कविता | बाबू जी | kavita | poem on Father's Day | by Upendra Singh

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  • Опубликовано: 23 ноя 2024

Комментарии • 7

  • @ankitasingh3532
    @ankitasingh3532 5 месяцев назад +2

    Ye zindagi tbhi tk aasan hai jb tk sara bojh pita utha rhe hai..
    👏👏

    • @upendrasinghgk
      @upendrasinghgk  5 месяцев назад +1

      सच है यह पूरी तरह । यह बात पहले भले न महसूस हो लेकिन जब ये पेड़ गिर जाते हैं और सर पर तेज धूप गिरने लगती है तब हक़ीक़त समझ में आने लगती है।
      बहुत बहुत धन्यवाद 👍👍

    • @ankitasingh3532
      @ankitasingh3532 5 месяцев назад +1

      @@upendrasinghgk 👏👏👏👏

  • @vaishnavimishra6298
    @vaishnavimishra6298 5 месяцев назад +1

    दुनिया के कुरुक्षेत्र में,
    कवच कुंडल थे बाबू जी ❤

  • @shubhamsingh-sq1wn
    @shubhamsingh-sq1wn 5 месяцев назад +1

    lovely poem.