pranam guru ji, निगम-कल्पतरोर् गलितं फलं शुकमुखादमृत-द्रव-संयुतम्। पिबत भागवतं रसमालयं मुहुरहो रसिका भुवि भावुकाः॥ ye kaun sa chhand hai..? also kya aap Srimad bhagvat ke sloko ka chahand visleshan ka video post kar sakte hai?
आचार्य जी मैंने भी अपनी कविता में इस छंद का प्रयोग है-------------- स्वबिंब को जान स्व - मानसौकसी। मराल राका भर देखता रहा। परन्तु हेमाद्र -समीर वेग से। निशांत के काल निशांत हो चला।।
अनुष्टुप, उपजाति, मन्दाक्रान्ता, वसन्ततिलका, शार्दूलविक्रीडतम्, मालिनी इन श्लोकों के अलावा अन्यों श्लोकों का गायन प्रस्तुत करें। धन्यवाद। कमसे - कम 4-5 भिन्न-भिन्न श्लोको का गालन जरुर करे , एक ही छन्द के।
उचतम् शैली है।बिलगुन न इ विचार प्रवाह।
🙏🙏🙏🙏
👏🏻
pranam guru ji,
निगम-कल्पतरोर् गलितं फलं शुकमुखादमृत-द्रव-संयुतम्।
पिबत भागवतं रसमालयं मुहुरहो रसिका भुवि भावुकाः॥
ye kaun sa chhand hai..? also kya aap Srimad bhagvat ke sloko ka chahand visleshan ka video post kar sakte hai?
धन्यवाद
आप वीडियो लगातार डालिए
बहुत अच्छा पढाते है
गुरु देव विश्राम मालुम नही हें , बता दिजिएन!
शोभनं गुरु देवः
नमस्ते जी।
Adbhut aacharya ji. Panaam.
अलंकार विषय पर भी चर्चा करें गुरु जी
आचार्य जी मैंने भी अपनी कविता में इस छंद का प्रयोग है--------------
स्वबिंब को जान स्व - मानसौकसी।
मराल राका भर देखता रहा।
परन्तु हेमाद्र -समीर वेग से।
निशांत के काल निशांत हो चला।।
Dhnybaad sir
अनुष्टुप, उपजाति, मन्दाक्रान्ता, वसन्ततिलका, शार्दूलविक्रीडतम्,
मालिनी इन श्लोकों के अलावा अन्यों श्लोकों का गायन प्रस्तुत करें। धन्यवाद। कमसे - कम 4-5 भिन्न-भिन्न श्लोको का गालन जरुर करे , एक ही छन्द के।
प्रणमामि
Nice
👍 thnx