मोक्ष या मुक्ति चाहिये किसे आत्मा तो अमर है? | dukh kyon hai? satay kya hai? |

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  • Опубликовано: 24 июн 2024
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Комментарии • 20

  • @kantatekwani5420
    @kantatekwani5420 29 дней назад

    आज आपके प्रवचनों ने मेरे अन्दर एक परम ज्ञान ज्योति प्रज्ज्वलित की , जिसके लिए धन्यवाद शब्द शायद बहुत छोटा होगा। फिर भी आपको परम आभार।

  • @simabiswas8031
    @simabiswas8031 27 дней назад

    ,,🙏🙏🙏❤️

  • @AdarshSingh-fi7pd
    @AdarshSingh-fi7pd 29 дней назад +3

    हम शरीर नहीं हैं तो फिर हम क्या हैं और हम शरीर नहीं है ये कैसे पता चलेगा। अगर हम कुछ नहीं हैं तो दुख किसे होता है? कृपया इसपर एक वीडियो से बता दीजिए।

  • @vaibhavdeshmukh168
    @vaibhavdeshmukh168 28 дней назад

    Ram ram 🙏🙏🙏

  • @sureshthakare6444
    @sureshthakare6444 16 дней назад

    Apne atma ko.hi.nahi samza❤❤❤❤❤

  • @vaibhavdeshmukh168
    @vaibhavdeshmukh168 28 дней назад +1

    Vyaktigat aham hi me he jo sharir ko me samzta he vahi vo he to chaitainya lekin sharir ke karan chaitynya apne ko sharir manta he apne swaswarup ko janna hi mukti he moksha he

  • @yajananandbr4009
    @yajananandbr4009 29 дней назад +1

    दुख मन को होता है

  • @UNKNOWNG-zn1es
    @UNKNOWNG-zn1es 29 дней назад

    🤷एक कल्पना!!🤷वाह क्या बात है आपका। शुक्रिया🙏

  • @yesim741
    @yesim741 27 дней назад

    *शरीर जला दिया जाता है। आत्मा अमर है, तो फिर, नर्क में सजा किसको दिया जाता है गुरु जी?🎉*

    • @rupali2403
      @rupali2403 21 день назад

      @@yesim741 Narak me यातना शरीर milta hai

  • @AdarshSingh-fi7pd
    @AdarshSingh-fi7pd 29 дней назад +1

    जब तक जीवित हैं तब तक किसी न किसी पहचान से जुडेगे ही बिना किसी पहचान जुडे कुछ कर ही नहीं पाएँगे। बिना किसी पहचान के रहना सम्भव ही नहीं है, बिना किसी पहचान का व्यक्ति मिट्टी का गणेश जी हो जाएगा बस एक जगह रखा रहेगा। सारी पहचाने सत्य नहीं हैं इसलिए ये हमेशा नहीं रहेंगी ये भाव रखकर काम किया जा सकता है लेकिन बिना किसी पहचान के कुछ किया ही नहीं जा सकता। आप भी बोल रहें हैं तो अपने दिमाग में अपनी एक छवि बनाकर बोल रहे होंगे बस वो पहचान हमेशा नहीं रहेगी तो उससे आसक्त न होना सम्भव है। क्या बिना पहचान के जिया जा सकता है कृपया एक वीडियो बना दीजिए।

    • @Voiceofbharatt
      @Voiceofbharatt 29 дней назад +1

      Attachment कोई ऐसी चीज़ नही है जिसे आप हाथ में पकड़ ले। Attachment अंदरूनी है। सब पहचाने हमने भीतर ही तो पकड़ रखी है तो obviously उससे मुक्त हुआ जा सकता है।
      Attachment नही होने का मतलब ये नही होता की अब बाहर सब कुछ त्याग देंगे।
      हम जब समझते नही है खुद को तो हम उस attachment या identification को ही "मै" समझने लग जाते है। इससे आजाद हो जाओगे। हा वही जो तुमने कहा आसक्ति नही रहती। जानने से आसक्ति मिट जाती है बाकी बाहर जो भी करना जरूरी है वो तो करेंगे ही। भीतर का द्वंद खत्म हो जाता है अपने को लेकर। जैसे कोई खुद को इससे identify करता है की I'm an Indian और वो फिर अपने और किसी दूसरे देश के वासी के भीतर भेद खड़ा कर लेता है तो जानने से यह मिट जाता है। फिर आप जानते है की सब भेद बस सतही है (पहचानो के है), गहराई में उसमे और आपमें कोई मूल भेद नहीं। तो नासमझी की वजह से जो हमने अपने और बाकियों के बीच में दीवार पर दीवार खड़ी कर रखी है वह गिर जाती है। अब आप गहराई से इसको जीते है की You are the humanity and the humanity is you

    • @AdarshSingh-fi7pd
      @AdarshSingh-fi7pd 29 дней назад

      @@Voiceofbharatt तो अगर किसी फौजी के भेद मिट जाएँगे तो क्या तब भी वह फौज की नौकरी करेगा क्योंकि उसके लिए तो सभी इंसान हो गए अब न तो वो खुदको indian कहेगा न ही दूसरे को chinese या Pakistani तो फिर कैसे किसी terrorist को गोली मार पाएगा और अगर गोली मार दिया तो कोई पहचान बनाकर ही मारेगा न?

    • @Voiceofbharatt
      @Voiceofbharatt 29 дней назад

      ​@@AdarshSingh-fi7pd फिर जो भी होता है वो सही गलत के आधार पर होता है। जिसमे सबका वास्तविक हित है वह वो करता है। केवल इसलिए तो किसी को नही मार देगा क्योंकि वह chinese या पाकिस्तानी है। किसी आतंकवादी को बिल्कुल मार सकता है लेकिन वो भी इसलिए क्योंकि वह गलत है इसलिए नही की वो पाकिस्तानी है।
      हा जिसको भी चीजे समझ आएंगी। जो इतना संवेदनशील होगा उसके लिए व्यर्थ में खून खराबा करना असंभव हो जाएगा। अगर उसकी जॉब में हिंसा निहित है तो वो निश्चित ही छोड़ देगा।
      ये धरती का इतने खंडों में विभाजन की ये भारत, ये चीन, ये सब ही इंसान की मूर्खता पर आधारित है और फिर मेरे तेरे में सदा युद्ध छिड़ा रहता है। सब पहचानो की ही तो लड़ाई है। अगर सब इनसे मुक्त हो जाए तो फिर न कोई देश रहेगा, न सेना, फिर आदमी आत्म अनुशासन से चले तो बाहरी किसी ताकत की दखलंदाजी की जरूरत ही न पड़े। न पुलिस हो, न कोर्ट कचहरी। लेकिन ऐसा संभव है नही। क्योंकि हम बने ही ऐसे है, हमारा ढांचा ही पूरा हिंसायुक्त है। यह तन विष की बेलरी। इसलिए तो ये सब है।

  • @AdarshSingh-fi7pd
    @AdarshSingh-fi7pd 29 дней назад

    ये मैं क्या है?

    • @Voiceofbharatt
      @Voiceofbharatt 29 дней назад

      जो सवाल पूछ रहा है। तुम ही तो हो तो देख लो। तुम्हारे बारे में कोई दूसरा नहीं बता सकता। या बता भी देगा तो तुम तो तभी समझोगे जब खुद देख लोगे की ये सब क्या चल रहा है।

    • @AdarshSingh-fi7pd
      @AdarshSingh-fi7pd 29 дней назад

      @@Voiceofbharatt तो ये मैं(अहम वृत्ति) कैसे बना? है भी या बस illusion है?

    • @Voiceofbharatt
      @Voiceofbharatt 29 дней назад

      @@AdarshSingh-fi7pd जो सवाल पूछ रहा है वह तुम हो। देखो तुम अपने होने का अनुभव विचारो से ही तो करते हो न? मन की सारी उथल पुथल ही माने मूलत: विचार ही तो तुम्हारे होने का भाव पैदा करता है न? उस अर्थ में तुम शरीर नही हो बल्कि विचार हो। लेकिन विचार मस्तिष्क से उठते है जो की शरीर का ही एक हिस्सा है इस अर्थ में तुम शरीर ही हो।
      पर इतना ध्यान रखो की अभी तुम सवाल पूछ रहे हो तो तुम वही प्रश्नकर्ता हो। थोड़े देर बाद तुम मान लो खाना खाओगे तो तुम कहोगे या ये भाव रहेगा की "मै खाना खा रहा हू" तो तुम अब खाने वाले हो। फिर तुम उसके बाद मान लो कोई किताब पढ़ोगे तो तुम कहोगे "मै पढ़ रहा हू "। यहां से इतना तो दिख रहा है की एक होने का भाव है की "मै हू" और फिर वो भाव अपने आप को अलग अलग चीजों/विषयो/कामों से जोड़कर कभी प्रश्नकर्ता बन जाता है, कभी खाने वाला, कभी गाने वाला, कभी पढ़ने वाला, कभी vlogger, कभी कुछ कभी कुछ। तो और चीजे पहचाने बदलती रहती है जैसे जैसे अलग अलग चीजों से संपर्क होता है। लेकिन एक चीज बनी रहती है की "मै हू"। ये मूल भाव है जो अपने को अलग अलग चीजों से संबंधित करता रहता है और कहता है की यह मै हू, यह मै नही हू, ये मेरा है, ये मेरा नही है, ये रोहन का है, आदि।
      इस भाव को पकड़ना है। ये कहा से आ रहा है या कहे इसके पीछे का क्या सच है।
      आप बच्चे के जन्म से भी देखो तो काफी कुछ समझ आएगा। देखो एक बच्चे ने जन्म लिया। अभी उसके पास कोई भी पहचान नहीं है। उसका अभी नाम भी नही है। फिर उसको कोई नाम दे दिया जाएगा, फिर वो अपने आस पास के लोगो से पहचाने जोड़ लेगा, फिर शिक्षा गांव शहर जाती धर्म से पहचाने जोड़ लेगा। मतलब ऐसे पहचाने लगातार बनती बिगड़ती रहती है। तो इतना तो दिख रहा होगा की पहचाने तो बस "मै " का किसी बाहरी चीज से संबंध है। एक चीज हम सबमें शुरू से है और वो है अपने होने का भाव। बाकी सब चीजे की मैं ये हू, मै वो हू, ये सब बाद में जुड़ी है। शुरू में जाकर बस ये "मै भाव" ही पता चलता है माने self awareness की मैं हू। यह केवल मैं हू है। मैं ये हू, मै वो हू, ये सब बाद में बनता है। अभी सिर्फ "हू" (होने का भाव)। और होने का भाव तो सब में होता है। यह होने का भाव सबसे पहले शरीर से पहचान बनाता है की "मै यह शरीर हू"। और इसके बाद समय के साथ बाकी पहचाने बनती है। लेकिन मूल पहचान (पहली पहचान) है की "मै शरीर हू"। अब मैं शरीर हू तो यह शरीर इस स्त्री पुरुष से आया है तो ये मेरी मां और ये पिता है। फिर आगे आगे आगे सब पहचान। अब वह जो भाव है होने का वह शरीर से अलग नहीं है। वह शरीर के साथ ही तो आता है न ? जब आप नही थे माने शरीर नही था तो होने का भाव भी नही था। अब शरीर है तो इसके साथ ही यह भाव है की "मै हू" और फिर "मै यह शरीर हू" और फिर "मै रोहन हू" और फिर "मै इंडियन हू"। अब होने का जो भाव है उसमे तो कोई भेद नहीं हो सकता क्योंकि भेद तब खड़ा होता है जब ये किसी चीज से identify होता है। जब आप कहे "मै" तो खड़ा होगा "तू", यही डिवीजन (द्वैत) है। होने का भाव सभी शरीर में वही है। सभी मनुष्य और जीव जंतु सबमें होने का भाव तो एक ही है। वो होना जीवन की उपस्थिति है। वहा ये भी नही की "मै हू"। वहा भाषा नही बस उपस्थिति का अहसास है।

  • @stock.92
    @stock.92 29 дней назад

    Nature ko jaan lo bas