miteshrajsrivastava7257 जो दयानन्द करता था भांग , हुलास आदि
Jese radha thi kon wo to bataye
Dharm ka ek lakchhan saty apnana jhuth ko tyagna ap to mullo ki tarah bate kr rahe he
Aree mlechh apne baap dayalund se puch kiski niyog se paida hua tha??
Aur tu kis niyog ki aulaad h
क्या आप नर्क में होकर आये हैं
Arre nastik mayawadi 😂 , jaake Sayan ka kapol kalpit bhashya utha , uska Rigveda bhashya ka Mandal 6 , Sukt 46 , Mantra 3 - Indra ko 1000 ling waala bola 😂 .
Sayan ka Rigveda bhashya ka Mandal 7 , Sukt 33 , Mantra 11 - Mitra aur varun ne urwashi ko dekhkar apna virya Skahlit kar diya aur usse Vasisht paida hogaye 😂
Sayan ka Rigveda bhashya Mandal 6 , sukt 27 mantra 8 padhle - Ladkiya daan mein di jaa rahi hai , waah 🤣 kya bhed Bhashya kiya hai naastik mayawadio ne 😂 .
Jaake Mahidar aur Karpatri ka Yajurveda 23/19-21 ka bhashya padhle 😂 , ghore ka ling manushya stree ki yoni mein , lol 🤣
Saath hi tune kaha ki Arya Samaji aadha ved nahi maante , arre pop aadmi 😂 , Ashwalayan Grihyasutram 3/3/1 aur Taittreya Aranyak 2/9 mein Brahmin Granth ko Puran bola hai ! Puran aur Ved sabd dono virodha bhaasi sabd hai , toh Brahmin Granth ved kaise hogaya !? Shatpath Brahmin 1/4/1/35 mein kaha ki Shakha Samhitao ka paath karna yagya ki heenta hai kyoki wo manushya krit hai , isiliye keval Ishwarokt Ved Mantra Samhita ka paath karo ! Toh shakha samhita ved kaise hogaya !? Issi prakar Nirukt 5/4 aur Ashtadhyayi 4/2/65 jaise pramaano se clear hota hai ki Brahmin Granth keval vyakhya bhaag hai !! Ashtadhyayi 5/1/7 aur Mahabhashyam 5/1/1 ya uske aage piche karke dhund lena , usme saaf likha hai ki Brahmin Granth ka vakya keval Brahmin Granth ka vakya hai !!
Baat rahi tumare kapol kalpit tatha kathit 18 purano ko manne ki toh jo tum naastiko ne devi devtao ka charitra haran kiya hai , wo atyant sharmnaak hai ! Aise bhi tumhare Adi Shankaracharya ne apne BrihadAranyaka Upanishad 2/4/10 ke Shankar Bhashya mein Brahmin Granth ko Itihas Puran bola hai , poora Kandika ka bhashya padhna explanation part wala bhi ! Usme Brahmin Grantho ko shrishti ke aarambh mein asatya kaha hai , jisse phir siddh hua ki Brahmin Granth ved nahi hai !! Aur Ashwalayan Grihyasutram aur Taittreya Aranyak se maine bataya ki Itihas Puran sangya Brahmin Granth ke liye hai , naaki tumhare tatha kathit 18 Puran ke liye !! Aur baat rahi Mahabharat mein Ashtadash puran sabd ki toh Mahabharat mein Itihas Puran aur Ashtadash puran sangya dono hai ! Usme Itihas Puran sangya Brahmin Granth ke liye hai aur Ashtadash puran sangya 18 parvo ke liye hai kyoki Mahabharat - Adiparv , Adhyay 2 (Parv Sangrah) , Slok 386 mein likha hai ki saare 18 Puran issi Mahabharat mein hai . Yaani Ashtadash puran 18 Parv hai !! Naaki Bhagwat aadi kapol kalpit granth !! Saath hi Vedo mein bhi puran sabd aaya hai aur hum maante hai ki Brahmin Granth puran hai , par isse yeh siddh nahi hota ki Vedo mein Brahmin Granth ka naam hai toh Brahmin Granth ved ho gaya ! Asal mein Vedo mein Puran sabd Brahmin Granth ke liye hai hi nahi ! Aapke khudke Pauranik bhashyakaar Sayan aur Acharya Venkat Madhav ne kabhi Vedo mein puran sabd ko 18 Puran aur Brahmin Granth nahi kaha !! Aur Radha rani , lol 🤣 , Mahabharat mein uska naam tak nahi aur Ussi Mahabharat , adi Parv , Adhyay 2 (Parv Sangrah) slok 388 mein kaha ki jo katha ka varnan Mahabharat mein nahi , wo Itihas mein kabhi hua hi nahi . Isiliye gayi tumhari kapol kalpit charitra heen radha rani 😂😂
Radha chlo Arya samaj ke liye kalpanik or dayanand nhi niyogacharya shree dayanand 🤡🤡
Yeh acha h na or kis Mahabharat ki baat apne khud ke added wale yr khud ke likhea so called Mahabharat or us ke translation 🤣😂😂sahi h
Just Arya namazi things acha h kro 😂😂
App to islam ki tarah bate kr rahe he andhe hokar mante raho bs dharm ke 10 lakchhn padho pahle ap
जहाँ वर्ण व्यवस्था नहीं हो और शास्त्र आचरण वो सनातन न होकर अधर्म है। आर्य समाज, इस्कॉन्, जैन, सिख, बौद्ध ये विधर्मी है। सनातन का मूल वर्ण और जाती हैं यही सनातन की सबसे महत्वपूर्ण कड़ी है
बिना पंडित बिना मंत्र के शादी को कया शादी कहेगे
Are baba ji aap to bhagwan shiv banne ki taiyari me hai..gale me mamal to dekho..yahi se pakhand bhi suru hota hai !
Arya samaj to galat hai , lekin yaad rakhe manuscripts ke manysmriti me bhut pracchhepan hai
Hahahahahaa मस्त कॉमेडी है पौराणिको की 🤣🤣🤣🤣। जय हो स्वामी दयानंद सरस्वती
11 नियोग की पैदायीश पवित्र वेदो से अश्लीलता निकालने वाला अधर्मी दयानंद था
सब पढ रहे 😂एकदम नियोगानंद था चरस्वती
ओ आज होता तो हम हिंदु जुतो से पिटाई करते जो इस दृष्ट ने भगवान शिव जी के बारे मे कहा है। इसको तो नर्क ही मिला होगा सब नियोग निकला होगा वहा 😂
Jai hok ganja fhukne wale ki
@@gauranggauri tu hi bol unki jay hum to ishwar , dayanand ki jai bolege chote
@@kartikchahal4433 😂नियोगानंद ईश्वर भी बन गया क्या 😂वाह नमाजीओ का एक एक बात कॉमेडी के सिवा कुछ नहीं होता अंधा कुटिल साप डालो भई पिछवाड़े में
@@gauranggauri ये गांजा फुकने वाले का नाम क्या है 😱कुछ चिन्ह तो बताओ इस गंजेडी का 😂
हर आर्य समाज के लोग भी सनातनी है
जी नही जहाँ वर्ण व्यवस्था नहीं हो और शास्त्र आचरण वो सनातन न होकर अधर्म है। आर्य समाज, इस्कॉन्, जैन, सिख, बौद्ध ये विधर्मी है। सनातन का मूल वर्ण और जाती हैं यही सनातन की सबसे महत्वपूर्ण कड़ी है।
Arya samaji sanatan se alg hair 😂
@@rishabhyadav6705 Naa tum naastik purand namazi Sanatan se alag ho ! Hindu sabd kisi Shashtra mein nahi aur Arya apne aap ko bolte nahi tum , Ved Virodhi mallech katue purand namazi 🤣
वह आर्य समाज है ही नहीं दयानंद समाज है
हर आर्य समाज के लोग भी सनातनी है
@@universaltruth2 ek baar Padma Puran , uttarbhag , adhyay 122 , slok 25-29 padhke , uske baad bol koun namazi hai ! Purand namazi katue !
@@Vayuyajuप्रभु जी मुझे बता दीजिए क्या इन नमाजियों के बारे में लिखा है 😢😢