श्री अवंति पार्श्वनाथ भगवान उज्जैन

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  • Опубликовано: 5 окт 2024
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    श्री अवंति पार्श्वनाथ
    तेइसवें तीर्थंकर श्री पार्श्वनाथ स्वामी जी के अनेक नाम प्रसिद्ध हैं । वर्तमान में मध्य प्रदेश में उज्जैन शहर में क्षिप्रा नदी के किनारे पर अवन्ति पार्श्वनाथ जी का भव्य चामत्कारिक जिनालय स्थित है जो अनेकानेक भव्य आत्माओं के लिए श्रद्धा का केंद्र है। अवन्ति पार्श्वनाथ जी की प्रतिमा ऐतिहासिक परिप्रेक्ष्य से भी महत्त्वपूर्ण मानी जाती है ।
    भगवान् महावीर स्वामी जी के लगभग २०० वर्ष बाद उनके ही पाट परंपरा के 8वें पट्टधर आचार्य सुहस्ति सूरि जी हुए । एकबार उनका पदार्पण इस क्षेत्र में हुआ । वहां भद्रा सेठानी के घर में वे विराजे । भद्रा सेठानी का एक पुत्र था - अवंति सुकुमाल । बचपन से लेकर तब तक उसने केवल सुख ही सुख का भोग किया । मखमल शय्या से लेकर ३२ पत्नियों के होने तक - वह युवा पुत्र अपने पुण्य को भोग रहा था । आचार्य सुहस्ति सूरि जी नीचे ठहरे हुए थे । रात्रि के समय अपने शिष्य परिवार के साथ वे आगमों का स्वाध्याय करते हुए नलिनीगुल्म विमान ( देवलोक का एक विमान ) के अध्ययन की पुनरावृत्ति कर रहे थे । उनकी आवाज़ ऊपर अवन्ति सुकुमाल के कमरे तक भी आ रही थी । उस युवान को यह लगने लगा की जो वो गुरुदेव बोल रहे हैं , वैसा कहीं सुना है , कहीं देखा है , कहीं महसूस किया है... अवंति सुकुमाल की चिंतन धारा इतनी प्रबल होती गयी की उसे जाति स्मरण ज्ञान हो गया एवं उसे अपने पूर्वभव में नलिनीगुल्म विमान में देवरूप में बिताया गया जन्म याद आ गया । उस नलिनीगुल्म विमान में जन्म क्यों मिला .. यह सोचते सोचते उसे दीक्षा का महत्त्व समझ आया । अविराम होकर वह आचार्य सुहस्ति सूरि जी के पास पहुंच गया एवम् दीक्षा की भावना अभिव्यक्त की । आचार्य भगवंत ने उसे समझाया की तुम्हे बचपन से अबतक केवल सुखों का अनुभव है , मुनिजीवन की कठिनता का तुम पालन नही कर सकोगे । किन्तु अवंति सुकुमाल दृढ रहा । आचार्य सुहस्ति को झुकना पड़ा । अवन्ति सुकुमाल की दीक्षा अगले ही दिन सम्पन्न हुई । दीक्षा के पहले ही दिन अवंति सुकुमाल ने गुरु से यावज्जीवन अनशन का व्रत ले लिया एवम् शमशान भूमि की ओर चल पड़े । पहली बार नंगे पैर चलना , कीड़े मकोड़ों का उपद्रव , भीषण ठण्ड आदि सभी चीज़ों का अनुभव अवन्ति सुकुमाल ने जीवन में प्रथम बारी ही किया । रात्रि के पहले प्रहर में जीवों ने उनके पैर , दूसरे प्रहर में उनकी जंघा , तीसरे प्रहर में उनका पेट , चौथे प्रहर में उनके ऊपरी भाग के मांस को निगल लिया एवम् मुनि अवंति सुकुमाल दीक्षा की प्रथम रात्रि में ही कालधर्म को प्राप्त कर गए ।
    अवंति सुकुमाल के कालधर्म से वैराग्य पथ को वरन करने के लिए उसकी एक गर्भवती पत्नी को छोड़ शेष सब परिवार ने भी दीक्षा ग्रहण की । गर्भवती स्त्री की कुक्षी से पुत्र का जन्म हुआ जिसका नाम महाकाल रखा गया एवं वीर सम्वत् 25 के आसपास उसने अपने पिता के संयम अनुमोदनार्थे पार्श्वनाथ परमात्मा का भव्य जिनमंदिर उस स्थान पर बनवाया जो अवंति पार्श्वनाथ जी के नाम से विख्यात हुआ ।
    कालक्रम से मिथ्यात्वियों के बढ़ते प्रभाव से अन्य धर्मियों ने अवन्ति पार्श्वनाथ की प्रतिमा ढककर उस स्थान पर शिवलिंग स्थापित कर दिया ।
    महावीर स्वामी जी के लगभग ९०० वर्षों बाद एक महाप्रभावक आचार्य हुए - आचार्य सिद्धसेन दिवाकर । उस समय उज्जैन - अवंति में राजा विक्रमादित्य का शासन था । राजा के समक्ष ही आचार्य देव ने शिवलिंग के आगे स्तोत्र बोलना चालू किया । उस स्तोत्र की ११ वीं गाथा बोलते समय वह शिवलिंग विस्फोटित हो गया एवं , भूमि कंपायमान हुई एवम् निचे से पार्श्वनाथ प्रभु की वही प्रतिमा प्रकट हुयी । सिद्धसेन दिवाकर जी ने ४४ पद्यों में अपना स्तोत्र पूरा किया एवं वह आज कल्याण मंदिर स्तोत्र के नाम से सुविख्यात है । सत्य जानकर राजा भी आचार्य श्री का भक्त बना , अवन्ति पार्श्वनाथ प्रतिमा जी की पुनर्स्थापना की गयी एवम् अन्य धर्मियों ने लज्जित होकर उसके पास में ही महाकाल का अलग मन्दिर बनवाया ।
    अवन्ति पार्श्वनाथ जी की प्रतिमा अत्यंत प्रभावक कही जाती है । वर्तमान में इसका जीर्णोद्धार चल रहा है । जीवन में जब भी पुण्योदय हो , जिनप्रतिमाओं का दर्शन पूजन करके सम्यक्त्व दृढ करना ही चाहिए एवम् वर्षो वर्षों से उनकी संग्रहित मंत्रशक्ति से स्वयं को भी पावन करना ही चाहिए ।।
    2300 साल पुराना देश का पहला अवंति पार्श्वनाथ मंदिर देश का ऐसा पहला जैन मंदिर बना,जहां कल्याण स्त्रोत की 44 गाथा देहरियाें पर लिखी गई इस वजह से मिला स्थान:-
    .दानीगेट पर 2300 साल पुराना अवंति पार्श्वनाथ मंदिर देश का ऐसा पहला जैन मंदिर होगा, जहां कल्याण स्त्रोत की 44 गाथा देहरियाें पर लिखी गई हो। यह मंदिर पहले से ही देश के 108 पार्श्वनाथ मंदिरों में शामिल होने के कारण प्रसिद्ध है। 9 साल में 10 करोड़ रुपए के खर्च से अब जाकर इसका जीर्णोद्धार पूरा हुआ है।
    आचार्य मणिप्रभ सागर महाराज इसके प्रणेता हैं। आचार्य के सान्निध्य में ही देशभर के जैन समाज के दानदाताओं के सहयोग से 2008 में मंदिर निर्माण शुरू हुआ था। सफेद मार्बल से नए स्वरूप में बने मंदिर का निर्माण राजस्थान मकराना के 100 कारीगरों ने किया है। लगभग 100 फीट चौड़े, 200 फीट लंबे मंदिर की वर्ष 2019 में प्रतिष्ठा हुई है।

Комментарии • 1

  • @chetnamotiwala3129
    @chetnamotiwala3129 Год назад +2

    🙏🌹🙏🌹🙏🌹🙏🌹🙏🌹👏👏💕❣️❤Bolo bolo shri Avanti Parshwnath bhagwan ki jay🙏🙏🙏👌