Shaheed Khudeeraam Bos | Bal Bhaskar cover Story

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  • Опубликовано: 4 окт 2024
  • शहीद खुदीराम बोस
    अगस्त माह में देश आजाद हुआ और अगस्त 1942 को 'अंग्रेजो ! भारत छोड़ो' का नारा दिया गया, जो ‘अगस्त क्रांति' के नाम से जाना गया।
    इसी माह 11 अगस्त 1908 को युवा क्रान्तिकारी खुदीराम बोस को फांसी दी गई थी।
    'आजादी के अमृत महोत्सव' पर आइये जानते हैं अमर शहीद खुदीराम बोस के बारे में
    लार्ड कर्जन (अपने अधिकारी साथियों के साथ )-
    एक अधिकारी-
    इंडिया के लोग हमारे खिलाफ बगावत कर रहे हैं...।
    यस सर
    इन्हें आपस में बांटकर ही राज हो पाएगा।
    यूआर राइट सर
    इधर अरविंदो घोष और सिस्टर निवेदिता ने मिदनापुर में 1902 और 1903 में कई सभाएं कीं।
    अरविंद घोष (एक सभा में)-
    साथियो ! हमें अंग्रेजी हुकूमत को खत्म करना ही होगा।
    भीड़ से आवाज आई-
    हम सब आपके साथ हैं... ---- Page-1
    तभी भीड़ में से एक किशोर ने जोरदार नारा लगाया-
    वन्दे मातरम् वन्दे मातरम्
    यह आवाज थी युवा क्रान्तिकारी मिदनापुर निवासी बालक खुदीराम बोस की।
    ग्यारह वर्ष की आयु में |
    उसके भीतर देशप्रेम का |
    अंकुरण हो गया था।
    खुदीराम प्रायः अंग्रेजों के खिलाफ जुलूसों में शामिल होने लगे।
    लार्ड कर्जन ने भारत में 'फूट डालो राज | करो' की नीति अपनाई ।
    स्वाधीनता आन्दोलन तेज होते देखकर उसने बंगाल विभाजन की चाल चली।
    कर्जन (अधिकारियों के साथ) -
    बंगाल बहुत बड़ा है, लोगों की भलाई के लिए इसे दो भागों में बांटा जाएगा।
    बहुत अच्छा होगा, इससे सही शासन भी हो सकेगा।
    1905 में बंगाल पश्चिमी और पूर्वी दो भागों में बंट गया- बंगाल के साथ और कई प्रदेशों में इसका घोर विरोध हुआ।
    जुलूस निकाले गए। भीड़ नारे लगाते हुए -
    हम बंग भंग का विरोध करते हैं।
    अंग्रेजों की तानाशाही नहीं चलेगी नहीं चलेगी, ---- Page-2
    इसी समय अपनी पढ़ाई छोड़कर क्रान्तिकारी नेता सत्येन बोस के नेतृत्व में खुदीराम |
    आजादी की लड़ाई में कूद पड़े। खुदीराम बोस (बाजार में) क्रान्तिकारी पत्रक बेचते हुए-
    शोनार बांग्ला - शोनार बांग्ला ले लो
    पुलिस चिल्लाने लगा- अरे पकड़ो इसे गिरफ्तार कर लो, लेकिन तब तक एक पुलिस के मुंह पर जबरदस्त घूंसा मारकर खुदीराम बोस पुलिस |
    को चकमा देकर भाग गए।
    अब तक खुदीराम बोस रिवॉल्यूशनरी पार्टी में शामिल हो गए थे।
    जुलूस और बाजार में 'वंदे मातरम्' के पर्चे बांटे गए।
    28 फरवरी 1906 को खुदीराम पकड़े गए।
    जज ने फैसला सुनाया कि खुदीराम बोस के ऊपर राजद्रोह का मुकदमा है, लेकिन कोई गवाह न होने से इन्हें चेतावनी के साथ छोड़ा जा रहा है। ---- Page-3
    निर्भीक युवा खुदीराम बोस ने मात्र 16 वर्ष की आयु में पुलिस स्टेशनों पर बम रखा।
    अंग्रेज के सरकारी अधिकारियों को मारने का फैसला किया।
    क्रांतिकारी दल का नेता-
    देखो ये किंग्सफोर्ड बहुत ही क्रूर है. इसे मारना ही होगा। यह काम खुदीराम और प्रफुल्ल कुमार चाकी को दिया जाता है.....
    उस समय किंग्सफोर्ड बहुत क्रूर और निर्दयी जज था। वह क्रांतिकारियों को बहुत
    कठोर दंड देता था। क्रांतिकारियों ने उसे बम से मारने की योजना बनाई। 30 अप्रैल
    1908 को किंग्सफोर्ड के बंगले पर आती हुई बग्घी पर खुदीराम ने बम फेंक दिया।
    दुर्भाग्य से उसमें किंग्सफोर्ड नहीं था।
    दो यूरोपीय महिलाएं थीं, जिनकी मृत्यु हो गई। चारों ओर अफरा- तफरी मच गई।
    चाकी और बोस वहां से भाग लिए ।
    दूसरे दिन 1 मई को खुदीराम बोस गिरफ्तार हो गए।
    चाकी ने पुलिस की गिरफ्त में आने से पहले अपने को गोली मार ली।
    उन पर मुकदमा चला, सजा सुनाई गई ।
    19 वर्ष से भी कम आयु में 11 अगस्त 1908 को देश के युवा क्रान्तिकारी खुदीराम बोस को मुजफ्फरपुर में फांसी दे दी गई।
    इन्हीं क्रान्तिकारियों के बल पर ब्रिटिश हुकूमत डरा था, जिससे 1947 में उन्हें भारत छोड़कर जाना पड़ा।
    आजादी के अमृत महोत्सव पर अमर शहीद खुदीराम बोस को शत् शत् नमन। ---- Page-4
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