ये सोच कर के ग़म के ख़रीदार आ गए हम ख़्वाब बेचने सर ए बाज़ार आ गए यूसुफ़ न थे मगर सर-ए-बाज़ार आ गए ख़ुशफहमियाँ ये थीं कि ख़रीदार आ गए हम कजअदा चिराग़ कि जब भी हवा चली ताको को छोड़कर सर-ए-दीवार आ गए फिर इस तरह हुआ मुझे मक्तल में छोड़कर सब चारासाज़ जानिब-ए-दरबार आ गए अब दिल में हौसला न सकत बाज़ुओं में है अब के मुक़ाबले पे मेरे यार आ गए आवाज़ दे के ज़िन्दगी हर बार छुप गयी हम ऐसे सादादिल थे कि हर बार आ गए सूरज की दोस्ती पे जिन्हें नाज़ था फ़राज़ वो भी तो ज़ेर-ए-साया-ए-दीवार आ गए - अहमद फ़राज़ मायने कजअदा = जिसमें कोई संकोच न हो, मक्तल = वध स्थल, चारासाज़ = हकीम, जानिब-ए-दरबार = दरबार की और, सकत = बल/ताकत, ज़ेर-ए-साया-ए-दीवार = दीवार की छाया में Read more: www.jakhira.com/2022/02/ye-sochkar-ke-gham-ke-kharidar-aa-gaye.html#ixzz8TZDH7ApR Follow us @jakhirasahitya #jakhirasahitya
Sunny jimmy Khan sb k 7 sai enjoy kr k gaaty hn m.ali Khan sb .....
ये सोच कर के ग़म के ख़रीदार आ गए
हम ख़्वाब बेचने सर ए बाज़ार आ गए
यूसुफ़ न थे मगर सर-ए-बाज़ार आ गए
ख़ुशफहमियाँ ये थीं कि ख़रीदार आ गए
हम कजअदा चिराग़ कि जब भी हवा चली
ताको को छोड़कर सर-ए-दीवार आ गए
फिर इस तरह हुआ मुझे मक्तल में छोड़कर
सब चारासाज़ जानिब-ए-दरबार आ गए
अब दिल में हौसला न सकत बाज़ुओं में है
अब के मुक़ाबले पे मेरे यार आ गए
आवाज़ दे के ज़िन्दगी हर बार छुप गयी
हम ऐसे सादादिल थे कि हर बार आ गए
सूरज की दोस्ती पे जिन्हें नाज़ था फ़राज़
वो भी तो ज़ेर-ए-साया-ए-दीवार आ गए - अहमद फ़राज़
मायने
कजअदा = जिसमें कोई संकोच न हो, मक्तल = वध स्थल, चारासाज़ = हकीम, जानिब-ए-दरबार = दरबार की और, सकत = बल/ताकत, ज़ेर-ए-साया-ए-दीवार = दीवार की छाया में
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ما شاء الله
Qabilay tareef performance ji 🎉
Huzur Muhammad Sahib.. Ustad Tari Sahib ke saath isse phir record karein. Please ...!
Tabla Nawaaz , aap ki bandish kaan mein khatak raha hai Ji
Isko bass kinar ka PATA hai thaap Ka PATA hi nai