गुजरात स्तिथ बाबा खाटू श्याम जी का प्रसिद्ध, लांभा बलियादेव मंदिर | श्री कृष्ण | बर्बरीक | दर्शन🙏

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  • Опубликовано: 10 фев 2025
  • भक्तों, जय श्री कृष्ण. आप सभी का हमारे कार्यक्रम दर्शन में तिलक परिवार की ओर से हार्दिक अभिनन्दन. भक्तो प्रेम और विश्वास का मूल है त्याग, जहाँ त्याग है वहीँ विश्वास और प्रेम है, बिना त्याग के किसी का विश्वास नहीं जीता जाता, न ही प्रेम पाया जा सकता है, पुराणों में तो ऐसे त्याग और आस्था के कई प्रसंग हैं. प्यारे भक्तो आज हम एक ऐसे ही त्याग की चर्चा करने वाले हैं, जिस त्याग से एक मनुष्य भगवान बन गया, जी हाँ भक्तो बर्बरीक जो राजस्थान में खाटू श्याम जी के नाम से जाने जाते हैं और गुजरात- अहमदाबाद में बलियादेव अर्थात बढियादेव के नाम से विख्यात हैं. भक्तों, बर्बरीक की परीक्षा के बाद भगवान श्री कृष्ण ने उससे सम्पूर्ण मानव जाति की भलाई के लिए अपना मस्तक देने को कहा, बर्बरीक को यह समझते देर न लगी की ये स्वयं आदि पुरुष नारायण हैं उसने अपना मस्तक देना सहर्ष स्वीकार कर लिया, भक्तो बर्बरीक के इस त्याग पर भगवान श्री कृष्ण अति प्रसन्न हो गए और उन्होंने बर्बरीक को कलयुग में ईश्वर स्वरूप पूजे जाने का वरदान दिया. साथ ही बर्बरीक को भगवान् कृष्ण की शक्ति और नाम मिलने का वरदान भी दिया. जिससे वो भक्तो की सभी मनोकामनाओ को पूर्ण करने में समर्थ होगे, भक्तो वही बर्बरीक जी लांभा गाँव में बलियादेव अर्थात बढियादेव बाबा के नाम से पूजे जाते हैं. और भक्तो को तमाम संकटो से बचाकर उनकी समस्त कामनाओ को पूरा करते हैं।
    मंदिर के बारे में:
    भक्तों, लांभा बलियादेव मंदिर गुजरात में अहमदाबाद से लगभग 14 किलोमीटर दुरी पर लांभा गाँव में स्थित है. ये भगवान बलियादेव का लगभग 83 वर्ष पुराना मंदिर है. भक्तो खाटू श्याम ही गुजरात में बलियादेव के नाम से जाने जाते हैं, लांभा गाँव वाले बलियादेव भगवान को दादा कहकर पुकारते हैं। बलियादेव अपने भक्तो को हर संकट से बचाते हैं और यहाँ आने सभी भक्तों की मन्नत पूरी करते हैं.
    मंदिर का इतिहास:
    भक्तो बताया जाता है की लगभग 83 वर्ष पूर्व लांभा गाँव में संक्रमण से लोग बीमार होने लगे, संक्रमण बहुत तेजी से गाँव में फ़ैल रहा था, कोई दवाई कोई दुआ काम नहीं कर रही थी, गाँव के बहुत सारे बच्चे संक्रमण से मौत के बहुत करीब पहुँच चुके थे उन्ही में गाँव के प्रतिष्ठित व्यक्ति पुरुषोत्तम दास का अपना बच्चा भी संक्रमण की चपेट में आ गया, भक्तो खोड़ा भाई के साथ मिलकर पुरुषोत्तम दास जी ने खाटू श्याम जी के मस्तक की स्थापना कर यहाँ बाबा की पूजा आंरभ कर दी, सब गाँव वाले एक साथ पुकार कर कह रहे थे, कि हम आपकी शरण में हैं, हमारी रक्षा करें, भक्तो गाँव वालो की पूजा से बाबा प्रसन्न हुए और मात्र 9 दिनों में संक्रमण से बाबा ने सभी बच्चो की रक्षा की , पुरुषोत्तम दादा का बेटा भी स्वस्थ हो गया और इस प्रकार बाबा का नाम पड़ गया बड़ीयादेव देव यानी सबसे बड़ा देव और कालांतर नाम अपभ्रंश रूप में बलियादेव हो गया. पुरुषोत्तम दादा ने गाँव वालो के साथ मिलकर इसी स्थान पर बलियादेव अर्थात बढियादेव के मस्तक की स्थापना कर मंदिर का निर्माण करवाया। भक्तो बलियादेव श्रद्धालुओं की सभी संकट से रक्षा कर उनकी मनोकामनाएं पूरी करते हैं.
    मंदिर परिसर एवं अन्य मुर्तिया:
    भक्तों, लांभा गाँव में स्थित भगवान बलियादेव अर्थात बढियादेव का मंदिर बहुत ही विशाल परिसर में बना हुआ है जो आज गुजरात में ही नहीं पूरे देश में प्रसिद्ध मंदिर है, मंदिर का विशाल प्रवेश द्वार गजराज की प्रीतिमाओ से सु-सज्जित है, मंदिर में प्रवेश करते ही महादेव भोलेनाथ की विराट मूर्ति के दर्शन होते हैं, भक्तो जैसे ही मंदिर के अंदर पहुँचते हैं तो देखते हैं मंदिर की दीवारों पर महाभारत के कथा चित्र बहुत ही कलात्मक तरीके से अंकित किये गए हैं, मंदिर का दृश्य पौराणिक इतिहास को दर्शाता है जो यहाँ आने वाले भक्तो के मन को आकर्षित करता है, मंदिर के गर्भग्रह में विराजित बलियादेव अर्थात बढियादेव भगवान् को देख भक्त भाव विभोर हो उठते हैं. और उनकी दयादृष्टि की कामना करते हैं. मंदिर का गर्भग्रह, इसकी दीवारें बहुत ही सुंदर और रंगीन पौराणिक चित्रों से सुशोभित हैं. मंदिर के बायीं ओर दर्शन होते हैं गणेश भगवान के और दायीं और विराजमान हैं संकट मोचन हनुमान जी, मंदिर परिसर में विशाल झूमर की रौशनी से सारा मंदिर देदीप्यमान हो उठता है, मंदिर परिसर में एक बहुत ही विशाल हॉल का निर्माण किया गया है यहाँ बैठकर भक्तजन अपने घर से लाया हुआ जलपान ग्रहण करते हैं, मंदिर की और से यहाँ प्रतिदिन २० हज़ार बूंदी के लड्डू बांटे जाते हैं, कहा जाता है की लड्डू बढियादेव जी को अत्यधिक प्रिय हैं।
    मंदिर में विशेष पूजा:
    भक्तो यहाँ मंदिर कि मान्यता है कि जिन बीमार बच्चो को मंदिर में लाया जाता है उन बच्चो में किसी भी प्रकार का संक्रमण हो, मूर्छा आती हो, अनेको बीमारी से पीड़ित बच्चो को ठीक होने में यहाँ अधिक से अधिक 9 दिन का समय लगता है, बताया जाता है की कुछ बच्चे मरणासन्न स्थिति में मंदिर में लाये गए तो भक्तो के विश्वास और बाबा की कृपा से वो यहाँ से ठीक होकर गए हैं, भक्तो यहाँ बहुत बुरी हालत में बच्चे आते हैं और ""बढ़िया देव"" की कृपा से पूर्ण सवस्थ होकर जाते हैं, भक्तो जो लोग यहाँ मन्नत मांगते हैं जब उनकी मन्नत पूरी होती है तो वो फूलो का गरबा “बढियादेव” को अर्पण करते हैं.
    श्रेय:
    लेखक - याचना अवस्थी
    Disclaimer: यहाँ मुहैया सूचना सिर्फ मान्यताओं और जानकारियों पर आधारित है. यहाँ यह बताना जरूरी है कि तिलक किसी भी तरह की मान्यता, जानकारी की पुष्टि नहीं करता है. किसी भी जानकारी या मान्यता को अमल में लाने से पहले संबंधित विशेषज्ञ से सलाह लें.
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