इस भजन के रचयिता को भी पता नहीं होगा कि रामसुखदास जी ने इसके एक-एक बोल को क्रांतिकारी शरणानन्दजी की मानव-मात्रको एक-मत करनेवाली अकाट्य, अपूर्व वाणी के लिए सटीक बिठा दिया है.. *_शरणानन्दजी की बातें गोली की तरह असर (चोट) करती हैं ! भगवान के शरणागत होने से उनमें ज्ञान का प्रवाह आ गया ! उनकी वाणी में स्वतः गीता का तत्व उतर आया ! उनकी बातों से गीता का अर्थ खुलता हैं ! वे सीधे मूल को पकड़ते हैं, सीधे कलेजा पकड़ते है ।_* ----गीता मर्मज्ञ रामसुखदास जी महाराज *सुन मन उन संतो की वाणी,* *करत है चोट कलेजे भीतर,* *चमक उठे जिन्दगानी । टेर ।।* मानुष जैसा मानुष दिखे, कौन लखे वाको प्राणी । चाह नहीं *(अचाह)* चिंता नहीं मन में, सब से बढ़कर दानी । *सुन मन उन संतो की वाणी,* *करत है चोट कलेजे भीतर,* *चमक उठे जिन्दगानी । टेर ।।* राग न द्वेष न लेश किसी से, चाल चले मस्तानी । हरि सुमिरन *(शरणागति)* सूं हियरौ उमड़े, संत कहो चाहे ज्ञानी ।। *सुन मन उन संतो की वाणी,* *करत है चोट कलेजे भीतर,* *चमक उठे जिन्दगानी । टेर ।।* स्वारथ छोड़ *(अकिंचन)* जगत की सेवा, सुमिरण सारंग पाणी । आदर मान करे औरन का, बन रहे आप अमानी।। *सुन मन उन संतो की वाणी,* *करत है चोट कलेजे भीतर,* *चमक उठे जिन्दगानी । टेर ।।* क्या जाने विषयन सुख भोगी, मोह माया लिपटानी । जाने *(रामसुखदासजी)* हरिका प्यारा, प्रभु में सुरता समानी ।। *सुन मन (शरणानन्दजी) की वाणी,* *करत है चोट कलेजे भीतर,* *चमक उठे जिन्दगानी । टेर ।।* *સત્ય એટલુંય કડવું નથી હોતું પણ સ્વાદ અનુસાર ન મળે એટલે ગળે ના ઉતરે....*
परम पूज्य संत श्री प्रकाश दास जी आपके बारम्बार चरण स्पर्श🙏🙏 पुज्य स्वामी जी हर पल सुमिरन तुम्हारा जी गुरूदेव दादूराम सत्यराम🙏🙏
संत भगवान को बहुत बहुत सुभकामनाये और बहुत बहुत बधाई जय हो सीताराम जय भारत
राम जी राम राम 🙏🙏
जय हो 🙏🙏🙏🙏
इस भजन के रचयिता को भी पता नहीं होगा कि रामसुखदास जी ने इसके एक-एक बोल को क्रांतिकारी शरणानन्दजी की मानव-मात्रको एक-मत करनेवाली अकाट्य, अपूर्व वाणी के लिए सटीक बिठा दिया है..
*_शरणानन्दजी की बातें गोली की तरह असर (चोट) करती हैं ! भगवान के शरणागत होने से उनमें ज्ञान का प्रवाह आ गया ! उनकी वाणी में स्वतः गीता का तत्व उतर आया ! उनकी बातों से गीता का अर्थ खुलता हैं ! वे सीधे मूल को पकड़ते हैं, सीधे कलेजा पकड़ते है ।_*
----गीता मर्मज्ञ रामसुखदास जी महाराज
*सुन मन उन संतो की वाणी,*
*करत है चोट कलेजे भीतर,*
*चमक उठे जिन्दगानी । टेर ।।*
मानुष जैसा मानुष दिखे,
कौन लखे वाको प्राणी ।
चाह नहीं *(अचाह)* चिंता नहीं मन में,
सब से बढ़कर दानी ।
*सुन मन उन संतो की वाणी,*
*करत है चोट कलेजे भीतर,*
*चमक उठे जिन्दगानी । टेर ।।*
राग न द्वेष न लेश किसी से,
चाल चले मस्तानी ।
हरि सुमिरन *(शरणागति)* सूं हियरौ उमड़े,
संत कहो चाहे ज्ञानी ।।
*सुन मन उन संतो की वाणी,*
*करत है चोट कलेजे भीतर,*
*चमक उठे जिन्दगानी । टेर ।।*
स्वारथ छोड़ *(अकिंचन)* जगत की सेवा,
सुमिरण सारंग पाणी ।
आदर मान करे औरन का,
बन रहे आप अमानी।।
*सुन मन उन संतो की वाणी,*
*करत है चोट कलेजे भीतर,*
*चमक उठे जिन्दगानी । टेर ।।*
क्या जाने विषयन सुख भोगी,
मोह माया लिपटानी ।
जाने *(रामसुखदासजी)* हरिका प्यारा,
प्रभु में सुरता समानी ।।
*सुन मन (शरणानन्दजी) की वाणी,*
*करत है चोट कलेजे भीतर,*
*चमक उठे जिन्दगानी । टेर ।।*
*સત્ય એટલુંય કડવું નથી હોતું પણ સ્વાદ અનુસાર ન મળે એટલે ગળે ના ઉતરે....*
अत्यंत सारगर्भित वाणी
अति सुंदरप्रस्तुति