42. मालारोहण जी शुद्ध देशना is live

Поделиться
HTML-код
  • Опубликовано: 19 янв 2025

Комментарии • 9

  • @keertisamaiya7472
    @keertisamaiya7472 Час назад

    आदरणीय भैया जी के ज्ञायक ज्ञान स्वभाव की मेरे अन्तरहिर्दय की अनंत गहराइयों से अनंत अनंत कोटि कोटि अनुमोदना कोटि कोटि अनुमोदना कोटि कोटि अनुमोदना🙏🙏🙏🙏🙏🙏🙏

  • @pushplatajain1272
    @pushplatajain1272 3 часа назад +1

    जय हो जय हो जय हो🙏🙏🙏🙏🙏

  • @indirajain8734
    @indirajain8734 16 часов назад

    श्री माला रोहण ग्रंथ राज़ की कोटि-कोटि अनुमोदना है अनुमोदना है अनुमोदना है जय हो जय हो जय हो 🙏🏻🙏🏻🙏🏻

  • @keertisamaiya7472
    @keertisamaiya7472 Час назад

    बहुत ही सुंदर देशना

  • @spiritual_me69
    @spiritual_me69 16 часов назад

    Niz shuddhatm dev jayvant ho 🙏🙏🙏🙏

  • @keertisamaiya7472
    @keertisamaiya7472 Час назад

    अद्भुत

  • @ankitajain1305
    @ankitajain1305 5 часов назад

    जय हो जय हो

  • @keertisamaiya7472
    @keertisamaiya7472 7 часов назад

    जय हो

  • @keertisamaiya7472
    @keertisamaiya7472 Час назад

    इस संसार संयोगों में नहीं दूजा कोई तारणहार है, निज की शरण में आओ चेतन तब ही तेरा उद्धार है, हे भव्य जिनवचनों का अंतर में द्रढ़ श्रद्धान जगाओ तुम,जिन प्रभु की वाणी को सुनकर के मुक्ति श्री को पाओ तुम,जिन प्रभु जैसा जिन भव्यात्मा को अपना स्वरूप स्वीकार हो जायेगा,शुद्ध सम्यक्त्व का शौर्य उस भव्यात्मा के भीतर खिल जायेगा,मुक्ति तो होगी उन्हीं की जो पुद्गल से भिन्न आत्मतत्व को जानेंगे,सम्यक्त्व में जो होंगे द्रढ़ वह मुक्ति रमा को पा लेंगे,सम्यकत्व द्रढ़ होता है तो संयम स्वयमेव आता है, सम्यकत्व ओर संयम दोनों के द्रढ़ होते ही स्वरूप में आचरण हो जाता है, अंतर भूमिका जिसकी सही हो व्यवहार उसका पलता है स्वयमेव, निश्चय पूर्वक ही व्यवहार सही होता है भव्यों स्वयमेव, शुद्धात्मा की प्रतीति ओर ध्रुव का सहकार कभी नहीं छूटे,सम्यकदर्शन ज्ञान चारित्र की राह कभी न छूटे, मोक्षमार्ग पर चलने का हमें मार्ग गुरुदेव बतलाते हैं, मुक्ति वधु को वरने की कला हमको सिखलाते हैं,सम्यकत्व रूपी बीज बोओगे तो रत्नत्रय अनंत चतुष्टय के फल पाओगे,ऐसे रत्नों को पाकर चेतन तुम मुक्ति वधु वर लाओगे,अंतरात्मा को जगाने की विधि गुरुतार हमें बतलाते हैं,अनंत गुणों की निधि का प्रसाद देते हैं मुक्ति का पथ दर्शाते हैं,