कभी-कभी || झूठ भी सच लगता है || सच कैसे पता करें??

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  • Опубликовано: 21 окт 2024
  • कहानी की शुरुआत एक ऐसी घर से होती है,जिसका मालिक बनिया होता है,बनिया कि पत्नी अपने पुत्र को जन्म देते वक्त ही,दर्द को सहन नहीं कर पाती, और अपना प्राण त्याग देती है, तब से बनिया ही अपना घर संभालता था, और अपना दुकान भी संभालता था, उसके बगल में एक बूढ़ा और बूढ़ी भी रहते थे, बनिया की पत्नी से उनकी ख़ूब बनती थी, इसलिए बूढे ने बनिया से कहा कि, पहले जब दुकान पर होते थे, तब तुम्हारी बीवी इसे संभाल लेती थी, पर अब तो वो नहीं है, बच्चे और दुकान दोनों को संभाल पाना मुश्किल है, इसलिए तुम इसे दिन में हमारे पास छोड़ दिया करो,तब से बनिया अपने बच्चे को दिन में उनके पास ही छोड़ देता था, पांच साल बीत जाने के बाद, वो बूढ़ा-बूढी भी गुजर गए, अब वो बच्चा दिन में अकेला ही रहता था, या कभी मन करे तो दुकान पर भी रहता था, एक दिन गाँव में एक अजीब घटना घटी, डाकू आए और पूरे गांव में लूट-पाट मचाने लगे,सारे घरो में आग लगा दिये गये, जब बनिया शाम को घर आता है, तो देखता है की, घर के सारे सामान बिखर गए हैं, कीमती चीजें लूट ली गई हैं, छप्पर को आग लगा दी गयी है, और उसका बेटा घर से गायब है, वो रोने लगता है, जब वो घर से बाहर आता है तो देखता है, कि उसके बच्चे की लम्बाई जितनी ही राख पड़ी है, उसे ये लगता है कि, उसके बच्चे को भी जला दिया गया है, वो काफ़ी देर तक ज़मीन पर पड़ा रहता हैफिर अचानक से उठता है, और घर के अंदर चला जाता है, अंदर जाकर वो एक थैला लेकर बाहर आता है, उस थैला में राख को रखता है, और घर के अंदर चला जाता है, अगले दिन सभी लोग अपने घर की मरम्मत करते हैं, लेकिन, बनिया मरम्मत नहीं करता है, और आधी जली छत वाले घर में ही रहता हैं, और घर से निकलना बंद कर देता है, जब गाँव के लोग मिलने आते तो, उनसे बहुत अच्छे से बात करता था, जिससे ये बात साफ होती थी कि, उसका दिमाग सही है लेकिन वो अपने हमें थैले को नहीं छोड़ता था, सभी कहते हैं कि शायद डाकुओं ने तुम्हारे बच्चे का अपहरण कर लिया होगा, लेकिन इन बातों में वो नहीं आता था,फिर एक रात को,कोई बनिये का दरवाज़ा खटखटा रहा था, उधर से आवाज़ आई की पिताजी दरवाज़ा खोलो, मेरा अपहरण डाकुओं ने कर लिया था, मैं किसी तरह से बच कर भागा हूं, पर बनिये ने रात में दरवाज़ा नहीं खोला, उसे लगा की शायद ये डाकुओं की हरकत है, अगले दिन सुबह बच्चा अपने द्वार पर सोया हुआ था, अगल बगल के लोगो ने दरवाजा खुलवाया, जब दरवाजा खुला और बनिया ने अपने बच्चे को जिंदा देखा, तो उसे सीने से लगा लिया, और रात को दरवाजा न खोलने पर बहुत पछताया,इसलिए कहा जाता है कि, सच और झूठ में बस भरोसे का फर्क होता है,अगर हम लोगो को झूठी बात पर भी भरोसा हो जाए, तो सिर्फ वही सच लगता है, इसलिए एक बार भरोसा करने से पहले, जो सामने दिख रहा है उसे, और जो सामने नहीं दिख रहा है उस पर भी, दोनों पर पूरा समय देकर विचार करना चाहिए, और उसके बाद किसी भी निर्णय पर पहुंचना चाहिए, अगर एकतरफ़ से सोचेंगे तो, जो दिख रहा है उसे ही सच मान लेंगे, और हो सकता है कि, वो सच ही ना हो, इसलिए दोनों पहलुओ को जानना बहुत जरूरी है,कहानी की शुरुआत एक ऐसी घर से होती है,जिसका मालिक बनिया होता है,बनिया कि पत्नी अपने पुत्र को जन्म देने के कुछ समय बाद ही,दर्द को सहन नहीं कर पाती है, और अपने प्राण त्याग देती है, तब से बनिया ही अपना घर संभालता था, और अपना दुकान भी संभालता था, उसके बगल में एक बूढ़ा और बूढ़ी भी रहते थे, बनिया की पत्नी से बूढ़ा-बूढ़ी की ख़ूब बनती थी, इसलिए बूढे ने बनिया से कहा कि, पहले जब तुम दुकान पर होते थे, तब तुम्हारी बीवी तुम्हारे बच्चे को संभाल लेती थी, पर अब तो वो इस दुनिया में नहीं है, तुम्हारे लिए बच्चे और दुकान दोनों को संभाल पाना मुश्किल होगा, इसलिए तुम अपने बच्चे को दिन में हमारे पास ही छोड़ दिया करो, हम इसकी देखभाल भी कर देंगे, और हमारा मन भी लग जाएगातब से बनिया अपने बच्चे को, दिन में उनके पास ही छोड़ देता था, दिन भर बूढा-बूढी बच्चे को खिलाते-पिलाते, जब बच्चा रोता तो उसे चुप कराते थे, और शाम को जब बनिया आता तो, उसे बच्चे को वापस सौप देते थे, कुछ सालो के बीत जाने के बाद, बच्चा बड़ा हो गया, और वो बूढ़ा-बूढी भी गुजर गए, अब वो बच्चा दिन में घर पर अकेला ही रहता था, या कभी मन करे तो दुकान पर भी रहता था, एक दिन गाँव में एक अजीब घटना घटी, डाकू आए और पूरे गांव में लूट-पाट मचाने लगे, सारे घरो में आग लगा दिये गये, जब बनिया शाम को घर आता है, तो देखता है की, घर के सारे सामान बिखर गए हैं, कीमती चीजें लूट ली गई हैं, छप्पर को आग लगा दी गयी है, और उसका बेटा घर से गायब है,वो अपने सिर पकड़ कर रोने लगता है, जब वो घर से बाहर आता है, तो देखता ह कि, उसके बच्चे की लम्बाई जितनी ही राख पड़ी हुई है, ये देखने के बाद वो और जोर से रोने लगता है, उसे ये लगता है कि, उसके बच्चे को भी जला दिया गया है, वो काफ़ी देर तक ज़मीन पर अचेत पड़ा रहता है,फिर थोड़ी देर बाद हिम्मत बांध कर उठता है, वो अंदर से टूट गया था, उसके दोनों पैर लड़खड़ा रहे थे, फिर भी किसी तरह घर के अंदर चला जाता है, और अंदर से वो एक थैला लेकर बाहर आता है, उस थैला में राख को रखता है, और थैला लेकर, घर के अंदर वापस चला जाता है, अगले दिन सभी लोग अपने घर की मरम्मत करते हैं, लेकिन बनिया मरम्मत नहीं करता है, और आधी जली छत वाले घर में ही पडा रहता हैं, इसके बाद घर से बाहर निकलना भी बंद कर देता है,और जब गाँव के लोग उससे मिलने आते, और तसल्ली देते तो, उनसे बहुत अच्छे से बात करता था,जिससे ये बात साफ होती थी कि, उसका दिमाग तो सही है, पर वो बहुत ही गहरे दुख में है, कुछ दिनों बाद उसने राख को पास के नहर में बहा दिया, जब सभी कहते थे कि, शायद डाकुओं ने तुम्हारे बच्चे का अपहरण कर लिया होगा, लेकिन बनिया को इन बातों पर भरोसा नहीं होता था, क्यूंकी उसने अपनी आँखों के सामने राख देखि थी, और गाँव में दूसरा कोई भी बच्चा गायब भी नहीं हुआ था,...#buddhiststory #motivation

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