मधुबाला ll कविता: प्याला।। हरिवंश राय बच्चन ll अजीत अजित

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  • Опубликовано: 6 сен 2024
  • मधुबाला
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    जो रस लेकर आया भू पर, जीवन- आतप ले गया छीन,
    खो गया पूर्व गुण, रंग, रूप, हो जग की ज्वाला के अधीन;
    मैं चिल्लाया,' क्यों ले मेरी मृदुता करती मुझको कठोर?
    लपटें बोली,' चुप, बजा- ठोंक, लेगी तुझको जगती प्रवीण।'
    यह, लो, मीना बाजार लगा, होता है मेरा क्रय-विक्रय।
    मिट्टी का तन, मस्ती का मन, क्षण-भर जीवन-- मेरा परिचय!
    - हरिवंश राय बच्चन

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