मोहे सुन सुन आवे हासी पानी में मीन प्यासी, आतम ज्ञान बिना नर भटके कोई मथुरा कोई काशी, मिरगा न भी वसे कस्तूरी बन बन फिरत उदासी, पानी में मीन प्यासी...... जल बीच कवल कवल बीच कलियाँ, ता पर भवर निवासी, सो मन बस तिरलोक बहियो है यति सीत सन्यासी, पानी में मीन प्यासी... जातो धान धरे निशवाशर मुनि जन सहस अठासी, सो तेरे घट माही विराजे परम पुरष अविनाशी, पानी में मीन प्यासी, है हाज़िर तोहे दूर बता वे दूर की बात निरासी, कहे कबीर सुनो भाई साधो गुरु बिन बरहम ना जासी, पानी में मीन प्यासी...
मोहे सुन सुन आवे हांसी पानी में मीन प्यासी, आतम ज्ञान बिना नर भटके कोई मथुरा कोई काशी, मिरगा नाभि - नाभि से भाव है . . सो मन बस त्रिलोक भयो है योगी सती सन्यासी, पानी में मीन प्यासी... जाको ध्यान धरे निशवाशर ? ....मुनि जन सहस्त्र अठासी, सो तेरे घट माही विराजे परम पुरष अविनाशी, पानी में मीन प्यासी, है हाज़िर तोहे दूर बता वे दूर की बात निरासी, कहे कबीर सुनो भाई साधो गुरु बिन भरम बरहम ना जासी, ? पानी में मीन प्यासी... सारा शबद समझ नहीं आ पा रहा जी।।। सत साहिब जी।।
I laugh at the fish that, the fish(jivatma) is thirsty(doesn't realize GOD) despite being in water(gods world) Without knowing brahma (knowledge of self/soul) the human keeps visiting the mathura and kashi. Human struggles to find GOD at those places, but God resides within him. The musk deer has scent in its own body, but still it searches outside. I burst into laughter looking at the situation of fish (jivatma). Hindu people say RAM and Turk say RAHIM. They fight among themselves for superiority, but still they fail to understand that both names belong to a single GOD. In this world of God, exists the man made world, the human lingers on the trilok world only. Mind fails to think beyond the nectar of lotus and fails to see the river(universe of GOD). I burst into laughter looking at the situation of fish (jivatma). Ignorant guru teach that God resides far away in some imaginable loka. Listening to this, I feel sad for humans. GOD is living in your hearts, within you. Says Kabir, without a true guru, the illusion/confusion won't go away.
मोहे सुन सुन आवे हासी पानी में मीन प्यासी,
आतम ज्ञान बिना नर भटके कोई मथुरा कोई काशी,
मिरगा न भी वसे कस्तूरी बन बन फिरत उदासी,
पानी में मीन प्यासी......
जल बीच कवल कवल बीच कलियाँ,
ता पर भवर निवासी,
सो मन बस तिरलोक बहियो है यति सीत सन्यासी,
पानी में मीन प्यासी...
जातो धान धरे निशवाशर मुनि जन सहस अठासी,
सो तेरे घट माही विराजे परम पुरष अविनाशी,
पानी में मीन प्यासी,
है हाज़िर तोहे दूर बता वे दूर की बात निरासी,
कहे कबीर सुनो भाई साधो गुरु बिन बरहम ना जासी,
पानी में मीन प्यासी...
मोहे सुन सुन आवे हांसी पानी में मीन प्यासी,
आतम ज्ञान बिना नर भटके कोई मथुरा कोई काशी,
मिरगा नाभि - नाभि से भाव है
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सो मन बस त्रिलोक भयो है
योगी सती सन्यासी,
पानी में मीन प्यासी...
जाको ध्यान
धरे निशवाशर ? ....मुनि जन सहस्त्र अठासी,
सो तेरे घट माही विराजे परम पुरष अविनाशी,
पानी में मीन प्यासी,
है हाज़िर तोहे दूर बता वे दूर की बात निरासी,
कहे कबीर सुनो भाई साधो गुरु बिन भरम
बरहम ना जासी, ?
पानी में मीन प्यासी...
सारा शबद समझ नहीं आ पा रहा जी।।।
सत साहिब जी।।
🙏🙏🌺👋👋bahut sunder Kabir Vani etni sunder aap ki maduri Vani Jai ho prahladgi sadguru Kabir Jai parmatma m.g.patel🙏🏽🙏🌻🥀🥀👋👋🌺🌹
bahut sundar rachna ,sant kabir ki aur utna hi sundar gayan Prahladji ki
Behtareen bhajan... as usual 🙏
🙏🙏 Guru Ji Ko koti koti pranam 🙏🙏
धन्य करतार वाली धुन पर यह गाना अच्छा लगेगा एक बार जरूर करें
Radhe Radhe
साहेब बंदगी🙏🙏🙏
Nhi janti kitni bar sun liya h per Abhi bhi antermann ko chhu jata h. 🙏😂
🙏 🙏 🙏 🌹 🌹 🌹
Sahib bndgi
saprem साहेब बंदगी साहेब
🙏🌹Jay gurudev 🌹🙏
Jay kabir bhagwaan🙏🙏🙏🙏🙏
Guru krpa
Very nice bhajan
Rajesh ajmeri
Bolo Radhe Radhe
Nice
Ajay
Wao
I laugh at the fish that, the fish(jivatma) is thirsty(doesn't realize GOD) despite being in water(gods world)
Without knowing brahma (knowledge of self/soul) the human keeps visiting the mathura and kashi. Human struggles to find GOD at those places, but God resides within him. The musk deer has scent in its own body, but still it searches outside. I burst into laughter looking at the situation of fish (jivatma).
Hindu people say RAM and Turk say RAHIM. They fight among themselves for superiority, but still they fail to understand that both names belong to a single GOD.
In this world of God, exists the man made world, the human lingers on the trilok world only. Mind fails to think beyond the nectar of lotus and fails to see the river(universe of GOD). I burst into laughter looking at the situation of fish (jivatma).
Ignorant guru teach that God resides far away in some imaginable loka. Listening to this, I feel sad for humans. GOD is living in your hearts, within you. Says Kabir, without a true guru, the illusion/confusion won't go away.
🙏🏽
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साहेब बंदगी जी