कान्ह कुंवर के कर पल्लव पैं मनो गोबरधन नृत्य करै।

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  • Опубликовано: 10 окт 2024
  • कान्ह कुंवर के कर पल्लव पैं मनो गोबरधन नृत्य करै।
    ज्यों-ज्यों तान उठति मुरली की, त्यों-त्यों लालन अधर धरै॥
    मेघ म्रीदंगी मृदंग बजावत दामिनि दमकि मनौ दीप जरै।
    ग्वाल ताल दै नीकै गावत गायने के संग सुर जो भरै॥
    देति असीस सकल गोपी जन बरखा को जल अमित झरै।
    अति अद्भुत अवसरि गिरिधर कौ नंददास के दु:ख हरै॥
    - नंददास
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