आज आपको एक कड़वी सच्चाई बताने जा रहा हूँ। दिगंबर दीक्षा धारण करना तलवार पर चलने के समान है। जो धर्मात्मा हिम्मत कर उस पर चल लेता है पार हो जाता है और जो नही चल पाता उसका जीवन बीच भवर मे अटक जाता है क्योकि धर्मात्मा जीव आज के समय मे घर मे संसारी लोगो के बीच मे रह जाना बहुत कठिन काम है। हिम्मत न होने से दीक्षा नही ले पाता और धार्मिक होने से गृहस्थ लोगो के द्वारा पीड़ित होता है। हो सके तो धार्मिक लोगो को दीक्षा न लेकर एक आदर्श गृहस्थ परम्परा स्थापित करना चाहिए। ताकि आने वाली पीढ़ी सच्चे जैन के रूप मे आये। साधु से अधिक आज समाज को सद् गृहस्थ की अधिक आवश्यकता है।। जो केवल नाम के जैन है वो गृहस्थी बसाते है और आने वाली पीढ़ी भी ऐसी ही निकल रही है। साधु बन कर भी वैसे आज कल धर्म ध्यान कम संघ वाद, पंथ वाद, वाद विवाद ही ज्यादा हो रहा है। घर मे रहते तो कम से कम समाज मे शांति होती।
Bht bht anumodna bhaiya ji
नमस्तु गुरु देव❤
बहुत बहुत anumodna ichhami
Bahut Bahut Anumodna Anumodna Anumodna. AAPKA
Ratnatry CHARYA SADHANA Nirvighan NIRABADHA RUPSE se Yatra Sampanna ho.
Bahut bahut Anumodna ❤
बहुत बहुत अनुमोदना ❤❤❤
Pujya Acharyasriji ko namostu,namostu, namostu,bahuman bhav.
Samast Dikshyarthi Bhaiyajion ka Ratnatry Dharm PRAGAD rup se palan ho Sath hi Aap sabhi ka Nirvighan NIRABADHA RUPSE Dharma Aaradhana SAMPANNA hove.
बहुत बहुत अनुमोदना 🙏🙏🙏
Bahut bahut Anumodna 🙏🙏🙏🙏
Bahut bahut Anumodna, Badhai Anumodna Anumodna
Bahut anumodana
Bhout bhout anumodan
Bahut bahut anumodna
बहुत बहुत बधाई साधुवाद अनुमोदना अनुशंसा प्रशंसा करते हैं श्री आदिनाथ तीर्थ धाम अमलाहा सीहोर म0 प्र0से ब्र श्रीपाल भैय्या
आपके पुण्य की बहुत बहुत अनुमोदना👍 🙏
Jai ho
बहुत बहुत अनुमोदना,
🙏🙏🙏
आज आपको एक कड़वी सच्चाई बताने जा रहा हूँ। दिगंबर दीक्षा धारण करना तलवार पर चलने के समान है। जो धर्मात्मा हिम्मत कर उस पर चल लेता है पार हो जाता है और जो नही चल पाता उसका जीवन बीच भवर मे अटक जाता है
क्योकि धर्मात्मा जीव आज के समय मे घर मे संसारी लोगो के बीच मे रह जाना बहुत कठिन काम है।
हिम्मत न होने से दीक्षा नही ले पाता और धार्मिक होने से गृहस्थ लोगो के द्वारा पीड़ित होता है।
हो सके तो धार्मिक लोगो को दीक्षा न लेकर एक आदर्श गृहस्थ परम्परा स्थापित करना चाहिए। ताकि आने वाली पीढ़ी सच्चे जैन के रूप मे आये।
साधु से अधिक आज समाज को सद् गृहस्थ की अधिक आवश्यकता है।।
जो केवल नाम के जैन है वो गृहस्थी बसाते है और आने वाली पीढ़ी भी ऐसी ही निकल रही है।
साधु बन कर भी वैसे आज कल धर्म ध्यान कम संघ वाद, पंथ वाद, वाद विवाद ही ज्यादा हो रहा है।
घर मे रहते तो कम से कम समाज मे शांति होती।
दीक्षार्थी भाइयों के भावों की बहुत बहुत अनुमोदना...दीक्षा के भाव बना पाना भी आज दुर्लभ है फिर दीक्षा धारण कर पाना महादुर्लभ..खूब खूब अनुमोदना
Sahi kaha apne mujhe bhi same experience hain...
कुल दीक्षा कितनी हुई
नाम क्या है पूज्य गुरुवर का??
bahut bahit anumodna
Bahut bahut Anumodna, Badhai Anumodna Anumodna
Bahut bahut Anumodana 🙏🙏🙏